खुद से परे एक भेंट
प्रतिभाशाली, गरिमामयी और बुद्धिमान, दोपहर की धूप में बैठीं सयूजा और श्रीमल्ली उस जबरदस्त लहर के बारे में बहुत सौम्यता से बताती हैं, जो रफ्तार पकड़ रही है। दोनों ने नौ और दस की उम्र में ईशा संस्कृति में दाखिला लिया था और तब से भरतनाट्यम को, जो सबसे जटिल भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक है, उसे आत्मसात कर लिया है। अब प्रोजेक्ट संस्कृति के जरिए, वे इसे दुनिया को भेंट कर रही हैं।
आज की इन निपुण और समर्पित नृत्यांगनाओं का शुरू में परफॉर्मिंग आर्ट्स की तरफ झुकाव भी नहीं था। ‘हर किसी ने नृत्य चुना, इसलिए मैंने भी चुन लिया,’ श्रीमल्ली हँसते हुए कहती हैं। लेकिन जब उन्होंने लगभग आठ साल तक पूरी तरह नृत्य और संगीत पर ध्यान केंद्रित किया, तो उनके अनुभव में वृद्धि हुई और फिर उसमें रूपांतरण भी हुआ। श्रीमल्ली कहती हैं, ‘शुरू में, यह आसान नहीं था। इसके लिए बहुत मजबूती और स्टेमिना चाहिए था। लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि इसके परे भी कुछ है। आप वह बन जाते हैं जो आप दूसरे तरीक़े से नहीं हो सकते और यह आपको एक खुशी देता है। सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा यह है कि हमें हमेशा हर चीज़ को नए सिरे से देखना पड़ता है – तभी हम अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं।’
भरतनाट्यम के अपने अनुभव के बारे में बोलते हुए, सयूजा कहती हैं, ‘मेरे लिए, शुरू में यह सिर्फ विजुअल्स और रंगों से जुड़ा हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे मैं अभ्यास करती रही, मैंने महसूस किया कि जब मैं नृत्य करती हूँ, तो वास्तव में मुक्त महसूस करती हूँ। यह मुझे एक्सप्लोर करने का अवसर देता है जो मुझे वाक़ई खूबसूरत और प्रेरणादायक लगता है।’ नृत्य की इसी भावना को, खुशी और जीवन के सूक्ष्म अनुभवों को प्रोजेक्ट संस्कृति के जरिए, जो अपनी तरह का एक अनोखा प्लेटफॉर्म है, वह दुनिया के साथ साझा करना चाहती हैं।