योग और ज्ञान

जानिए 8 बातें : शरीर, मन और नींद पर चंद्रमा का प्रभाव

जीवविज्ञान, मनोविज्ञान और योग का मिलन 

नए शोध ने बताया है कि चंद्रमा के चक्र कैसे मनुष्य की नींद को प्रभावित करते हैं। प्रमुख शोधकर्ता डॉ.होरासियो डि ला इग्लेशिया, इसके प्रभावों पर चर्चा करते हुए सद्‌गुरु से योग का नज़रिया जान रहे हैं। डॉ.होरासियो डि ला इग्लेशिया, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च एसोसिएट और बायोलॉजी के प्रोफेसर हैं। इस संवाद को डॉ. डेविड वागो ने एंकर किया है, जो वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर और ब्रिघम और वुमंस हॉस्पिटल, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में एक रिसर्च एसोसिएट हैं।

डॉ. होराशियो डे ला इग्लेशिया
डॉ. डेविड वेगो

शोध के नए नतीजे क्या हैं?

डॉ. डेविड वागो: डॉ. होरासियो ने हाल में अलग-अलग स्थितियों में चंद्रमा के चक्र के मनुष्य की नींद से संबंध के बारे में एक शोध पत्र लिखा है। क्या आप इसके बारे में कुछ और बता सकते हैं?

डॉ.होरासियो: स्लीप लेबोरेटरीज में कुछ अध्ययन हुए हैं, जिनमें नींद की इलेक्ट्रोएंसेफेलोग्राफिक रिकार्डिंग[1] पर चंद्रमा के चक्र का असर पाया गया। कुछ दूसरे अध्ययन भी हुए, जिनमें कहा गया, ‘यह कोई वास्तविक प्रभाव नहीं है।’ हमारे शोध ने इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की, कि क्या व्यक्तिगत स्तर पर चंद्रमा के विभिन्न चरणों से नींद प्रभावित होती है। और असल में हमने पाया कि ऐसा होता है।

[1] सिर की चमड़ी पर विद्युत गतिविधि को रिकॉर्ड करने का तरीका जिससे दिमाग की सतह पर होने वाली गतिविधि की जानकारी मिलती है

क्या यह गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से है?

डॉ.डेविड वागो: क्या दो वस्तुओं के वज़न से संबंधित कुछ ऐसा है, जो इंसान के शरीर में बदलाव लाता है?

डॉ.होरासियो: यह पता चला है कि हर पंद्रह दिन में, पूर्णिमा और अमावस्या के समय, समुद्र में लहरें सबसे ऊँची और सबसे नीची होती हैं क्योंकि उन दिनों सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक ही रेखा पर सीध में होते हैं। सूर्य और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव जुड़ जाता है, और आप अधिकतम ऊँची लहरों का अनुभव करते हैं। लेकिन अभी तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इंसान गुरुत्वाकर्षण में उन बदलावों को पहचान सकता है। दूसरी ओर, हमारे पास यह समझाने का कोई दूसरा तरीका नहीं है कि सिएटल जैसी जगह में, जहाँ आप चंद्रमा की चांदनी को महसूस तक नहीं कर पाते हैं, फिर भी आप चंद्रमा के चक्र पर रेस्पॉन्ड करते हैं, जो हमने अपने शोध में पाया है।

क्या चंद्रमा वाकई हमारी नींद पर असर डालता है?

डॉ. होरासियो: दिलचस्प बात यह है कि पूर्णिमा से पहले की रातों में, नींद देर से आती है और कम समय की होती है। सबसे छोटी नींद पूर्णिमा से तीन से पाँच दिन पहले होती है। उन रातों में चांदनी, दिन के अंत में, देर शाम और रात के शुरुआती पहर में उपलब्ध होती है। और अगर आप चांदनी की उपयोगिता के बारे में सोचते हैं, तो हमारे पूर्वज जो शिकारी थे, वे चांदनी के असर से बीच रात जागने के बजाय दिन खत्म होने के साथ चांदनी में अपनी दैनिक गतिविधियों को जारी रख सकते थे।

सबसे छोटी नींद पूर्णिमा से तीन से पाँच दिन पहले होती है – डॉ. होरासियो डि ला इग्लेशिया

दूसरे शब्दों में, अगर चांदनी सुबह 3 बजे आती है, तो शायद आप गहरी नींद में होंगे और रेस्पॉन्ड नहीं करेंगे, वह आपको नहीं जगाएगी। लेकिन अगर आप शाम को 8:00 बजे सोने की सोच रहे हैं और अचानक आप इस चमकदार रोशनी को देखते हैं, तो शायद आप जगे हुए रहकर अपना काम जारी रख सकते हैं। और ठीक यही आजकल हम अपनी कृत्रिम रोशनी के साथ करते हैं – हम उसका इस्तेमाल करके शाम होने के बाद अपना काम जारी रखते हैं। 

हमें लगता है कि हमारी नींद पर चंद्रमा के इस पुरातन प्रभाव का लाभ एक प्रकार से कृत्रिम रोशनी ने उठाया है। लेकिन गुरुत्वाकर्षण के आपके सवाल पर वापस चलें तो, हमारे पास अब तक एकमात्र स्पष्टीकरण यही है कि शायद गुरुत्वाकर्षक का यह बोध, आपको शाम की रोशनी के प्रभाव के प्रति या कहें आपको जगाए रखने के लिए ज्यादा संवेदनशील बनाता है। 

डॉ. डेविड वागो: लेकिन डाटा स्पष्ट नहीं है, है न?

डॉ. होरासियो: नहीं। अब तक, यह दिखाने के लिए शरीर विज्ञान से संबंधित कोई डाटा नहीं है कि मनुष्य गुरुत्वाकर्षण में इन बदलावों पर रेस्पॉन्ड करते हैं।

आदियोगी के सामने सूर्योदय के समय सूर्य नमस्कार

योग, सूर्य और चंद्रमा के साथ कैसे काम करता है?

डॉ. डेविड वागो: सद्‌गुरु, शायद आप योग के नज़रिए से कुछ रोशनी डाल सकते हैं। साफ तौर पर ऐसे वर्णनों का एक लंबा-चौड़ा इतिहास है कि चंद्रमा कैसे हमारे शरीर पर असर डालता है, लेकिन आधुनिक विज्ञान में खास तौर पर यह दिखाने के लिए कोई प्रमाण नहीं है कि कैसे दो पिंडों को खींचने वाला आकर्षण बल हमारे शरीर और मन की गतिविधि को प्रभावित कर सकता है।

सद्‌गुरु: अगर आप योग के न‍ज़रिए से इसे देखें, तो योग का एक महत्वपूर्ण अंग हठ योग है। ‘ह’ का अर्थ है सूर्य, ‘ठ’ का अर्थ है चंद्रमा। हठ का अर्थ है, इन दोनों बलों के बीच संतुलन लाना। सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी इस धरती पर जीवन के निर्माण पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। पुरुष इसे लेकर भ्रमित हो सकते हैं, ले‍किन स्त्रियाँ हमेशा से चंद्रमा के चक्रों के साथ तालमेल में रही हैं और अभी हमारे जन्म का आधार यही है।

ह का अर्थ है सूर्य, ठ का अर्थ है चंद्रमा। हठ का अर्थ है, इन दोनों बलों के बीच संतुलन लाना – सद्‌गुरु

हम चंद्रमा को सिर्फ अपने ऊपर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव डालने के लिए नहीं जानते। हम चंद्रमा को उस बुनियादी तत्व के रूप में देखते हैं, जो पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर घूमने के मार्ग पर थामे रखता है। आजकल, आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि एक उपग्रह के रूप में चंद्रमा हर साल पृथ्वी से दूर जा रहा है। जब वह एक खास सीमा से परे चला जाएगा, तो इस ग्रह पर मौजूद जीवन पर उसका प्रभाव कम हो जाएगा। मनुष्य के प्रजनन चक्र सामान्य चक्र से हट जाएँगे और धीरे-धीरे मनुष्य खत्म हो जाएगा। लेकिन सबसे बढ़कर, अगर चंद्रमा दूर चला जाता है, जो कुछ अरब सालों में होने की संभावना है, तो पृथ्वी अपना मार्ग बनाए नहीं रख सकेगी और वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगी। योगिक प्रणाली इसे इसी तरह देखती है।

जनवरी महीने की ताईपूसम पूर्णिमा पर अपनी भैरवी साधना के समापन के दिन भक्त अर्पण भेंट करते हुए

चंद्रमा इस परंपरा में क्या भूमिका निभाता है?

सद्‌गुरु : भारत बड़े पैमाने पर हिंदू कैलेंडर का प्रयोग करता है। देश के कुछ भागों में, जहाँ मातृप्रधान सत्ता है, वहाँ चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता है। और जहाँ पितृसत्ता है, वहाँ चंद्र-सौर कैलेंडर का प्रयोग किया जाता है, जो चंद्र और सौर चक्रों का एक संयोजन है। हम कैलेंडर को सिर्फ चीजों के एक संख्यासूचक रिकार्ड के रूप में नहीं देखते, बल्कि इस अर्थ में देखते हैं कि हम अपने भीतर उसका अनुभव कैसे करते हैं और शरीर अलग-अलग समय पर उसके प्रति कैसे रेस्पॉन्ड करता है।

तमाम परंपराएँ, प्रथाएँ और रस्में बनाई गईं ताकि आप पृथ्वी की ऊर्जा, उसके मार्ग, उसके उत्तरी मुख की दिशा और सूर्य से उसकी नज़दीकी का बेहतरीन लाभ उठा सकें। - सद्‌गुरु 

इसी के अनुसार, तमाम परंपराएँ, प्रथाएँ और रस्में बनाई गईं ताकि आप पृथ्वी की ऊर्जा, उसके मार्ग, उसके उत्तरी मुख की दिशा और सूर्य से उसकी नज़दीकी का बेहतरीन लाभ उठा सकें। आपको सिखाए जाने वाले अभ्यासों में इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है।

कभी सौर चक्र को 4356 दिन का माना जाता था। इस चक्र को अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग रूपों में बांटा गया है। यह योगियों, संन्यासियों, गृहस्थों और सामान्य सांसारिक जीवन जीने वाले लोगों के लिए अलग-अलग है, क्योंकि उनके शरीर अलग-अलग तरीके से अभ्यस्त हैं और उन्हें अलग तरीके से कार्य करने की जरूरत है। यह कैलेंडर चंद्रमा के चरणों और सूर्य के संबंध में पृथ्वी की स्थिति पर आधारित है।

क्या चंद्रमा के चरण योग की क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं?

सद्‌गुरु : तो, दैनिक आधार पर चंद्रमा का क्या असर है? यह सिर्फ चाँद की रोशनी के बारे में नहीं है – आजकल, लोग इलेक्ट्रिकल चार्ज, इलेक्ट्रोमैगनेटिक प्रभाव और दूसरे पहलुओं के बारे में वैज्ञानिक शब्दावली में बात करते हैं। मैं उसमें विशेषज्ञ नहीं हूँ, लेकिन योगिक प्रणाली में हम पूर्णिमा और अमावस्या के दिनों को काफी महत्व देते हैं। उन दिनों हम अलग तरह की क्रियाएँ करते हैं।

संन्यासी आम तौर पर अमावस्या के दिनों में अभ्यास करते हैं, जबकि गृहस्थ जीवन में मौजूद लोग पूर्णिमा के दिनों में अभ्यास करते हैं क्योंकि दोनों का असर बहुत अलग होता है। हमने कई प्रकार के उपकरण बनाए हैं, जैसे पूर्णिमा के चाँद में आपकी रीढ़ को एक खास तरह से एक्सपोज़ करने के लिए। इस तरह की तीन पूर्णिमा की रातें किसी के बीमार शरीर को  स्वस्थ करके पूरी तरह फिर व्यवस्थित कर सकती हैं।

चंद्रमा हमारे बोध और न्यूरोलॉजिकल सिस्टम पर कैसे असर डालता है?

सद्‌गुरु: आध्यात्मिक दुनिया में, मानव बोध और चंद्रमा सीधे-सीधे आपस में जुड़े हैं। पहले योगी, आदियोगी, अर्धचंद्र को किसी आभूषण की तरह अपने सिर पर पहनते हैं। यह दर्शाता है कि वह बोध के सबसे ऊँचे स्तर पर हैं। मेडिकल साइंस में, हम इसे न्यूरोलॉजिकल उत्तेजना के एक स्तर के रूप में देख सकते हैं। जीवन के विकास क्रम में, हम इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली जीव नहीं हैं, लेकिन हमारा न्यूरोलॉजिकल सिस्टम सबसे जटिल और श्रेष्ठ है। यही वास्तव में हमें सर्वश्रेष्ठ बनाता है।

यह न्यूरोलॉजिकल विकास हमारा सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। और हमारी न्यूरोलॉजिकल प्रणाली कितनी उत्तेजित, सक्रिय और संतुलित है, यह सीधे तौर पर चंद्रमा के चरणों से संबंधित है। अपने मानसिक उतार-चढ़ावों को संभालने के लिए लोग कई रूपों में इसका लाभ उठा सकते हैं। बहुत से लोग समुद्र में लहर के ऊँचे उठने के साथ अपने शरीर में लहरों को महसूस करते हैं। हमारे शरीर का लगभग साठ प्रतिशत पानी है, इसलिए शरीर में उतार-चढ़ाव होते हैं।

भक्ति की भावना

क्या चंद्रमा मानसिक अंसतुलन पैदा करता है?

सद्‌गुरु: कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि पूर्णिमा के दिन, लोग ज्यादा असंतुलित हो जाते हैं या जिन लोगों में घबराहट और डिप्रेशन की प्रवृत्ति होती है, वे बेक़ाबू हो जाते हैं। चंद्रमा पागलपन नहीं लाता, वह सिर्फ आपकी ऊर्जा को एक निश्चित तरीके से उकसाता है। अगर आपके अंदर आनंद का गुण है, तो आप और आनंदित हो जाएँगे। अगर आपकी गुणवत्ता प्यार है, तो आप और भी प्रेममय हो जाएँगे। अगर आप ध्यानमय हैं तो आप और ध्यानमय हो जाएँगे। अगर आपको मानसिक बीमारी है, तो वह भी बढ़ जाती है। आपका जो भी गुण है, वह पूर्णिमा के कारण बढ़ जाता है।