साधना पद

कैसे इजराइल की एक युवा वैज्ञानिक ने नई स्थिरता, अच्छी सेहत और संतुष्टि पाई?

येरुशलम की लायरन युसूफ, जो भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध करने वाली वैज्ञानिक हैं, हमेशा आध्यात्मिकता से बचने की कोशिश करती थीं, फिर भी एक दिन उन्होंने इनर इंजीनियरिंग की क्लास की। तब वे इस बात से बिल्कुल अनजान थीं कि यहाँ से उनकी जिंदगी बदलने वाली है। वह डर से स्थिरता तक के अपने सफर के बारे में बता रही हैं।

जब मैंने महसूस किया कि जीवन में इससे ज्यादा कुछ होना चाहिए

कई सालों से येरुशलम में रहते हुए मैंने हर तरह के धर्म और आध्यात्मिकता में लोगों को अतिवादी होते देखा। हमेशा से तार्किक और पेशे से भौतिक विज्ञानी होने की वजह से मुझे यकीन था कि किसी भी तरह की आध्यात्मिकता से हर हाल में परहेज करना चाहिए। मेरा मानना था कि उसमें सिर्फ परंपराएं और कर्मकांड होते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता। हालाँकि, पुराने शहर की पत्थर की दीवारों के चारों ओर के खूबसूरत खामोश पहाड़ यह पक्का कर देते हैं कि आप देर-सबेर अपने भीतर देखना शुरू कर देंगे।

मेरे जीवन में वह समय तब आया जब मुझे पता नहीं चल रहा था कि मैं किधर जा रही हूँ। मैं सालों से फिजिक्स और मैथ्स पढ़ रही थी, रिसर्च कर रही थी और एक पीएच.डी. शुरू करने वाली थी। दुनिया को जानने और समझने के लिए उत्सुक मेरे खोजी मन के लिए दुनिया के भौतिक नियमों का शोध करना एकमात्र रास्ता था। हालांकि मैं एक सफल वैज्ञानिक थी, लेकिन तब तक मेरे अंदर यह भावना उठने लगी थी कि यह काफी नहीं है। 

हर हफ्ते मेरे अंदर एक अंतहीन बहस होती थी – एक ओर, मैं जहाँ हूँ, वहाँ तक पहुँचने के लिए मैंने जो मेहनत की थी वह था, और दूसरी तरफ एक अनजान रास्ता। यह न जानते हुए कि कौन सा रास्ता बुरा था और कौन सा अच्छा, मैंने वह किया, जिसकी मेरे परिवार ने उम्मीद नहीं की थी और मैंने अपना एकेडमिक कैरियर छोड़ दिया।

ईशा ने मेरे पूर्वाग्रह को दूर किया

उस समय, मैं सद्‌गुरु या ईशा के बारे में बहुत कम जानती थी। मेरे लिए, वह वायरल यूट्यूब वीडियोज़ का एक जाना-पहचाना चेहरा थे, जिनकी बातों में समझदारी होती थी, उनमें विनोदप्रियता थी और लंबी दाढ़ी थी। हालांकि उनके शब्द मेरे अंदर गूँजते थे लेकिन फिर भी मेरी कुछ शंकाएं थीं जो उस धार्मिक जीवन शैली से पैदा हुई थीं, जो मैंने देखी थी।

जिस चीज़ ने मुझे पहले से बनी धारणाओं से परे देखने के लिए प्रेरित किया, वह थी, अलग-अलग कार्यक्रमों और हठ योग टीचर ट्रेनिंग के बारे में मौजूद वीडियोज़। मुझे खुद कुछ योग-स्टूडियो का अनुभव था, मुझे लगता था कि मैं जानती हूँ कि योग क्या है। लेकिन ऐसा लगा कि ईशा में सब कुछ बहुत अनूठे और खास ढंग से तैयार किया गया था – योग के प्रति ऐसा नज़रिया जो मैंने पहले नहीं देखा था। टीचर ट्रेनिंग और आश्रम के जीवन के बारे में देखना और पढ़ना, हर पहलू पर बारीकी से ध्यान देना, इन चीज़ों ने मुझे आकर्षित किया। खाने के तरीके से लेकर कई गतिविधियों और पहलों तक को देखकर, जो सब स्वयंसेवक संभालते थे, मैंने महसूस किया कि यह मुझसे और मेरे पूर्वाग्रह से कहीं बड़ा है। 

विश्वास की छलांग 

मेरा पहला कदम था - अपने इलाके में इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम में शामिल होना क्योंकि अब बेरोजगार होने के कारण मेरे पास ढेर सारा समय था। मुझे याद है कि मैंने कार्यक्रम के बारे में और ज्यादा जानने के लिए स्वयंसेवकों की स्थानीय टीम से संपर्क किया, यह सोचते हुए कि हम तीन दिन तक असंभव तरीके से रीढ़ को मोड़ते-मरोड़ते रहेंगे। स्वयंसेवक ने शांति से मेरे सारे सवालों के जवाब दिए और कहा, ‘अगर आप सद्‌गुरु की बातों से इत्तफाक रखती हैं, तो कार्यक्रम में आइए।’ तो मैंने विश्वास की छलांग लगाई और बस उस सप्ताहांत से ही जीवन तेज़ी से बदलने लगा।   

सद्‌गुरु की तैयार की गई प्रक्रिया से गुज़रते हुए, बाद में मैंने काफी हल्का महसूस किया, मानो कोई बोझ जो पता नहीं कब से मेरे साथ था, हट गया है। मैं उन साधनों को पूरी तरह समझ नहीं पाई थी, जो उस समय दिए गए थे। लेकिन यह देखकर कि बाकियों ने उसका अनुभव कैसे किया और उन स्वयंसेवकों को देखकर जो हमें यह अनुभव देने के लिए हद से आगे तक गए, मैंने एक और अतार्किक चीज़ करने और उन निर्देशों का ठीक उसी तरह से पालन करने का फैसला किया, जैसे बताए गए थे।

लोगों ने चाहे जो भी कहा, चाहे उसके लिए समय निकालना या प्रेरित होना कितना भी मुश्किल रहा हो, मैंने उस क्रिया को करने का संकल्प किया। हठ योग के साथ नियमित क्रियाओं से मेरा शरीर मजबूत हो रहा था और मानसिक तौर पर आने वाली किसी भी चीज़ के लिए डर कम हो गया था। मन की इस शांति ने मुझे अपने आस-पास के लोगों को अलग तरीके से देखने के लिए प्रेरित किया। जिन चीज़ों से पहले मैं बहुत चिढ़ती थी, अब अच्छी और प्यारी महसूस हो रही थीं। मैं वहाँ ऐसे क्षेत्र में काम करने की कोशिश भी करना चाहती थी, जिसका मुझे शौक था। इसलिए मैंने लेखन और विज्ञान पढ़ाने का फ्रीलांस काम भी करना शुरू कर दिया, मैं प्रक्रिया का आनंद उठाने के साथ-साथ धीरे-धीरे अपना रास्ता तलाश रही थी।  

साधनापद ने मेरे काम का तरीका और मेरा नजरिया बदल दिया

रोमांच की इस नई भावना के साथ, मैं आगे की खोज करना चाहती थी और मैंने साधनापद कार्यक्रम के लिए आवेदन करने का फैसला किया। दुर्भाग्य से, महामारी के कारण मैं इस कार्यक्रम में 2020 में शामिल नहीं हो सकी। लेकिन यह देरी एक इनर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट को न तो कुचल पाई और न ही रोक पाई। मैंने धैर्यपूर्वक इंतजार किया और आखिरकार 2021 के कार्यक्रम में शामिल होने में कामयाब रही, जो अभी चल रहा है।

हालांकि मुझे यहाँ ज्यादा समय नहीं हुआ है, लेकिन मुझे लगता है कि मेरा विकास दस गुना तेज़ हो गया है। जो काम करने में मुझे महीनों लगते थे, वह यहाँ एक सप्ताह में हो जाता है। अपने शरीर के मामले में, मैं एक बच्चे की तरह महसूस करती हूँ, चलने, बैठने और खाने का तरीका भूलना और फिर से सीखना। आश्रम के पवित्र स्थान में योगाभ्यास करते हुए, मैंने अपनी दैनिक क्रियाओं में जो एकाग्रता दिखाई, उससे मैं ऐसे आसन भी कर पाई जो मैं पहले नहीं कर पाती थी, भले ही मैं एक साल से ज्यादा समय से अभ्यास कर रही थी।

लगभग जादुई तरकीब से, आप पाएंगे कि यहाँ आप लगातार अपनी सीमाओं की कगार पर रह रहे हैं – चाहे यह आपको अच्छा लगे या नहीं। सद्‌गुरु ने कहा कि आपको सिर्फ उसमें पिघलना है और एक बार मैंने ऐसा किया तो मेरे आस-पास की दुनिया बदल गई। अब सिर्फ आकाश, किसी पेड़ या फूल को देखने पर भी मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। मैंने मच्छरों को भी प्यार से देखना सीख लिया है और उन्हें बस देखते ही मसल डालने की क्षमता खो दी है, चाहे वे मेरे पैरों पर कितना भी काट लें। सब कुछ उससे बड़ा दिखाई देता है, जैसा मुझे पहले दिखता था।

जब मुझे अपनी एलर्जी के लिए जादुई इलाज मिला

मेरे लिए आश्रम जीवन के सबसे महान अनुभवों में से एक तत्वों के साथ मेरा दैनिक संबंध है। बागवानी विभाग में दो दिन काम करने के बाद ही यह प्रभाव स्पष्ट हो गया था। मुझे हमेशा से एलर्जी रही है, जो भारत में उतरते ही भड़क उठी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मिट्टी के साथ काम करने के सिर्फ दो दिन बाद ही केवल लक्षण कम नहीं हुए हैं, बल्कि मेरी एलर्जी पूरी तरह से दूर हो गई है। बरसों की समस्या – सूँघने और छींकने की, दो दिन में ठीक हो चुकी थी। बारिश और धूप में चलना, आश्रम में हर जगह बहती हवा के झोंकों को महसूस करना और नंगे पैर चलना, जीवन को अलग तरह से अनुभव कराता है।  

जब मैं इनर इंजीनियरिंग से पहले के अपने जीवन पर नज़र डालती हूँ, तो मैं देखती हूँ कि मैं बस डरी हुई थी। मुझे आश्चर्य होता है कि दो साल में मैं कितनी बदल गई हूँ। इससे पहले, मैं ज्यादा ज़िम्मेदारियाँ लेने से बचती थी, क्योंकि जब भी मेरे पास ज्यादा काम होता था तो मैं हमेशा तनाव महसूस करती थी। अब मुझे लगता है कि मैं अपना काम तीव्रता से करने में सक्षम हूँ, जैसे-जैसे काम का बोझ बढ़ता है, मैं और ज्यादा ऊर्जा महसूस करती हूँ। मन और शरीर की इस स्थिरता के साथ, मैं एक तरह की आज़ादी महसूस करती हूँ, क्योंकि अब मेरे लिए ज्यादा संभावनाएं खुली हैं। मुझे नहीं पता कि आगे क्या होगा, लेकिन मैं सद्‌गुरु और कई ईशा स्वयंसेवकों की बहुत आभारी हूँ जो मेरे लिए ऐसा संभव बना रहे हैं। यहाँ जो सिखाया जा रहा है, वह बहुत कीमती है, और मैं आशा करती हूँ कि मैं इसका हिस्सा बनी रहूँगी।

पंचभूतों के साथ एक दिन

मेरे हाथ और पाँव

नम मिट्टी पर

जोड़ते हैं मुझे 

उस माँ से, जो हमेशा देती ही है।

अथक श्रम करते हुए

बहती हुई हवा

हर लेती है मेरा दर्द

और देती है एक नया जीवन 

मीठा जल

बन जाता है ताकत मानसून की

रुक जाता है सब कुछ

जब वह सुंदर झरनों में बहता है।

देवी का तेज है मेरे साथ

नहीं होती उनकी रोशनी कभी मद्धम 

और दिखाती रहती है मुझे रास्ता 

कि देख सकूँ हर किसी में वही अग्नि।

भव्य नीला आकाश

इस गौरवशाली मुख से ऊपर

भीतर और बाहर से उसकी शांति

मुझे थाम कर रखती है असीमता में

- लायरन युसुफ