जीवन

वास्तविकता, सत्य और ज्ञान के बीच क्या अंतर है?

इस गहन बातचीत के अंश में, वुसी थेम्बेकवेओ सद्‌गुरु से प्राचीन ज्ञान के मूल्य, वास्तविकता और सत्य के बीच के अंतर और क्या दुनिया सत्य के लिए तैयार है, इसके बारे में पूछते हैं । वुसी दक्षिण अफ़्रीका के एक प्रभावशाली वक्ता, व्यापारिक अग्रणी और जाने-माने लेखक हैं।

वुसी थेम्बेकवेओ: मुझे उम्मीद है कि हम अफ़्रीकियों ने काम करने जो तरीक़ा अपनाया है, उससे हम बिना ख़ुद को खोए अपने पर्यावरण के लिए सही काम कर पा रहे हैं। मुझे लगता है कि नई खोजों को लेकर सबसे मुश्किल बात यह है कि हमें देखना होगा कि कौन सी पुरानी चीज़ है जिसे अब भी रखने की ज़रूरत है, और किसे हम छोड़ सकते हैं।

सद्‌गुरु: आपको अतीत में अटके नहीं रहना चाहिए, क्योंकि कल जो समझदारी थी, आज वह एक मूर्खता हो सकती है। एक सनक अक्सर देखने को मिलती है, मैं जहाँ भी जाता हूँ, लोग कहते हैं, ‘सद्‌गुरु प्राचीन ज्ञान की बात करेंगे।’ मैं कहता हूँ, ‘यह समकालीन ज्ञान है, क्योंकि ज्ञान वही है, जो काम करे।’

प्राचीन ज्ञान का तो मतलब है कि इसे एक तारीख़ का लेबेल लगाकर संभालकर रख देना चाहिए, उसे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। देखिए, पूर्वजों ने उन चीजों को देखा, जो उनके समय के लिए सटीक थीं। उनमें से कुछ चीज़ें आज भी हमारे लिए लागू हो सकती हैं, क्योंकि हम आज भी इंसान ही हैं; हम किसी और रूप में विकसित नहीं हो गए हैं। सिर्फ हालात बदले हैं। ज्ञान में दोनों चीज़ें शामिल हैं – आंतरिक अनुभव और हालात को समझते हुए व्यावहारिक क़दम उठाना। आंतरिक अनुभव आदर्शपूर्ण हो सकता है,  पूर्ण सत्य हो सकता है, लेकिन ज्ञान, आज की वास्तविकता और परम सत्य का सामंजन है।

ज्ञान में दोनों चीज़ें शामिल हैं – आंतरिक अनुभव और हालात को समझते हुए व्यवहारिक क़दम उठाना।

यदि आप इन दोनों को साथ लेकर नहीं चलते हैं, तो आप केवल एक गुफ़ा में बैठ सकते हैं, आनंदित हो सकते हैं और लोगों को आशीर्वाद दे सकते हैं। लेकिन यदि आप दुनिया में सक्रिय रहना चाहते हैं, तो आपको पूर्ण सत्य को आज की वास्तविकता के साथ मिलाकर चलना होगा, नहीं तो आप इस दुनिया में काम नहीं कर सकते।

वुसी थेम्बेकवेयो: सद्‌गुरु, क्या सत्य कभी संपूर्ण हो सकता है?

सद्‌गुरु: सत्य हमेशा सम्पूर्ण होता है। वास्तविकता बदलती रहती है।

वुसी थेमबेकवेओ: दोनों में क्या अंतर है?

सद्‌गुरु: वास्तविकता और सत्य में अंतर यह है कि आज आप अपने घर को जिस रंग में चाहें रंग सकते हैं, लेकिन बुनियाद वही रहती है।

वुसी थेम्बेकवेयो: पूर्ण सत्य का यह विचार दिलचस्प है। मैं सोचता हूँ कि क्या आज दुनिया सत्य के लिए तैयार है, चाहे वह सत्य कुछ भी हो। मुझे यक़ीन नहीं है कि हर इंसान अपने ख़ुद के सत्य से कितनी अच्छी तरह वाकिफ है, और वे उस सत्य को प्राप्त करने के लिए कितने तैयार हैं। एक पुरानी कहावत है, जिसका मतलब है – ‘सत्य से भी ज्यादा लोग केवल एक चीज से नफ़रत करते हैं - जो उसे बोलने की हिम्मत करता है।’

सद्‌गुरु: आप मुझे बता रहे हैं? मैंने इन सबका सामना किया है। [दोनों हंसते हैं]

यह संसार कभी भी सत्य के लिए तैयार नहीं होगा, क्योंकि ‘संसार’ शब्द सत्य नहीं है। केवल व्यक्तिगत अनुभव ही सत्य है। केवल आपका अस्तित्व है, ‘संसार’ सिर्फ एक शब्द है। आप अपने बच्चों को संसार नहीं कहते - आप उन्हें उनके नाम से बुलाते हैं, क्योंकि आप इन व्यक्तिगत जीवन को अपना समय और ध्यान देते हैं।

सत्य हमेशा सम्पूर्ण होता है। वास्तविकता बदलती रहती है।

जब हम ‘संसार’ शब्द का उपयोग करते हैं, तो हमारे पास हर किसी पर ध्यान देने का समय या इरादा नहीं होता है, इसलिए वे सब बस एक संसार हैं। संसार हमारे मन में बनी हुई  एक मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति है। दरअसल, केवल व्यक्तिगत इंसान होते हैं। इंसान व्यक्तिगत अनुभवों के कारण ही इंसान है, और व्यक्तिगत अनुभव सत्य नहीं हैं। व्यक्तिगत अनुभव मनोवैज्ञानिक और सामाजिक वास्तविकताएं हैं, जिनमें हम रहते हैं। एक व्यक्ति सत्य का अनुभव करने में सक्षम है, लेकिन एक व्यक्ति के रूप में, वो ख़ुद सत्य नहीं है। संसार सत्य का अनुभव करने में सक्षम नहीं है।

वुसी थेम्बेकवेयो: फिर सत्य क्या है?

सद्‌गुरु: जब मैं कहता हूँ कि सत्य सम्पूर्ण है, तो इसका मतलब है कि आप इसे परिभाषित नहीं कर सकते। आप केवल उस चीज़ को परिभाषित कर सकते हैं जिसकी भौतिक सीमाएँ हैं - आप किसी ऐसी चीज़ को परिभाषित नहीं कर सकते जिसमें भौतिकता न हो, या जिसकी सीमाएँ न हों। सत्य कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप परिभाषित कर सकते हैं, या जिसे दार्शनिक रूप से पेश कर सकते हैं, यह ऐसी चीज़ है जिसे आप सिर्फ़ अनुभव करते हैं।

यदि आप अपनी दृष्टि को साफ़ कर लेंगे, तो आप देख पाएँगे।

यदि आप दुनिया में हर चीज़  के बारे में नतीजा निकालने के बजाय ध्यान से यह देखने की कोशिश करें कि आख़िर वह क्या चीज़ है जिसने नतीजे निकलवाए, आपके अंदर खुशी और दुख का कारण क्या है, आपको क्या पसंद है और क्या नापसंद है? ग़ौर करने पर आप समझ पाएंगे कि आपने अपने मन को भ्रम से भरा प्रिज्म बना रखा है। मान लीजिए मैं आपको एक प्रिज्म द्वारा देखता हूँ, तो आप बहुत विचित्र दिखेंगे। अगर मैं एक प्रिज्म के द्वारा आपको देखकर यह नतीजा निकालता हूँ कि वुसी एक विचित्र आदमी हैं, तो यह मेरी समस्या है, आपकी नहीं।

हमने अपने मन में कई ऐसे प्रिज्म बना रखे हैं, जो सब कुछ भ्रमित कर देते हैं, और अब हम सोच रहे हैं कि सत्य को कैसे खोजा जाए। आपको अपनी बोध की क्षमता को दुरुस्त करने की ज़रूरत है। आप कैसे देखते हैं, सुनते हैं, सूंघते हैं, स्वाद लेते हैं, स्पर्श करते हैं और अनुभव करते हैं, इसे सही करने की ज़रूरत है। सत्य कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे आप देखने का प्रयास करते हैं - यदि आप अपनी दृष्टि को साफ़ कर लेंगे, तो आप देख पाएँगे।