योग और ज्ञान

योगासन आपके कर्म को सुलझाने में कैसे मदद कर सकते हैं?

क्या कर्म किसी न्याय-व्यवस्था की तरह है, जो हमारे किए के लिए हमें पुरस्कार या दंड देती है? क्या योग-आसन कर्म का चक्र तोड़ने में हमारी मदद कर सकते हैं?जानिए कर्म की हक़ीक़त सद्‌गुरु से:

अमेरिकी लेखक, वक्ता, और सलाहकार फ़िलिप गोल्डबर्ग

फिलिप गोल्डबर्ग: मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि कर्म पर अपनी किताब में, आपने कर्म के बारे में कुछ आम गलतफहमियों को दूर किया है। एक तो यह कि अधिकांश लोग कर्म को पुरस्कार और दंड की एक व्यवस्था के रूप में देखते हैं, मानो वह किसी प्रकार की न्याय-व्यवस्था हो। और दूसरी यह कि यह एक तरह का भाग्यवाद है यानी सब कुछ पहले से ही तय है, जबकि हक़ीक़त इसकी उल्टी है। क्या आप इन पहलुओं के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?

सद्‌गुरु: यह मज़ेदार है कि आपने ‘न्याय-व्यवस्था’ शब्द का इस्तेमाल किया। हाँ, लोग उसके बारे में बिलकुल ऐसा ही सोचते हैं। अधिकांश देशों की न्याय-व्यवस्था में, चाहे आपने कुछ भी किया हो, आपको अपना बचाव करने और अपनी बात रखने का एक मौका मिलता है। लेकिन इस प्रकार की न्याय व्यवस्था में, जिसकी आप बात कर रहे हैं, आपकी कोई भूमिका ही नहीं है – वे बस आपका सर फोड़ देंगे या आपको लटका देंगे। यह एक ‘कंगारू-कोर्ट’ की तरह है, न्याय-व्यवस्था नहीं। क्या कर्म किसी कंगारू कोर्ट की तरह है, जिसमें आपको उस काम को करने के लिए सज़ा दे दी जाती है, जो उनके ख्याल में आपने किया है? ऐसी कोई बात नहीं है। इंसान अपने अंदर बनने वाली तरह-तरह की स्मृतियों का एक संयोजन है। इसकी शुरुआत विकास-संबंधी स्मृति से हुई है- एक अमीबा से लेकर अब तक जितना भी विकास हुआ है, वह सारा आपके सिस्टम में किसी न किसी रूप में दर्ज है।

मकरासन (मगरमच्छ आसन)

योगासनों और कर्म के बीच आश्चर्यजनक संबंध

यही वजह है कि योगासनों का नाम अलग-अलग जीवों के नाम पर रखा गया है क्योंकि इसका मकसद उन आसनों के द्वारा उन कर्मों को सुलझाना है। दुर्भाग्य से, जो योग सिखाया जा रहा है, वह शरीर को मोड़ने-मरोड़ने के बारे में है। वरना, किसी व्यक्ति के कर्म को देखकर हम उनको बताते हैं कि आपको यह अमुक आसन करना चाहिए। अभी भी, हम ऐसा ही करते हैं। शुरुआत में सामान्य आसन सिखाए जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद, हम बताते हैं, ‘आपको यह करना चाहिए क्योंकि हमें लगता है कि आप इसमें उलझे हुए हैं।’

मान लीजिए, आपको मकरासन करने के लिए कहा गया। इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक मगरमच्छ हैं – बस आपके अंदर कुछ प्रवृत्तियाँ उस तरह की हैं। हर मनुष्य के अंदर अलग-अलग प्रवृतियाँ होती हैं। ये अचेतन प्रवृत्तियाँ कर्म के उन प्रभावों का परिणाम है, जो हमने ग्रहण किए है, जिस तरह हमने उन प्रभावों को अपने भीतर अनुभव किया है, और जिस तरह से हम उन प्रभावों को अपने आस-पास के सभी लोगों से जोड़ते हैं।

मयूरासन (मोर आसन)

आपकी प्रवृत्तियाँ आपको एक ख़ास दिशा में ले जाती हैं

इन प्रवृत्तियों को वासना कहते हैं, जो गंध की तरह होती हैं। मान लीजिए, कल किसी ने पार्टी की और उनके घर में खूब सारे गुलाब के फूल थे। पार्टी खत्म होने के बाद, उन्होंने उन ट्रक भर गुलाबों को कूड़ेदान में डाल दिया। उस दिन अगर आप कूड़ेदान के पास से निकलेंगे, तो वहाँ से फूलों की खुशबू आएगी। कल अगर कोई उसमें सड़ी हुई मछली डाल दे, तो वहाँ से सड़ी हुई मछली जैसी बदबू आएगी। उससे कैसी गंध आती है, उसी के अनुसार अलग-अलग जीवन उसकी तरफ आकर्षित होते हैं।

आप अतीत को सिर्फ याद कर सकते हैं। आप वर्तमान का सिर्फ अनुभव कर सकते हैं। लेकिन भविष्य को आप बना सकते हैं।

कर्म ऐसा ही है। आपके अंदर जैसी वासनाएँ होती हैं, या अपने आस-पास के माहौल का आपके ऊपर जो असर पड़ता है, उसी के अनुसार आप अपने आस-पास कुछ स्थितियों, लोगों और जीवनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और आप भी इन्हीं दिशाओं की तरफ आकर्षित होते हैं। इसीलिए हम कहते हैं कि आपको अपने कर्मों को ठीक करना चाहिए। अपने कर्म को ठीक करने का मतलब अतीत को सुधारना नहीं है। अतीत को ठीक करने जैसी कोई बात नहीं होती। आप अतीत को सिर्फ याद कर सकते हैं। आप वर्तमान का सिर्फ अनुभव कर सकते हैं। लेकिन भविष्य को आप बना सकते हैं।

आप पूर्व कर्म को ठीक नहीं कर सकते, लेकिन वर्तमान क्षण का कर्म आपके हाथों में है। अगर आप उसे अपने हाथों में ले लें, तो आप जिस तरह चाहें, अपनी किस्मत को गढ़ सकते हैं। अगर आप अतीत के कर्म को इस क्षण में घुसने देंगे, तो आप अतीत के चक्रों को दोहराते रहेंगे। इसे ही संसार कहते हैं। संसार का अर्थ है कि जीवन चक्रीय हो गया है और एक ही चीज़ बार-बार दोहराई जा रही है।

वीरभद्रासन

कर्म के चक्रों से निकलने का एकमात्र रास्ता

इन चक्रों की लंबाई तय करती है कि आप कितने स्थिर, संतुलित और सचेतन हो सकते हैं। आप चेतन होने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन अगर आपके कर्म के चक्र बहुत छोटे हैं, फिर चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें, आप चेतन नहीं हो पाएँगे। आपको कर्म के चक्र को लंबा करना होगा। जैसे-जैसे वह लंबा होगा, आप अधिक सहज होते जाएँगे। आपके कर्म और कर्म का तनाव कम हो जाता है। जब वे सहज हो जाते हैं, तो सचेतन होना ज्यादा आसान हो जाता है। वरना आप सिर्फ मानसिक सजगता को चेतना मानने की गलती करते रहते हैं।

सचेतन होने के लिए, आपके शारीरिक, मानसिक और ऊर्जा ढाँचों को सहज होना होगा।

मानसिक सजगता के साथ, आप ज्यादा उत्तेजित, तनावग्रस्त होंगे और आसानी से चिढ़ जाएँगे। लेकिन अगर आप सचेतन हो जाएँगे, तो कोई आपको उकसा नहीं सकता, कोई चीज़ आपको विचलित नहीं कर सकती। अगर आप मानसिक रूप से सजग होते हुए चेतन होने की कोशिश करते हैं, तो आप हमेशा कगार पर रहते हैं। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मानसिक रूप से सजग होना चेतना नहीं है। सचेतन होने के लिए, आपके शारीरिक, मानसिक और ऊर्जा ढाँचों को सहज होना होगा।

सौर मंडल

विकास का क्रम - एक योगिक दृष्टिकोण

जब आदियोगी ने क्रमिक विकास की बात की, तो उन्होंने कहा कि जीवन का पहला रूप एक मछली का था; फिर वह जल-थल पर रहने वाला एक उभयचर बना; फिर वह एक स्तनपायी बना, जो एक जंगली सूअर था; फिर वह आधा नर, आधा पशु बना; इसके बाद एक बौना मानव; फिर एक पूर्ण विकसित मनुष्य, लेकिन बहुत अस्थिर; इसके बाद एक शांत मनुष्य; फिर प्रेम करने वाला मनुष्य और इसके बाद एक आध्यात्मिक मनुष्य।

अगर पृथ्वी के घूमने की दिशा बदल जाए, तो सारा जीवन या तो बदल जाएगा या नष्ट हो जाएगा।

उनके शिष्यों, सप्तऋषि ने पूछा, ‘क्या अब हम और विकास कर सकते हैं?’ आदियोगी ने कहा, ‘शारीरिक रूप से और विकास करने के लिए, सौर मंडल में कोई बड़ा बदलाव होना चाहिए, और वह नहीं होने वाला। आप सिर्फ चेतना में विकास कर सकते हैं। अगर आप शारीरिक रूप से विकसित होने की कोशिश करेंगे, तो संभव नहीं होगा। कुम्हार का चाक एक निश्चित रफ्तार से घूम रहा है, इसलिए वह आपकी मदद नहीं करेगा।’ यह एक साफ बात है कि इस चाक, इस सौर मंडल ने एक खास तरह के जीवन का निर्माण किया है।

अगर पृथ्वी के घूमने की दिशा बदल जाए, तो सारा जीवन या तो बदल जाएगा या नष्ट हो जाएगा। मान लीजिए, पृथ्वी के घूमने की गति उसकी मौजूदा गति से ज्यादा या कम हो जाए, तो इस पृथ्वी पर जीवन का आकार बदल जाएगा। आज, वैज्ञानिक पृथ्वी की गति और न्यूरोलॉजिकल सिस्टम के बीच संबंध जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह शोध अब भी शुरुआती चरण पर है। लेकिन योगिक प्रणाली यह बताती है कि हमने कैसे विकास किया है क्योंकि सौर मंडल की संरचना यह तय करती है कि हम किस प्रकार का जीवन हैं।