क्या आप बद्रीनाथ की कहानी जानते हैं? यह वो जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। यह उनका घर था। एक दिन नारायण यानी विष्णु के पास नारद गए और बोले, 'आप मानवता के लिए एक खराब मिसाल हैं। आप हर समय शेषनाग के ऊपर लेटे रहते हैं। आपकी पत्नी लक्ष्मी हमेशा आपकी सेवा में लगी रहती हैं, और आपको लाड़ करती रहती हैं। इस ग्रह के अन्य प्राणियों के लिए आप अच्छी मिसाल नहीं बन पा रहे हैं। आपको सृष्टि के सभी जीवों के लिए कुछ अर्थपूर्ण कार्य करना चाहिए।’
इस आलोचना से बचने और साथ ही अपने उत्थान के लिए (भगवान को भी ऐसा करना पड़ता है) विष्णु तप और साधना करने के लिए सही स्थान की तलाश में नीचे हिमालय तक आए। वहां उन्हें मिला बद्रीनाथ, एक अच्छा-सा, छोटा-सा घर, जहां सब कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने सोचा था। साधना के लिए सबसे आदर्श जगह लगी उन्हें यह। वह उस घर के अंदर गए। घुसते ही उन्हें पता चल गया कि यह तो शिव का निवास है और वह तो बड़े खतरनाक व्यक्ति हैं। अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो वह आपका ही नहीं, खुद का भी गला काट सकते हैं। ऐसे में नारायण ने खुद को एक छोटे-से बच्चे के रूप में बदल लिया और घर के सामने बैठ गए। उस वक्त शिव और पार्वती बाहर कहीं टहलने गए थे। जब वे घर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा जोर-जोर से रो रहा है।
पार्वती को दया आ गई। उन्होंने बच्चे को उठाने की कोशिश की। शिव ने पार्वती को रोकते हुए कहा, 'इस बच्चे को मत छूना।’ पार्वती ने कहा, 'कितने क्रूर हैं आप ! कैसी नासमझी की बात कर रहे हैं? मैं तो इस बच्चे को उठाने जा रही हूं। देखिए तो कैसे रो रहा है।' शिव बोले, 'जो तुम देख रही हो, उस पर भरोसा मत करो। मैं कह रहा हूं न, इस बच्चे को मत उठाओ।’
बच्चे के लिए पार्वती की स्त्रीसुलभ मनोभावना ने उन्हें शिव की बातों को नहीं मानने दिया। उन्होंने कहा, 'आप कुछ भी कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे अंदर की मां बच्चे को इस तरह रोते नहीं देख सकती। मैं तो इस बच्चे को जरूर उठाऊंगी।’ और यह कहकर उन्होंने बच्चे को उठाकर अपनी गोद में ले लिया। बच्चा पार्वती की गोद में आराम से था और शिव की तरफ बहुत ही खुश होकर देख रहा था। शिव इसका नतीजा जानते थे, लेकिन करें तो क्या करें? इसलिए उन्होंने कहा, 'ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।’ पार्वती ने बच्चे को खिला-पिला कर चुप किया और वहीं घर पर छोडक़र खुद शिव के साथ गर्म पानी से स्नान के लिए बाहर चली गईं।
वहां पर गर्म पानी के कुंड हैं, उसी कुंड पर स्नान के लिए शिव-पार्वती चले गए। लौटकर आए तो देखा कि घर अंदर से बंद था। शिव तो जानते ही थे कि अब खेल शुरू हो गया है। पार्वती हैरान थीं कि आखिर दरवाजा किसने बंद किया? शिव बोले, 'मैंने कहा था न, इस बच्चे को मत उठाना। तुम बच्चे को घर के अंदर लाईं और अब उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है।’ पार्वती ने कहा, 'अब हम क्या करें?’
शिव के पास दो विकल्प थे। एक, जो भी उनके सामने है, उसे जलाकर भस्म कर दें और दूसरा, वे वहां से चले जाएं और कोई और रास्ता ढूंढ लें। उन्होंने कहा, 'चलो, कहीं और चलते हैं क्योंकि यह तो तुम्हारा प्यारा बच्चा है इसलिए मैं इसे छू भी नहीं सकता। मैं अब कुछ नहीं कर सकता। चलो, कहीं और चलते हैं।’
इस तरह शिव और पार्वती को अवैध तरीके से वहां से निष्कासित कर दिया गया। वे दूसरी जगह तलाश करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। दरअसल, बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच, एक चोटी से दूसरी चोटी के बीच, सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी है। आखिर में वह केदार में बस गए और इस तरह शिव ने अपना खुद का घर खो दिया। आप पूछ सकते हैं कि क्या वह इस बात को जानते थे। आप कई बातों को जानते हैं, लेकिन फिर भी आप उन बातों को अनदेखा कर उन्हें होने देते हैं।
यौगिक कथाओं में ऐसी कई कहानियाँ हैं, जिनमें बताया गया कि शिव की करुणा कोई भेदभाव नहीं करती और वे किसी की इच्छा पर बच्चों की तरह भोलापन दिखाते हैं। एक बार गजेंद्र नामक एक असुर था। गजेंद्र ने बहुत तप किया और शिव से यह वरदान पाया कि वह जब भी उन्हें पुकारेगा, शिव को आना होगा। त्रिलोकों के सदा शरारती ऋषि नारद ने देखा कि गजेंद्र हर छोटी-छोटी बात के लिए शिव को पुकार लेता था, तो उन्होंने गजेंद्र के साथ एक चाल चली।
उन्होंने गजेंद्र से कहा, ‘तुम शिव को बार-बार क्यों बुलाते हो? वह तुम्हारी हर पुकार पर आ जाते हैं। क्यों नहीं तुम उनसे कहते कि वह तुम्हारे अंदर आ जाएँ और वहीं रहें जिससे वह हमेशा तुम्हारे अंदर होंगे?’ गजेंद्र को यह बात अच्छी लगी और फिर उसने शिव की पूजा की। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए, तो वह बोला, ‘आपको मेरे अंदर रहना होगा। आप कहीं मत जाइए।’ शिव अपने भोलेपन में एक लिंग के रूप में गजेंद्र में प्रवेश कर गए और वहाँ रहने लगे।
फिर जैसे-जैसे समय बीता, पूरा ब्रह्मांड शिव की कमी महसूस कर रहा था। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ हैं। सभी देव और गण शिव को खोजने लगे। काफी खोजने के बाद, जब कोई यह पता नहीं लगा पाया कि वह कहाँ हैं, तो वे हल ढूंढने के लिए विष्णु के पास गए। विष्णु ने स्थिति देखी और कहा, ‘वह गजेंद्र के अंदर हैं।’ फिर देवों ने उनसे पूछा कि वे शिव को गजेंद्र के अंदर से कैसे निकाल सकते हैं क्योंकि गजेंद्र शिव को अपने अंदर रखकर अमर हो गया था।
हमेशा की तरह विष्णु सही चाल लेकर आए। देवगण शिवभक्तों का रूप धरकर गजेंद्र के राज्य में आए और बहुत भक्ति के साथ शिव का स्तुतिगान करने लगे। शिव का महान भक्त होने के कारण गजेंद्र ने इन लोगों को अपने दरबार में आकर गाने और नाचने का न्यौता दिया। शिवभक्तों के वेश में देवों का यह दल आया और बहुत भावनाओं के साथ, बहुत भक्तिपूर्वक वे शिव के लिए भक्तिगीत गाने और नाचने लगे। शिव, जो गजेंद्र के अंदर बैठे हुए थे, अब खुद को रोक नहीं सकते थे, उन्हें जवाब देना ही था। तो वह गजेंद्र के टुकड़े-टुकड़े करके उससे बाहर आ गए।
शिव की पूजा देवता और राक्षस, देव और असुर, श्रेष्ठ और अधम दोनों करते हैं – वह हर किसी के लिए महादेव हैं। विष्णु भी उनकी पूजा करते थे। विष्णु की शिव भक्ति को बताने वाली एक बहुत सुंदर कहानी है।
एक बार, विष्णु ने शिव से वादा किया कि वह शिव को 1008 कमल अर्पित करेंगे। वह कमल के फूलों की तलाश में गए और पूरी दुनिया में खोजने के बाद भी उन्हें सिर्फ 1007 कमल के फूल मिले। एक कम था। उन्होंने आकर सब कुछ शिव के सामने रख दिया। शिव ने अपनी आँखें नहीं खोलीं, वह सिर्फ मुस्कुराए क्योंकि एक कमल कम था। फिर विष्णु ने कहा, ‘मुझे कमलनयन कहा जाता है, जिसका अर्थ है कमल के फूलों की तरह आँखों वाला भगवान। मेरी आँखें किसी कमल की तरह सुंदर हैं। तो मैं अपनी एक आँख अर्पित करता हूँ।’ और उन्होंने तुरंत अपनी दाहिनी आँख निकालकर लिंग पर रख दी। इस तरह की भेंट से प्रसन्न होकर शिव ने विष्णु को प्रसिद्ध सुदर्शन चक्र दिया।
संपादक की टिप्पणी: आदियोगी शिव के बारे में कई और दिलचस्प कहानियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।