सद्गुरु हमें कथा सुना रहे हैं कि किस प्रकार शिव दक्षिण में आए और कुछ समय के लिए वेल्लिंगिरी पर वास करते हुए, इसे दक्षिण के कैलाश में बदल दिया।

Sadhguru: सद्गुरु: शिव को प्रायः एक बैरागी योगी के रूप में दिखाया जाता है। परंतु हम शिव के बारे में जो भी कहें, उसका विपरीत भी उतना ही सत्य है। यह बैरागी जोगी, एक बार एक भावुक प्रेमी बन गया था।

पुण्याक्षी, एक जबरदस्त बोध वाली स्त्री थीं, वे एक भविष्य वेत्ता थीं, जो भारतीय उपहमाहद्वीप के दक्षिणी छोर पर रहती थीं। वे शिव से प्रेम करती थीं और उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थीं। उन्होंने निर्णय लिया था कि वे शिव के अतिरिक्त किसी और से विवाह नहीं करेंगी। पुण्याक्षी स्वयं को इस योग्य बनाने में जुट गईं कि शिव की पत्नी बन सकें। वे सदैव, हर क्षण उनका ध्यान करती; उनकी भक्ति सारी सीमाएँ पार कर गई और उनका तप और संयम, चरम शिखर तक जा पहुँचा।

उनके आवेग का यह स्तर देख कर, शिव करुणा तथा स्नेह से द्रवित हो उठे। उन्होंने पुण्याक्षी के स्नेह को स्वीकार किया और वे उनसे विवाह करना चाहते थे। परंतु जिस समाज में पुण्याक्षी रहती थीं, उन्हें भय था कि विवाह के बाद वे भविष्यवाणी नहीं कर सकेंगी और उनका मार्गदर्शन व संरक्षण करने की योग्यता खो देंगी। उन्होंने अपनी ओर से इस विवाह को रोकने की पूरी चेष्टा की परंतु पुण्याक्षी शिव पर अटल भक्ति रखती थीं, उन्हें अपने संकल्प से डिगाना सरल नहीं था।

शिव ने भी सहज भाव से प्रत्युत्तर दिया और उनके विवाह की तिथि नियत की गई। वे दक्षिणी क्षेत्र के लिए रवाना हुए परंतु पुण्याक्षी के समाज के लोग इस विवाह को संपन्न नहीं होने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने शिव से कहा, ”हे शिव! अगर आप पुण्याक्षी से विवाह कर लेंगे तो हम उसके बोध का लाभ नहीं ले सकेंगे। आप कृपया उससे विवाह न करें।“ परंतु शिव कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे इसलिए वे विवाह स्थल की ओर चलते रहे।

समुदाय के बड़े-बूढ़े लोगों ने उनका मार्ग रोक कर कहा, ”यदि इस कन्या से विवाह करना है तो वधू-मूल्य चुकाना होगा, अन्यथा यह विवाह नहीं होगा।“

शिव बोले, ”वधू-मूल्य क्या है? यह जो भी है, मैं उसे चुका दूँगा।“

उन्होंने पुण्याक्षी और शिव के विवाह के लिए तीन वस्तुओं की माँग की - बिना पोरियों का गन्ना, धारियों से रहित पान का पत्ता और बिना आँख वाला नारियल।

ये सभी चीज़ें तो अप्राकृतिक थीं। गन्ने में सदा पोर होतें हैं, धारियों के बिना पान का पत्ता नहीं होता और आँखों के बिना नारियल नहीं हो सकता। ऐसा वधू-मूल्य नहीं चुकाया जा सकता था इसलिए विवाह होने में संदेह उत्पन्न हो गया।

शिव किसी भी दशा में पुण्याक्षी से विवाह करना चाहते थे अतः उन्होंने अपनी गूढ़ शक्तियों तथा जादुई क्षमताओं के बल पर प्रकृति के सारे नियम तोड़ दिए तथा उन असंभव और अनुचित वस्तुओं को सामने ला रखा।

शिव किसी भी दशा में पुण्याक्षी से विवाह करना चाहते थे अतः उन्होंने अपनी गूढ़ शक्तियों तथा जादुई क्षमताओं के बल पर प्रकृति के सारे नियम तोड़ दिए तथा उन असंभव और अनुचित वस्तुओं को सामने ला रखा। इस तरह वधू-मूल्य चुकाने के बाद वे आगे चल दिए।

परंतु तभी उन पर एक और आखिरी शर्त लगा दी गई। उनसे कहा गया, ”आपको कल सुबह के सूर्याेदय से पूर्व विवाह कर लेना होगा। यदि आपको देर हो गई तो आप उस कन्या से विवाह नहीं कर सकेंगे।

यह सुन कर, शिव तेज़ी से देश के दक्षिणी छोर तक जाने लगे। उन्होंने सारी दूरी को तीव्र गति से पार किया और उन्हें विश्वास था कि वे सही समय पर पुण्याक्षी के पास पहुँच जाएँगे। जब समाज वालों ने देखा कि शिव ने सभी शर्तें पूरी कर ली हैं, और वे किसी भी दशा में, पुण्याक्षी को दिया वचन निभाना चाहते हैं तो वे चिंतित हो उठे।

जब शिव अपनी यात्रा में थे, तो वे शुचींद्रम नामक स्थान पर पहुँचे, जो उनके विवाह-स्थल से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर थी। उन्होंने सूर्य को उदय होते हुए देखा! वे विश्वास नहीं कर सके। वे अपने अभियान में असफल रहे! परंतु यह तो समुदाय के लोगों की आखिरी चाल थी; उन्होंने एक झूठा सूर्योदय बना दिया था। उन्होंने कपूर का एक बड़ा ढेर जमा किया और उसमें आग लगा दी। कपूर इतनी तेज़ी से जला कि शिव को दूर से देख कर यही लगा कि सूर्य उदय हो रहा है और वे अपने अभियान को पूरा करने में असफल रहे। वे कितना निकट आ गए थे, केवल कुछ ही किलोमीटर की दूरी रह गई थी - परंतु वे इसी छल में आ गए कि समय पूरा हो गया था और वे पुण्याक्षी को दिया वचन पूरा नहीं कर सकेंगे।.

पुण्याक्षी अपने विवाह की तैयारियों में मग्न थीं, उन्हें अपने समुदाय के लोगों के इस छल के बारे में कुछ भी पता नहीं थ। जब क्षितिज पर वास्तव में सूर्याेदय हुआ तो उन्होंने देखा कि शिव इस समारोह में नहीं आ रहे। वे क्रोधित हो उठीं। उन्होंने समारोह के लिए बने उन सभी पात्रों को ठोकर मार कर गिरा दिया, जिनमें पकवान और व्यंजन तैयार किए गए थे। वे बहुत रोष में थीं। वे उपमहाद्वीप के अंतिम छोर पर जा कर खड़ी हो गईं। वे एक सिद्ध योगिनी थीं, उन्होंने उस छोर पर खड़े-खड़े अपनी देह त्याग दी। जिस स्थान पर उन्होंने अपनी देह त्यागी थी, वहाँ आज भी एक मंदिर है। वो स्थान कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है।

पारंपरिक रूप से, शिव जिस स्थान पर कुछ निश्चित समय के लिए ठहरे, उसे कैलाश कहते हैं अतः यह पर्वत दक्षिण का कैलाश कहलाता है।

शिव को लगा कि वे अपना वचन पूरा नहीं कर सके इसलिए वे बहुत निराश और कुंठित हो गए। वे वापिस जाने लगे परंतु अपने भीतर के रोष और कोप को शांत करने के लिए, उन्हें किसी स्थान पर बैठने की आवश्यकता अनुभव हो रही थी। वे वेल्लिंगिरी पर्वत के शिखर पर आ कर बैठ गए। वे यहाँ प्रसन्न अथवा ध्यानावस्था में नहीं बैठे। वे स्वयं से कुंठित और क्रुद्ध थे। वे काफी समय यहीं रहे और पर्वत ने उनकी वह ऊर्जा सोख ली, जो किसी भी अन्य स्थान से अलग, बहुत अलग है।

पारंपरिक रूप से, शिव जिस स्थान पर कुछ निश्चित समय के लिए ठहरे, उसे कैलाश कहते हैं अतः यह पर्वत दक्षिण का कैलाश कहलाता है। भले ही रंग, आकार तथा परिमाण के लिहाज़ से इसकी तुलना कैलाश से नहीं की जा सकती, हिमालय के कैलाश की भव्यता अतुलनीय है किंतु अपनी सक्षमता, सौंदर्य तथा पवित्रता के साथ वेल्लिंगिरी भी कुछ कम नहीं है। हज़ारों वर्षों से, अनेक ऋषि-मुनि व योगी इस स्थान पर आते रहे हैं। वेल्लिंगिरी पर्वत बहुत से रहस्यमयी कार्यों का साक्षी रहा है। इस स्थान पर ऐसे अनेक दिव्य सिद्धों का वास रहा है, जिनसे देवों को भी ईर्ष्या हो सकती है, क्योंकि वे इतनी दिव्यता और महिमा से भरा जीवन जीते थे। उन महान आत्माओं ने इस पर्वत को वो सब दिया जो वे जानते थे, और वह कभी खो नहीं सकता।