आदियोगी भजन
इस गीत का अर्थ है “शिव पर भरोसा न करें”। यह गीत सद्गुरु द्वारा लिखी गई एक कविता से प्रेरित है, जो आदियोगी शिव के बारे में है।
सद्गुरु श्री ब्रह्मा, एक महायोगी थे, जो लगभग एक सदी पहले इस भूमि पर मौजूद थे। उनके द्वारा लिखा गया यह भक्तिमय गीत, उस पूर्ण समर्पण को दर्शाता है, जो उन्होंने आदिगुरु शिव के प्रति अनुभव किया था।
इस गीत को सुनकर आप महाशिवरात्रि की लय से जुड़ सकते हैं। इसे सुनकर बिना किसी प्रयत्न के झूमना शुरू किया जा सकता है!
तीन शक्तियां। तीन गुण। तीन देव। त्रिदेव, जो सतह पर अलग-अलग दिखते हैं, पर थोड़ी गहराई में जाने पर एक अखंड मेल का एहसास होता है। त्रिमूर्ति और इकाइयों में मेल कर दें, तो आप महादेव को पा लेंगे।
गुरु पादुका स्त्रोतम एक बहुत ही शक्तिशाली मंत्र है जो गुरु की पादुकाओं का गुणगान करता है। इस मन्त्र में, गुरु पादुकाओं की तुलना एक ऐसी नौका से की गई है, जिसमें बैठकर हम जीवन के अंतहीन सागर के पार पहुँच सकते हैं। इस मन्त्र से हम गुरु की कृपा के प्रति ग्रहणशील बन सकते हैं।
डमरू आदियोगी का वाद्य यंत्र है। वह आदि गुरु या पहले गुरु भी हैं। योग गाथाओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन, उन्होंने अपने सात शिष्यों को योग विज्ञान भेंट करने का फैसला किया था, जिन्हें हम आज सप्तऋषियों के रूप में जानते हैं।
शिवाष्टकम् आदि शंकराचार्य की रचना है और इसे साउंड्स ऑफ़ ईशा ने संगीतबद्ध किया है। ये साउंड्स ऑफ़ ईशा की मन्त्र श्रृंखला का एक हिस्सा है। इसे सबसे पहले सद्गुरु के साथ हुए एक गुरु पूर्णिमा सत्संग में गाया गया था।
ये मन्त्र शिव के सौम्य रूपों से जुड़ा है। शम्भो मन्त्र, शिव के भयंकर रूपों से बिलकुल अलग है और उनका शांत और सुन्दर रूप है। ये एक चाबी की तरह है, और आपके भीतर खुलापन ला सकता है, और आपकी सीमाओं को तोड़ सकता है।
इस गीत को साउंड्स ऑफ़ ईशा के द्वारा दक्षिणायन या ग्रीष्मकालीन संक्रांति के दौरान रचा गया था। दक्षिणायन वही विशेष समय है, जब आदियोगी ने आदि गुरु या पहला गुरु बनकर, अपने सात शिष्यों तक योग संचारित करने का फैसला किया था।