प्रोजेक्ट संस्कृति

प्रोजेक्ट संस्कृति : विश्व को ईशा संस्कृति की भेंट

भाग 3: भरतनाट्यम मॉड्यूल

पाँच कड़ियों की इस श्रृंखला में, हम आपके सामने ईशा संस्कृति के विद्यार्थियों, पूर्व-छात्रों और स्वयंसेवकों की नज़रों से प्रोजेक्ट संस्कृति की परदे के पीछे की कहानियाँ आपके सामने लेकर आ रहे हैं।

खुद से परे एक भेंट

प्रतिभाशाली, गरिमामयी और बुद्धिमान, दोपहर की धूप में बैठीं सयूजा और श्रीमल्ली उस जबरदस्त लहर के बारे में बहुत सौम्यता से बताती हैं, जो रफ्तार पकड़ रही है। दोनों ने नौ और दस की उम्र में ईशा संस्कृति में दाखिला लिया था और तब से भरतनाट्यम को, जो सबसे जटिल भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक है, उसे आत्मसात कर लिया है। अब प्रोजेक्ट संस्कृति के जरिए, वे इसे दुनिया को भेंट कर रही हैं।

आज की इन निपुण और समर्पित नृत्यांगनाओं का शुरू में परफॉर्मिंग आर्ट्स की तरफ झुकाव भी नहीं था। ‘हर किसी ने नृत्य चुना, इसलिए मैंने भी चुन लिया,’ श्रीमल्ली हँसते हुए कहती हैं। लेकिन जब उन्होंने लगभग आठ साल तक पूरी तरह नृत्य और संगीत पर ध्यान केंद्रित किया, तो उनके अनुभव में वृद्धि हुई और फिर उसमें रूपांतरण भी हुआ। श्रीमल्ली कहती हैं, ‘शुरू में, यह आसान नहीं था। इसके लिए बहुत मजबूती और स्टेमिना चाहिए था। लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि इसके परे भी कुछ है। आप वह बन जाते हैं जो आप दूसरे तरीक़े से नहीं हो सकते और यह आपको एक खुशी देता है। सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा यह है कि हमें हमेशा हर चीज़ को नए सिरे से देखना पड़ता है – तभी हम अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं।’

भरतनाट्यम के अपने अनुभव के बारे में बोलते हुए, सयूजा कहती हैं, ‘मेरे लिए, शुरू में यह सिर्फ विजुअल्स और रंगों से जुड़ा हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे मैं अभ्यास करती रही, मैंने महसूस किया कि जब मैं नृत्य करती हूँ, तो वास्तव में मुक्त महसूस करती हूँ। यह मुझे एक्सप्लोर करने का अवसर देता है जो मुझे वाक़ई खूबसूरत और प्रेरणादायक लगता है।’ नृत्य की इसी भावना को, खुशी और जीवन के सूक्ष्म अनुभवों को प्रोजेक्ट संस्कृति के जरिए, जो अपनी तरह का एक अनोखा प्लेटफॉर्म है, वह दुनिया के साथ साझा करना चाहती हैं।

जटिल डांस स्टेप्स को समझाना

प्रोजेक्ट संस्कृति, भारतीय शास्त्रीय कलाओं को उनकी शुद्धता में सिखाने और उन्हें हर उस व्यक्ति की पहुँच में लाने की कोशिश है, जो इसका इच्छुक है। डांस मॉड्यूल इस दिशा में उठाए गए पहले कदमों में से एक है। अपने कदमों में इतनी समृद्ध और कीमती संस्कृति को सहेजे हुए, ये युवा विद्यार्थी दुनिया भर के प्रतिभागियों को शास्त्रीय नृत्य सिखाते समय शांत और सौम्य रहते हैं। श्रीमल्ली समझाती हैं, ‘टीचिंग हमारे लिए नई चीज़ नहीं है, क्योंकि कम उम्र से ही हमने खुद से छोटे विद्यार्थियों को डांस सिखाया है।’

प्रोजेक्ट संस्कृति श्रृंखला के पहले दो मॉड्यूल – निर्वाण षटकम और कलरीपयट्टू ने उन्हें एक जरूरी ढांचा दिया और उनकी कोशिशों से सीख लेने का मौक़ा भी दिया। लेकिन इस कोर्स के अलग-अलग तकनीकी पहलुओं के लिए अलग से सोचने और ध्यान देने की जरूरत थी। कई सालों से नृत्य सीखने के लिए समर्पित और इस संस्कृति में डूबकर जीने वाले युवा ईशा संस्कृति विद्यार्थियों के विपरीत, दर्शकों को कम समय में समझाने के लिए कुछ पहलुओं को विस्तार से समझाए जाने की जरूरत थी। और यह सब कुछ ऑनलाइन किया जाना था – जो उनके लिए बिल्कुल नया माध्यम था।

‘उदाहरण के लिए, हमारे पास पारंपरिक नामों वाले मूवमेंट हैं,’ सयूजा ने बताया, ‘हम यहाँ बच्चों को ऐसे ही सिखाते थे। हमें उनको सिर्फ मुद्रा दिखानी होती थी, और वे उसे समझ जाते थे। लेकिन यहाँ ऑनलाइन मॉड्यूल में हमें विस्तार से समझाना पड़ता है। उदाहरण के लिए, हमें बताना पड़ता है कि अपनी तर्जनी और अंगूठे के सिरों को साथ में दबाइए।’

श्रीमल्ली विस्तार से बताती हैं, ‘आम तौर पर इस कला में आप सिर्फ गौर से देखते हैं और उसे आत्मसात करते हैं। लेकिन ऑनलाइन मॉड्यूल के लिए, हमें प्रतिभागियों को एक-एक बात समझानी पड़ी और उन्हें बताना पड़ा कि उन्हें ठीक-ठीक क्या करना है और कैसे करना है।’

‘वास्तविक ऑनलाइन प्रोग्राम तैयार करने के लिए, हमने उन लोगों के साथ मॉक सेशन किए, जिन्हें पहले से भरतनाट्यम का कोई अनुभव नहीं था। हम उन्हें निर्देश देते, और फिर हमें पता चलता कि जो चीज हमारे लिए सरल थी, वह उनके लिए हमेशा स्पष्ट नहीं होती थी,’ सयूजा हँसते हुए बताती हैं। प्रतिभागियों के लिए हर चीज़ को जितना संभव हो, उतना आसान, स्पष्ट और सुखद बनाने की कोशिश में, स्क्रिप्ट, वीडियो और विजुअल्स को आखिर तक लगातार संशोधित किया गया और सुधारा गया। यहाँ तक कि छोटी-छोटी बातों पर, जैसे कैमरे को मुद्राओं पर कितना फोकस करना चाहिए ताकि उन्हें समझना आसान बनाया जा सके, ध्यान दिया गया और उस पर चर्चा की गई।

नृत्य से दिल जीतना

कक्षाएं नौ दिन चलती हैं और हरेक सत्र एक घंटे का होता है। इन नौ दिनों में प्रतिभागी शिव धुती भैरवी नंदनम के लिए डांस मूवमेंट सीखते हैं। इसे इस तरह कोरियोग्राफ किया गया है ताकि हर कोई इसे कर सके और एक-एक स्टेप सिखाया जाता है ताकि हर कोई बेसिक मूवमेंट्स को समझ सके। अब तक, लगभग 200 लोगों ने इसमें भाग लिया है, जिनमें 50 से ज्यादा दूसरे देशों से हैं और अधिकांश यूरोप और अमेरिका से। ऑनलाइन विद्यार्थी उत्साही होते हैं और कई बार हमारी उम्मीदों से आगे निकल जाते हैं। श्रीमल्ली ने बताया, ‘हमने दोहरावों की संख्या घटाई क्योंकि वे हमारी उम्मीद से जल्दी समझ रहे थे।’

कक्षाओं को जिस देखभाल से चलाया गया, उसने सभी का ध्यान खींचा। नाडिया ने सिर्फ़ पहली कक्षा में शामिल होकर इस मॉड्यूल का अपना शानदार अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘कक्षाएं प्रेरणा से भरपूर थीं। शिक्षक के कपड़ों से लेकर वीडियो के चुनाव तक हरेक डिटेल आपके अंदर नृत्य की आग को भड़काता है। इस गीत और कोरियोग्राफी ने मुझे भक्ति से भर दिया। मुझे वाकई महसूस हुआ कि एक-एक स्टेप करके वे सबसे महान कला रूप को सिखा रहे हैं।’ 

मूवमेंट्स से बोलना

प्रतिभागियों को सिर्फ मूवमेंट के रूप में या एक फिक्स कोरियोग्राफ वाले नृत्य के रूप में भरतनाट्यम नहीं सिखाया जाता। इस कोर्स का मकसद नौ दिन के अंदर जितना संभव हो, उतना भारतीय शास्त्रीय नृत्य की भावना को सिखाना है।

“भाव, राग, और ताल - मूल रूप से नृत्य इन्हीं चीज़ों का एक मेल है,” सयूजा समझाती हैं। ‘हाथ की मुद्राओं के अर्थ होते हैं और आप हर मुद्रा से अलग-अलग चीज़ें दर्शा सकते हैं। इसलिए, हमने सिखाया कि वे कैसे रोजमर्रा की बातचीत में मुद्राओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि भरतनाट्यम एक भाषा की तरह है।’ प्रोग्राम के दौरान, प्रतिभागी नए रूपों में खुद को व्यक्त करने की क्षमता विकसित कर सकते हैं और नृत्य के जरिए अलग-अलग संभावनाएं खोज सकते हैं।

“हम गीत और मूवमेंट्स, दोनों का अर्थ समझाते हैं। हम कहते हैं, ‘आप ऐसा करें मानो आप एक फूल तोड़ रहे हों या आप कुछ अर्पित कर रहे हैं।’ क्योंकि आप भाव को वैसे व्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि आप उसका अर्थ नहीं जानते। हम मुख मुद्रा की भी बात करते हैं, हालाँकि इसे करने का कोई खास तरीका नहीं है।’ समय के साथ, प्रतिभागी उस अभिव्यक्ति को महसूस कर सकते हैं और अपनी समझ के मुताबिक उसे अपने डाँस में शामिल कर सकते हैं।”

रोमा काशेलकर, जिनका भरतनाट्यम सीखने का बचपन का सपना हाल में सच हुआ, साझा करती हैं, ‘जिस तरह से इस प्रोग्राम को पेश किया गया था, यह सिर्फ एक नृत्य नहीं था, यह उससे कहीं ज्यादा गहन था, खासकर क्योंकि यह देवी को समर्पित एक भेंट थी। हालांकि इतने कम समय में एक जटिल नृत्य को पूरी तरह आत्मसात करना असंभव है, लेकिन प्रोग्राम के अंत में, मैं एक पूरा नृत्य सीखने पर बहुत संतुष्ट थी। इसने मुझे अनेक मुद्राओं और आसनों की एक नई समझ दी। अब, जब मैं एक भरतनाट्यम प्रस्तुति देखती हूँ, तो मैं सिर्फ कलाकारों की अलग-अलग मुद्राओं को देखकर ही आसानी से बता सकती हूँ कि कौन सी कहानी बताई जा रही है।’

भविष्य की योजना

प्रोजेक्ट संस्कृति में शामिल दूसरे विद्यार्थियों की तरह, सयूजा और श्रीमल्ली भी थोड़े संकोच में पड़ गईं जब हमने उनसे भविष्य के बारे में पूछा। फिलहाल के लिए उन्होंने और अधिक गीतों और शायद अधिक एडवांस्ड कक्षाओं के बारे में बताया, लेकिन उनकी नज़रों में झलक रहा था कि आगे कुछ और सरप्राइज हैं। 

सद्‌गुरु प्रोजेक्ट संस्कृति को विश्वव्यापी मंच तक ले जाना चाहते हैं और इन समृद्ध भारतीय कलाओं को दुनिया के आगे पेश करना चाहते हैं। दूर से सराही जाने वाली एक ऊँची या गूढ़ संस्कृति के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसी चीज़ के रूप में जिसमें हर कोई हिस्सा ले सकता है, उससे जुड़ सकता है और उसे अपने जीवन के ताने-बाने में बुन सकता है। 

प्रोजेक्ट संस्कृति जल्द ही ‘कांशस प्लैनेट’ (जागरूक धरती) के एक हिस्से के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नज़र आएगा और अपने आनंद और अपने समर्पण व भक्ति के फल को साझा करेगा। नज़रें टिकाए रखिए।