देवी पार्वती ने सिर्फ एक बार ‘शिव’ का उच्चारण करके आत्मज्ञान पा लिया था। जैसे शिव ने सूत्रों का रहस्य पार्वती को बताया था, उसी तरह सद्गुरु हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि हम अपनी सीमाओं को तोड़कर असली साधक के रूप में विकसित हो सकें।
सद्गुरु : शिव ने पार्वती को बहुत सूक्ष्म सूत्र दिए। जैसे-जैसे उपदेश आगे बढ़ा, पार्वती ने राय बनानी शुरू कर दी। तो शिव ने उनसे कहा, ‘इन मतों के साथ, तुम कहीं नहीं पहुँच पाओगी। मैं जो कह रहा हूँ, उसमें समझने के लिए कुछ नहीं है, यह बस जुड़ने और अनुभव करने के लिए है।’ फिर पार्वती ने शिव से पूछा, ‘मैं अपने मतों, विचारों और प्रतिरोध को कैसे खत्म कर सकती हूँ?’ उन्होंने जवाब दिया ‘बस अपने शरीर के रोम-रोम से मेरा नाम लो – सारा प्रतिरोध खत्म हो जाएगा।’
यह अपनी पिछली स्मृति की कार्मिक पकड़ को तोड़ने और ज्यादा ग्रहणशील मनुष्य बनने का एक अवसर है। शरीर की हर कोशिका से इस शब्द, ध्वनि और पवित्र अक्षरों शि-व का उच्चारण करने की कोशिश कीजिए। इस उच्चारण को तीन अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है। एक है सभ्य तरीक़ा, दूसरा मध्यम तीव्रता वाला और तीसरा पूर्ण तीव्रता वाला। अगर आप इसे सभ्य तरीके से करते हैं, तो आपको खुद ही करना पड़ेगा। अगर आप इसे मध्यम तरीके से करते हैं, तो मैं आपका हाथ थाम लूँगा। अगर आप चरम तरीके से इसे करते हैं, तो आप नहीं होंगे – सिर्फ मैं रहूंगा। तो यह आपके ऊपर है।
साधना के ज्यादा सूक्ष्म आयामों में प्रवेश करने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि आपकी ऊर्जा मुक्त रूप से प्रवाहित हो। अगर आप अपने भौतिक शरीर से बहुत ज्यादा पहचान जोड़ते हैं, तो कुछ और नहीं खिसकेगा। यह अंत तक जाने का अवसर है। आप तय कीजिए कि आप कितनी दूर जाना चाहते हैं।
सद्गुरु शिव, शिव, शिव, शिव, शिव, शिवाय का जाप करते हैं।
सद्गुरु: देवी एक भाव से दूसरे भाव में जाने लगीं। जब उन्होंने अपना उग्र रूप धारण किया, तो वह नियंत्रण से बाहर हो गईं और ताबड़तोड़ विनाश करने लगीं। इस विनाश को रोकने के लिए, शिव खुद उनके रास्ते में जाकर लेट गए। अपने क्रोध में उन्होंने शिव को भी मार डाला। उन्हें मारने के बाद उनको एहसास हुआ कि उन्होंने क्या कर दिया है, फिर अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने उनके अंदर फिर से जीवन भर दिया।
सूत्र के एक अंश के रूप में, शिव ने कहा था, ‘ये सभी भावनाएं आप नहीं हैं। ये सिर्फ ऊर्जा का खेल हैं।’ तो देवी ने कहा, ‘आप कहते हैं कि ये भावनाएं मैं नहीं हूँ, लेकिन मेरे अनुभव में, ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये भावनाएं मेरी प्रकृति हैं। जैसा कि आपने देखा, जब क्रोध ने मुझे वश में कर लिया, तो मैंने आपको भी मार दिया।’ शिव बोले, ‘आप इन चीज़ों से काफी ऊपर हैं। आप अभी जिस चीज़ से गुज़रीं, वह सिर्फ आपकी ऊर्जा का एक खेल है। यह आप नहीं हैं।’
देवी ने पूछा, ‘मुझे कैसे पता चलेगा कि यह मैं नहीं हूँ?’ फिर शिव ने उन्हें एक सरल प्रक्रिया दी। उन्होंने कहा, ‘मेरे नाम का उच्चारण लगातार बढ़ते सुर में करें। आप जान जाएंगी कि अभी आपके साथ जो हुआ है, वह आप नहीं हैं। ये भावनाएं सिर्फ ऊर्जा का एक खेल हैं।’
सद्गुरु: आप भी इस तरह ‘शिव’ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं। अपनी आँखें बंद कीजिए, इसके लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दीजिए। जितनी साँस आप ले सकते हैं, उतनी अंदर भरिए और शिव ध्वनि का उच्चारण बढ़ते स्वर में कीजिए।
प्रश्नकर्ता: शिव का जाप करते समय, मेरा ध्यान बँट जाता है। मेरे अंदर कई विचार चलते हैं कि क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए। मैं क्या करूँ?
सद्गुरु: एक सच्चा साधक किसी भी चीज़ को लेकर कोई विशेष नज़रिया, अपेक्षा, राय, विश्वास या सिद्धांत नहीं रखता। दुनिया में अधिकांश तथाकथित साधक ईश्वर, आत्मज्ञान, या स्वर्ग की तलाश कर रहे हैं, वे मानते हैं कि वे पहले से ही इन सभी चीजों के बारे में जानते हैं। वे असली साधक नहीं हैं। साधक वह है जिसने यह जान लिया है कि वह नहीं जानता। तभी आप सच्चे साधक हैं।
आप भले ही यह जानते हों कि दुनिया में गुजर-बसर कैसे करनी है, पैसे कैसे कमाने हैं और अपने कल्याण के लिए लोगों या हालात का फायदा कैसे उठाना है। लेकिन आप जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते। अगर आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं और किसी चीज़ के बारे में कोई विशेष नज़रिया, अपेक्षा, विश्वास या राय नहीं रखते, फिर एक सरल विधि भी काफी होती है।
केवल एक बार बढ़ते स्वर में शिव का उच्चारण करके पार्वती को अपनी चरम प्रकृति का अहसास हो गया। उन्होंने बार-बार ‘शिव’ का जाप नहीं किया। उनके लिए यह क्यों कारगर हुआ? आप चिल्ला रहे हैं और फिर भी यह क्यों काम नहीं कर रहा है? अंतर ग्रहणशीलता के स्तर में है। ग्रहणशीलता का सीधा सा अर्थ है, विचारों, भावनाओं और विचारों से खुद को अव्यवस्थित न करना। जब आपको यह समझ में आ जाता है कि आप वाकई नहीं जानते हैं, तो कोई भी विचार आए, उसका कोई महत्व नहीं रह जाता है।
जब आपको लगता है कि आप जानते हैं, तो आपके विचार और भावनाएं आपको बहुत महत्वपूर्ण लगने लगते हैं। जब आपको अहसास होता है कि आप नहीं जानते, तो आप अपने विचारों को स्वाभाविक रूप से अनदेखा कर देते हैं। आप एक सरल तरीका अपना सकते हैं - अपने सभी महान विचारों, अपनी सभी महान भावनाओं, अपनी हर चीज़ को देखिए और देखिए कि यह सब एकदम मूर्खतापूर्ण है। अगर आपको लगता है कि यह स्मार्ट और बुद्धिमान है, तो आप इसे छोड़ नहीं पाएंगे। जब आप यह मान लेते हैं कि आप पूरी तरह मूर्ख हैं, तभी आप अपने विचारों, भावनाओं, हर चीज़ को एक तरफ रख सकते हैं। और तब धमाका होगा।