सहारा रोज़ ने अपने पॉडकास्ट ‘हाईएस्ट सेल्फ’ पर सद्गुरु से बातचीत की जिसमें शामिल कुछ विषय थे - सचेतन समुदाय, तकनीक, और आनंदमय बनाम सदाचारी लोग। सहारा ने ‘आध्यात्मिक बाईपास’ के बारे में एक दिलचस्प सवाल पूछा कि लोग आध्यात्मिकता के नाम पर खुद को हकीकत से दूर क्यों कर लेते हैं। सद्गुरु ने स्पष्ट किया कि सच्ची आध्यात्मिकता किसी तरह का पलायन नहीं, बल्कि जीवन के साथ सबसे गहरा, सबसे गहन जुड़ाव है।
इस अक्टूबर सद्गुरु ने ऑनलाइन निजी विकास शैक्षिक मंच, ‘माइंडवैली’ पर एक नया कार्यक्रम शुरू किया। यह एक घंटे की मास्टरक्लास है जो मुफ्त है और जिसमें कोई भी शामिल हो सकता है। यह माइंडवैली सदस्यों के लिए 15 दिनों की एक खोज है। यह खोज दुख से ऊपर उठकर अपने विचारों और भावनाओं को संभालते हुए आनंदपूर्वक जीने के साधन और सद्गुरु की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
डेव एस्प्रे ने सद्गुरु से कुछ दिलचस्प सवाल पूछे, मसलन – ‘चेतना कहाँ से आती है?’, ‘कोई पढ़-लिखकर भी एक अशिक्षित की तरह सरल कैसे रह सकता है, जैसे सद्गुरु?’, ‘सद्गुरु की नई किताब के मुखपृष्ठ पर जो चित्र है, उसका क्या मतलब है?’, और "क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है - इरादा या नतीजा?’ बातचीत सहज रूप में चलती रही, जिसमें भूत-शुद्धि, जिससे कर्म पुस्तक का कवर प्रेरित है, चेतना की असीमता, समावेशी इरादा क्यों ख़ास है, जैसी चीज़ें शामिल थीं।
सद्गुरु ने ग्लासगो में हुए ग्लोबल लैंडस्केप्स फोरम द्वारा आयोजित एक पर्यावरण कार्यक्रम में बीबीसी रेडियो-होस्ट पीट टोंग के साथ बातचीत की। सीधे मुद्दे पर आते हुए, सद्गुरु ने कहा कि सवाल यह नहीं है कि हमने मौजूद पर्यावरण की चुनौतियों का सामना कर पाए या नहीं, सवाल यह है कि हम इसे पूरा करेंगे या नहीं। सद्गुरु ने यह भी कहा कि इस चुनौती का सामना करने के लिए सिर्फ व्यक्तिगत कोशिश नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति भी जरूरी है।
नीरज बाजपेयी ने दीवाली के लिए सीएनबीसी आवाज पर सद्गुरु का साक्षात्कार लिया। उन्होंने लक्ष्मी, धन और खुशहाली के बारे में चर्चा की। फिर बातचीत भारतीय उद्यमिता की तरफ मुड़ गई। सद्गुरु ने बताया कि सफलता का कोई मंत्र नहीं है, और वास्तव में सफल होने के लिए अंतर्दृष्टि की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि ईशा इनसाइट प्रोग्राम, व्यक्ति के बोध और जिन स्थितियों में वह रहता है, उसके बारे में अंतर्दृष्टि को गहरा करने का एक अवसर है।