ईशा योग केंद्र में स्थित स्पंदा हॉल की दीवारों को सुशोभित करने वाले अद्भुत भित्ति चित्र का आकार 140 फीट x 12 फीट है, और यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा भित्ति चित्र है। इस पेंटिंग को एक पारंपरिक चित्रशैली में बनाया गया है जिसकी उत्पत्ति केरल के मंदिरों के नगर गुरुवायूर से हुई है। चटक और विविधतापूर्ण रंग सिर्फ सब्ज़ियों और मिट्टी से बनाए गए हैं।
सद्गुरु : बगल वाली दीवार पर पतंजलि महर्षि को प्रदर्शित किया गया है। इस भित्ति चित्र पर काम करने वाले कलाकार एक खास परंपरा से संबंध रखते हैं और उन्हें अपनी पारंपरिक शैली के अलावा कुछ और करने की आदत नहीं थी। मैंने कल्पना की, कि पतंजलि को कैसा होना चाहिए और उन्हें बताया कि मेरे दिमाग में क्या है। उन्होंने बहुत अच्छा काम किया।
भारतीय मंदिरों में, योग में और तंत्र में, साँप ऊर्जा की ऊर्ध्व गति का एक मूलभूत प्रतीक है। आप ऊर्जा को जितना बढ़ाते हैं, आपका जीवन वैसा होता है। शिव के सिर के ऊपर एक साँप बैठा है जो दर्शाता है कि इस प्राणी की ऊर्जा अपने चरम पर पहुँच चुकी है।
पतंजलि इतने शानदार मनुष्य थे कि वह अपने आस-पास के लोगों के लिए देवत्व की बौछार बन गए। उनका सम्मान करने के लिए, मैंने साँपों को उनके सिर पर ऊपर की ओर जाने के बजाय नीचे उतरते हुए दिखाने का फैसला किया। मुझे लगता है कि यह चित्र सुंदर बना है। यह भित्ति चित्र प्राकृतिक रंगों से बनाया गया है। अगर लोग इसकी अच्छी तरह से देखभाल करें, तो यह 5,000 साल तक रहेगा। इसमें किसी भी तरह के केमिकल पेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
यहाँ से, यह दीवार शिव के जीवन को दर्शाती है। योग संस्कृति में हम शिव को एक भगवान की तरह नहीं बल्कि आदियोगी या पहले योगी और आदिगुरु या पहले गुरु की तरह देखते हैं। वह योग सिखाने वाले पहले व्यक्ति थे।
यहाँ, शिव को एक श्मशान भूमि में निराश और खोए हुए दिखाया गया है।
सच्ची आध्यात्मिकता तभी शुरू होती है, जब आप मृत्यु का सामना करते हैं। भगवान के बारे में बात करना आध्यात्मिकता नहीं है क्योंकि आम तौर पर आप बेहतर जीवन के लिए भगवान की बात करते हैं। यह सिर्फ गुजर-बसर के लिए है। जब आप अपनी नश्वरता के प्रति पूरी तरह जागरूक हो जाते हैं, तभी आप जानना चाहते हैं कि आपका अस्तित्व किसलिए है।
शिव ने मृत्यु को देखते हुए श्मशान भूमि में एक लंबा समय बिताया। किसी न किसी तरह यह लगभग हर किसी के साथ होता है, जो गंभीरता से आध्यात्मिक प्रक्रिया में होते हैं। मैंने अपने शुरुआती सालों में ढेर सारा समय श्मशान भूमि में बिताया, सिर्फ मृत्यु को देखते हुए। मैं आध्यात्मिकता के बारे में कुछ भी नहीं जानता था, उसने बस मुझे वहाँ खींच लिया। फिर मैं जानना चाहता था कि क्या होता है।
‘ये लोग जो जीवित थे और अचानक मर गए, वे कहाँ गए? मृत्यु के बाद क्या होता है?’ यह जिज्ञासा आपको इस यात्रा पर आगे बढ़ाती है। पहले चित्र में शिव उसी स्थिति में हैं। वह काफी कुरूप और खोए हुए लग रहे हैं। वह ऐसे ही हैं।
फिर शिव अपना रास्ता खोज लेते हैं और योग शुरू करते हैं। योग के सबसे मूलभूत रूप को भूतशुद्धि के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है पंचभूतों या प्रकृति के पाँच तत्वों से मुक्त होना। ये पंचतत्व आपको भौतिक तक सीमित कर देते हैं। जब आप उनसे मुक्त हो जाते हैं, तो आप भौतिक से मुक्त हो जाते हैं और अस्तित्व के आध्यात्मिक आयाम तक पहुँच जाते हैं।
शिव ने अपनी सारी साधना की और समाधि की स्थिति पा ली, जहाँ दो गुंथे हुए साँप मिलते हैं, जिसका अर्थ है कि उनकी ऊर्जा ने अपना चरम छू लिया है। वह जीवन के द्वंदों से परे चले गए हैं। वह जीवन की प्रक्रिया से मुक्त हैं लेकिन अब भी जीवन के अंदर हैं। यह एक ऐसी दुर्लभ घटना है जिसका जश्न सभी दिव्य प्राणी मना रहे हैं।
आत्मज्ञान के बाद, उनके लिए सबसे सरल चीज़ होती, शरीर को छोड़कर विलीन हो जाना। नब्बे फीसदी आत्मज्ञानी लोगों के लिए, आत्मज्ञान का उनका क्षण और शरीर छोड़ने का क्षण एक ही होता है। यहाँ वह ऐसी दुविधा में हैं कि शरीर को बनाए रखकर दुनिया के लिए कुछ करें, या अपने शरीर को छोड़कर ब्रह्मांडीय मौजूदगी का अंश बन जाएँ।
पिछले भाग और इस भाग के बीच एक पूरी कहानी है जिसे पेंटिंग में दर्शाया नहीं जा सकता, इसलिए हम उसे छोड़कर आगे बढ़ गए। यह कहानी है कि कैसे देवताओं ने साजिश की ताकि शिव दुनिया में बने रहें और दुनिया को उपदेश दें। उन्होंने सती से उनकी शादी करवाने के लिए एक लंबी-चौड़ी साजिश रची। शिव ने सती को अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया और इसमें रम गए। इस चित्र में वह सती के साथ बैठे हुए हैं।
कुछ कारणों से, सती की दुखद मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु के बाद शिव हताश हो गए और दुख उन पर हावी हो गया। वह उनके शव को लेकर पूरे देश में घूमते रहे। उनका शरीर सड़ने लगा और उनके अलग-अलग अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे। वे स्थान शक्ति-स्थल बन गए – गिरने वाले हर शारीरिक अंग के लिए एक मंदिर बन गया। इसके बाद वह फिर से तपस्वी बन गए और कई सदियों तक अपनी आँखें नहीं खोलीं।
देवताओं ने फिर से साजिश की और दोनों को फिर से साथ लाने के लिए सती का पार्वती के रूप में अवतार करवाया। इस बार, शिव दूर-दूर रहने वाले पति थे। वह कभी उनके साथ होते थे और कभी दूर, बाकी समय वह एक तपस्वी के रूप में पहाड़ों में चले जाते थे। वह फिर से गृहस्थ नहीं बनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने पार्वती की मौजूदगी को किसी रूप में दुनिया के लिए उपयोगी बनाने की कोशिश की। ये दोनों पहलू यहाँ दर्शाए गए हैं। एक में, वह पार्वती के साथ हैं लेकिन उनके बीच एक दूरी है। अगले चित्र में वह पार्वती से अलग हैं, अपने वृषभ (बैल) के साथ खुश हैं।
अंतिम चित्र तांडव है जो विसर्जन का नृत्य है – जहाँ शिव नृत्य करते हुए खुद को परमानंद और विसर्जन में ले गए।
दरअसल, यह हर मनुष्य की यात्रा है। लेकिन चूँकि शिव इस मार्ग पर चलने वाले पहले व्यक्ति थे, इसलिए इसे उनके जीवन के रूप में दर्शाया गया है।