सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव

मूलाधार चक्र -

आयु और बोध को बढ़ाने का चक्र

सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव की इस श्रृंखला - ‘चक्र’, के इस अंक में, सद्‌गुरु मूलाधार चक्र के महत्व, कायाकल्प के गूढ़ विज्ञान और उन अलौकिक क्षमताओं के बारे में बता रहे हैं, जिसे मूलाधार पर दक्षता हासिल करके पाया जा सकता है। चक्रों और उनकी अद्भुत संभावनाओं के बारे में और जानने के लिए, सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव के साथ बने रहिए।

मूलाधार और कायाकल्प

‘मूलाधार’ यानी बुनियाद या नींव। मूलाधार हमारे शारीरिक ढाँचे का आधार है। जब तक यह आधार स्थिर न हो, हम स्वास्थ्य, खुशहाली और स्थिरता तथा पूर्णता की भावना को महसूस नहीं कर पाएँगे। ऊँचाई तक चढ़ने की कोशिश करने के लिए ये गुण इंसान के लिए जरूरी हैं। जीवन को एक कुशल और सक्षम तरीके से जीने के लिए शरीर और मन में एक निश्चित आश्वासन होना चाहिए।

मूलाधार से योग की एक पूरी शाखा विकसित हुई – शरीर के साथ कुछ चीज़ें करने के तरीकों से लेकर अपनी चरम प्रकृति तक पहुँचने तक। मूलाधार से जुड़े, योग के एक आयाम को कायाकल्प कहा जाता है। काया का अर्थ है, शरीर। कल्प का मतलब लंबा काल या अवधि होती है। कायाकल्प का संबंध शरीर को मजबूत और स्थिर बनाने या जीवनकाल बढ़ाने से है। बहुत से प्राणियों ने कायाकल्प का अभ्यास किया और सैकड़ों साल जिए क्योंकि उन्होंने शरीर के सबसे आधारभूत तत्व पर अधिकार कर लिया, जो कि पृथ्वी तत्व है। पृथ्वी तत्व हमें सार देता है।

भूत शुद्धि प्रक्रिया

कायाकल्प और पृथ्वी तत्व

पृथ्वी तत्व पर अधिकार करना, जो भूत शुद्धि का एक पहलू है, आपको कुछ दूसरी क्षमताएँ भी देता है – आप उन चीज़ों को समझने में सक्षम हो जाते हैं, जो पृथ्वी और मिट्टी हमें देती हैं। मानव शरीर में जीवन का रस लाने का एक तरीका ठोस किए गए पारे का उपयोग है। पारे को इस पृथ्वी का रस कहा जाता है। पारे को, जिसकी प्रकृति सामान्य तापमान पर तरल रूप में रहने की है, ठोस बनाने का तरीका कायाकल्प का एक अहम अंग है।
कायाकल्प का संबंध शरीर के उन पहलुओं को, जो समय के साथ कुदरती रूप से खराब हो जाते
हैं, इस प्रकार से स्थिर बनाना है कि खराब होने की वह प्रक्रिया कम से कम उस हद तक धीमी हो जाए कि आप हमेशा युवा दिखते रहें। आपके पास ऐसी काया है, जो एक कल्प यानि एक युग तक रहेगी। कई प्राणियों ने ऐसा किया है लेकिन इसमें काफी मेहनत लगती है।

अमृत और पीनियल ग्रंथि

ये क्षमताएँ कई अलग-अलग रूपों में आती हैं। शिव के दक्षिण की तरफ मुड़ने का प्रतीक उनकी तीसरी आँख के ‘दक्षिण’ की तरफ घूमने से जुड़ा है। उनकी तीसरी आँख जैसे ही नीचे उनकी दोनों आँखों के बीच आ गई, शिव ने ऐसी चीज़ें देखीं, जो पहले कभी किसी ने नहीं देखी थीं। यह कायाकल्प का एक पहलू है। हालांकि यह पूरा सही नहीं है, चूँकि हमें आधुनिक तर्कों पर खरा उतरना पड़ता है, इसलिए मैं इसे इस तरह कहता हूँ। साधना के कई पहलू हैं, जो पीनियल ग्रंथि को थोड़ा नीचे, या जैसा कि हम कहते हैं, ‘दक्षिण’ की तरफ ले जाने से जुड़े हैं।

अगर इसे एक निश्चित तरीके से किया जाता है, तो पीनियल ग्रंथि के स्राव को, जिसे योग में अमृत कहा जाता है, शरीर को मजबूत बनाने और उसकी उम्र बढ़ाने के लिए, या शरीर में आनंद लाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह किसी ड्रग की भाँति आपके दिमाग को उड़ा भी सकता है। या आप इस अमृत का इस्तेमाल अपने बोध को बढ़ाने, हवा की तरह हल्का और पारदर्शी बनने के लिए कर सकते हैं। अगर आप शरीर में संवेदनशीलता लाने के लिए अपने अमृत का इस्तेमाल करते हैं, तो आप सौ प्रतिशत पारदर्शी बन सकते हैं।

एक अमृत, अलग-अलग प्रभाव

पीनियल ग्रंथि के स्रावों का इस्तेमाल करने के तीन मूलभूत तरीके हैं। पहला है, शरीर को मजबूत बनाना और उसे चट्टान की तरह बना देना, जो आपको एक प्रकार की लंबी उम्र देगा, जिसे अधिकांश लोग अलौकिक मानते हैं। दूसरा तरीका है, अपने अंदर इस प्रकार की मदहोशी और आनंद लाना कि आपको इसकी परवाह ही न हो कि आप कितना लंबा जीवन जीते हैं। तीसरा है, खुद को हवा की तरह बनाना, ताकि आपका बोध ऊँचे स्तर पर पहुँच जाए क्योंकि आपके शरीर में बिलकुल कोई प्रतिरोध नहीं होता। कायाकल्प काफी हद तक शरीर को मजबूत बनाने और उसकी उम्र बढ़ाने के लिए इस अमृत का इस्तेमाल करता है।

यह अमृत या पीनियल ग्रंथि का स्राव आपके बोध को भी बढ़ा सकता है। अगर आप अपने बोध को नहीं बढ़ाते, तो आपका जीवन किसी भी रूप में उन्नत नहीं होता।

पतंगासन

मूलाधार – कुछ और होने का आधार

मूलाधार और उस पर आधारित साधना आपके अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। एक मनुष्य ही यह समझ सकता है कि सिर्फ अस्तित्व में होना पर्याप्त नहीं है। अमीबा से लेकर हाथी तक किसी दूसरे जीव ने इसे महसूस नहीं किया है क्योंकि यह उनकी प्रकृति में नहीं है। उन्हें लगता है कि उनका अस्तित्व पर्याप्त है। सिर्फ एक मनुष्य ही यह जान सकता है कि उसका अस्तित्व काफी नहीं है – कुछ और होने की ज़रूरत है।