प्रोजेक्ट संस्कृति

प्रोजेक्ट संस्कृति: विश्व को ईशा संस्कृति की भेंट

भाग 1: निर्वाणषट्कम मॉड्यूल

पाँच कड़ियों की इस श्रृंखला में, हम आपके सामने ईशा संस्कृति के विद्यार्थियों, पूर्व-छात्रों और स्वयंसेवकों की नज़रों से प्रोजेक्ट संस्कृति की परदे के पीछे की कहानियाँ आपके सामने लेकर आ रहे हैं।  

20 सालों का प्रोजेक्ट

अगर आप ईशा योग केंद्र में ईशा संस्कृति परिसर के 200 से 300 मीटर के दायरे के भीतर हैं, तो आप पैरों की ताल, हँसी, मंत्र, कर्नाटक संगीत, रागों और गीतों की आवाज़ों से चूक नहीं सकते। पिछले छह महीनों से ईशा संस्कृति की हवा में उत्साह की मात्रा थोड़ी और बढ़ गई है। 

सत्संगों, सार्वजनिक वार्ताओं और निजी बैठकों में सद्‌गुरु ने भारतीय शास्त्रीय कलाओं के बारे में जागरुकता बढ़ाने की बात कई बार की है। प्रोजेक्ट संस्कृति करीब 20 सालों से निर्माण की प्रक्रिया में था लेकिन उसे अधिकारिक तौर पर हाल में गुरु पूर्णिमा 2021 के अवसर पर लॉन्च किया गया।

सरल शब्दों में कहें तो प्रोजेक्ट संस्कृति दुनिया भर के लोगों के सामने जटिल भारतीय शास्त्रीय कलाओं को पेश करने की एक कोशिश है और जो धीरे-धीरे लाखों लोगों के जीवन को बदलने की एक संभावना भी पैदा करती है। उस अर्थ में देखें तो ‘प्रोजेक्ट संस्कृति’ 30 वर्ष पहले शुरू हुए आत्मज्ञान के मौन आंदोलन का एक हिस्सा है।


एक दुर्लभ सौभाग्य

संस्कृति के पूर्व छात्र 24 वर्षीय आदर्श किरण खुद को कई मायनों में भाग्यशाली समझते हैं। सद्‌गुरु से पहली बार उनका सामना तब हुआ था जब वे महज़ एक साल के थे, जब वह 1996 में आश्रम आए थे। जल्द ही उनकी माँ फुल-टाइम आश्रम में आ गईं, तब वह सिर्फ 7 साल के थे। उनकी माँ उनके बचपन को याद करती हैं कि कैसे वे 1999 में ध्यानलिंग के बनने के दौरान उसकी ईंटों से खेलते थे। अब एक युवा के रूप में, वह एक गहन योग और कलारीपयट्टु अभ्यास के संतुलन के साथ शांत बैठे हुए याद करते हैं कि कैसे सद्‌गुरु हमेशा उन्हें ‘ऐ!’ कहकर बुलाते थे। ‘अब भी वे मुझे उतने ही प्यार से बुलाते हैं,’ आदर्श कहते हैं।

आदर्श 2005 में ईशा होम स्कूल छात्रों के पहले बैच से हैं। जब 2008 में सद्‌गुरु ने ईशा संस्कृति की घोषणा की, तो बाकियों की तरह उनके माता-पिता भी अपने बच्चों को ईशा होम स्कूल से निकालकर ईशा संस्कृति में डालने के लिए उत्साहित थे। अपनी माँ के छह घंटे तक लगातार समझाने के बाद, नन्हा आदर्श मान गया और 13 दूसरे बच्चों के साथ ईशा संस्कृति जाने के लिए तैयार हो गया। ‘तब से मैंने मुड़कर पीछे नहीं देखा,’ आदर्श कहते हैं। वह ईशा संस्कृति के पहले 14 बाल-ब्रह्मचारियों में से भी एक हैं और आज ईशा हठ योग के सबसे कम उम्र के शिक्षकों में से हैं। ‘पिछले बीस सालों में हमने संस्कृति में जो कुछ ग्रहण किया है, उसे सिखाने और व्यक्त करने के लिए हम प्रोजेक्ट संस्कृति से बेहतर मंच के बारे में नहीं सोच सकते थे,’ दुनिया के सामने प्रोजेक्ट संस्कृति की पहली प्रस्तुति ‘निर्वाण षट्कम मॉड्यूल’ के बारे में, जो हाल में समाप्त हुआ है, बताते हुए आदर्श कहते हैं। 

‘मुझे एकदम शुरुआत से प्रोजेक्ट संस्कृति का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला है,’ वह एक मुस्कान के साथ कहते हैं। अपने कई फर्स्ट में एक और जोड़ते हुए, आदर्श उस 14 सदस्यों वाली टीम का हिस्सा थे जिसने हाल में 7 महाद्वीपों और लगभग 50 देशों के 800 से ज्यादा प्रतिभागियों को निर्वाण षट्कम मंत्र सिखाने का काम पूरा किया।

निर्वाण षट्कम सिखाने में आने वाली चुनौतियां

8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा रचित निर्वाण षट्कम के छह संस्कृत श्लोक, शायद आध्यात्मिक साधक की चाहत की सबसे शक्तिशाली अभिव्यक्ति हैं – चेतना और आनंद का एक रूप बनने की चाहत, या दूसरे शब्दों में कहें तो स्वयं शिव के साथ एक हो जाने की चाहत। हालाँकि निर्वाण षट्कम का अर्थ बेशक गहन है, लेकिन उसकी शक्ति उसके अर्थ में नहीं है, बल्कि उसके उच्चारण से पैदा होने वाली गूँज में है।

अलग-अलग भाषाओं और पृष्ठभूमि वाले 50 से ज्यादा देशों के प्रतिभागियों को संस्कृत श्लोक सिखाना, प्रोजेक्ट संस्कृति टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से लिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिभागियों के मंत्र उच्चारण सुधार के लिए एक सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध हो, टीम ने अलग-अलग शहरों में स्वयंसेवकों के समूहों को चुना और उन्हें प्रशिक्षित किया। एक मास्टर करेक्टर ने बताया कि स्वयंसेवकों के उच्चारण प्रशिक्षण के लिए उन्हें एक महीने तक हर दिन एक घंटा लगाना पड़ा ताकि वे स्वयंसेवक प्रतिभागियों के मंत्रों को ठीक करने में मदद कर पाएँ। वे इस प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘इस ट्रेनिंग ने ख़ुद मेरी एकाग्रता और फोकस को बहुत बढ़ाया, न केवल अलग-अलग ध्वनियों के लिए, बल्कि मेरी साधना और मेरी सभी छोटी-बड़ी गतिविधियों के लिए भी।’

चूंकि प्रोजेक्ट संस्कृति का पहला चरण पूरी तरह से ऑनलाइन था, इसलिए दूसरी बड़ी चुनौती थी - सामग्री को दिलचस्प और आकर्षक बनाने की। वीडियो के लिए कहानियों और दिलचस्प बातों की खोज करने के लिए कैसे ईशा आर्काइव्स और इंटरनेट को खंगालते रहे, इसके बारे में स्वयंसेवक सिद्धार्थ छावछरिया उत्साह के साथ बताते हैं। ‘इसे सुलभ बनाने के लिए हम चाहते थे कि यह वीडियो और इंटरैक्टिव सेगमेंट के साथ आकर्षक हो। हमने तकनीक, सुंदरता, स्क्रिप्ट, और निश्चित रूप से सही सामग्री का चुनाव करने सहित, हर पहलू पर ध्यान दिया।’ एक आकर्षक शैली में सात आकर्षक वीडियो बनाने के लिए हफ्तों तक लगातार काम करते हुए, सिद्धार्थ संस्कृति के छात्रों की सराहना करते हुए कहते हैं, ‘उन्हें प्रशिक्षण में खुद को पूरी तरह से झोंक देना और कार्यक्रमों का संचालन करते हुए देखना बहुत प्रेरणादायक था। बहुत ही रचनात्मक, जोशीले और उत्साही लोगों के समूह के साथ काम करने के लिए मिले इस अवसर की वजह से मैं खुद को भाग्यशाली महसूस करता हूँ।’

तीसरी बड़ी चुनौती थी, लाइव ऑडियंस के सामने बोलने के बजाय घंटों तक निर्जीव कैमरा लेंस के सामने बात करना सीखना। ‘शुरू में मैं बहुत संकोच में रहता था, लेकिन जब वह संकोच ख़त्म हो गया, तो मुझे लगा कि मैं प्रतिभागियों को लंबे समय से जानता हूँ। मैंने उनके चेहरे नहीं देखे, लेकिन ऐसा लगता था कि मैं उन्हें निजी तौर पर जानता हूँ। वह शिक्षा कि मैं पूरे संसार की माँ हूँ, मेरे भीतर दौड़ती रही और निर्वाण षट्कम की कक्षा को लेकर मेरा नजरिया पूरी तरह बदल गया। जब मैं वहाँ बैठा था, तो ऐसा नहीं लगा कि यह मैं हूँ। शब्द बस बाहर निकलते गए और वह अनुभव दिल को छूने वाला था,’ आदर्श बताते हैं।

संस्कृति में प्रशिक्षण की मुश्किलें

आदर्श भी कई दूसरे शिक्षकों की तरह विश्वास नहीं कर पाते हैं कि ये वही बच्चे हैं जो बस कुछ ही साल पहले बत्तख के बच्चों की तरह क़तार में स्वामी आदिरूप के पीछे-पीछे चलते हुए भिक्षा हॉल तक जाते थे, या आश्रम के पास एक छोटी सी नदी में बैठकर लगातार निर्वाण षट्कम का जाप करते थे - और आज वे दुनिया भर के लोगों को वही चीज़ सिखा रहे हैं। 

‘चूंकि हम एक ऐसी चीज़ पढ़ा रहे हैं जिसे आम जनता के लिए बनाया गया है, इसलिए हमारे पास इसे करने का एक निश्चित तरीका है। हर शब्द कैलिब्रेटेड है, और हम इस पर मेहनत कर रहे हैं कि उसे कैसे बोला जाए और कैसे इसे दिलचस्प बनाया जाए,’ वह आगे बताते हैं। 

अधिकांश शिक्षक, जो निर्वाण षट्कम मॉड्यूल सिखा रहे हैं, वे बाल-ब्रह्मचारी हैं (ईशा संस्कृति में 15 साल की उम्र मे छात्रों के लिए 30 माहीनों के लिए ब्रह्मचर्य होता है), जो 18 साल से कम उम्र के हैं और उन्हें सार्वजनिक तौर पर बोलने का लगभग कोई अनुभव नहीं रहा है। फिर भी वे ऐसे प्रतिभागियों को ट्रेनिंग दे पाए, जो उनसे उम्र में दोगुने या तिगुने हैं। ‘बाल-ब्रह्मचारियों का बर्ताव देखकर और उन्हें बढ़िया काम करते देखकर, मैं उनकी टांग खींचने वाले व्यक्ति से उनके आगे सिर झुकाने वाले व्यक्ति में बदल गया हूँ,’ आदर्श कहते हैं।

प्रोजेक्ट संस्कति का सबसे उल्लेखनीय हिस्सा यह है कि उसके छात्र और पूर्व छात्र मिलकर पूरे प्रोजेक्ट को हर कदम पर संभाल रहे हैं। मार्गदर्शन और सहायता हर समय मौजूद है, लेकिन सद्‌गुरु के तय किए गए मानदंड ने उनके अंदर जिम्मेदारी और लगन की एक नई भावना भर दी है।

भक्ति में सराबोर

‘प्रोजेक्ट संस्कृति’ में हम जो भी करते हैं, उसमें भक्ति का एक प्रबल तत्व होता है,’ आदर्श कहते हैं। ‘मेरे ख्याल से सद्‌गुरु ने यही चीज़ हम सभी के अंदर भरी है। हम अब कुछ ऐसा कर रहे हैं जो हज़ारों लोगों को छू रहा है, जिन्हें हम देख तक नहीं सकते। मैं उनके नाम भी नहीं जानता, लेकिन वे प्रोग्राम का अनुभव बहुत अद्भुत तरीके से कर रहे हैं। अब यह मेरे बारे में नहीं है। यह सारा उस मंत्र, जो हम सिखा रहे हैं और प्रतिभागियों के बारे में है। यह ऐसा है मानो मेरा अस्तित्व तक नहीं है,’ आदर्श कहते हैं।

सबसे उत्तम भेंट 

‘हम इन कलाओं को सीखते हुए बड़े हुए हैं और इसे आगे बढ़ाना व दूसरों के साथ वह साझा कर पाना, जिससे हम गुज़रे हैं, बहुत अच्छा लगता है। ऐसा लगता है मानो यह हमारे लिए एक बड़ा वरदान हो। मैं आज यहाँ इसलिए हूँ क्योंकि दस सालों से सद्‌गुरु और बहुत सारे लोगों ने मेरे विकास में अपना जीवन लगा दिया है। अब समय है जब मैं अपना जीवन किसी ऐसी चीज़ में लगा सकूँ जो मुझे बहुत प्रिय है। मैं जो हूँ, वह ईशा संस्कृति के कारण हूँ और अब मैं ईशा संस्कृति और इन गहन कलाओं के लिए कुछ करना चाहता हूँ। यह सिर्फ सद्‌गुरु और उन सभी लोगों के कारण है जिन्होंने हमारे लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया,’ आदर्श संस्कृति परिसर में अपने काम में मशगूल हो जाने से पहले हाथ जोड़कर अपनी बात समाप्त करते हैं।