घटनाक्रम एवं अनुभव

"अगर कावेरी नहीं होगी तो उपयोग करने के लिये पानी ही नहीं होगा। मैंने कुछ महीनों पहले ईशा फाउंडेशन के लोगों को देखा था, पर कहाँ, ये याद नहीं आ रहा। काफी समय पहले उन्होंने एक कार्यक्रम आयोजित किया था और मैंने वह सब सुना था। अब किसानों को सहायता देने के लिये फाउंडेशन बहुत कड़ी मेहनत कर रही है। ऐसे अभियान से जुड़ने में कुछ भी गलत नहीं है, ये वास्तव में किसानों के लिये अच्छा है। मेरा कहना ये है कि हमें आगे बढ़ कर वो करना चाहिये जिसका सुझाव ये लोग दे रहे हैं"।

इन शब्दों का स्वयंसेवक नरेन्द्र पर बहुत असर हुआ। वे कहते हैं, "जब हम पहले ही गाँव में गये तो वहाँ पर तालुका के एक भूतपूर्व अधिकारी के मुँह से ये शब्द सुन कर मेरी आँखों में आँसू आ गये और ऐसा लगा कि आने वाले महीनों में हम जो ये यात्रा करने जा रहे हैं वह अपने उद्देश्य में अवश्य ही सफल होगी"। ये सारे स्वयंसेवक 'कावेरी पुकारे' अभियान के 'किसानों तक पहुँचे’ भाग में एक महीने तक ट्रकों में एक गाँव से दूसरे गाँव घूमने वाले हैं।...

31 जुलाई 2019 के दिन कावेरी पुकारे अभियान के इस कार्यक्रम का भव्य शुभारम्भ, सद्‌गुरु ने हरी झंडी दिखाने के साथ किया। एक बड़ा परिवर्तन लाने के उद्देश्य से इस सारे अभियान और कार्यक्रमों की योजना सद्‌गुरु ने ही बनायी है। इस समारोह में 28 ट्रकों को विदा किया गया जो दो राज्यों, कर्नाटक और तमिलनाडु के विभिन्न जिलों में हज़ारों किसानों से संपर्क करेंगे। ये ट्रक सद्‌गुरु के शब्दों में अभियान के उद्देश्य का प्रचार करेंगे। साथ ही स्वयंसेवक हज़ारों किसानों को वृक्ष आधारित खेती के विभिन्न फायदों तथा आर्थिक लाभों के बारे में समझायेंगे। इस पद्धति से खेती कर के ये किसान 5 से 7 वर्षों में अपनी आय को 3 से 5 गुना बढ़ा सकते हैं।

5 अगस्त 2019 के दिन, इस पहल के लिये एक राजसी सहयोग भी प्राप्त हुआ जब मैसूरु के महाराजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार ने इस अभियान का कर्नाटक में शुभारम्भ महल के उत्तरी द्वार पर स्थित कोटे आंजनेय स्वामी मंदिर के पास से हरी झंडी दिखा कर किया। "मंदिर अत्यंत भव्य लग रहा था जैसे कि उसे इस समारोह के लिये सजाया गया हो और जब हम अंदर गये, तब पुजारियों ने वाहनों के स्वागत के लिये विशेष पूजा की जिससे आयोजन की एक शुभ शुरूआत हुई", ईशा स्वयंसेविका राएसा ने बहुत ख़ुशी से बताया।

हर ट्रक के साथ 6 -7 स्वयंसेवकों की एक टीम है जिनके साथ वे कुछ और लोग भी शामिल हैं जो ईशा आउटरीच की पर्यावरणीय पहल 'प्रोजेक्ट ग्रीनलैंड्स' में भी लंबे समय से भाग ले रहे हैं। बहुत से नये स्वयंसेवक शहरों में पले-बढ़े हैं जिन्होंने पहले गाँव नहीं देखे हैं, पर किसानों से मिलने की उनकी इच्छा वास्तव में प्रेरणादायी है। वे अभियान से इतने गहरे जुड़े हुए हैं कि उन्होंने अपनी टीमों के नाम भी कावेरी की सहायक नदियों के नाम पर रखें हैं, जैसे अर्कावती, लोकपावनी, हेमावती, शिमशा, काबिनी, लक्ष्मणातीर्था, कपिला, एवं होन्नुहोले।

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एक स्वयंसेवक ने किसानों के साथ अपनी पहली मुलाकात की खुशी को कुछ इस तरह व्यक्त किया - "जैसे ही हमारा ट्रक गाँव में पहुंचा, बहुत सारे लोग उसके चारों ओर इकट्ठा होने लगे। भीड़ हमारे ड्राइवर को सही जगह और सही कोण में ट्रक को खड़ा करने में मदद कर रही थी, जिससे ट्रक में लगा हुआ वीडियो स्क्रीन सभी को दिख सके। कावेरी पुकारे वीडियो को देख लेने के बाद उनका उत्साह और भी ज्यादा बढ़ गया। लोगों की जिज्ञासा इतनी बढ़ गयी थी कि उन्होंने वृक्ष आधारित खेती तथा इस अभियान के बारे में प्रश्नों की झड़ी लगा दी। उनकी उत्सुकता देख कर नदी वीर भी बहुत उत्साहित हो गए। वैसे भी ये नदी वीर अत्यधिक प्रेरित हैं। उन्हें खास तौर से ट्रकों के साथ इसीलिए भेजा गया है ताकि वे लोगों को समझा सकें और उनके प्रश्नों के उत्तर दे सकें"।

"मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा कि एक पुलिस अधिकारी अभियान की एक प्रचार पुस्तिका हाथ में ले कर किसानों को अपने विचार बता रहा था।तब मुझे समझ में आया कि इतनी अफ़रा-तफ़री और समस्याओं के बीच भी मूल रूप से कुछ तैयार हो रहा था - वह था किसानों के साथ सीधा और एकदम सही संपर्क", स्वयंसेविका विनिती ने बताया।

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सभी किसान उस समय अभियान के साथ एकमत हो गये जब एक भूतपूर्व तालुका प्रमुख उत्सुकता के साथ आगे आये और लोगों की सभा को स्वयं ही संबोधित करने लगे, "संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहले ही कहा है, वर्ष 2022 -24 तक जल संकट बहुत गहरा हो जायेगा। तो हमें ही परिस्थिति को सुधारना है, सही है न ? अगर हम पीने के पानी को नहीं बचाते तो ये हम सब के लिये अपने जीवन को खतरे में डालने जैसा ही होगा, है कि नहीं ? अच्छी बात है, आगे बढ़िये और ये काम कीजिये"।

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उनकी दायीं तरफ खड़े एक किसान ने जोर दे कर कहा, "हमें मानसून की बारिश चाहिये"।

तब एक और किसान बोला, "इस पूरे साल मानसून था ही नहीं। मानसून बिल्कुल नहीं आया। कोडागु में बरसात हुई ही नहीं, कल परसों थोड़ी बारिश हुई, बस इतनी ही। लेकिन देखिये, उत्तरी कर्नाटक और महाराष्ट्र में बाढ़ आयी हुई है"।

एक स्वयंसेवक ने तब कहा, "हम आप को यही बताना चाहते हैं कि हम मानसून की वर्षा नहीं बना सकते, इसीलिए ही पेड़ लगाना जरूरी है"।

एक तरफ लोग बहुत दुखी भी थे पर साथ ही आशावान भी, और उनके लिये कावेरी पुकारे अभियान की अडिग दृढ़ता आशीर्वादस्वरूप थी। एक स्वयंसेवक सूर्या ने अपनी भावना इस तरह प्रगट की, "ये वैसा क्षण था जब कोई अत्यंत दुःख और निराशा से भरा हो और आप के साथ अपनी पीड़ा बाँट रहा हो, और अचानक ही उसके सामने, स्क्रीन पर एक नयी आशा का संचार हो जाये"।

स्वयंसेविका राएसा ने बताया, "अपने आप को इतने सारे किसानों के बीच पा कर तथा उनके कष्टों को नजदीक से देख कर मुझे सद्‌गुरु की वो बात याद आयी जो उन्होंने नदी अभियान के दौरान कही थी, "खेती, जो हमारी मानव सभ्यता का मूल आधार है, वो आज एक हृदय तोड़ने वाली गतिविधि हो गयी है। यही समय है कि हम नदियों के लिये एकत्रित हो कर अभियान चलायें"।

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"देश के इस भाग में इस ऐतिहासिक घटना का हिस्सा बन कर मैं अपने आप को परम सौभाग्यशाली मानती हूँ"- ये बात अर्कावती ने कही जो अपना पुराना नाम भूल गयी है और कावेरी की एक सहायक नदी के रूप में ही अपने आप को जान कर खुश है।

संपादकीय टिप्पणी कोई भी 'कावेरी पुकारे' अभियान में अपना सहयोग दे सकता है। ये कुछ तरीके हैं --

एक पौधे के लिये 42 रुपये दें।

स्वयंसेवक बनें।

एक क्राउडफंडिंग पेज शुरू करें।

कावेरी घाटी के किसानों के साथ जुड़ें। हमारे साथ संपर्क में रहें।