logo
logo

आदियोगी- प्रथम योगी

इस लेख में सद्गुरु हमें पहले योगी आदियोगी के बारे में गहराई से समझा रहे हैं, और आदियोगी शिव की एक सुंदर छवि प्रस्तुत कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि आदियोगी शिव ने ही मानवता को योग का विज्ञान सिखाया था।

आदियोगी- प्रथम योगी


इस लेख में सद्गुरु हमें पहले योगी आदियोगी के बारे में गहराई से समझा रहे हैं, और आदियोगी शिव की एक सुंदर छवि प्रस्तुत कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि आदियोगी शिव ने ही मानवता को योग का विज्ञान सिखाया था।

योग संस्कृति में, शिव भगवान के रूप में नहीं, बल्कि आदियोगी या प्रथम योगी- योग के जनक के रूप में जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्होंने ही मानव मन में इसका बीजारोपण किया था। योग कथाओं के अनुसार, लगभग पंद्रह हज़ार साल से भी पहले, हिमालय पर पूर्ण आत्मज्ञान प्राप्त करके शिव अत्यंत आनंदविभोर हो झूम उठे। उन्होंने हिमालय पर उन्मुक्त होकर परमानंद नृत्य किया। जब वह हद से परे चला गया, तो वे बिलकुल निश्चल हो गए।

लोगों ने देखा कि वो कुछ ऐसा अनुभव कर रहे हैं जिसके बारे में पहले किसी को पता तक नहीं था, वो उसकी कल्पना तक करने में असमर्थ थे। यह जानने की उत्सुकता में, कि यह क्या है – लोग उनके आसपास इकट्ठा होने लगे। वे आए, उन्होंने प्रतीक्षा की और वे चले गए क्योंकि वह व्यक्ति अन्य लोगों की उपस्थिति से बेखबर थे। वो या तो उन्मुक्तता से झूमते थे या पूरी तरह निश्चल हो जाते थे। अपने आसपास होने वाली घटनाओं से पूरी तरह बेपरवाह। जल्द ही, सब चले गए …

उन सात लोगों के अलावा।

इन सात लोगों ने ठान लिया था कि वे वो सब सीखेंगे, जो इस आदमी के भीतर है, लेकिन शिव ने उन पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने उनसे विनती की, याचना की और कहा - “हम जानना चाहते हैं कि आप क्या हैं।" शिव ने उनकी प्रार्थना टालते हुए कहा,” अरे मूर्खों, तुम लोग जिस हाल में हो, दस लाख साल में भी जान नहीं पाओगे। इसके लिए जबरदस्त तैयारी की जरूरत है। यह कोई हँसी-मज़ाक नहीं है।”

तो उन्होंने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी। दिन-ब-दिन, सप्ताह-दर-सप्ताह, महीने-दर-महीना, साल-दर-साल वे तैयारी करते रहे। शिव उनकी उपेक्षा करते रहे। चौरासी साल की साधना के बाद एक पूर्णिमा को, जब संक्रांति ग्रीष्म संक्रांति से शीत संक्रांति में प्रवेश करी- जिसे पारंपरिक तौर पर दक्षिणायन कहा जाता है- आदियोगी ने इन सात लोगों पर दृष्टि डाली और देखा कि ज्ञान के दैदीप्यमान पात्र बन गये हैं। वे ग्रहण करने के लिए पूरी तरह से योग्य हो गए थे। अब शिव उनको अनदेखा नहीं कर सकते थे। उन्होंने शिव का ध्यान अपनी ओर कर लिया था।

उन्होंने अगले कुछ दिनों तक उन्हें ध्यान से देखा और जब अगली पूर्णिमा आई, तो उन्होंने गुरु बनने का फैसला किया।आदियोगी ने स्वयं को आदिगुरु में बदल लिया; उस दिन प्रथम गुरु का जन्म हुआ जिसे आज गुरू पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। केदारनाथ से कुछ किलोमीटर ऊपर एक झील - कांति सरोवर - के तट पर, उन्होंने मानव जाति पर अपनी कृपा बरसाने के लिए दक्षिण की ओर रुख किया और इन सात लोगों पर योग विज्ञान की दीक्षा प्रारंभ हुए। योग विज्ञान उन योग कक्षाओं के बारे में नहीं है जिसमें आप सीखते हैं कि शरीर को कैसे मोड़ा जाए- ये तो हर नवजात शिशु को पता है- या अपना साँस कैसे रोका जाए- जो कि हर अजन्में बच्चे को मालूम है। ये संपूर्ण मानव तंत्र की प्रक्रिया को समझने का विज्ञान है।

कई सालों के पश्चात, दीक्षा पूर्ण होने पर, इसने सात पूर्ण आत्मज्ञानी जनों को जन्म दिया- प्रसिद्ध सात योगी जो आज सप्तऋषि के नाम से जाने जाते हैं और भारतीय संस्कृति में पूजित और सम्मानित हैं। शिव ने इनमें से हरेक के अंदर योग का एक अलग आयाम स्थापित किया और ये आयाम योग के सात मूल रूप बन गए। आज भी, योग ने इन सात विशिष्ट रूपों को बनाए रखा है ।

सप्तर्षियों को इस आयाम के प्रसार के लिए सात अलग-अलग दिशाओं में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया, ताकि मनुष्य अपनी मौजूदा सीमाओं के परे विकसित हो सके। इस ज्ञान और तकनीक से सुसज्जित होकर कि इस संसार में मनुष्य कैसे स्वयं ही सृजनकर्ता बन कर रहे- वे शिव के अंग बन गए। समय ने बहुत सी चीजों को उजाड़ दिया है, पर उन स्थानों की संस्कृति को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि वहाँ इन लोगों के कामों के कुछ अंश अभी भी जीवित हैं।

आदियोगी इस संभावना को लेकर आए कि मनुष्य को अपनी प्रजाति की निर्धारित सीमाओं में ही संतुष्ट हो जाने की जरूरत नहीं है। भौतिकता में संतुष्ट होते हुए भी उसपर निर्भर नहीं रहने के लिए एक तरीका है। शरीर में रहते हुए भी शरीर न बन जाएँ इसका एक उपाय है। अपने मन को उसके सर्वोच्च संभावित क्षमता तक उपयोग करते हुए भी उसकी पीड़ाओं से अछूते रहने का एक उपाय है। आप अस्तित्व के किसी भी आयाम में हों, आप उससे परे जा सकते हैं- जीने का एक और भी तरीका है। उन्होंने कहा,” अगर आप स्वयं पर जरूरत के अनुसार काम करते हैं तो आप अपने वर्तमान सीमाओं के परे विकसित हो सकते हैं,”। वही आदियोगी की महत्ता है।

    Share

Related Tags

आदियोगी

Get latest blogs on Shiva

Related Content

शिव पुराण कथा - कहानी के पीछे क्या है विज्ञान ?