क्या हुआ जब अर्जुन को उनके बेटे ने मार दिया?

महाभारत – भाग 83
सद्‌गुरु एक कहानी बताते हैं जो कम ही लोग जानते हैं कि कैसे अर्जुन अपने ही पुत्र बभ्रूवाहन के हाथों मारा गया था और फिर अर्जुन की पत्नी उलूपी ने अपनी तंत्र-विद्या की शक्ति से एक खास औषधि तैयार करके उससे अर्जुन को पुर्नजीवित किया था।

सद्‌गुरु: वो अर्जुन का अपना पुत्र बभ्रूवाहन था जिसने उसे मारा था। ऐसा तो होना ही था क्योंकि अर्जुन का भीष्म के हाथों मरना तय था। भीष्म के सामने युद्ध में कोई नहीं टिक सकता था। जब अर्जुन की पत्नी उलूपी ने देखा कि बभ्रूवाहन ने अपने ही पिता को मार डाला है, तब उसने अपने पति को पुर्नजीवित करने के लिए अपनी तांत्रिक शक्तियों के बल पर एक औषधि तैयार करके उसे दी।

इस औषधि का बड़ा सुन्दर वर्णन किया गया है। नागों के द्वारा भीम को यही औषधि दी गई थी और बाद में वैसी ही औषधि अर्जुन को भी दी गई। कहा जाता है कि वो पारे से भी अधिक वज़नी थी। पारा यानी पारद। यह कुछ वनस्पतियों और विष को मिलाकर बनाया गया पारे का एक सूप जैसा था। अर्जुन ने इस औषधि को पिया और पुर्नजीवित हो गया।

दंडयुतापाणी स्वामी (मुरुगन या कार्तिक) की यह मूर्ति नवपाषाण से बनाई गई है। यह मूर्ति तमिल नाडू के पलनी शहर में स्थित है।

दक्षिण भारत में इसे नवपाषाण या एक खास सूप में मिलाए गए नौ घातक विषों के रूप में जाना जाता है, जिसे आपको पीना होता है। सिद्ध [1] लोग किसी भी बीमारी का उपचार करने के लिए इसका उपयोग करते थे। आज भी तमिलनाडु में कुछ मूर्तियाँ नवपाषाणों की बनी हुई हैं। और लोग इस मूर्ति पर से बहने वाले जल को, जिसमें कि उन नौ विषों का अंश रहता है, उसे पीने और उससे लाभान्वित होने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं।

यह ऐसा है, मानो आपने खाना खाया, किसी ने बर्तन धोया और बाहर खड़े कुत्ते ने उस बर्तन का धोया हुआ पानी पी लिया। आप बर्तन के उस धोए पानी को कम करके मत आंकिए। किसी ख़ास दिन अगर बर्तन के पानी में चीज़ें सही तरह से आ मिलें तो वह एक बढ़िया सूप हो सकता है। नवपाषाण कुछ ऐसा ही है- लोगों को इससे बहुत पोषण और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

अर्जुन और भीम ने असली ‘सूप’ पिया था। लेकिन आपको इसे पीने के लिए एक खास अवस्था में रहना होगा, नहीं तो आप इसे पचा नहीं सकते हैं। और सबसे बढ़कर यह कि जो लोग इसे बनाते और देते हैं उनमें एक विशेष तरह की समझ, सामर्थ्य और आंतरिक योग्यता होनी चाहिए। इसलिए अतीत में केवल सिद्ध लोगों ने ही ऐसा किया।

[1] आत्मज्ञानी या योगी, जो सिद्ध औषधियों का उपयोग करते थे। सिद्ध चिकित्सा पद्धति की शुरुआत दक्षिण भारत में हुई थी।