उन तीन सीढ़ियों को चढ़ने के बाद, व्यक्ति भीतरी परिक्रमा में प्रवेश करता है - वही आपको ध्यानलिंग की ओर ले जाती है। बाईं ओर, योग सूत्र के रचनाकार, आधुनिक योग के जनक, पतंजलि की प्रतिमा है। ग्यारह फुट लंबी प्रतिमा को काले ग्रेनाइट से बनाया गया है, जो एक सर्प और मनुष्य के मिले-जुले रूप को दिखाती है, यह जीवन के द्वैत का प्रतीक है। तथा अपनी पृथ्वी से जुड़ी जड़बद्ध प्रकृति से उबरने वाले मनुष्य की दिव्य प्रकृति का भी प्रतीक है। प्रतिमा के सिर पर, सात फन वाला सर्प, चक्रों के माध्यम से ऊर्जाओं के उदय का प्रतीक है - इस प्रकार ये प्रतिमा योग का उद्देश्य प्रकट करती है। दायीं ओर वनश्री तीर्थ है, वे ध्यानलिंग का स्त्री प्रकृति से जुड़ा दैवीय रूप है। वनश्री पतंजलि के ठीक सामने की ओर हैं। हरे ग्रेनाइट से बनी वनश्री, की प्रतिमा को पीपल के वृक्ष में ढाला गया है। इसके बीच में सुनहरी पत्ती स्नेह और संपन्नता की प्रतीक है। इस इष्ट की ऊर्जाएँ ऐसी हैं कि इसके निकट स्त्रियों व बच्चों को ध्यान करने से अधिक लाभ मिलता है। पारंपरिक रूप से मंदिरों के द्वार के ऊपर पाए जाने वाले कीर्तिमुख को, वनश्री के ऊपर स्थान दिया गया है।