जीवन के रहस्य

शिव को आख़िर बद्रीनाथ छोड़कर केदारनाथ क्यों जाना पड़ा?

सद्‌गुरु इसकी कथा सुना रहे हैं कि शिव और पार्वती बद्रीनाथ से क्यों चले गए, कैसे कांतिसरोवर में जाकर बसे और क्यों उन्होंने केदारनाथ की प्राणप्रतिष्ठा की। वह ये भी बता रहे हैं कि पहला योग कार्यक्रम कैसे संभव हुआ और क्यों योग के सच्चे सिद्धांत कभी नष्ट नहीं हो सकते।

सद्‌गुरु: क्या आप जानते हैं कि शिव केदार कैसे आए? उन्हें धोखे से यहाँ लाया गया। शिव और पार्वती उस जगह रह रहे थे, जहाँ आज बद्रीनाथ है और वहाँ गरम पानी के झरने थे। तो दोनों एक दिन गर्म स्नान के लिए गए और जब वे नहाकर अपनी छोटी सी कुटिया में लौटे, तो वहाँ उन्हें एक बहुत प्यारा सा शिशु पड़ा हुआ मिला जिसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट थी। शिव बोले, ‘उसे छूना मत।’ लेकिन पार्वती की ममता उन पर हावी हो गई। वह बोलीं, ‘अरे, मुझे बच्चा मिल गया जो मैं हमेशा से चाहती थी।’

अगले दिन, वे फिर से स्नान करने गए। जब वे वापस लौटे, तो शिशु ने खुद को घर में बंद कर लिया था। पार्वती को विश्वास नहीं हुआ, ‘यहाँ क्या हो रहा है? एक नन्हा सा शिशु खुद को अंदर बंद कैसे कर सकता है?’ वे बाहर से चिल्लाए, ‘दरवाज़ा खोलो। तुम कौन हो?’ फिर शिशु बोला, ‘आप लोग अपने लिए नई जगह ढूँढ लीजिए – यह मेरी जगह है।’ 

शिव बोले, ‘मैंने तुमसे कहा था – एक बच्चा जो अपने आप पहाड़ की चोटी पर पहुँच जाए, वह कोई बच्चा नहीं हो सकता।’ फिर बद्रीनाथ से, जो 10,000 फीट से ज्यादा ऊँचाई पर है, वे ऐसी जगह पहुँचे, जिसे आज केदारनाथ के नाम से जाना जाता है, और कांतिसरोवर के पास जाकर बस गए, जो लगभग 12,800 फीट की ऊँचाई पर है। 

ध्वनि और रूप के बीच ज्यामितिक मेल के रूप में देखें तो केदारनाथ ‘शिव’ ध्वनि के सबसे करीब है।

लेकिन योगी और उनके बाकी अनुयायी केदार में बस गए। वे बार-बार कांतिसरोवर आते थे, तो शिव ने कहा, ‘मैं अपनी ऊर्जा को इस तरह से स्थापित कर दूँगा कि आप लोगों को मेरी कमी महसूस नहीं होगी और आप वहीं रह सकते हैं।’ और फिर उन्होंने केदारनाथ की स्थापना की। आज भी, ध्वनि और रूप के बीच ज्यामितिक मेल के रूप में देखें तो केदारनाथ ‘शिव’ ध्वनि के सबसे करीब है।

शिव, पार्वती और उनके सात शिष्य, जिन्हें अब सप्तऋषि के नाम से जाना जाता है, वे योग के संसर्ग, उपदेशों और दूसरी चीज़ों के लिए कांतिसरोवर पर रहने लगे। तो पहला योग कार्यक्रम जहाँ हुआ था वह जगह कांतिसरोवर है। यह कोई अल्पकालिक वीकएंड प्रोग्राम नहीं, बल्कि एक बहुत लंबा योग कार्यक्रम था।    

शिव ने ब्रह्मांड की संपूर्णता और मानव अस्तित्व के बीच संबंधों के बारे में समझाया - इसे कैसे खोजा जा सकता है, इसे करने के अलग-अलग तरीके क्या हैं, और कैसे कोई व्यक्ति अपने अनुभव में सार्वभौमिक बन सकता है। तो, यह पूरी पद्धति जिसके द्वारा एक व्यक्ति अस्तित्व की व्यापकता का अनुभव कर सकता है, योग कहलाती है।

आप योग को मार नहीं सकते क्योंकि यह एक जीवित सत्य है।

योग बहुत सारे बदलावों और विकृतियों से गुज़रा है, ब्रह्मांडीय आयामों की खोज और उनके साथ तालमेल से लेकर शरीर के तोड़-मरोड़  तक, और बचे हुए नूडल की तरह दिखने तक। लेकिन आप योग को मार नहीं सकते क्योंकि यह एक जीवित सत्य है। चाहे किसी समय अगर हर कोई पूरी योग साधना को छोड़ दे, लेकिन एक हजार साल बाद भी, कोई इसे फिर से देखेगा तो यह तब भी मौजूद होगा।

योग किसी शास्त्र में नहीं है, जिसे नष्ट किया जा सके, न यह मानव स्मृति में है, जिसे मिटाया जा सके- यह एक जीवित, अस्तित्वगत सत्य है। इन चीज़ों तक पहुँचने के लिए भले ही बोध, उत्सुकता, लचीलेपन और लगन की जरूरत हो, लेकिन यह हमेशा मौजूद होता है। इसलिए इसके पूरी तरह खोने का कोई डर नहीं है, लेकिन लोगों की कई पीढ़ियां इससे चूक सकती हैं।

इस पीढ़ी के ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि पहली बार हमारे पास ऐसे साधन हैं, जिनसे हम दुनिया की पूरी आबादी तक पहुँच सकते हैं। दुर्भाग्य से दुनिया तक पहुँचने के यही साधन शायद लोगों का ध्यान भटकाने वाले सबसे बड़े उपकरण भी बन गए हैं।


इन उपकरणों को सही तरह से प्रयोग करना और यह पक्का करना कि वे एक संभावना बनें, भटकाव नहीं, वे एक आगे बढ़ने की प्रक्रिया बनें, भ्रमित करने वाला मार्ग नहीं – एक पीढ़ी के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है।