अभिनेता-कॉमेडियन राजेश कुमार भारतीय टेलीविजन का एक लोकप्रिय चेहरा हैं, खासकर भारत के हिंदी भाषी राज्यों में। स्टारप्लस के हिट कॉमेडी-ड्रामा सीरीज़ ‘बा, बहू और बेबी’ में सुबोध ठक्कर और स्टार वन के मशहूर ‘सिटकॉम साराभाई वर्सेज साराभाई’ और उसके सीक्वल ‘साराभाई बनाम साराभाई: टेक 2’ में रोसेश साराभाई के रूप में उनकी कॉमिक भूमिकाएं बहुत लोकप्रिय हुईं। लेकिन सबसे बेहतर ढंग से उनका परिचय देने वाली चीज़ शायद उनकी इंस्टाग्राम प्रोफाइल है – ‘पेशे से अभिनेता, मन से किसान।’
2017 में, ‘रैली फ़ॉर रिवर्स’ के व्यापक अभियान के लिए भारत के प्रमुख शहरों में लोगों को जुटाने के लिए आयोजित बड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों में वह सूत्रधार की भूमिका निभाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए। इस भागीदारी ने उनके अंदर देश की मिट्टी, पानी और कृषि के प्रति गहरी दिलचस्पी और जोश जगाया और उन्हें प्राकृतिक खेती की पहल ‘मेरा फैमिली फार्मर’ (मेरा पारिवारिक किसान) शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
राजेश कुमार: एक अभिनेता और कॉमेडियन होने की वजह से मंच पर प्रस्तुति देने में मुझे डर नहीं लगता, बल्कि मैं उत्साहित होता हूँ। जब मुझे सितंबर 2017 में विशाल नदी अभियान के सार्वजनिक कार्यक्रमों में कंपेयरर की भूमिका की पेशकश की गई, तो मैं बहुत रोमांचित था। तीन जन-सभाओं में कंपेयरिंग करने के बाद, मैं बिहार में अपने मूल निवास स्थान बरमा चला गया।
मैं अपने घर के पास एक सूखी हुई जमीन के बगल में खड़ा था, जहाँ सिर्फ एक दशक पहले शानदार दर्धा नदी पूरे उफान के साथ बहती थी। मुझे उसके तट पर और उसके चारों ओर घने, हरे-भरे पेड़-पौधों के बीच समय बिताना अच्छी तरह याद है। लेकिन एक दशक से भी कम समय में, इस शानदार बारहमासी नदी को बरबाद कर दिया गया, जिससे यहॉं की जमीन सूखी और प्यासी हो गई।
इस पीड़ादायक अनुभव ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया, और मेरे मन में सद्गुरु के शब्द गूंज उठे, ‘आपको तय कर लेना चाहिए कि आप समाधान का हिस्सा बनना चाहते हैं, या समस्या का।’ मैं सोचने पर मजबूर हो गया, ‘सरकार या समाज पर आरोप लगाने या समाधान के बारे में बस अंतहीन चर्चा करने का आख़िर क्या मतलब है?’ मैंने तुरंत तय कर लिया कि मुझे समाधान का हिस्सा बनना है, और फिर मैं नदी अभियान में शामिल हो गया।
मैं जानता था कि नदी को पुनर्जीवित करने का काम रातों-रात नहीं हो सकता, इसके लिए एक पूरी पीढ़ी की लगन और कोशिश की जरूरत है। लेकिन साथ ही मैं यह भी जानता था कि जब तक कोई पहला कदम नहीं उठाता, हम कभी उस समाधान की तरफ नहीं चल पाएँगे, जिसके नतीजे आने में सालों, या शायद दशकों लगने वाले हों।
जैसे ही मैंने इसके समाधानों की खोज करनी शुरू की, मैं फिर से सद्गुरु के गहन ज्ञान से टकरा गया। मुझे याद आया कि उन्होंने कई मौकों पर दोहराया है कि एक व्यावहारिक समाधान तभी संभव है जब हम ‘इकोलॉजी और इकोनॉमी को साथ लाएं’ वरना इकोनॉमी यानी अर्थव्यवस्था सीधे-सीधे जीत जाएगी। इसी बात ने ‘मेरा फैमिली फार्मर’ पहल को जन्म दिया।
बिहार में हमारे परिवार के पास 17 एकड़ भूमि थी, जिस पर हमने एक मॉडल फार्म बनाने की एक पहल की। पहले दो सालों में, हमने 500 नींबू के पेड़, 2000 अमरूद के पेड़, 800 पपीते के पेड़, आम के पेड़ और हरी मिर्च उगाए हैं। इसके अलावा, हम पानी का कम से कम प्रयोग करने के लिए ड्रिप सिंचाई विधियों का इस्तेमाल करते हैं।
यह किसानों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने की एक कोशिश है कि प्राकृतिक खेती की तरफ जाना न केवल इकोलॉजी की दृष्टि से समझदारी है, बल्कि आर्थिक तौर पर भी फायदेमंद है। हमने खेत पर बिजली के इस्तेमाल को भी सजगता के साथ व्यवस्थित किया है। दो साल से भी कम समय में, खेत अपना खर्च उठाने के लिए पर्याप्त आमदनी पैदा कर रहा है, जो हमारे और पड़ोसी किसानों के लिए एक प्रेरणादायक शुरुआत है।
आज, बहुत से लोगों के पास एक फैमिली लॉयर, एक फैमिली एकाउंटेंट, और आम तौर पर एक फैमिली डॉक्टर ज़रूर होता है। मुझे लगा कि अब समय आ गया है कि हमारे पास एक फैमिली फार्मर भी हो। कई कोशिशों और गलतियों के बाद, खेती में सफलताओं और असफलताओं के उतार-चढ़ाव के बाद, हमें ‘मेरा फैमिली फार्मर’ का विचार सूझा, जो भारत में लगभग नया है।
यह किसानों के लिए एक सदस्यता-आधारित मॉडल है जिसमें वे प्राकृतिक खेती के तरीके अपनाते हैं, और हर हफ्ते सीधे अपने ग्राहकों तक फल और सब्जियाँ पहुँचाते हैं। हम उन किसानों के साथ काम करते हैं जो मुंबई के पास एक गांव में कई तरह के फल और सब्जियाँ उगाते हैं। हम केवल प्राकृतिक खेती के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, और सुभाष पालेकर व सी वी रेड्डी की प्राकृतिक खेती के तरीकों का पालन करते हैं। श्री पालेकर और श्री रेड्डी दोनों को भारत में खेती के विकास की दिशा में उनके अग्रणी काम के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
जैविक खेती में जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन हम इनमें से किसी का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसके बजाय, हम प्राकृतिक कीटनाशकों के रूप में पत्तियों और पौधों के दूसरे हिस्सों का इस्तेमाल करते हैं जो उनके एंटिफंगल या कीट-विरोधी गुणों के लिए जाने जाते हैं। मसलन, पौधों पर छाछ का छिड़काव करने से उन्हें फंगस से छुटकारा पाने में मदद मिलती है। साथ ही इससे फल, फूल और पत्ते पूरी तरह विकसित हो पाते हैं। नीम के पत्तों और छाल का इस्तेमाल भी कीटनाशक के रूप में किया जाता है।
मुंबई के पास, पालघर स्थित किसान ज्ञानेश्वर साझा करते हैं, ‘मेरे दादाजी प्राकृतिक खेती के तरीकों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन मेरे पिता रासायनिक खेती की तरफ़ बढ़ गए, जिससे कुल उत्पादन और मुनाफे में कमी आई। जब से मैंने सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाया है, हमारी खेती टिकाऊ और लाभदायक भी हो गई है। अगर एक या दो फसलें खराब भी हो जाती हैं, तो हमें चिंता नहीं होती क्योंकि हमारे पास जो दूसरी फसलें होती हैं, उन्हें बेचकर हम अच्छा मुनाफा कमाते हैं।”
हमें सबसे बड़ा समर्थन अपने ग्राहकों से मिलता है, जो लगातार बढ़ रहे हैं। ‘मेरा फैमिली फार्मर’ के उपभोक्ता साझा करते हैं कि वे अब ज्यादा सब्जियां इस्तेमाल करने लगे हैं। वे पूरे दिन अपने ऊर्जा-स्तर में एक साफ फर्क महसूस कर सकते हैं। ‘सब्जियों को पकाने में अब कम समय लगता है, और यह बहुत पौष्टिक लगता है। सब्जियों और फलों में एक अलग स्वाद होता है, जो पहले स्टोर से खरीदी गई सब्जियों में नहीं था,’ मुंबई की एक गृहिणी बताती हैं।
हाल ही में, नासिक के किसानों का एक समूह भी, जो मुंबई में परिवारों को अपने फल और सब्जियों की आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं, हमारे साथ शामिल हुआ।
हर सप्ताह हम अपने उपभोक्ताओं को उन फलों और सब्जियों की सूची देते हैं, जिन्हें तोड़ा और काटा जाना है। जब वे अपनी पसंद जाहिर कर देते हैं, तो हम हर सप्ताह 10-12 किलोग्राम फल और सब्जियां उन्हें सौंपते हैं।
‘पहले अपने उत्पादों के लिए ऊँचे दर्जे के खरीदारों तक हमारी पहुँच नहीं थी, और चूँकि फल और सब्जियाँ खराब होने वाली चीज़ें हैं, तो हमें उन्हें कम कीमत पर बेचना पड़ता था। लेकिन ‘मेरा फैमिली फार्मर’ की बदौलत अब मुंबई में उपभोक्ताओं तक हमारी सीधी पहुँच है और मुनाफा काफी अच्छा मिल जाता है,’ नासिक के किसान हितेश पटेल कहते हैं।
हमारे उत्पादों की गुणवत्ता और पौष्टिकता ने उपभोक्ताओं को हमारे साथ बने रहने पर मजबूर कर दिया है और उन्हें अपना पैसा वसूल होता दिखता है। हम हर किसी को रसायन मुक्त खेती का फर्क समझाना चाहते हैं।
हज़ारों जागरूक उपभोक्ता हैं जो वाकई किसानों की मदद करना चाहते हैं। कई भारतीय लोग, समाज की भलाई के लिए बहुत समर्पित हैं और भारतीय किसानों के कल्याण में योगदान देने, यहाँ तक कि गाँवों को गोद लेने के लिए भी तैयार हैं। मेरा फैमिली फार्मर जैसी कोशिशें यह अवसर देती हैं।
किसान पारपंरिक गेहूँ-धान की चक्रीय खेती से निकलने में सिर्फ इसलिए हिचकिचाते हैं क्योंकि इन फसलों के लिए एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी होती है। अगर किसानों को उनके उत्पादों और कोशिशों के लिए उचित कीमत की गारंटी दी जा सके, तो उनके अंदर पेड़-आधारित खेती की तरफ जाने के लिए जरूरी आत्मविश्वास आएगा, जिसमें ज़्यादा आदमनी सुनिश्चित होगी। हमारी कोशिश परिवारों को सदस्यता आधार पर खेतों और किसानों को गोद लेने के लिए प्रोत्साहित करने की है ताकि एक टिकाऊ मॉडल बनाया जा सके जो मिट्टी, पानी, किसानों और उपभोक्ताओं, सभी के लिए एक समान फायदेमंद होगा।
अधिक जानकारी के लिए www.merafamilyfarmer.com पर जाएँ
फोन: : 9820120591, 9821035180