पेरिस हिल्टन का सद्गुरु के साथ संवाद
मीडिया शख्सियत पेरिस हिल्टन से उनके ‘दिस इज़ पेरिस’ पॉडकास्ट के लिए बात करते हुए, सद्गुरु बताते हैं कि कैसे हम कर्म के फंदे काटते हुए अपने लिए आनंद चुन सकते हैं। इस संवाद में वे यह भी बता रहे हैं कि कैसे हम अपनी हर कोशिश से बेहतरीन नतीजे पा सकते हैं।
[सद्गुरु ‘जननम सुखदम’ मंत्र का मंत्रोच्चारण करते हैं]
सद्गुरु: नमस्कारम और गुड आफ्टरनून पेरिस।
पेरिस: इस शो पर आने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। आपका यहाँ आना हमारे लिए सम्मान की बात है। तो, आज हमारे साथ एक बहुत ही खास मेहमान हैं। उनका नाम है सद्गुरु, और वह दुनिया भर के सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। कार्यक्रम में आपका स्वागत है।
आपने अभी-अभी जो किया, वह वास्तव में किस लिए है?
सद्गुरु: एक टेनिस खिलाड़ी अपने खेल से पहले अपने शरीर को जिस तरह से तैयार करता है, वह एक फुटबॉलर या एक गोल्फर से बिल्कुल अलग होता है। हमें अपने शरीर को अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग तरीकों से तैयार करने की जरूरत होती है। इसी तरह, अलग-अलग गतिविधियों को करने के लिए आपको अपने दिमाग को अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने की जरूरत होती है। सबसे बढ़कर, अलग-अलग तरह की गतिविधियों को करने के लिए, आपकी ऊर्जा एक निश्चित तरीके से होनी चाहिए।
अलग-अलग गतिविधियों को करने के लिए आपको जिस ऊर्जा की जरूरत होती है, वह आपकी स्मृति के पैटर्न, कर्म के पैटर्न, व्यवहार और चरित्र के अनुसार स्थिर या व्यवस्थित हो सकती है। लेकिन योग का एक आयाम है जो आपको अपनी जीवन ऊर्जा को अपनी इच्छानुसार गतिशील करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए मैं अपने हाथों से कुछ असरदार करना चाहता हूँ। अगर मैं अपनी ऊर्जा को अपने हाथों में ले जाऊँ, तो मेरा स्पर्श बहुत शक्तिशाली हो जाएगा, और उसमें कल्याण होगा। इसी तरह, अगर मैं अपनी ऊर्जा को अपनी आँखों में ले जाता हूँ, तो मेरी नज़र में एक अलग स्तर की भेदने वाली क्षमता आ जाएगी, जो इस बात पर निर्भर करता है कि मैं अपनी आँखों में कितनी जीवन ऊर्जा डालता हूँ। अगर मैं अपनी जीवन ऊर्जा को अपने कंठ में केंद्रित कर दूं, तो मेरी वाणी शक्तिशाली हो जाएगी – विषयवस्तु में भी और आवाज़ में भी।
अपने जीवन में, अगर हम वह नहीं करते जो हम कर नहीं सकते, तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर हम वह नहीं करते, जो हम कर सकते हैं, तो हम एक मुसीबत हैं।
ज्यादातर लोगों में उनके विचार, भावनाएँ, शरीर और ऊर्जा सबसे बड़ी बाधा साबित होती हैं। हमें अपनी ऊर्जा को सचेतन रूप से गतिशील करने में सक्षम होना चाहिए ताकि जब हम अलग-अलग गतिविधियाँ करें तो अधिकतम नतीजा मिले। अपने जीवन में, अगर हम वह नहीं करते जो हम कर नहीं सकते, तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर हम वह नहीं करते, जो हम कर सकते हैं, तो हम एक मुसीबत हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आप जो करना चाहते हैं, उसके लिए शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जा की दृष्टि से आप पूरी तरह सशक्त हों।
पेरिस: आपको एक गुरु और रहस्यवादी कहा जाता है। क्या आप मेरे श्रोताओं को बता सकते हैं कि इसका मतलब क्या है?
सद्गुरु: रहस्यवादी का मतलब है कि हर कोई मुझे लेकर उलझन में है। (दोनों हँसते हैं)। वे नहीं जानते कि मेरा क्या करें, तो वे मुझे रहस्यवादी बुलाते हैं।
पेरिस: क्या आपको यह पसंद है?
सद्गुरु: दुर्भाग्य से, लोग जीवन को परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका अर्थ है कि उन्होंने इसे सीमित कर दिया है। लेकिन हकीकत में, आप जो भी हैं, उससे कुछ ज्यादा होना चाहते हैं। इंसान के अंदर कुछ ऐसा होता है, जिसे सीमाएँ पसंद नहीं हैं। जब आप नहीं जानते कि वहाँ सीमा है, तो आप ठीक रहते हैं। लेकिन जैसे ही आपको पता चलता है कि वहाँ सीमा है, आप उसे धकेलना या तोड़ना चाहते हैं। वह चाहे कितनी भी बड़ी हो, जैसे ही आप सीमा को महसूस करते हैं, आप उसे तोड़ना चाहते हैं। आपके भीतर कुछ ऐसा है, जो हमेशा असीम बनने की लालसा रखता है।
योग का अर्थ है, सचेतन होकर अपनी सीमाओं को मिटाना।
कुछ लोग मंदिर जाते हैं, कुछ बार जाते हैं, कुछ ड्रग्स लेते हैं, दूसरे लोग प्रार्थना, ध्यान करते हैं या किसी चीज़ को जीतते हैं। ये सब वो तरीके हैं, जिनसे इंसान उससे कुछ ज्यादा होने की कोशिश करता है, जो वह अभी है।
हम कुछ ज्यादा होने की इस लालसा को चार रूपों में बाँट सकते हैं। अगर वह लालसा एक बुनियादी शारीरिक स्तर पर होती है, तो हम इसे कामुकता (सेक्सुऐलिटी) कहते हैं। यदि वह मानसिक तौर पर अभिव्यक्त होती है, तो हम इसे महत्वाकांक्षा कहते हैं। यदि वह भावनात्मक स्तर पर प्रकट होती है, तो हम उसे प्रेम कहते हैं। और अगर वह चेतना के स्तर पर हो, तो हम इसे योग कहते हैं। योग का अर्थ है, सचेतन होकर अपनी सीमाओं को मिटाना। जब तक आप ऐसा नहीं करते, आप कभी भी पूर्ण महसूस नहीं करेंगे, चाहे आपके जीवन में कितना भी कुछ हो।
पेरिस : आप कर्म के बारे में जो कुछ कहते हैं, वह मुझे पसंद है क्योंकि मैं वाकई उसमें विश्वास करती हूँ। और मुझे विश्वास है कि आप इस दुनिया में जो कुछ देते हैं, वह आपके पास वापस आता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। आपका इसके बारे में क्या सोचना है?
सद्गुरु : कर्म को सजा और पुरस्कार की व्यवस्था के रूप में देखने की जरूरत नहीं है। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि अभी आपके मन में एक निश्चित विचार पैदा हो रहा हो। उस विचार की छाप आपके भीतर बची रहती है और भीतर काम करती रहती है, भले ही आप इसके प्रति सचेतन न हों। जब आप पैदा हुए थे, तब से लेकर आज तक, आपने जो कुछ भी किया, सोचा, महसूस किया और सामने देखा, उसका आप पर प्रभाव पड़ा है। वह आपका कर्म है।
हम इस किताब (कर्मा: ए योगीज़ गाइड टू क्राफ्टिंग योअर डेस्टिनी) में एक क्रमिक प्रक्रिया की बात करते हैं, जिसके साथ आप अपने कर्म के मंच पर खड़े हो सकते हैं।
आपकी 99% से ज्यादा यादें सचेतन नहीं हैं, लेकिन शरीर को याद है कि आपके पूर्वज एक लाख साल पहले कैसे थे। स्मृति के कई स्तर हैं - विकासमूलक स्मृति, आनुवांशिक स्मृति और कार्मिक स्मृति। इन सभी स्मृतियों का मिश्रण आपका कर्म है। कर्म के बंधन और संचय के कारण, आपकी यादें अनजाने में, आपके भीतर कुछ प्रवृत्तियाँ बनकर, अपने तरीके से सामने आती हैं।
हम इस किताब (कर्मा: ए योगीज़ गाइड टू क्राफ्टिंग योअर डेस्टिनी) में एक क्रमिक प्रक्रिया की बात करते हैं, जिसके साथ आप अपने कर्म के मंच पर खड़े हो सकते हैं। ढेरों अनुभवों के कारण आपका जीवन बहुत समृद्ध है, लेकिन आपको अपने कर्म के मंच को रेतीली जमीन नहीं बनाना चाहिए, जिसमें आप धँस जाएँ। अगर आप अपने पास मौजूद कर्म की स्मृति को ठोस बना लेते हैं, तो आप उस पर खड़े हो सकते हैं, अपने जीवन की समृद्धि का आनंद ले सकते हैं, और वह कर सकते हैं जो आप अभी करना चाहते हैं।
अतीत को बदला नहीं जा सकता, वर्तमान का केवल अनुभव किया जा सकता है, और भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। अगर आप अतीत के बारे में नहीं सोचते हैं और उसे भूल जाते हैं, तो आप वही मूर्खतापूर्ण गलतियाँ दोहरा सकते हैं। यह बहुत जरूरी है कि हम अतीत को याद रखें। एक इंसान के लिए, यादें स्पष्ट होती हैं, और वह हमारे जीवन को समृद्ध बनाती हैं। अतीत एक सोफे की तरह है, जिस पर आप बैठ सकें, आपको कुशन में नहीं धँस जाना चाहिए। अगर आप कुशन में धँस जाते हैं, तो वे आपका दम घोंट देंगे।
अतीत को बदला नहीं जा सकता, वर्तमान का केवल अनुभव किया जा सकता है, और भविष्य का निर्माण किया जा सकता है।
समय के साथ, मैंने महसूस किया है कि लोग अपने दुखों में कितने व्यस्त हैं। इसी वजह से कर्म पर यह किताब बहुत महत्वपूर्ण है - यह लोगों को बताती है कि वे कैसे अपने दुखों में व्यस्त हो रहे हैं, और कैसे वे अपने पिछले अनुभवों को अपने वर्तमान को दूषित करने और भविष्य को बाधित करने दे रहे हैं।
बहुत से इंसान यह नहीं जानते कि अपनी क्षमताओं को कैसे संभालें। अगर उनके पास आधा दिमाग होता, तो वे शांत और ठीक होते। दुर्भाग्य से, मानव बुद्धि अधिकांश लोगों के लिए एक अभिशाप बन गई है, क्योंकि वे नहीं जानते कि इसे कैसे संभालना है। वे अपनी बुद्धि से खुद को चोट पहुँचा रहे हैं।
पेरिस : मुझे यह बात पसंद आई कि अपने अतीत को खुद पर हावी न होने दें।
सद्गुरु: इस समय, हमारी समस्या यह है कि हम अपनी मनोवैज्ञानिक हकीकतों को अस्तित्वगत समझ रहे हैं। कल या 10 साल पहले जो हुआ, उससे लोग आज भी दुखी होते हैं। इसका मतलब है कि आप अपनी याद्दाश्त से कष्ट पा रहे हैं, जीवन से नहीं। कल क्या हो सकता है, इसके बारे में सोचकर अगर आप दुखी हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपनी कल्पना से दुखी हैं, भविष्य से नहीं। कोई भविष्य से दुखी नहीं हो सकता क्योंकि उसका अस्तित्व ही नहीं है। कोई भी अतीत से दुखी नहीं हो सकता, क्योंकि उसका अस्तित्व नहीं है। आप अपनी दो सबसे शानदार क्षमताओं से दुखी हैं – स्पष्ट याददाश्त, और शानदार कल्पना, जो आपको एक इंसान बनाती हैं।
कल क्या हो सकता है, इसके बारे में सोचकर अगर आप दुखी हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपनी कल्पना से दुखी हैं, भविष्य से नहीं।
पेरिस : तो लोग अपने जीवन में ज्यादा खुशी कैसे ला सकते हैं?
सद्गुरु : अगर आप इस जीवन के बारे में कुछ करने के लिए रोजाना सिर्फ 20 या 30 मिनट लगाने को तैयार हैं, तो हम आपको बहुत सरल चीज़ सिखा सकते हैं, जो आपको आनंदित होने में मदद करेगी। अगर आप उन 30 मिनट के लिए इस जीवन को पोषित करते हैं और अपने बारे में, अपने शरीर, परिवार, धन और पेशे के बारे में सोचना बंद कर दें, तो आपकी कैमिस्ट्री आनंदमय हो जाएगी। एक बार जब आपकी कैमिस्ट्री आनंदमय हो जाती है, तो आप पूरी तरह सहज हो जाते हैं।
पेरिस : आपके सारे ज्ञान और यहाँ आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरे श्रोताओं को यह पसंद आएगा। आप अद्भुत हैं।
सद्गुरु: धन्यवाद। नमस्कारम।