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शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

शिवरात्रि - अंधकार की रात्रि

सद्गुरु शिव की रात, शिवरात्रि के बारे में बता रहे हैं, वे समझाते हैं कि ये रात मानव शरीर को संपूर्ण बनाने के लिए एक शक्तिशाली संभावना प्रदान करती है।


सद्गुरु: चंद्रमाह की 14वीं रात – अमावस्या से पहले की रात – महीने की सबसे अंधेरी रात होती है। उसे शिवरात्रि कहा जाता है। जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो उसका एक पहलू यह है कि हम आदियोगी, प्रथम योगी की बात कर रहे हैं। एक और पक्ष यह है कि ‘शिव’ शब्द का अर्थ है ’वह जो नहीं है।’ जो है, वह है सृष्टि। जो नहीं है, वह है शिव। आज, आधुनिक विज्ञान कहता है कि पूरी सृष्टि शून्य से निकली है और शून्य में चली जाएगी। सब कुछ शून्य से आता है और शून्य में ही चला जाता है। शून्य सृष्टि का आधार है। तो, हम शिव को अस्तित्व के आधार रूप में देख रहे हैं। ‘वह जो नहीं है’, उसका आधार वो है, जो मौजूद है।

अगर आप रात के आकाश को देखें, तो वहां अरबों तारे होते हैं, मगर वह महत्वपूर्ण नहीं है। तारों की संख्या से कहीं ज्यादा खाली जगह है। सृष्टि बहुत थोड़े से हिस्से में है। विशाल खालीपन या शून्यता बड़ी चीज़ है। उसी खालीपन की गोद में सृष्टि थमी हुई है। हम कहते हैं कि पूरी सृष्टि शिव की गोद में घटित हो रही है और शिव को ‘अंधकार’ कहते हैं। विडंबना यह है कि आधुनिक वैज्ञानिक इस अस्तित्व में हर चीज़ को थाम कर रखने वाली चीज़ को काली या अंधकारमय ऊर्जा कह रहे हैं। वे उसे अंधकारमय ऊर्जा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वे किसी और तरह से उसका वर्णन नहीं कर पा रहे और समझ नहीं पा रहे हैं कि उसकी प्रकृति क्या है। उन्हें बस शिव कहने की कमी है!

शिव का एक नाम भूतेश्वर भी है – यानी भूतों के स्वामी। पंच भूत आराधना जो हर शिवरात्रि को ध्यानलिंग में होती है, वह ध्यानलिंग में कृपा के उस आयाम तक पहुंचने के लिए है।


शिवरात्रि शब्द का अर्थ है, शिव की रात। उस दिन आपके शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है। इसका लाभ उठाने के लिए योग में एक खास साधना है। मूल रूप से, चाहे वह एक मानव शरीर हो या वृहत ब्रह्मांडीय निकाय, मुख्य रूप से वे पंच भूत या पांच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही बने हैं। जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह सिर्फ इन पांच तत्वों की शरारत है। अगर आप इस तंत्र, जिसे आप मनुष्य कहते हैं, की पूरी क्षमता को साकार करना चाहते हैं, या आप इसके परे जाकर विशाल ब्रह्मांडीय तंत्र के साथ एक होना चाहते हैं – चाहे आपकी आकांक्षा सिर्फ अपने सीमित व्यक्तित्व के लिए हो या सर्वव्यापी तत्व की – जब तक आपको जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन रूप में इन पांच तत्वों पर एक निश्चित मात्रा में महारत नहीं होगी, तब तक आप न तो स्वयं के सुख को जान सकते हैं, न ब्रह्मांडीय प्राणी के आनंद को।

शिव का एक नाम भूतेश्वर भी है – यानी भूतों के स्वामी। पंच भूत आराधना जो हर शिवरात्रि को ध्यानलिंग में होती है, वह ध्यानलिंग में कृपा के उस आयाम तक पहुंचने के लिए है। पंच भूत आराधना एक शक्तिशाली संभावना पैदा करती है, जहां आप अपनी प्रणाली को एकीकृत कर सकते हैं और अपने शरीर में पंचतत्वों के अधिक बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए उचित स्थिति पैदा कर सकते हैं।

एक शरीर से दूसरे में, ये पांच तत्व कितने बेहतर तरीके से जुड़े हुए हैं, यह उस व्यक्ति के बारे में करीब-करीब सब कुछ तय करता है। अगर इस शरीर को एक अधिक बड़ी संभावना के लिए सोपान बनना है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारी प्रणाली ठीक से एकीकृत हो। जिस हवा में आप सांस लेते हैं, जो पानी पीते हैं, जो खाना खाते हैं, जिस धरती पर चलते हैं और जीवनी शक्ति के रूप में जीवन की अग्नि, इन सभी तत्वों से आपका शरीर बना है। अगर आप इन्हें नियंत्रित, जीवंत और केंद्रित रखते हैं तो दुनिया में सेहत, खुशहाली और सफलता मिलनी ही है। मेरी कोशिश है कि तरह-तरह के साधन बनाए जाएं, जो लोगों के लिए इसे इस तरह संभव बनाए कि आपके मौजूद होने का तरीका ही पंच भूत आराधना हो।

संपादक की टिप्पणी: कृपया इस प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी के लिए पंच भूत आराधना के पेज पर जाएं। अगर आप ईशा योग केंद्र आना चाहते हैं, तो पंच भूत आराधना कार्यक्रम की समय सारणी देखें: http://isha.sadhguru.org/pba

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