निरंतर चलती
समय की चक्की
नहीं छोड़ती कभी
अपने क़दमों के निशान
पर इंसानी अनुभव पर
छोड़ती है एक गहरी छाप,
और करती है जीवन का क्षय
जैसे-जैसे बढ़ता जाता है
जीवन अपने अंत की ओर।
शरीर के इस लबादे को
पहनकर थोड़ा ढीला
कर सकते हैं आप कम
ख़ुद पर समय की छाप को।
एक खंडित व्यक्तित्व से
अखंड अस्तित्व बनकर
आप ले पाएँगे आनंद
समय के चक्रों की सवारी का।
क्योंकि समय हो सकता है
या तो आनंद का झूला
या फिर कुचल देने वाली
एक निर्दयी मशीन।
सद्गुरु