योग में, शिव को देव नहीं, आदियोगी, पहले योगी व आदि गुरु यानी पहले गुरु के रूप में देखा जाता है। सद्गुरु मानवता के प्रति आदियोगी के योगदान के बारे में बता रहे हैं। वे शिव के महत्व की चर्चा करते हुए, इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पूरे संसार में लोग उनके महत्व को जानें।
प्रश्नकर्ता: नमस्कारम् सद्गुरु, मैंने सुना है कि आप पूरे संसार में आदियोगी की 21 फुट ऊँची प्रतिमाएँ बनवाने की योजना बना रहे हैं। इसका क्या महत्व है? मैंने देखा है कि इनमें से एक ईशा योग केंद्र के सामने आदियोगी आलयम् में भी दिख रही है।
सद्गुरु: मैं पहले भी बता चुका हूँ कि किस प्रकार सप्तऋषि सारे संसार में अलख जगाने निकले। हमने इस विषय पर विस्तृत अध्ययन किया है कि किस प्रकार आठ से बारह हज़ार वर्ष पूर्व, दक्षिण अमेरिका, टर्की व उत्तरी अफ्रीका आदि में लिंग पूजा तथा सारे संसार में सर्पो की पूजा की जाती थी - इसके पुरातात्विक प्रमाण भी मिलते हैं। केवल करीब बीस सदी पूर्व, वह सब नष्ट हो गया और दुनिया के अधिकतर भागों से विलुप्त हो गया, परंतु मूल रूप से, पूरी धरती पर सप्तऋषियों का प्रभाव बना रहा। ऐसी कोई संस्कृति नहीं जिसे आदियोगी के योग विज्ञान से लाभ न हुआ हो। योग हर स्थान तक पहुंचा था - यह किसी एक धर्म, विश्वास तंत्र या दर्शन से नहीं जुड़ा था, यह एक अभ्यास के रूप में बना रहा। बदलते समय के साथ, कुछ रूप परिवर्तन भी हुआ, पर आज भी अनजाने में पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग योग अभ्यासों कर रहे हैं। यह मानवता के इतिहास की इकलौती चीज है, जिसे लोगों पर जबरन थोपा नहीं गया और फिर भी इसका अस्तित्व बना हुआ है।
किसी ने भी किसी के गले पर तलवार रख कर नहीं कहा, ‘योग करो, वरना तुम्हारी गर्दन काट दूँगा।’ इसे लागू करने के लिए कहीं भी बल का प्रयोग नहीं किया गया, पर फिर भी योग पंद्रह से बीस हज़ार वर्षों से चला आ रहा है, हालांकि इसके प्रचार के लिए कभी कोई एक सत्ता नहीं रही है - यह केवल इसलिए हुआ क्योंकि यह प्रक्रिया बहुत ही प्रभावशाली थी। इसके अपने उतार-चढ़ाव रहे पर अब यह नये सिरे से एक बार फिर सामने आ रहा है। वैसे आज भी कई लोग, योग के मूल स्थल पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। कईयों का तो यहाँ तक दावा है कि आजकल जो योग सिखाया जाता है उसे एक यूरोपियन अभ्यास तंत्र से लिया गया था। एक निश्चित संस्कृति को नकारने का प्रयास किया जा रहा है, उस संस्कृति को नकारा जा रहा है जिसने मानवीय चेतना को ऐसा योगदान दिया है, जैसा कभी किसी ने नहीं दिया।
मैं अपनी अंतिम श्वास पूरी करने से पहले, आदियोगी को प्रतिष्ठित रूप में देखना चाहता हूँ। ये आदियोगी की 21 फुट ऊँची प्रतिमाएँ उसी प्रयास का एक अंग हैं। दो-ढाई तक साल इस पर काम करने के बाद, हम ऐसी छवि तैयार कर सके, जिसे देख कर हमें प्रसन्नता हुई। अब हम इस प्रतिमा को प्रतिष्ठित करने की प्रक्रिया में हैं। इनमें से प्रत्येक आदियोगी प्रतिमा के साथ 111 बाई 111 फीट के ढांचे तथा दो से ढाई फीट लंबे प्रतिष्ठत लिंग भी होंगे। ये ध्यान के लिए शक्तिशाली ऊर्जा केंद्रों के तौर पर जाने जाएँगे। इनमें से कुछ उत्तरी अमेरिका में तैयार हो रहे हैं - इनमें से एक यूएस टैनेसी आश्रम में (द ईशा इंस्टीट्यूट ऑफ़ इनर साइंस इन मैकमिनविले), एक सैन जोंस के निकट, एक सिएटल व एक टोरंटो में होगा। अन्य शहरों में भी इसकी संभावना पर विचार हो रहा है। हम यूएस के प्रत्येक शहर में एक, यानी पचास प्रतिमाएँ बनाने का विचार रखते हैं।
भारत में, जब कोई इन कामों को करने का बीड़ा लेगा तो ऐसे स्थान तैयार होंगे। कुछ लोग इस दिशा में कार्य कर भी रहे हैं। भारत के चारों कोनों में आदियोगी की 112 फुट ऊँची प्रतिमाएँ स्थापित की जा रही हैं। अरुणाचल प्रदेश सरकार ने हमें आमंत्रित किया है कि हम उनके शहर में जा कर इसे स्थापित करें, वह देश का ऐसा हिस्सा है, जहाँ सबसे पहले सूर्य उदित होता है। यह मेरी इच्छा है कि भारत में सूर्य की पहली किरण आदियोगी के मुख पर पड़नी चाहिए। धर्म, जाति व लिंग के भेदभाव से परे, लोगों को उन्हें उस योगदान के लिए सराहना चाहिए, जो उन्होंने मानवता के प्रति किया - उन्हें एक देव नहीं बल्कि ऐसे मनुष्य के रूप में सराहा जाना चाहिए जो सारी सीमाओं से परे चले गए - एक मनुष्य जो हो सकता है और जो नहीं हो सकता - वे वह सब कुछ थे। वही थे, जिन्होंने मानवता के लिए इस संभावना के द्वार खोले। उन्होंने न केवल इसके बारे में बताया बल्कि इसे करने का सुनिश्चित तंत्र भी दिया। उनसे पहले, किसी ने भी मानवीय चेतना के लिए ऐसा योगदान नहीं दिया था।
आदियोगी की 112 फुट ऊँची बाकी तीन प्रतिमाओं की बात करें, तो उनमें से एक हम हरिद्वार के रास्ते, उत्तराखंड में ; दूसरी कन्याकुमारी में तथा तीसरी सीमा के पास राजस्थान में लगवाना चाहते हैं। देश के चारों हिस्सों में, आदियोगी की विशाल और प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ होंगी, जिन्हें लोग उपेक्षित नहीं कर सकेंगे। हम आदियोगी पर एक क़िताब भी प्रकाशित करेंगे। उन्हें एक मनुष्य के तौर पर देखना बहुत महत्व रखता है - तभी यह संभावना बनेगी कि आप उनके जैसा बनना चाहें। कृष्ण हों या राम, जीसस हों या फिर कोई और भगवान, ज्यों ही आप उन्हें देवता के तौर मान्यता देते हैं - तो आपके उनके जैसा नहीं बनना चाहते। यही तो समस्या है। मैं तो सबको लगातार यही याद दिलाता रहता हूँ कि आदियोगी एक मनुष्य से अधिक थे, पर फिर भी काफ़ी हद तक मनुष्य ही थे। हर मनुष्य अपनी अलग पृष्ठभूमि के बावजूद, वैसा बनने की संभावना रखता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या जानता है और क्या नहीं जानता। अगर वे कुछ निश्चित काम करने की इच्छा रखते हैं, तो जीवन में उनके पास सबसे परे जाने की संभावना अपने-आप आ जाती है। सबको योग का वरदान देने वाले आदियोगी को सराहने, और इसे एक बड़े प्रसंग में बदलने के लिए ही आदियोगी की प्रतिमाओं को स्थापित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त यथासंभव 21 फुट ऊँची प्रतिमाओं की स्थापना भी होगी।
मैं खुद जो भी हूँ, वह इसी विज्ञान की देन है, जो हम सबको निःशुल्क रूप से उपलब्ध है। मान लें कि अगर मेरी युवावस्था में, जब मैंने इसे अपनाया और अगर उन्होंने इस पर शर्त लगा दी होती, ‘योग करना है तो आपको गुरु पूजा करनी होगी।’ तो मैं उठ कर चला गया होता। अगर उन्होंने मुझे प्रणाम करने या दीपक जलाने को कहा होता तो भी शायद मैं उठ कर आ जाता। ऐसी कोई पाबंदी नहीं थी। मुझे केवल योग करने के लिए निर्देश दिए गए थे। आदियोगी ने जो योग विज्ञान दिया, यदि वह न होता तो मैं वह कभी नहीं बन सकता था, जो आज मैं हूँ। वे सभी धर्मों से परे हैं। योग आधुनिक युग के लिए इतना अनमोल इसलिए है, क्योंकि हम केवल बुद्धि के जाल में उलझ कर रह गए हैं। जो समस्या मेरी युवावस्था में थी - मैं दीपक नहीं जला सकता था, झुक नहीं सकता था, मंदिर में कदम नहीं रख सकता था, अगर कोई मंत्र पढ़ता तो मैं वहाँ से हट जाता - वह मेरी बुद्धि की ही तो समस्या थी।
मैं चाहता हूँ कि आदियोगी का नाम हर स्थान पर लिया जाए और सबको इस योग विज्ञान के बारे में जानकारी हो। जो भी आदियोगी के स्थान पर आएगा, वह इन 112 उपायों में से अपने लिए एक चुन पाएगा, और तीन मिनट की साधना के साथ आरंभ कर पाएगा।
बुद्धि पर जितना बल दिया जा रहा है, लोगों के लिए परेशानी उतनी ही बढ़ती जा रही है। जब यह समस्या सामने हो तो योग ही एकमात्र वैज्ञानिक उपाय के रूप में शेष रहता है। इसके अलावा बाकी सब तो लोगों को विभाजित करता है। और अब मानवता के लिए वह समय दूर नहीं है। वह समय आने से पहले, मैं चाहता हूँ कि आदियोगी का नाम हर स्थान पर लिया जाए और सबको इस योग विज्ञान के बारे में जानकारी हो। ये प्रतिमाएँ 112 फुट ऊँची होंगी क्योंकि आदियोगी ने संसार को वे 112 उपाय दिए जिनके माध्यम से मनुष्य मोक्ष पा सकता है। हम आपके लिए इसे सरल बनाना चाहते हैं, और वे 112 बातें बताना चाहते हैं जो आप कर सकते हैं। इनमें से आपको केवल एक काम करना है। यही आपके जीवन को सबसे सरल तरीके से रूपांतरित कर देगा।
जो भी आदियोगी के स्थान पर आएगा, वह इन 112 उपायों में से अपने लिए एक चुन पाएगा, और तीन मिनट की साधना के साथ आरंभ कर पाएगा। हर कोई तीन मिनट का निवेश कर सकता है। अगर यह उनके लिए काम करे तो साधना की अवधि बढ़ा कर 6, 12 या 24 मिनट तक कर सकते हैं। हम आने वाले दशक में यही तो करना चाहते हैं, सभी धर्मो, जातियों व लिंगों के भेदभाव से परे - सबके जीवन में सरल आध्यात्मिक अभ्यास होंगे।
जो भी कोई इस अभियान में हमारा साथ देना चाहे, वह हमारे साथ खड़ा हो सकता है, क्योंकि लोगों के जीवन में आध्यात्मिक अभ्यासों को शामिल करना, मानवता के प्रति सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदानों में से एक होगा।