गुरु वास्तव में क्या है
सद्गुरु: गुरु का मतलब कोई उपदेश, सिद्धांत या विचारधारा नहीं है – इसका मतलब बस कृपा है। आपके जीवन में भले और कुछ भी हो – बुद्धि, योग्यता, काबिलियत, दौलत या रिश्ते – अगर आपके जीवन में कृपा की चिकनाई नहीं है, तो आपके पास जो कुछ भी है, वह किसी न किसी रूप में आपके खिलाफ काम करेगा।
अधिकांश लोग आम तौर पर उसी चीज़ से कष्ट झेलते हैं, जिसे उन्होंने काफी मेहनत से हासिल किया होता है, जैसे उनका कारोबार, कैरियर, दौलत और परिवार। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि भले ही आपने जीवन के इन सभी हिस्सों को इकट्ठा कर लिया है, लेकिन उन हिस्सों के बीच में कोई चिकनाई नहीं है जिससे वे आपके फायदे के लिए अच्छे से काम नहीं कर पा रहे हैं। अगर कृपा न हो तो जिन चीज़ों को पाने के लिए आप कोशिश करते हैं, वही आपके खिलाफ हो जाती हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक प्रतीक नहीं है – इस दिन पृथ्वी पर जो होता है, उसकी वजह से भी इसका महत्व है। ग्रीष्म संक्रांति के बाद पहली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इसी दिन, आदियोगी आदिगुरु बन गए थे – प्रथम योगी ने खुद को प्रथम गुरु बना लिया था। आपको कहानी जाननी चाहिए:
आदियोगी कैसे बने प्रथम गुरु
लगभग 15,000 साल पहले, हिमालय के ऊपरी इलाकों में एक प्राणी प्रकट हुआ। कोई नहीं जानता था कि वह कौन है या कहाँ से आया है। इस शानदार प्राणी का मूल अज्ञात था। जब उसके परमानंद से उसके शरीर में कुछ हलचल हुई, तो वह प्रचंड नृत्य करने लगा। जब तीव्रता अपने चरम पर पहुँच गई, तो वह एकदम स्थिर हो गया। लोगों ने देखा कि वह ऐसे आयामों का अनुभव कर रहा था, जिसके बारे में न तो कभी किसी ने जाना था न उसकी कल्पना की थी। उसका परमानंद और तीव्रता उसे अपने भौतिक रूप से परे ले गए।
एक मनुष्य को ब्रह्मांड के साथ मेल में देखकर, वे उसे योगी बुलाने लगे – चूँकि वह पहले योगी थे, इसलिए वे आदियोगी हुए। जब उनकी अचलता लगातार कई साल तक बनी रही, तो दर्शकों की भीड़ छँटने लगे। सिर्फ सात साधक वहाँ बने रहे क्योंकि वे खुद को उनसे दूर नहीं कर पा रहे थे।
आदियोगी ने योग के गहन विज्ञान को उसकी पूरी गहराई और आयाम में उनको दिया। उन्होंने मुक्ति के 112 तरीके सिखाए और अपने शिष्यों को सृष्टि के सबसे गहरे तल तक पहुँचने का तरीका बताया। योग की इस शानदार अवस्था में, सृजित और असृजित के कई रहस्य उनकी जटाओं पर उतर आए।
आदियोगी की वह दृष्टि अथाह और भव्य थी और ब्रह्मांड के अथाह रहस्यों से भरी थी। ऐसी अभिभूत कर देने वाली दृष्टि ऋषियों और देवी पार्वती ने कभी नहीं देखी थी। आदियोगी को परमानंद की स्थिति में देखकर देवी पार्वती ने कहा, ‘मुझे वह चाहिए, जो आपके पास है। मुझे तरीका बताइए।’
आदियोगी ने उन्हें अपने अंदर समा लिया और अपना एक हिस्सा बना लिया, इसलिए वह अर्धनारी हैं – एक आदर्श पुरुष, जिसका एक हिस्सा स्त्री का है। इस शानदार मेल की भव्यता को देखकर, हमेशा उनके साथ रहने वाले गणों ने पूछा, ‘हमारा क्या होगा?’ आदियोगी बोले, ‘बस मुझे पी लो,’ जिसने उन्हें मदमत्त जीवों में बदल दिया।
सात ऋषि जिन्हें सप्तऋषि कहा गया, योग के पवित्र विज्ञान को उसके सभी रूपों में दुनिया की मानव आबादी तक ले गए, जिसने सभ्यताओं को पैदा किया।
यह शानदार प्राणी अतीत का नहीं, बल्कि मानव जाति का भविष्य है – जो मानवता को उतार-चढ़ाव के मतिभ्रम से भीतरी परमानंद की ओर ले जा सकता है।
यह करीब 15,000 साल पहले की बात है। हम ठीक-ठीक तारीख नहीं जानते क्योंकि हम पुरातत्वविद नहीं हैं। एक बार ऐसा हुआ। शंकरन पिल्लै को ब्रिटिश नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम में एक टूर गाइड की नौकरी मिल गई। एक दिन वह पर्यटकों के एक दल को म्यूज़ियम घुमा रहा था, जब वह डायनासोर के कंकाल तक पहुँचा, तो वह बोला, ‘यहाँ आप जो कंकाल देख रहे हैं, वह दो करोड़ और चार साल, तीन महीने, इक्कीस दिन पहले का है।’ वे बोले, ‘क्या? आप इतना सटीक कैसे बता सकते हैं?’ वह बोला, ‘हां, क्योंकि जब यहाँ मेरा पहला दिन था, उन्होंने मुझसे कहा कि यह दो करोड़ साल पहले का है, और मुझे यहाँ नौकरी करते चार साल, तीन महीने और इक्कीस दिन हो गए हैं।’
साधारण से असाधारण तक
हमें ईशा योग केंद्र में पच्चीस साल से ज्यादा हो गए हैं। हमसे पहले भी ये शानदार पहाड़ यहाँ थे। और निश्चित रूप से हमारे आने से पहले आदियोगी दुनिया में थे। सिर्फ आपके देखने के लिए हमने उन्हें एक रूप दिया है। मैं यहाँ आया क्योंकि मैं देख सकता था। मुझे लगा कि आपको भी देखना चाहिए – तो वह यहाँ हैं।
पिछले पच्चीस साल से ज्यादा समय से, कई महान लोग हमारे साथ रहे हैं। ‘महान लोगों’ से मतलब यह नहीं है कि उनके सिर के पीछे प्रभामंडल था। वे बहुत साधारण दिखने वाले लोग हैं, लेकिन उनमें से हर कोई एक असाधारण मनुष्य है। कुछ यहाँ हमारे साथ हैं, कुछ अब इस दुनिया में नहीं हैं, कुछ कहीं और हैं। वे जहाँ भी हैं या जहाँ भी नहीं हैं, मैं आज उन सभी को प्रणाम करता हूँ।
‘मेरा क्या होगा?’ सोचना छोड़ दीजिए?
इतने सालों में, मैंने लोगों से तीन जन्म का काम करवाया है। जैसे-जैसे उन्होंने ज्यादा से ज्यादा काम किया, वे और काबिल और अद्भुत बन गए। यहाँ और दुनिया में काफी कुछ किया गया है। मैं इन सभी स्वयंसेवियों को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने इसे संभव बनाया, ठीक वैसे ही जैसे मैं सभी गुरुओं को प्रणाम करता। जब लोग अपने मन में इस खतरनाक विचार के बिना खड़े होते हैं कि, ‘मेरा क्या होगा?’ तो ये चीज़ दुनिया को अद्भुत बनाती है। ईशा के बारे मे सबसे शानदार चीज़ यही रही है – लगातार ऐसे लोगों के बीच रहना, जिनके दिमाग में यह एक विचार नहीं है, ‘मेरा क्या होगा?’ वे बस चीज़ों को इस तरह करते हैं, मानो आज उनके जीवन का आखिरी दिन हो।
ये पहाड़ नहीं, मंदिर है
यहाँ मौजूद भव्य पहाड़ सिर्फ प्रकृति के अर्थ में भव्य नहीं हैं। मेरे गुरु ने इस पहाड़ को अपना आखिरी स्थान बनाया था। इसलिए मेरे लिए यह चट्टान और मिट्टी का टीला नहीं है – मैंने हमेशा इन पहाड़ों को अपने मंदिर की तरह देखा है। मैंने हर जगह की यात्रा की है, लेकिन मेरे दिल में मुझे इससे सुंदर जगह नहीं मिली है।
सद्गुरु की मौजूदगी का अनुभव करें
हमने यहाँ असाधारण ऊर्जा लगाई है। अगर आप अपने मन में थोड़ी सी भी इच्छा के साथ आते हैं, तो हम आपको स्पंदित कर सकते हैं, चाहे आप जो भी हों। अगर आप अनिच्छा के साथ आते हैं, तो भी हम आपके ऊपर मेहनत कर सकते हैं। चाहे आप किसी पत्थर की तरह हों, हमने दिन के कुछ समय निर्धारित किए हैं, जब ऊर्जा का एक निश्चित जमाव होता है। वह बहुत शक्तिशाली महसूस होगा, खासकर अगर आपने दीक्षा ली है।
आप जहाँ भी हैं, अगर आप इस जगह से जुड़ने के लिए किसी तरह के विचार, भावना या छवि का इस्तेमाल करते हैं, तो वह एक निश्चित समय पर एक प्रबल मौजूदगी के रूप में आपके लिए काम करता है। हमने ऊर्जा का एक आयाम बनाया है कि चाहे आप किसी भी टाइम ज़ोन में हों, आप सुबह-शाम अपने स्थानीय समय के अनुसार 6:20 से 6:40 के बीच इस ऊर्जा की मौजूदगी के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि इस धरती पर मौजूद हर मनुष्य के पास आत्म-रूपांतरण के साधन हों और वे उनका लाभ उठाएँ। मानव जीवन को रूपांतरित करने वाली ये तकनीकें हर किसी को उपलब्ध होनी चाहिए।
हर किसी को सद्गुरु के रूप में देखें
आपमें से जो लोग दावा करते हैं कि आप सद्गुरु से प्यार करते हैं, इस गुरु पूर्णिमा से मैं चाहता हूँ कि आपकी नज़र जिस पर भी पड़ती है, आप उसे सद्गुरु के रूप में देखें और उसी तरह पेश आएँ। चाहे वह पुरुष हो, स्त्री हो, बच्चा हो, या पशु, पेड़-पौधे हों, यहाँ तक कि निर्जीव चीज़ें भी, आप सिर्फ यह एक चीज़ कीजिए। मैं आपके बाकी जीवन, नियति और मुक्ति का ध्यान रख लूँगा।