आइए जानते हैं कि कौन से योग अभ्यास आपकी तीव्रता को बढ़ाने में मदद करते हैं। सद्गुरु यह भी बता रहे हैं कि उग्रता और तीव्रता में क्या अंतर है – एक सतही होता है जबकि दूसरा जीवन के स्रोत से जुड़ा है।
प्रश्न: सद्गुरु, तीव्रता और उग्रता में क्या अंतर है?
सद्गुरु: तीव्रता और उग्रता के बीच अंतर करना बहुत मुश्किल है। जो आग आपके घर को रौशन करती है और जो आग उसे जलाकर भस्म कर देती है, उनमें भले ही अंतर न दिखे, लेकिन वे बहुत अलग हैं। उग्र होना एक मनोवृत्ति है - तीव्रता जीवन से जुड़ी होती है। उग्रता आपकी भावना की तीव्रता है। लेकिन जब हम बस तीव्रता की बात करते हैं, तो हम भावनाओं की तीव्रता के बारे में नहीं, बल्कि आपके अंदर जीवन-ऊर्जा की तीव्रता के बारे में बात कर रहे होते हैं। ये दो अलग-अलग चीजें हैं, लेकिन बाहर से देखने वाले के लिए वे एक जैसी दिख सकती हैं।
तीव्रता एक ठंडी आग है। तीव्र होते हुए भी शांत होना महत्वपूर्ण है। उकसाने से उग्रता आ सकती है, लेकिन आप उकसाने से तीव्र नहीं हो सकते। तीव्रता को एक जबरदस्त साधना से अर्जित करना पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि बस यहाँ बैठे हुए एक ज्वालामुखी की तरह तीव्रता से जल सकें, तो उसके लिए जीवन शक्तियों की समझ की जरूरत है। अगर उसे एक जगह समेट लिया जाए, तो एक बिल्ली भी उग्र हो जाती है - बाघ की तो बात ही छोड़ दीजिए।
जीवन-ऊर्जा की तीव्रता जीवन को बेहतर करती है। उग्रता आपको जला देगी। अगर आप दस मिनट तक गुस्से में रहें, तो आप इसे देख सकेंगे। अगर आप अपने अंदर किसी प्रकार की उग्रता का अनुभव करते हैं, तो वह आपको जला देगी। लेकिन जीवन शक्ति की तीव्रता ऐसी नहीं है। एक बार जब आपकी ऊर्जा तीव्र हो जाती है, तो आप हर समय बस सक्रिय रहते हैं। भोजन, नींद, आपके लिए कुछ भी मायने नहीं रखता। जीवन और परमानंद चौबीसों घंटे, सातों दिन सक्रिय रहते हैं। उग्रता ऐसी नहीं होती – अगर आप इसे दस मिनट तक रखते हैं, तो यह आपको खत्म कर देती है। क्योंकि पहली एक भावना है, जबकि दूसरी आपकी प्राण-ऊर्जा के स्तर पर है, जो एक बिल्कुल अलग आयाम है।
आपने अपनी शक्ति-चालन क्रिया या शांभवी महामुद्रा क्रिया के बाद कुछ देर के लिए एक तरह की तीव्रता का अनुभव किया होगा। आपने महसूस किया होगा कि आप बहुत हद तक तीव्र और ऊर्जावान होते हुए भी बहुत ही शांत और स्थिर थे। अगर आप रोज़ अपनी क्रिया करते हैं, तो यह धीरे-धीरे बढ़ती है। यही साधना का महत्व है। अगर आप इसे कभी-कभार करते हैं, तो आप इसे नहीं बढ़ा पाएँगे। अगर आप हर दिन ऊर्जा से भरपूर हैं, और कुछ समय बाद, आप पीछे मुड़कर देखते हैं और देखते हैं कि आप पाँच साल पहले कैसे थे – तो आप विश्वास नहीं कर पाते हैं कि पहले आपका अस्तित्व इतना मामूली था।
अचानक, जीवन एकदम अलग स्तर पर चला जाता है। ऐसा नहीं है कि आप सज्जन और दयालु हो जाएँगे। आपके भीतर जीवन की मात्रा बड़ी हो जाएगी। यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे शब्दों में बताया जा सके या जिसे कोई आपको देखकर समझ सके। अपने अनुभव में, आप साफ तौर पर महसूस करते हैं कि आपके भीतर जीवन की मात्रा पहले की तुलना में बहुत बड़ी हो गई है, जो एक शीतल धारा की तरह नहीं बहेगी, बल्कि उसकी एक गर्जना होगी।
मैं नहीं चाहता कि आप बूँद-बूँद जिएँ और बूँद-बूँदकर मर जाएँ। आपको ज्वालामुखी की तरह फटना चाहिए। ज्वालामुखी बाहर से उग्र लग सकता है, लेकिन वह उग्र नहीं है। ज्वालामुखी इसलिए ज्वालामुखी है क्योंकि वह अपने भीतर के कोर (मूल) के संपर्क में है। इसकी गर्मी उकसाई हुई नहीं बल्कि कुदरती है। एक ज्वालामुखी सदियों और सहस्राब्दियों तक पकता है। सिर्फ कभी-कभार वह थोड़ा बहुत उछलता है। जब वह उछलता है, तो सभी लोग उसका फायदा उठा सकते हैं, लेकिन ज्यादा आबादी के कारण, यह एक आपदा की तरह दिखाई देता है, जो वह है नहीं। ज्वालामुखी की राख के कारण दुनिया बहुत समृद्ध है। ज्वालामुखी एक अच्छी चीज़ है। यह एक महत्वपूर्ण घटना है।
वेलंगिरि पर्वत[1] में भी ज्वालामुखी हैं, लेकिन वे ठंडे हो गए हैं। वे इस तरह परिपक्व हो गए हैं कि उन्हें अब और उगलने की जरूरत नहीं है। वेलंगिरि अपनी ऊर्जा को बिल्कुल अलग तरीके से फैला रहा है। इसे अब और उगलने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब यह पूरी तरह से काबू में है। उकसाने पर उग्रता कभी भी आपके अंदर आ सकती है। अगर कोई आपको छेड़ता है तो आप उग्र हो जाएँगे। इसके लिए किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। यह जीवन को नष्ट करने वाली प्रक्रिया है। जीवन की तीव्रता को समय के साथ अर्जित करना पड़ता है, और यह जीवन को उन्नत करने वाली प्रक्रिया है।
[1] ईशा योग केंद्र कोयम्बतूर के पास स्थित पहाड़