ईशा आउटरीच

कावेरी कॉलिंग : मिट्टी, नदी और किसानों के लिए ईशा की एक कोशिश

‘कावेरी कॉलिंग’ एक आंदोलन है, जो 23 साल पहले सद्‌गुरु द्वारा बोए गए एक बीज से अंकुरित हुआ है। आइए कावेरी कॉलिंग की अब तक की उपलब्धियों और एक प्रेरणादायक कहानी के ज़रिए जानते हैं कि कैसे हर कोई अपने-अपने रचनात्मक तरीकों से इस आंदोलन में योगदान दे सकता है।

सर्वोत्तम जिम्मेदारी : एक विशाल आंदोलन की शुरुआत

1990 के दशक में भारत के सबसे दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में आत्मज्ञान की एक मौन क्रांति जन्म ले रही थी। सद्‌गुरु द्वारा तैयार किए हुए शक्तिशाली और रूपांतरणकारी ईशा योग कार्यक्रम, राज्य के हर जिले और लगभग हर शहर में हो रहे थे। बड़ी तादाद में गाँव भी इससे प्रभावित और रूपांतरित हुए। लगभग उसी समय, खेती के 12,000 साल पुराने इतिहास वाला और दुनिया की सबसे उपजाऊ भूमि वाले राज्यों में से एक - तमिलनाडु, गंभीर जल और कृषि समस्या से जूझ रहा था। इस आसन्न संकट के केंद्र में एक ज्यादा गहरी समस्या थी – तेज़ी से खराब होती मिट्टी।

1998 में, कुछ पर्यावरण एजेंसियों ने अनुमान व्यक्त किया था कि 2025 तक तमिलनाडु का 60% हिस्सा रेगिस्तान बन जाएगा। सद्‌गुरु कभी ऐसे अनुमानों पर भरोसा नहीं करते, क्योंकि उनका कहना है कि ऐसे अनुमान इस बात पर ध्यान नहीं देते कि मानव हृदय में क्या धड़क रहा है। लेकिन जब उन्होंने खुद स्थिति का अंदाज़ा लगाने के लिए राज्य का भ्रमण किया, तो उनके अवलोकन और अनुभव से कुछ ऐसी बातें सामने आईं जो संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के अनुमान से भी ज्यादा चिंताजनक थीं। न सिर्फ छोटी नदियाँ सूख गई थीं, बल्कि नदी तल पर मकान तक बन गए थे। यहाँ तक कि ताड़ के पेड़ों के जीवित रहने के लिए भी मिट्टी में पर्याप्त नमी नहीं थी, जो आमतौर पर सूखी जलवायु में पनपते हैं।

इसने सद्‌गुरु को एक आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया ताकि राज्य में मिट्टी, पानी और खेती के गंभीर रूप से हो रहे नुक़सान की फिर से भरपाई की जा सके। उस समय, तमिलनाडु का औसत हरित आवरण (ग्रीन कवर) 16.5 प्रतिशत था, जबकि इसका राष्ट्रीय लक्ष्य 33 प्रतिशत था। सद्‌गुरु ने स्वयंसेवकों के एक छोटे से दल को इकट्ठा किया और समझाया कि इस दस्तक दे रही आपदा को दूर करने का एकमात्र तरीका है - जमीन पर पेड़-पौधों की संख्या को बढ़ाना। सद्‌गुरु के अनुमान के मुताबिक, राज्य भर में लगभग साढ़े ग्यारह करोड़ पेड़ लगाकर स्थिति को काफी हद तक सुधार सकते हैं। शुरुआती सालों में, सद्‌गुरु ने ‘लोगों के मन में पेड़ लगाने’ से शुरुआत की - जो कि सबसे मुश्किल इलाक़ा है! अनुभव कराने वाली प्रक्रियाओं से लोगों को राह दिखाते हुए, जिससे वे यह समझ पाएँ कि हमारा जीवन और हमारी साँसें पेड़ों से किस गहराई तक जुड़ी हुई हैं, सद्‌गुरु ने उन्हें पेड़-पौधे लगाने की जरूरत समझाई।

उस समय, सद्‌गुरु के करीब काम करने वाले लोगों ने भी कल्पना नहीं की थी कि भारत के एक राज्य में शुरू हुआ वृक्षारोपण अभियान, दो दशकों से भी कम समय में धरती के सबसे बड़े इकोलॉजिकल आंदोलनों में से एक बन जाएगा।

छह साल बाद, 2004 में, सद्‌गुरु ने आधिकारिक रूप से प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स की शुरुआत की। कई मायनों में यह उस बड़े पैमाने के कार्य की शुरुआत थी, और एक बड़ी अवधारणा का सबूत था, जो आज कावेरी कॉलिंग के एक हिस्से के रूप में चल रहा है।

नदी अभियान: दुनिया का सबसे बड़ा इकोलॉजिकल आंदोलन

2017 में, सद्‌गुरु ने अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा शासित 16 भारतीय राज्यों से होकर गुज़रने वाले एक महीने लंबे नदी अभियान का नेतृत्व किया जिसमें उन्होंने एक महीने के समय में 16 करोड़ 20 लाख लोगों का समर्थन जुटाया। नई दिल्ली पहुँचकर सद्‌गुरु ने प्रधानमंत्री को एक 761 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी जिसमें भारत में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए नीतिगत सिफारिश का प्रारूप था। कुछ महीनों के भीतर, केंद्र सरकार ने नदी पुनर्जीवन से संबंधित नीतियों के बारे में सभी 29 राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक पॉलिसी एडवाइजरी जारी की। तब से, कई राज्य सरकारों जैसे ओडिशा, उत्तराखंड और झारखंड ने सक्रिय रूप से इस नीति को लागू करना शुरू कर दिया है।

दो साल के अंदर सद्‌गुरु ने पेड़ आधारित खेती के जरिए नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए जमीनी आंदोलन शुरू किया - कावेरी कॉलिंग - जो दुनिया के एक सबसे बड़े किसान केंद्रित इकोलॉजिकल आंदोलन की शुरुआत थी। 

इस बार, सद्‌गुरु ने भारत की इस प्रमुख नदी के – जो दक्षिण भारत की जीवनरेखा है, पुनरुद्धार को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए कावेरी नदी घाटी में दो सप्ताह तक मोटरसाइकिल रैली की। इस आंदोलन को दुनिया भर के संगठनों और व्यक्तियों का समर्थन मिला। संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थिऊ ने मरुस्थलीकरण रोकने के विषय पर आयोजित सम्मेलन में कहा था, “कावेरी कॉलिंग समाज के सबसे कमज़ोर आबादी के जीवन स्तर को सुधारने में मदद करने वाली एक बड़े पैमाने की परियोजना भी हो सकती है जो हम सब को जीवन देने वाली भूमि को पुनर्जीवन दे सकती है।” 

पिछले तीन सालों में कावेरी कॉलिंग के स्वयंसेवक पेड़ों पर आधारित खेती को अपनाने में किसानों की मदद करने और आखिरकार एक तिहाई कावेरी नदी घाटी को हरित पट्टी में लाने के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु में अथक रूप से काम कर रहे हैं। 

अब तक कावेरी कॉलिंग ने लगभग सवा लाख किसानों को पेड़ आधारित खेती की तरफ मोड़ा है और 6 करोड़ 20 लाख पौधों के रोपने में मदद की है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता और उत्पाद की पौष्टिकता – दोनों बेहतर हुई हैं। इसके अलावा, किसानों की आमदनी भी काफी बढ़ी है। 

‘पिछले 15 सालों से मैं ईशा के मार्गदर्शन में अपने खेत में पेड़ लगा रहा हूँ। अब वह एक पेड़-आधारित खेत बन गया है, जो आमदनी पैदा कर रहा है। जब पहले मैंने अपनी मिट्टी की जाँच कराई थी, तो जैविक तत्व 0.5 प्रतिशत था। अब जैविक तत्व 1.30 हो गया है,’ तमिलनाडु के एक किसान सेंदिल कुमार साझा करते हैं।

कई मायनों में, यह सिर्फ एक शुरुआत है। कावेरी कॉलिंग का लक्ष्य 12 साल में 52 लाख किसानों को 2.42 अरब पेड़ लगाने में सक्षम बनाना है। यह न सिर्फ कावेरी को पुनर्जीवित करेगा बल्कि मिट्टी की सेहत को भी बहाल करेगा और कावेरी नदी घाटी में किसानों की आमदनी को 300 से 800 प्रतिशत तक बढ़ाएगा। सबसे बढ़कर यह पूरी उष्णकटिबंधीय दुनिया के लिए एक उदाहरण सामने रखेगा, जहाँ अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी एक-दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि साथ-साथ काम करेंगे, जो कि कावेरी कॉलिंग आंदोलन का आधार है।

हर योगदान मायने रखता है, इसका एक प्रेरणादायक उदाहरण

पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और शौक से एक कलाकार, विवेक विश्वनाथन 2020-21 में ईशा योग केंद्र में सात महीने के साधनापद कार्यक्रम में शामिल हुए। वह एक फ़ुलटाइम स्वयंसेवक के रूप में योग केंद्र में ही रहने लगे और जल्दी ही उन्हें कावेरी कॉलिंग के लिए स्वयंसेवा करने का मौका मिला। उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारियों के साथ, उन्होंने चित्र बनाने का काम भी लिया जो उन्हें बचपन से ही पसंद है।

अपने काम के सिलसिले में वह जहाँ भी गए, उन्होंने उन लोगों के स्केच बनाए, जिनसे वे मिले। ‘हर चित्र के लिए मैंने दान के रूप में एक पौधे का अनुरोध किया। यह बस एक मज़ेदार काम के रूप में शुरू हुआ था लेकिन पहले ही दिन, मुझे 100 पौधे मिले और इससे मैं बहुत उत्साहित हो गया। फिर मैंने और ज्यादा मेहनत करनी शुरू कर दी।’ कुछ ही दिन में उन्होंने 500 से ज्यादा स्केच बनाए और 2000 से ज्यादा पौधों के लिए दान जुटाया।

शुरुआती सफलता से उत्साहित होकर, विवेक ने अपने सोशल मीडिया पेज पर अपने स्केच पोस्ट करने शुरू किए, जिससे उन्हें अपने दोस्तों की जबरदस्त सराहना मिली, और ऐसे लोगों ने भी उन्हें सराहा जिन्हें उन्होंने कभी न देखा था, न मिले थे। वह अब भी एक फुलटाइम एकाउंट मैनेजर और पार्टटाइम कलाकार की दोहरी भूमिका में कावेरी कॉलिंग के लिए काम करते हैं। 

‘जब से मैं कावेरी कॉलिंग टीम में शामिल हुआ, मेरा जीवन ज्यादा तीव्र और ज्यादा फोकस्ड हो गया है। मैंने अपने सारे काम साधना की तरह करने शुरू कर दिए हैं। मैं सद्‌गुरु का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे कावेरी माँ के पुनर्जीवन के लिए काम करने का मौका दिया। मैं सभी दानदाताओं और मेरे काम की सराहना करने वाले लोगों का शुक्रिया अदा करता हूँ,’ वह कहते हैं।

आप भी कावेरी को बचाने में अपना योगदान देकर मदद कर सकते हैं!