सद्‌गुरुशेरिल सिमोन की जीवन-यात्रा को समेटने वाली पुस्तक ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ का हिंदी अनुवाद ‐ आप पढ़ रहे हैं एक धारावाहिक के रूप में:

बाईस बरस की उम्र में मैंने अपने बेटे क्रिस को जन्म दिया। टेड और मैं क्रिस को ले कर बहुत-बहुत खुश थे। मानो हम हवा में उड़ रहे हों। हमारा आंतरिक आनंद लौट आया था! मैं हफ्तों ठीक से सो नहीं पायी थी। यह चमत्कार इतना सुंदर था कि कोई भी चीज हमारी खुशी उतार नहीं सकती थी। कुछ समय तक हमारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दबे से लग रहे थे। एक साल बाद टेड को उसके संगीत के लिए कुछ मौके मिलने लगे थे जिसके लिए हम अटलांटा रहने आ गये।

अचानक तलाक से हुआ सामना

यहां आने के थोड़े दिन बाद ही फ़ास्ट फॉरवर्ड चलने वाले टेप की तरह हमारी शादी अचानक चरमराकर थम गयी। जाने क्यों अचानक टेड ने तलाक लेने की बात कह डाली। मुझे पहले ही इसका आभास हो जाना चाहिए था, लेकिन उन दिनों उतने तलाक नहीं हुआ करते थे।

रेडियो पर हेलेन रेड्डी गाना गा रही थीं, ‘आई एम वूमन, हियर मी रोर’ (मैं औरत हूं, मेरी दहाड़ सुनो)। पर मैं दहाड़ नहीं पा रही थी। मैं एक अकेली मां थी, टूटी हुई और गले तक दुख में डूबी हुई।
यह झटका पेट में एक जोर का मुक्का खाने जैसा था। मेरी सांस रुक गयी थी। मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि शादी कर के एक बच्चा हो जाने के बाद भी हमारे सामने यह विकल्प हो सकता है। मैंने सोचा था कि हमने जीवन-भर साथ निभाने के लिए शादी की है और अपने उथल-पुथल वाले वैवाहिक जीवन को हम संवार लेंगे। अब जब मैं पीछे मुड़ कर देखती हूं तो समझती हूं कि हम दोनों में से कोई भी इस रिश्ते में खुश नहीं था पर मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि यह रिश्ता फिर से कभी जुड़ नहीं सकता। उस समय मैं अपना पूरा ध्यान एक अच्छी मां बनने में लगाये हुए थी। इस कारण से शादी को ले कर मेरी चिंता दब गयी थी।

चीज़ों से अलग होना हमेशा मुश्किल फैसला रहा है

मैंने उस समय यह महसूस नहीं किया था पर मैं कोई चीज छोडऩा पसंद नहीं करती। पिछले इक्कीस वर्षों से वही कारोबारी साझेदार (जो मेरे एक नजदीकी मित्र हैं), पिछले अट्ठारह वर्षों से वही वकील और पिछले पच्चीस साल से (हालांकि हमने औपचारिक रूप से शादी नहीं की है)

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बाईस बरस की उम्र में मैंने अपने बेटे क्रिस को जन्म दिया। टेड और मैं क्रिस को ले कर बहुत-बहुत खुश थे। मानो हम हवा में उड़ रहे हों। हमारा आंतरिक आनंद लौट आया था!
वही मेरे दूसरे पति मेरे साथ हैं।वैसे यह है तो एक अच्छा गुण पर यह हमेशा एक सही फैसला नहीं होता। जैसा कि एक गाने में कहा गया है कभी-कभी आपको ‘मालूम होना चाहिए तार कब तोड़े जायें।’ अगले कुछ वर्षों तक मैं तार छोड़ नहीं पायी और हम रिश्ते की उथल-पुथल में हाथ-पैर मारते रहे। हम दोनों के बीच की वह मखमली गर्मी गायब हो चुकी थी पर मैं अभी भी शादी को बचाये रखना चाहती थी। दूसरी तरफ टेड महसूस कर रहा था कि उसने अपने जीवन के मूल्यवान वर्ष जेल में गवां दिये और अब वह शादी में खुश नहीं है। उसने कहा कि वह अपने जीवन का और अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहता। हे भगवान!

विवाह दो आत्माओं का मिल्न होता है

शायद ऐसा नहीं होना चाहिए था। इस रिश्ते को टिके रहना चाहिए था। उसके बाद रिश्तों को ले कर मेरे मन में एक कटुता आ गयी थी। अब कच्ची उम्र की उस आदर्शवादी सोच पर से मेरा विश्वास उठ गया कि विवाह दो आत्माओं का मिलन होता है और यह कि कोई चीज हमेशा यों ही बनी रहेगी। इतना ही नहीं जीवन की हर पल बदलती प्रकृति ने मुझ पर अपनी कभी न मिटने वाली छाप छोड़ दी थी।

दूसरी तरफ टेड महसूस कर रहा था कि उसने अपने जीवन के मूल्यवान वर्ष जेल में गवां दिये और अब वह शादी में खुश नहीं है। उसने कहा कि वह अपने जीवन का और अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहता। हे भगवान!
तलाक पूरी तरह टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाने जैसा लगा। मैंने पहले कभी ऐसी निजी क्षति का अनुभव नहीं किया था। मेरे जीवन की दूसरी क्षतियों ने भी मुझे झकझोरा था लेकिन इसने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था और यह अत्यधिक निजी था। इसने मुझे अच्छी और सच्ची तरह से यह समझा दिया था कि हर चीज किस प्रकार देर-सबेर समाप्त हो ही जाती है। शादी के बाद का जीवन खुश-खुश चल भी रहा हो तो भी हमेशा यूं ही नहीं चलता रहेगा। ‘जब तक मृत्यु हमें अलग न कर दे’ वाली बात सिर्फ होनी की ओर संकेत करती है। बाद में जब मैंने फिर से प्रेम पाया तब मैं सातवें आसमान पर नहीं चढ़ी और इस पर दो आत्माओं के मिलन का बोझ नहीं लादा। कोई भी अस्थाई चीज, जिसकी अच्छी मिसाल हैं रिश्ते, अच्छे या बुरे, किसी-न-किसी दिन समाप्त हो ही जाती है।

जीवन मुक्ति की चाहत

तो फिर ऐसा क्या है जो कभी समाप्त नहीं होता? क्या हमारे अंदर कुछ ऐसा है जो समाप्त नहीं होता? यह प्रेम तो है ही नहीं, हालांकि मैं इसको जीवन की सबसे बड़ी सौगात समझती थी। योगानंद कहते हैं कि आप इस संसार से मुक्ति पाने से पहले हजार मौतें मरते हैं। यह मुक्ति चाहे जो हो मैं उसे पाना चाहती थी।

शादी के टूट जाने से मेरे अहं को इतनी गहरी चोट लगी थी कि पूरा एक साल बीत जाने के बाद ही मैंने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया। जब मेरी मां पूछती, ‘टेड कैसा है?’ तो मैं जवाब देती, ‘बिलकुल ठीक’, मानो कुछ भी न बदला हो। टेड और मेरी दोस्ती कुछ हद तक बनी ही हुई थी। मैं जानती थी कि वह ठीक है, इसलिए मैं झूठ नहीं बोल रही थी।

मात-पिता से शादी टूटने की बात छुपाई

मैं अपने माता-पिता को शादी टूटने का समाचार देने की जल्दी में नहीं थी। मेरे परिवार में आज तक किसी का तलाक नहीं हुआ था और मैं अपनी शादी टूटने के कारण बेहद शर्मिंदा थी, खास तौर से इसलिए कि मैं इस शादी के लिए अड़ गयी थी। लगभग मेरे सभी शुभचिंतकों ने, और-तो-और मेरे मित्रों तक ने (सिर्फ मर्गी को छोड़ कर) इस शादी का विरोध किया था।

योगानंद कहते हैं कि आप इस संसार से मुक्ति पाने से पहले हजार मौतें मरते हैं। यह मुक्ति चाहे जो हो मैं उसे पाना चाहती थी।
बैरी तक ने मुझसे यह शादी न करने की बात की थी और कहा था कि यह शादी वैसी नहीं होगी जैसी मैं सोच रही हूं और टेड मेरी आशा के विपरीत होगा। मुझे लगने लगा कि तलाक मेरे जीवन की सबसे बड़ी हार है।

हालांकि मेरे माता-पिता बड़ी आसानी से मेरी मदद कर सकते थे, लेकिन उनसे जरा भी मदद लिये बिना मैंने अपने जीवन का दूसरा दौर शुरू कर दिया। वे एक अलग प्रांत में रहते थे और मैं उनसे सप्ताह में सिर्फ एक बार फ़ोन पर बात कर लेती थी। मैंने उनके सामने यह कभी नहीं माना कि मैं बुरे समय से गुजर रही हूं। मेरे जीवन का वह दौर खत्म हो चुका था और अच्छे या बुरे के लिए मेरे बेटे का और मेरा जीवित रहना मेरे ही भरोसे था।

ये चुनौती बहुत बड़ी थी

अपने जीवन का पहला प्रेम ही नहीं, साथ ही सुरक्षा की शांति भी खो देने का गहरा दुख मुझे सता रहा था, लेकिन मैं इस बारे में कुछ बोलना नहीं चाहती थी। कमजोर पडऩा मुझे कतई पसंद नहीं था। मैं अपना संतुलन वापस पाने तक इस बारे में बिलकुल बात नहीं करना चाहती थी। मेरा स्वभाव समस्याओं को सुलझाने, मुसीबतों की मरम्मत करने का था।

शादी के टूट जाने से मेरे अहं को इतनी गहरी चोट लगी थी कि पूरा एक साल बीत जाने के बाद ही मैंने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया।
मैं आम तौर पर भावुकता में नहीं बहती थी, पर इस बार मैं भावुकता के सैलाब में पूरी तरह डूब गयी थी। किसी समय मैंने यह निश्चित रूप से मान लिया था कि भावुकता कमजोरी की निशानी है। मैं जीवन में किसी बात के बिगडऩे पर शिकवा-शिकायत करने और गुस्सा दिखाने में विश्वास नहीं करती थी। परिस्थिति सुधारने के लिए आपसे जो सबसे अच्छा बन पड़े कीजिए और आगे बढ़ जाइए। मैं जीवन की चुनौतियों को गतिरोधकों की तरह मानती थी, लेकिन अब जो हुआ वह बहुत भारी था। रेडियो पर हेलेन रेड्डी गाना गा रही थीं, ‘आई एम वूमन, हियर मी रोर’ (मैं औरत हूं, मेरी दहाड़ सुनो)। पर मैं दहाड़ नहीं पा रही थी। मैं एक अकेली मां थी, टूटी हुई और गले तक दुख में डूबी हुई। मैं पूरी तरह अपने भरोसे ही थी, मुझे जरा भी आभास नहीं था कि मैं एक अच्छी मां कैसे बनूं और पैसे कैसे कमाऊं -‐ दोनों काम साथ करना तो दूर की बात थी। लेकिन मुझमें मेरा आत्मसम्मान था।