हिंदू संस्कृति में पुराणों की चर्चा खूब मिलती है। इन्हीं पुराणों में से एक है – शिव पुराण। तो क्या है इस पुराण में – सिर्फ कहानियां या कहानियों के जरिए कुछ और बताने की कोशिश की गई है?
जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते हैं, वह सीमाहीन है, शाश्वत है। मगर चूंकि इंसानी बोध रूप और आकार तक सीमित होता है, इसलिए हमारी संस्कृति में शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गई। गूढ़, समझ से परे ईश्वर, मंगलकारी शंभो, बहुत नादान भोले, वेदों, शास्त्रों और तंत्रों के महान गुरु और शिक्षक, दक्षिणमूर्ति, आसानी से माफ कर देने वाले आशुतोष, स्रष्टा के ही रक्त से रंगे भैरव, संपूर्ण रूप से स्थिर अचलेश्वर, सबसे जादुई नर्तक नटराज, आदि। यानी जीवन के जितने पहलू हैं, उतने ही पहलू शिव के बताए गए हैं।
आम तौर पर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में, जिस चीज को लोग दैवी या ईश्वरीय मानते हैं, उसे अच्छा ही दर्शाया जाता है। लेकिन अगर आप शिव पुराण को ध्यान से पढ़ें, तो आप शिव की पहचान अच्छे या बुरे के रूप में नहीं कर सकते। वह सब कुछ हैं - वह सबसे बदसूरत हैं, वह सबसे खूबसूरत भी हैं। वह सबसे अच्छे और सबसे बुरे हैं, वह सबसे अनुशासित भी हैं, मगर पियक्कड़ भी। उनकी पूजा देवता, दानव और दुनिया के हर तरह के प्राणी करते हैं। हमारी तथाकथित सभ्यता ने अपनी सुविधा के लिए इन हजम न होने वाली कहानियों को नष्ट भी किया, मगर शिव का सार दरअसल इसी में है।
शिव की शख्सियत जीवन के पूरी तरह विरोधाभासी या विरोधी पहलुओं से बनी है। अस्तित्व के सभी गुणों का एक जटिल संगम एक ही इंसान के अंदर डाल दिया गया है क्योंकि अगर आप इस एक प्राणी को स्वीकार कर सकते हैं, तो समझ लीजिए आप पूरे जीवन से गुजर चुके हैं। जीवन के साथ हमारा सारा संघर्ष यही है कि हम हमेशा यह चुनने की कोशिश करते हैं कि क्या सुंदर है और क्या नहीं, क्या अच्छा है और क्या बुरा। लेकिन अगर आप इस एक शख्स, जो जीवन की हर चीज का एक जटिल संगम है, को स्वीकार कर सकते हैं, तो आपको किसी चीज से कोई समस्या नहीं होगी।
शिव पुराण - कहानी के पीछे क्या है विज्ञान?
अगर आप शिव पुराण की कहानियों पर ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि इनमें सापेक्षता के सिद्धांत, क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धांत – पूरी आधुनिक भौतिकी – को बहुत खूबसूरती से कहानियों के जरिये अभिव्यक्त किया गया है। यह एक तार्किक संस्कृति है, इसमें विज्ञान को कहानियों के जरिये व्यक्त किया गया था। हर चीज को साकार रूप दिया गया था। मगर बाद में जाकर लोगों ने विज्ञान को छोड़ दिया और बस कहानियों को ढोते रहे। उन कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता रहा, कि वे पूरी तरह मूर्खतापूर्ण लगने लगीं। अगर आप उन कहानियों में फिर से विज्ञान को ले आएं, तो यह विज्ञान को अभिव्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका है।
शिव पुराण मानव प्रकृति को चेतना के चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसे बहुत सुंदर कहानियों द्वारा किया गया है। योग को एक विज्ञान के रूप में व्यक्त किया गया है, जिसमें कहानियां नहीं हैं, लेकिन अगर आप गहन अर्थों में उस पर ध्यान दें, तो योग और शिव पुराण को अलग नहीं किया जा सकता। एक उनके लिए है, जो कहानियां पसंद करते हैं तो दूसरा उनके लिए है, जो हर चीज को विज्ञान की नजर से देखना चाहते हैं, मगर दोनों के लिए मूलभूत तत्व एक ही हैं।
आजकल, वैज्ञानिक आधुनिक शिक्षा की प्रकृति पर बहुत शोध कर रहे हैं। एक चीज यह कही जा रही है कि अगर कोई बच्चा 20 साल की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यावहारिक दुनिया में प्रवेश करता है, तो उसकी बुद्धि का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है, जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि वह बहुत ज्ञानी मूर्ख में बदल जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शिक्षा देने का एक बेहतर तरीका है, उसे कहानियों या नाटक के रूप में प्रदान करना। इस दिशा में थोड़ी-बहुत कोशिश की गई है, मगर दुनिया में ज्यादातर शिक्षा काफी हद तक निषेधात्मक रही है। जानकारी का विशाल भंडार आपकी बुद्धि को दबा देता है, जब तक कि वह एक खास रूप में आपको न दिया जाए। कहानी के रूप में शिक्षा प्रदान करना बेहतरीन तरीका होगा। इस संस्कृति में यही किया गया था। विज्ञान के सर्वोच्च आयामों को बहुत बढ़िया कहानियों के रूप में दूसरे लोगों को सौंपा गया।