logo
logo

पूर्ण तपस्वी और गृहस्थ शिव

आदियोगी शिव एक घोर तपस्वी थे, पर वे एक गृहस्थ बन गए। वे पार्वती से विवाह करके गृहस्थ इसलिए बनें क्योंकि वे योग ज्ञान को दुनिया के साथ बांटना चाहते थे।

सद्गुरु: शिव पुराण में कहा गया है कि आदियोगी शिव एक संन्यासी और घोर तपस्वी थे जो खोपड़ियों की माला पहनकर श्मशानघाट में घूमते थे। वे बहुत भयंकर व्यक्ति थे और कोई उनके पास जाने की हिम्मत नहीं करता था। फिर सभी देवताओं ने उनकी स्थिति को देखा और सोचा, ‘अगर यह ऐसे ही रहेंगे, तो धीरे-धीरे उनकी ऊर्जा और स्पंदन पूरी दुनिया पर असर डालेगी और फिर हर कोई संन्यासी बन जाएगा। यह आत्मज्ञान और मुक्ति के लिए अच्छी बात है, लेकिन हमारा क्या होगा? हमारा खेल खत्म हो जाएगा। लोग उन चीजों पर ध्यान नहीं देंगे, जो हम चाहते हैं। हम अपने खेल नहीं खेल पाएँगे, इसलिए हमें कुछ करना होगा।’

बहुत खुशामद करने के बाद, किसी तरह उन्होंने सती से उनकी शादी करा दी। इस शादी के बाद, वह कुछ हद तक गृहस्थ बन गए। ऐसे क्षण होते थे, जब वह बहुत जिम्मेदार गृहस्थ थे, कई ऐसे क्षण थे, जहाँ वह एक गैरजिम्मेदार शराबी थे, ऐसे भी क्षण थे, जब वह इतने गुस्से में होते थे कि वह पूरे ब्रह्माण्ड को जला सकते थे, कुछ ऐसे क्षण थे जब वह बहुत शांत और ब्रह्माण्ड के लिए सुखद होते थे। वह बदलते रहते थे।

सती उनके साथ उतना जुड़ाव नहीं बना पा रही थीं, जितना कि इसलिए ज़रूरी था कि वे दुनिया की मदद कर सकें। फिर घटनाएँ इस तरह से हुईं कि सती ने अपना शरीर छोड़ दिया और शिव एक बार फिर बहुत घोर तपस्वी बन गए, पहले से भी उग्र और दृढ़। अब पूरी दुनिया के संन्यासी बनने का खतरा और बढ़ गया और देवता बहुत चिंतित हो गए।

वे उन्हें एक बार फिर शादी में फँसाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने देवी मां की पूजा की और उन्हें पार्वती का रूप धरने के लिए कहा। उन्होंने पार्वती के रूप में जन्म लिया, जिनके जीवन का एक ही लक्ष्य था – किसी भी तरह शिव से शादी करना। वह बड़ी हुईं तो उन्होंने कई तरीकों से उन्हें आकर्षित करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर देवताओं ने शिव को किसी तरह प्रभावित करने के लिए कामदेव का इस्तेमाल किया और किसी कोमल क्षण में, वह फिर से गृहस्थ बन गए। वहाँ से उन्होंने अपने अंदर ज़बर्दस्त तालमेल और संतुलन रखते हुए एक संन्यासी और गृहस्थ दोनों की भूमिकाएँ निभानी शुरू कीं।

शिव पार्वती को आत्मज्ञान सिखाने लगे। उन्होंने कई अजीब और अंतरंग रूपों में उन्हें सिखाया कि अपने आत्म को कैसे जाना जा सकता है। पार्वती ने परमानंद को पाया। लेकिन फिर, जैसा किसी के भी साथ होता है, एक बार आप चरम पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से नीचे देखते हैं, तो शुरू में आप परमानंद से अभिभूत होते हैं, उसके बाद करुणा आपको अभिभूत करती है और आप उस ज्ञान को

शिव गृहस्थ क्यों बने

महाशिवरात्रि का दिन वह दिन था, जब शिव और पार्वती की शादी हुई थी। आदियोगी एक संन्यासी थे, जिनकी चरम उदासीनता (तटस्थता या अनासक्ति) इस दिन कामना में बदल गई - क्योंकि उन्हें उलझने का कोई डर नहीं था, और यह कामना उनके लिए अपने ज्ञान और बोध की गहराई को साझा करने का साधन बन गई।

पार्वती ने दुनिया को देखकर शिव से कहा, ‘आपने मुझे जो सिखाया है, वह वाकई अद्भुत है, इसे हर किसी तक पहुँचना चाहिए। लेकिन मैं देख सकती हूँ कि आपने मुझे यह ज्ञान जिस तरह दिया है, यह ज्ञान आप पूरी दुनिया को उस तरह से नहीं दे सकते। आपको दुनिया के लिए कोई दूसरा तरीका बनाना होगा।’ फिर शिव ने योग की प्रणाली की व्याख्या करना शुरू किया। उन्होंने सात शिष्य चुने, जिन्हें अब सप्तऋषियों के रूप में देखा जाता है। उस समय से, योग आत्मज्ञान पाने का विज्ञान बन गया, यह बहुत व्यवस्थित और वैज्ञानिक बन गया जिससे यह किसी को भी सिखाया जा सके।

इस प्रकार, शिव ने दो सिस्टम बनाए – तंत्र और योग। उन्होंने अपनी पत्नी पार्वती को तंत्र सिखाया। तंत्र बहुत अंतरंग है, उसे बहुत करीबी लोगों के साथ ही किया जा सकता है, लेकिन योग को व्यापक तौर पर सिखाया जा सकता है। यह हमारे आस-पास की दुनिया के लिए, खासकर आज के युग में, ज्यादा उपयुक्त है। इसलिए आज भी शिव को योग का पहला गुरु या आदिगुरु माना जाता है।

संपादक की टिप्पणी: आदियोगी शिव के बारे में कई और दिलचस्प कहानियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

    Share

Related Tags

आदियोगी

Get latest blogs on Shiva

Related Content

शिव पंचाक्षर स्तोत्र लिरिक्स और अर्थ