सर्वोत्तम जिम्मेदारी : एक विशाल आंदोलन की शुरुआत
1990 के दशक में भारत के सबसे दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में आत्मज्ञान की एक मौन क्रांति जन्म ले रही थी। सद्गुरु द्वारा तैयार किए हुए शक्तिशाली और रूपांतरणकारी ईशा योग कार्यक्रम, राज्य के हर जिले और लगभग हर शहर में हो रहे थे। बड़ी तादाद में गाँव भी इससे प्रभावित और रूपांतरित हुए। लगभग उसी समय, खेती के 12,000 साल पुराने इतिहास वाला और दुनिया की सबसे उपजाऊ भूमि वाले राज्यों में से एक - तमिलनाडु, गंभीर जल और कृषि समस्या से जूझ रहा था। इस आसन्न संकट के केंद्र में एक ज्यादा गहरी समस्या थी – तेज़ी से खराब होती मिट्टी।
1998 में, कुछ पर्यावरण एजेंसियों ने अनुमान व्यक्त किया था कि 2025 तक तमिलनाडु का 60% हिस्सा रेगिस्तान बन जाएगा। सद्गुरु कभी ऐसे अनुमानों पर भरोसा नहीं करते, क्योंकि उनका कहना है कि ऐसे अनुमान इस बात पर ध्यान नहीं देते कि मानव हृदय में क्या धड़क रहा है। लेकिन जब उन्होंने खुद स्थिति का अंदाज़ा लगाने के लिए राज्य का भ्रमण किया, तो उनके अवलोकन और अनुभव से कुछ ऐसी बातें सामने आईं जो संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के अनुमान से भी ज्यादा चिंताजनक थीं। न सिर्फ छोटी नदियाँ सूख गई थीं, बल्कि नदी तल पर मकान तक बन गए थे। यहाँ तक कि ताड़ के पेड़ों के जीवित रहने के लिए भी मिट्टी में पर्याप्त नमी नहीं थी, जो आमतौर पर सूखी जलवायु में पनपते हैं।
इसने सद्गुरु को एक आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया ताकि राज्य में मिट्टी, पानी और खेती के गंभीर रूप से हो रहे नुक़सान की फिर से भरपाई की जा सके। उस समय, तमिलनाडु का औसत हरित आवरण (ग्रीन कवर) 16.5 प्रतिशत था, जबकि इसका राष्ट्रीय लक्ष्य 33 प्रतिशत था। सद्गुरु ने स्वयंसेवकों के एक छोटे से दल को इकट्ठा किया और समझाया कि इस दस्तक दे रही आपदा को दूर करने का एकमात्र तरीका है - जमीन पर पेड़-पौधों की संख्या को बढ़ाना। सद्गुरु के अनुमान के मुताबिक, राज्य भर में लगभग साढ़े ग्यारह करोड़ पेड़ लगाकर स्थिति को काफी हद तक सुधार सकते हैं। शुरुआती सालों में, सद्गुरु ने ‘लोगों के मन में पेड़ लगाने’ से शुरुआत की - जो कि सबसे मुश्किल इलाक़ा है! अनुभव कराने वाली प्रक्रियाओं से लोगों को राह दिखाते हुए, जिससे वे यह समझ पाएँ कि हमारा जीवन और हमारी साँसें पेड़ों से किस गहराई तक जुड़ी हुई हैं, सद्गुरु ने उन्हें पेड़-पौधे लगाने की जरूरत समझाई।
उस समय, सद्गुरु के करीब काम करने वाले लोगों ने भी कल्पना नहीं की थी कि भारत के एक राज्य में शुरू हुआ वृक्षारोपण अभियान, दो दशकों से भी कम समय में धरती के सबसे बड़े इकोलॉजिकल आंदोलनों में से एक बन जाएगा।
छह साल बाद, 2004 में, सद्गुरु ने आधिकारिक रूप से प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स की शुरुआत की। कई मायनों में यह उस बड़े पैमाने के कार्य की शुरुआत थी, और एक बड़ी अवधारणा का सबूत था, जो आज कावेरी कॉलिंग के एक हिस्से के रूप में चल रहा है।