यीशु के तीन मुख्य उपदेशों के प्रतीक और अर्थ को सद्गुरु समझा रहे हैं।
प्रश्नकर्ता: मैं हमेशा यीशु के शब्दों को लेकर भ्रमित रहा हूँ। जब उन्होंने रोटी लेकर, उसके टुकड़े किए और अपने शिष्यों को देते हुए कहा, ‘इसे लो और खाओ। यह मेरा शरीर है।’ आपका इस पर क्या कहना है?
सद्गुरु: रोटी के टुकड़े करना और यह कहना, ‘यह मेरा शरीर है,’ योग परंपरा के निचोड़ को दर्शाता है। इसका मतलब है कि आपके पिता के जीन को पूरी तरह मिटा दिया जाना चाहिए। इसीलिए योग की प्रणाली फली-फूली और यह अब तक मौजूद ही नहीं, बल्कि जीवंत बनी हुई है। हम रोटी नहीं तोड़ते – हमारे पास वह करने के दूसरे तरीके हैं। हम यह देखते हैं कि मूलभूत ऊर्जा को कैसे बदलें।
अगर आप सूर्य क्रिया जैसे सरल शारीरिक योग भी छह महीने तक रोज़ करते हैं, तो आप बिल्कुल अलग इंसान बन जाएंगे। आपकी ऊर्जा के मूलभूत तत्वों के बदलने के साथ, आपकी कैमिस्ट्री, ब्रेन वायरिंग और जेनेटिक्स भी खुद को बदल लेगी। अगर आप अपनी आनुवंशिकी से दूरी नहीं बनाएंगे, तो पुराने चक्र और पैटर्न हावी हो जाएंगे, आप चाहें या न चाहें।
आप में से कइयों के साथ ऐसा होता है। जब आप 18 साल के होते हैं, तब आप एक क्रांतिकारी होते हैं। अपने माता-पिता की ओर देखकर सोचते हैं, ‘नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं बनने जा रहा हूँ।’ लेकिन जब आप 45 वर्ष के होते हैं, आप अपने माता-पिता की तरह ही चलने लगते हैं, बोलने लगते हैं और बर्ताव करने लगते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऊर्जा-शरीर में जानकारी दर्ज रहती है। अगर हम इसमें मूलभूत बदलाव करते हैं, तो इस जानकारी के काम करने का तरीका अलग होगा। अगर आप एक बिल्कुल नया ताजा जीवन बनना चाहते हैं, तो आपको खुद से दूरी बनानी होगी। एक बार जब यीशु उपदेश दे रहे थे, उनकी माँ आईं। किसी ने उनसे कहा, ‘आपकी माँ आई हैं।’ यीशु ने कहा, ‘मेरी माँ कौन है?’ दरअसल वह कुछ ऐसी क्रियाएँ कर रहे थे जिन्होंने उनके आनुवांशिक कर्म, उनके माता-पिता और पूर्वजों के साथ उनके कर्म बंधन को खत्म कर दिया था।
प्रश्नकर्ता: यीशु ने कहा कि अगर कोई आपको थप्पड़ मारता है, तो दूसरा गाल आगे कर दो। क्या ऐसा उपदेश आज भी मायने रखता है?
सद्गुरु: यह कोई सामान्य उपदेश नहीं है। यीशु ने अपने शिष्यों से ये कहा था कि अगर कोई आपके दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो बायाँ गाल भी उसकी तरफ कर दो। वह ये बात सारी दुनिया से नहीं कह रहे थे। यीशु जिस तरह से जीवन जिए, वे दूसरा गाल आगे करने वालों में से नहीं थे। वह मंदिर में गए और सारा कारोबार बरबाद कर दिया। उन्होंने यह नहीं कहा, ‘ठीक है, तुम्हारी एक दुकान यहाँ है, दूसरी दुकान वहाँ लगा लो।’ क्या उन्होंने ऐसा कहा? वह अपने हाथों से उनका कारोबार बरबाद कर रहे थे।
वह अपने प्रचारकों से कहते हैं, ‘अगर आप मेरे संदेश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो आपको ऐसा होना चाहिए कि आपके अंदर कोई विरोध न हो। लोग चाहे कुछ भी करें, अपने रास्ते से मत भटको।’ क्योंकि ये संस्कृतियाँ बहुत द्वंद्वात्मक रही हैं, सब कुछ एक उपमा के साथ कहा गया है। वह कह रहे हैं कि अगर कोई आपको एक गाल पर थप्पड़ मारे और आप उसे वापस थप्पड़ मारने की कोशिश करते हैं, तो आप शांति और प्यार के अपने मार्ग से भटक रहे हैं। यीशु का कहना है कि बस अपने पथ पर टिके रहो, चाहे कोई दूसरा कुछ भी करे। दूसरे शब्दों में, अगर आप अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं, तो आपको प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। अगर आप प्रतिक्रिया करते हैं, तो आप किसी और के गुलाम हो जाएंगे।
प्रश्नकर्ता: यीशु ने कहा, ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक तुम नहीं बदलोगे और छोटे बच्चों की तरह नहीं बन जाओगे, तुम कभी स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाओगे।’ आज की दुनिया में हमें जितनी शिक्षा मिलती है, उसके बावजूद हम एक बच्चे की तरह मासूम कैसे रह सकते हैं?
सद्गुरु: मासूमियत का मतलब अज्ञानता नहीं है। शिक्षा आपकी अज्ञानता को दूर करने के लिए बनाई गई थी, आपकी मासूमियत को नहीं। मासूमियत का मतलब है कि आपने किसी चीज़ के बारे में कोई नतीजा नहीं निकाला है। एक बच्चा कुछ हद तक ऐसा होता है, लेकिन उसकी मासूमियत अज्ञानता से आती है। जीवन की तमाम जटिलताओं को जानने के बाद भी अगर आप अभी तक इसके गुलाम नहीं बने हैं, तो यह मासूमियत है।
मैं उन सभी बुरी चीजों को जानता हूँ जो कोई इंसान इस धरती पर कर सकता है। मैं किसी और से कहीं ज्यादा इसके संपर्क में हूँ, लेकिन मैं इसका हिस्सा नहीं हूँ। यह मासूमियत है, लेकिन यह अज्ञानता नहीं है। कोई मुझे इधर-उधर धकेलकर मेरा फायदा नहीं उठा सकता। भोलेपन और अज्ञानता के बीच इस भेद को स्थापित करना होगा, वरना अज्ञानी लोग दावा करते हैं कि वे मासूम हैं।
अब सवाल है कि मासूम कैसे बनें? आप जो हैं और जो आपने इकट्ठा किया है, अगर उसके बीच एक दूरी पैदा कर पाते हैं, तो आप वास्तव में मासूम हैं। अगर आपके और मन के बीच, आपके और शरीर के बीच थोड़ी सी दूरी है, तो आप मासूम हैं। मैं आपके जीवन के बारे में भले ही सब कुछ जानता हूँ, मैं वो सारी चीज़ें जानता हूँ जो आपने की हैं, लेकिन फिर भी मैं एक इंसान के रूप में आपके साथ रह सकता हूँ, मैं आपसे प्यार कर सकता हूँ और आपके साथ अच्छा व्यवहार कर सकता हूँ - यही मासूमियत है। किसी चीज़ को सिर्फ उसके आनंद के लिए करना, यह हिसाब-किताब किए बिना कि मुझे इससे क्या मिलेगा - यही मासूमियत है। जब आप बिना किसी उम्मीद के कार्य करते हैं, तो वह मासूमियत है। अगर आप सिर्फ वही करते हैं जो करने की जरूरत है, तो यह मासूमियत है। अगर आप इस सवाल को छोड़ देते हैं, ‘मुझे इससे क्या मिलेगा?’ तो यह मासूमियत है। जो मासूम है, वह ईश्वर के राज्य के लिए तैयार होता है।