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शिव अवतार

शिव के असंख्य रूप हैं, जो हर उस संभव विशेषता को समाहित करते हैं- परंतु इन सबके बीच, इनके पाँच बुनियादी रूप हैं।

शिव अवतार और रूप


शिव के असंख्य रूप हैं, जो हर उस संभव विशेषता को समाहित करते हैं - जिनकी कल्पना एक इंसान कर सकता है और नहीं कर सकता। इनमें से कुछ बहुत ही उग्र और भयंकर है। कुछ रहस्यमयी हैं। कुछ प्रिय और आकर्षक हैं। सीधे-साधे भोलेनाथ से ले कर उग्र कालभैरव तक, सुंदर सोमसुंदर ले कर भयानक अघोरशिव तक, वे सारी संभावनाओं को अपने भीतर समेटे हुए हैं, और इन सबसे अनछुए भी हैं। परंतु इन सबके बीच, इनके पाँच बुनियादी रूप हैं। इस आलेख में, सद्गुरू बता रहे हैं कि ये क्या हैं और इनके पीछे का विज्ञान क्या है।

योग योग योगेश्वराय
भूत भूत भूतेश्वराय
काल काल कालेश्वराय
शिव शिव सर्वेश्वराय
शंभो शंभो महादेवाय

शिव का भूतेश्वर रूप


यह सारी भौतिक सृष्टि - जिसे हम देख, सुन, सूंघ, छू व चख सकते हैं - यह देह, यह ग्रह, ब्रह्माण्ड, सब कुछ - यह सब कुछ पंच तत्वों का ही खेल है। केवल पंच तत्वों की मदद से कैसी अद्भुत शरारत - ये ‘सृष्टि’ रच दी गई है! केवल पंच तत्व, जिन्हें आप एक हाथ की अंगुलियों से गिन सकते हैं, इसने कितनी चीज़ें तैयार की गई हैं। सृजन इससे अधिक करुणामयी नहीं हो सकता। अगर ये कहीं पचास लाख तत्व होते तो आप कहीं खो कर रह जाते।

पंच भूतों के रूप में जाने गए, इन तत्वों को साधना ही सब कुछ है - आपकी सेहत, आपका कल्याण, इस जगत में आपका बल और अपनी इच्छा से कुछ रचने की योग्यता। जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन तौर पर, व्यक्ति किसी हद तक इन विभिन्न आयामों को साध लेते हैं। वे कितना नियंत्रण रखते हैं, उसी से उनकी देह, मन और उनके द्वारा होने वाले कामों और उनकी सफलता की प्रकृति सुनिश्चित होती है - या उनकी दृष्टि या समझ कहां तक जा सकती है आदि तय होता है। भूत भूत भूतेश्वराय का अर्थ है कि जो भी जीवन के पंच भूतों को साध लेता है, वह कम से कम भौतिक जगत में, अपने जीवन की नियति या भाग्य को तय कर सकता है।

शिव का कालेश्वर रूप


काल - समय। भले ही आपने पांचों तत्त्वों को अपने बस में कर लिया हो, इस असीम के साथ एकाकार हो गए हों या आपने विलय को जान लिया हो - जब तक आप यहाँ हैं, समय चलता जा रहा है। समय को साधना, एक बिलकुल ही अलग आयाम है। काल का अर्थ केवल समय नहीं, इसका एक अर्थ अंधकार भी है। समय अंधकार है। समय प्रकाश नहीं हो सकता क्योंकि प्रकाश समय में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाता है। प्रकाश समय का दास है। प्रकाश एक ऐसा तत्व है, जिसका एक आदि और अंत है। समय वैसा तत्व नहीं है। हिंदू जीवनशैली के अनुसार, वे समय के छह अलग-अलग आयाम हैं। एक बात तो आपको जाननी ही होगी - जब आप यहाँ बैठे हैं, तो आपका समय तेज़ी से भाग रहा है। मृत्यु के लिए तमिल में बहुत सटीक शब्द या अभिव्यक्ति है - कालम् आइटांगा- ‘उसका समय समाप्त हो गया।’

अंग्रेज़ी में भी हम कुछ समय पहले ऐसा कहते थे, ‘वह एक्सपायर हो गया।’ किसी दवा की तरह इंसान की भी एक्सपायरी डेट होती है। आपको लग सकता है कि आप कई जगहों पर जा रहे हैं। नहीं, जहाँ तक आपके शरीर का संबंध है, यह सीध कब्र की ओर जा रहा है, एक क्षण के लिए भी इसकी यात्रा नहीं थमती। आप इसे धीमा तो कर सकते हैं किंतु यह अपनी दिशा नहीं बदलता। जब आप बड़े होंगे तो धीरे-धीरे जान सकेंगे कि यह धरती आपको वापस निगलने की तैयारी में है। जीवन अपनी बारी पूरी करता है।

समय जीवन का एक विशेष आयाम है - यह अन्य तीन आयामों के साथ मेल नहीं खाता। और ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं में से, यह सबसे अधिक रहस्यमयी है। आप इसकी व्याख्या नहीं कर सकते क्योंकि यह है ही नहीं। यह अस्तित्व के ऐसे किसी भी रूप में नहीं है, जिनकी आपको समझ है। यह सृष्टि का सबसे शक्तिशाली आयाम है, जो सारे ब्रह्माण्ड को एक साथ थामे रखता है। इसी के कारण आधुनिक भौतिकी भ्रम में है कि गुरुत्वाकर्षण कैसे काम करता है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण है ही नहीं। यह समय ही है जो सब कुछ एक साथ बाँधे रखता है।

शिव का शंभो रूप



शिव का अर्थ है, ‘जो है ही नहीं, जो विलीन हो गया।’ जो है ही नहीं, हर चीज़ का आधार नहीं, और वही असीम सर्वेश्वर है। शंभो केवल एक मार्ग और एक कुँजी है। अगर आप इसे एक ख़ास तरह से उच्चारित कर सकें, कि आपका शरीर टूट उठे, तो ये एक मार्ग बन जाएगा। अगर आप इन सभी पहलुओं को साधते हुए वहाँ तक जाना चाहते हैं तो इसमें लंबा समय लगेगा। अगर आप केवल इस रास्ते पर चलना चाहते हैं - तो आप इन पहलुओं से कौशल से नहीं , बल्कि चुपके से भीतर घुस कर परे निकल जाते हैं।

जब मैं छोटा था, तो मैसूर के चिड़ियाघर में मेरे कुछ दोस्त थे। रविवार की सुबह का मतलब था कि मेरी जेब में पॉकेट मनी के दो रुपए होते। मैं मछली मार्केट के उस हिस्से में जाता, जहाँ वे आधी सड़ी मछलियाँ रखते थे। कई बार मुझे दो रुपए में दो-तीन किलो मछली मिल जाती थी। मैं उन्हें एक पन्नी में डाल कर मैसूर के चिड़ियाघर में ले जाता। मेरे पास उससे ज़्यादा पैसे नहीं होते थे। उन दिनों चिड़ियाघर का टिकट एक रुपया था; यह वहाँ जाने का सीधा रास्ता था। वहाँ लगभग दो फीट ऊँचा बैरियर था, अगर आप उसके नीचे से रेंग कर निकल सकें तो उसका कोई शुल्क नहीं लगता था। मुझे रेंग कर जाने में कोई परेशानी नहीं थी। मैं घुटनों के बल होते हुए निकल जाता और सारा दिन अपने दोस्तों को सड़ी मछलियाँ खिलाता।

अगर आप सीधा चलना चाहते हैं, तो यह एक कठिन मार्ग है - ढेर सारा काम। अगर आप केवल घुटनों के बल चलना चाहते हैं तो इसके लिए कई आसान उपाय हैं। जो लोग घुटनों के बल चलना पसंद करते हैं, उन्हें किसी भी चीज़ को साधने की चिंता नहीं करनी पडती। जब तक जीवन चलता है, जीएँ। जब आप मरेंगे, तो उस परम को पा लेंगे।

किसी भी सरल सी चीज़ का हुनर साधने में भी अपनी ही एक सुदंरता है - एक सौंदर्यबोध का एहसास है। मिसाल के लिए, एक फुटबॉल को किक मारना। यहाँ तक कि एक बालक भी ऐसा कर सकता है। पर जब कोई उसे साध लेता है, तो अचानक उसमें एक सौंदर्य बोध आ जाता है। आधी दुनिया उसे बैठ कर देखती है। अगर आप कौशल को जानना और आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको काम करना होगा। पर अगर आप घुटनों के बल चलने के लिए तैयार हैं, तो केवल शंभो की जरूरत है।

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