प्रश्न : सद्गुरु, आप अक्सर संहारक के रूप में शिव की बात करते हैं, जो मुझे डराता है। क्या शिव का कोई ऐसा रूप है जो रक्षक भी है।
सद्गुरु : मान लीजिए कि आपके पास कुछ ऐसा है जो बहुत नाजुक है, और जिसे तोड़ा या नष्ट किया जा सकता है। अब अगर आप उसके साथ रहते हैं, तो आप हमेशा डर और चिंता में रहेंगे। अगर हर चीज जिसे तोड़ा जा सकता है, वह टूट जाए, और यहाँ सिर्फ़ वह रह जाए जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, तो जीवन बहुत बेफिक्र और अद्भुत हो जाता है। यही शिव का मार्ग है, और इसलिए वे संहारक हैं। वह रक्षक हो सकते हैं, लेकिन आपकी कल्पना से बहुत अलग रूप में। लोग हमेशा उम्मीद करते हैं कि कुछ विचित्र होगा, जैसे अगर आप गिरने वाले हों, तो एक हाथ आसमान से आए और आपको थाम ले। ऐसी चीज़ कभी नहीं होती। लेकिन जब आप जीवन के स्रोत की कृपा अर्जित कर लेते हैं, तो जीवन में सहजता आ जाती है। आप एक अच्छी तरह से लुब्रिकेटेड मशीन बन जाते हैं जो कहीं अटकेगी नहीं। आप आसानी से बहते रहेंगे।
शिव का रहस्यमय वादा
सप्तऋषि शिव के पहले सात शिष्य थे। उन्होंने 112 तरीके सिखाए, जिनमें एक मनुष्य अपनी चरम प्रकृति को पा सकता है। शिव ने इन 112 तरीकों को बाँटकर हरेक ऋषि को 16-16 तरीके सिखाए क्योंकि एक व्यक्ति को 112 तरीके सीखने और समझने में बहुत लंबा समय लगता। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने उनके साथ बहुत लंबा समय बिताया – पौराणिक कथा के अनुसार चौरासी साल। चौरासी एक प्रतीकात्मक संख्या हो सकती है क्योंकि योग में, चौरासी आसन और जीवन के चौरासी आयाम होते हैं। उतने सालों में सिर्फ वही सप्तऋषियों के लिए पूरी दुनिया थे।
फिर शिव ने उन्हें बताया, ‘अब जबकि आपमें से हरेक ने 16 तरीके समझ लिए हैं, आपको उन्हें दुनिया तक पहुँचाना चाहिए। सात अलग-अलग दिशाओं में जाइए और इसे दुनिया के अलग-अलग भागों में ले जाइए। दुनिया के उन भागों तक जिन्हें इस देश के किसी व्यक्ति ने कभी नहीं देखा।’ सप्तऋषि थोड़े आशंकित थे। जाने से पहले, उन्होंने शिव से पूछा, ‘हम नहीं जानते कि हम कहाँ जा रहे हैं, किस तरह के लोगों से मिलेंगे और क्या हम इस गूढ़ सत्य को उनके साथ साझा करने में समर्थ हो पाएँगे। अगर हम मुसीबत में पड़े, तो क्या आप हमारे लिए वहाँ होंगे?’ शिव ने अविश्वास से उनकी तरफ देखा और कहा, ‘जब आप मुसीबत में होंगे, तो मैं सो जाऊँगा।’ यह रहस्यदर्शी का तरीका है।
जब आप सोते हैं, तब आप पृथ्वी के अंश हो जाते हैं, आप हर चीज का हिस्सा बन जाते हैं। आप हमेशा होते हैं, लेकिन आपने खुद को एक अलग व्यक्ति बनाया हुआ है। लेकिन जब आप सोते हैं, तो आपका व्यक्तित्व, लिंग, दौलत, योग्यताएं और विचित्रताएं सब खत्म हो जाती हैं, और आप हर चीज़ के साथ एक हो जाते हैं। जब शिव कहते हैं, ‘अगर आप मुसीबत में हैं, तो मैं सो जाऊंगा,’ इसका मतलब है, ‘मैं तुम्हारे साथ एक हो जाऊंगा। चिंता मत करो।’ तो, आपको भी इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। शिव के संहारक होने का मतलब यह नहीं है कि वह आकर आपका विनाश कर देंगे। जब आप उन्हें इस तरह से खोजेंगे, तो वह आपके साथ एक हो जाएँगे।
शिव के अलग-अलग आयाम
शिव के अलग-अलग आयाम या ऊर्जा के अलग-अलग पहलू हैं जो जीवन के अलग-अलग आयामों की बात करते हैं। ईशा योग केंद्र में भी, शिव के कई रूप हैं। एक योगेश्वर लिंग है, आदियोगी आलयम में एक और लिंग है और ध्यानलिंग तो है ही। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिसे आप ‘शिव’ कहते हैं, उसके कई आयाम हैं। इनमें से एक आयाम को काल भैरव या समय का स्वामी कहा जाता है। हम ईशा योग केंद्र के प्रवेश द्वार पर एक काल भैरव मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे। यह प्राण-प्रतिष्ठा बहुत खास, और जटिल प्रक्रिया होगी क्योंकि इस स्थान को जीवित और मृत दोनों के लिए तैयार और प्राण-प्रतिष्ठित किया जाएगा।
कभी मत भूलिए कि आप चाहे कुछ भी कर रहे हों, आपका जीवन हर पल निकल रहा है। शिव का समय यानी काल का आयाम एक टाइमकीपर का है, जो जीवित और मृत दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
शिव को अर्पण करने वाली एकमात्र चीज़
प्रश्न: सद्गुरु, महाशिवरात्रि पर हम शिव को सबसे बेहतर कौन सी चीज़ अर्पित कर सकते हैं?
सद्गुरु: शिव को अर्पित करने के लिए सबसे बेहतर चीज़ आप खुद हैं। वास्तव में आपके पास और क्या है? आपके पास जो कुछ है, वह इस दुनिया से इकट्ठा किया हुआ है। आपका घर, आपके लोग, आपकी दौलत, आपके पास मौजूद चीज़ों का भंडार, यह सब आपका नहीं है, वह सिर्फ कुछ समय तक आपके इस्तेमाल के लिए है। उन चीज़ों को भेंट करने का क्या मतलब है? यहाँ तक कि आपको शरीर भी इस पृथ्वी से मिला है, उसे देने का कोई मतलब नहीं है। आप जो सबसे अच्छी चीज़ कर सकते हैं, वह है खुद को अर्पित करना। लेकिन आपको अर्पित करने के लिए कोई प्रतीकात्मक चीज़ चाहिए क्योंकि आप कुछ भेंट करना चाहते हैं।
पारंपरिक रूप से यह कहा जाता है कि अगर महाशिवरात्रि के दिन, आप सिर्फ एक बेलपत्र भेंट करें, जो शिव को प्रिय हैं, तो यह काफी है। चूंकि आप नहीं जानते कि खुद को अर्पित कैसे करना है, आप अपने दिल में धधकती भक्ति के साथ एक पत्ता भेंट करते हैं। मुद्दा यह नहीं है कि आप क्या भेंट करते हैं, मुद्दा यह है कि आप कैसे भेंट करते हैं। क्योंकि आपके जीवन की गुणवत्ता इससे तय नहीं होती है कि आप ‘क्या’ करते हैं, बल्कि इससे तय होती है कि आप उसे ‘कैसे’ करते हैं। अगर ‘क्या’ को ठीक करने की कोशिश करने के बदले आप सिर्फ ‘कैसे’ को ठीक करें, तो आपका जीवन व्यवस्थित हो जाएगा।
आप जो कुछ भी करें, यह मानव प्रकृति है कि वह कुछ अधिक होना चाहता है। जब आप कुछ अधिक चाहते हैं, तो आप किसी को लूट सकते हैं, जीत सकते हैं या गुलाम बना सकते हैं या फिर आप किसी को प्यार कर सकते हैं और गले लगा सकते हैं। कोई चीज़ आपकी तब बनती है, जब आप उसे खरीदते हैं या जीतते हैं या गुलाम बनाते हैं या बस प्यार करते हैं, उसे समाहित करते हैं और उसे अपने एक हिस्से के रूप में गले लगाते हैं। आप उसे ‘कैसे’ करते हैं, इससे ही सारा फर्क पड़ता है। आपके काम प्यार, सहानुभूति और करुणा के हैं या आपके कार्य जीत, गुलामी और प्रभुत्व के हैं।
इस महाशिवरात्रि को कोई पत्ता तोड़ने की जहमत न उठाएं। बस खुद को समर्पित करें। शिव आपको ले नहीं जाएंगे – आप वैसे भी उनके हैं। शिव एक तपस्वी हैं। अगर आप उन्हें सोना, चांदी और हीरे भेंट करते हैं, तो वे उनका क्या करेंगे? अगर आप खुद को भेंट करते हैं, तो आप अपने जीवन में कभी बाधा नहीं बनेंगे। यह होना ही चाहिए। दुनिया में कई समस्याएं हैं। लेकिन आपको यह पक्का करना चाहिए कि आप अपने जीवन में कभी समस्या न बनें। आप दुनिया में जितना ज्यादा काम करने की कोशिश करेंगे, आपको उतनी ही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, लेकिन आपको कभी अपने जीवन में ख़ुद एक बाधा नहीं बनना चाहिए। खुद को भेंट करने का मतलब है कि आपने खुद को दे दिया है – तो आप आड़े कैसे आ सकते हैं?