हेलीकॉप्टर से बाहर विशाल शून्यता
यूके के क्रिस्टोफर याद करते हैं कि कैसे वह ऐन वक्त पर हिमालय यात्रा के लिए पहुँचे और केदारनाथ में शून्यता या शिव को लेकर उनका अनुभव कैसा था।
क्रिस्टोफर : हिमालय यात्रा का हिस्सा बनकर मैंने ख़ुद को बहुत सौभाग्यशाली महसूस किया। यात्रा शुरू होने के एक सप्ताह बाद तक मुझे मेरा वीजा नहीं मिला था। लेकिन मैं आने के लिए इतना उत्सुक था कि मुझे पहला सप्ताह छूट जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता था। चाहे यहाँ सिर्फ पाँच मिनट के लिए भी आना होता, तब भी मैं पूरा रास्ता तय करके आता। मैंने चार्टर हेलीकॉप्टर किराए पर लिया, क्योंकि मैं यहाँ आने के लिए बेताब था। मैं केदारनाथ पहुँचा, हेलीकॉप्टर से उतरा और भागा।
जैसे ही मैं अपना सामान रखकर मंदिर की सीढ़ियों तक पहुँचा, सद्गुरु वहीं सामने थे। वह अभी-अभी मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने मुझे देखकर सिर हिलाया। सिर्फ उनकी कृपा से मैं आ पाया था। मैंने जूते उतारे, मंदिर के अंदर गया और बस अपने हाथों को नमस्कार की मुद्रा में जोड़कर अपनी आँखें बंद कर लीं। आँखों के आगे सिर्फ शांत स्याह शून्यता थी। उस समय मैंने महसूस किया कि शिव ने मुझे छू लिया है। मैं इससे पहले महाशिवरात्रि पर भी ऐसा अनुभव कर चुका हूँ। एक बार फिर मुझे दिख रहा था कि मैं इस ब्रह्मांड में बहुत तुच्छ हूँ, लेकिन मुझमे क्षमता असीमित है।
इस यात्रा ने मेरी साधना के अनुभव और साथ ही अपने आस-पास की हर चीज़ के प्रति मेरे अनुभवों को और गहन कर दिया है।
जहाँ पत्थर खिसकते हैं और इंसान स्थिर बैठते हैं
बेंगलुरु निवासी बालाजी जिन्हें कई मौकों पर सद्गुरु के साथ मोटरसाइकिल सवारी करने का मौका मिला है, हिमालयन जॉन्ट के उन क्षणों को साझा कर रहे हैं, जिन्होंने उसे सच में खास बना दिया।
बालाजी: कावेरी कॉलिंग मोटरसाइकिल रैली के अंत में, सद्गुरु ने हमें 2020 में हिमालय में अपने साथ मोटरसाइकिल पर चलने के लिए आमंत्रित किया था, जो कोविड महामारी के कारण संभव नहीं हो पाया। इसलिए मैं 2021 में उनके साथ चलने के लिए बहुत उत्सुक था। मौसम की अनिश्चितताओं और भू-स्खलन की संभावनाओं ने इस राइड को बहुत रोमांचक और यादगार बना दिया।
बद्रीनाथ के रास्ते में हमें पानी का एक गहरा पोखर मिला। पायलट वाहन में सफर कर रहे लोगों ने हमें तत्काल वापस मुड़ जाने को कहा। जब हमने ऊपर देखा तो पाया कि एक विशाल भू-स्खलन हमारी तरफ आ रहा था। चूँकि मोटरसाइकिल को मोड़ने के लिए जगह काफी नहीं थी, इसलिए सभी मोटरसाइकिल सवारों को अपनी मोटरसाइकिलें धक्का देकर जल्दी से पीछे करनी पड़ीं। सौभाग्य से कोई प्रतिभागी या स्वयंसेवक घायल नहीं हुआ। अगर हम पीछे हटने में दो मिनट की भी देरी करते, तो कुछ मोटरसाइकिल सवार और उनकी मोटरसाइकिलें बह जातीं।
एक और मुश्किल राइड गुप्तकाशी से सोनप्रयाग की थी, जिसके बाद केदारनाथ तक की चढ़ाई भी उतनी ही मुश्किल थी। लेकिन एक बार केदारनाथ की झलक मिलने के बाद, हम अपना सारा कष्ट और मुश्किलें भूल गए। हम सद्गुरु की मौजूदगी में मंदिर के सामने बैठे और हमारे पीछे भव्य हिमालय था। हम काफ़ी दर तक वहाँ स्थिर बैठे रहे। वह पूरी यात्रा का सबसे अद्भुत और शक्तिशाली अनुभव था।
जब मिस्र के मि. डॉक्टर एक ईशा ‘रोडी’ बने
मिस्र के एक उत्साही साधक, बोरिस डॉक्टर, साझा कर रहे हैं कि उन्होंने कैसे हिमालय में सद्गुरु के साथ मोटरसाइकिल चलाने के बाद अपना जादू वापस पा लिया।
बोरिस: मैं 2016 से सद्गुरु के साथ रहा हूँ। मुझे इस साल फरवरी में इस यात्रा के बारे में पता चला और मैंने प्रैक्टिस करने के लिए एक हर्ले डेविडसन खरीदी। मैंने पंजीकरण करवाया, मुझे विश्वास नहीं था कि मैं चुना जाऊँगा या नहीं लेकिन मैंने ईश्वर से प्रार्थना की और आखिरकार हिमालय यात्रा दल में जगह पा ली।
सद्गुरु ने हमारे साथ मोटरसाइकिल चलाई, हमारे साथ हँसी-मज़ाक किया और हमारे प्रिय विषय –मोटरसाइकिल पर विस्तार से बात की। उन्होंने हमें और हमारी मोटरसाइकिलों को भी आशीर्वाद दिया। ऐसा महसूस हुआ मानो हम उनकी टीम का एक हिस्सा हैं, उनकी रोडीज़ की टीम – ईशा रोडीज़।
केदारनाथ एक बिल्कुल अलग अनुभव था। मोटरसाइकिल सवारों ने टट्टू पर केदारनाथ जाने का फैसला किया। हम जल्दी ऊपर पहुँचना चाहते थे क्योंकि सद्गुरु हेलीकॉप्टर से आने वाले थे। लेकिन मुझे वापस नीचे आना पड़ा क्योंकि मैं अपना बैग भूल गया था। मैंने पूरी चढ़ाई करने का फैसला किया, जिसके लिए मैं तैयार नहीं था। मेरी जांघें और पिंडलियां दुख रही थीं लेकिन मैं शिवशंभो का जाप करता रहा। सद्गुरु की कृपा से मैं इतनी ऊर्जा बटोर पाया कि जिससे चढ़ाई पूरी हो पाई।
मेरे ख्याल से इन पहाड़ों पर हम इसलिए आए थे कि यह महसूस कर सकें कि हम कितने छोटे हैं। इस धरती पर हम कुछ भी नहीं हैं। हम सिर्फ यहाँ आए हैं और फिर बस चले जाएँगे। यह एक अद्भुत अनुभव था। मैं फिर से जवान, स्फूर्तिवान महसूस कर रहा हूँ और मुझे लगता है जैसे जेम्स बॉन्ड की तर्ज पर मेरी जादुई शक्तियां वापस आ गई हैं।
कृपा कैसे अलौकिक रूपों में राह दिखाती है
हैदराबाद निवासी मोटरसाइकिल सवार सुनील साझा करते हैं कि कैसे सद्गुरु के साथ मोटरसाइकिल चलाने की उनकी गहरी चाहत चार साल बाद साकार हुई। वह हिमालय में घटित एक विचित्र संयोग को याद कर रहे हैं।
सुनील: 2017 में मैंने यूट्यूब पर सद्गुरु के वीडियो देखने शुरू किए और उनके प्यार में पड़ गया – उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं की वजह से नहीं, बल्कि मोटरसाइकिलों के लिए उनके प्यार के कारण। लगभग उसी समय मैंने एक नई हर्ले डेविडसन आयरन 833 खरीदी थी। तब से सद्गुरु के साथ मोटरसाइकिल चलाना मेरा सपना था।
जून 2021 में मैंने साधनापद कार्यक्रम और सद्गुरु के साथ हिमालय यात्रा के लिए आवेदन किया। मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब एक ईशा स्वयंसेवक ने दोनों में मेरी प्रतिभागिता को कंफर्म करने के लिए मुझे फोन किया। तभी सद्गुरु के शब्द मेरे कानों में गूँजे - ‘आपके सपने कभी पूरे न हों। आपने जिनका कभी सपना भी नहीं देखा हो, वो चीजें आपके साथ हों।’
यह यात्रा बारह दिन चली और हम रोज़ लगभग छह घंटे मोटरसाइकिल चलाते थे। हालांकि मैं इस यात्रा की सौ से भी ज़्यादा यादगार घटनाएँ साझा कर सकता हूँ, लेकिन अभी मैं सबसे विचित्र और अविश्वसनीय संयोग के बारे में बता रहा हूँ। बद्रीनाथ के रास्ते में हमने एक भयानक भू-स्खलन देखा। वहाँ हम एक कनाडा से आई एक महिला से मिले जो भू-स्खलन के वीडियो रिकॉर्ड कर रही थी और जैसे ही उसने सद्गुरु को देखा, वह उनके आशीर्वाद के लिए उनके पैरों पर गिर पड़ी। मज़े की बात यह कि वह एक गलत बस पकड़ने की वजह से इस जगह पहुँची थी।
यात्रा के दसवें दिन, मेरी मोटरसाइकिल का अगला पहिया पंक्चर हो गया था। मैंने अपनी मोटरसाइकिल को टो-ट्रक पर लाद दिया और एक कार में सफर कर रहा था। हमारी यात्रा के अगले पड़ाव तक कनाडा की वह महिला हमारे साथ कार में आई। पता चला कि वह पिछले दो सालों से बिना किसी विशेष योजना, मकसद या मार्गदर्शन के भारत को एक्सप्लोर कर रही थी। और जल्दी ही हमें पता चला कि उसने मेरी कक्षा (अक्टूबर 2019 में हैदराबाद में) में ही शांभवी महामुद्रा में दीक्षा ली थी!
ऐसा महसूस हुआ कि दुनिया की सारी शक्तियों ने मिलकर उसे भव्य हिमालय में सद्गुरु के चरणों तक लाने की साजिश की थी। और वह अकेली नहीं थी। लगभग हर प्रतिभागी के साथ हुए विचित्र संयोगों ने उन्हें सद्गुरु के साथ ला दिया था। मैं उन सभी के अनुभव समझ सकता था क्योंकि वही मेरी भी सच्चाई थी। हालांकि मैं शहरी जीवन में वापस आ चुका हूँ, लेकिन मेरा दिल अब भी हिमालय में ही है।
एक आत्मज्ञानी गुरु के साथ होने का परमानंद
बेंगलुरु निवासी हेमंत साझा कर रहे हैं कि कैसे हिमालय में सद्गुरु के साथ होने का उनका सपना तीन साल के लंबे इंतज़ार के बाद सच हुआ।
हेमंत: हाल ही में, जब मैं दुबई में था, तो मुझे ईशा सेक्रेड वाक्स टीम की तरफ से एक ईमेल मिला, जिसमें कहा गया कि हिमालय में सद्गुरु के साथ एक बाइक राइड पर जाने का एक मौका है। मैंने बिना कुछ सोचे, अपना दुबई ट्रिप कैंसिल कर दिया। सद्गुरु की कृपा मुझे यहाँ लेकर आई।
हम बाइकर्स बहुत भाग्यशाली थे कि हमें सद्गुरु के साथ बारह दिन बिताने को मिले। नाश्ते के समय, चाय के समय, हिमालय में घूमते हुए, उनके साथ बहुत खास, अनौपचारिक पल हमने बिताए, जिन्हें मैं कभी नहीं भूलूँगा।
केदारनाथ में सद्गुरु के साथ होने का अनुभव अद्भुत था। हमने शाम को केदारनाथ मंदिर के सामने महामंत्र का जाप किया और सच में ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे शरीर की हर कोशिका परमानंद से फूट रही है। यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे बड़ा, सबसे सुखद अनुभव था।
यात्रा के दौरान कुछ समय तक मैं बाइक टीम की अगुआई कर रहा था। लेकिन ठीक भू-स्खलन से पहले, मैं रुक गया था, क्योंकि बारिश हो रही थी। हम सिर्फ कुछ मिनट से भू-स्खलन से बाल-बाल बचे। मुझे लगता है कि यह भी सद्गुरु की मौजूदगी के कारण संभव हुआ था। वह जानते हैं कि क्या करना है। उन्होंने बस सब अपने हाथ में ले लिया और हम सब बच गए। मेरे ख्याल से उनकी कृपा और आशीर्वाद की वजह से इस तरह की खतरनाक चीज़ का सामना करके उससे बच पाए।
गुरु के साथ मोटरसाइकिल चलाने के इस अनोखे अनुभव का कोई मुकाबला नहीं है।