सद्गुरु बता रहे हैं, कि लोगों के संतुलन खो देने का सिर्फ एक ही कारण है, कि वे ये नहीं समझते कि उनके अनुभव उनके भीतर ही पैदा होते हैं। जब आप ये समझ जाते हैं कि - "मेरा जीवन जैसा है, उसे वैसा मैंने खुद बनाया है, किसी और ने नहीं", तब संतुलन पैदा होता है। और संतुलन आने के बाद, इस स्थिर बुनियाद पर कई चीज़ें खड़ी की जा सकतीं हैं।
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