सद्गुरु ने प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान कहा कि नेपाल की इस लिंग भैरवी की कुछ अलग ही शक्तियाँ हैं। आइए जानते हैं देवी की शक्ति के बारे में, जो तर्क के आगे का एक आयाम है और आज जीवन को ऊंचाइयों पर ले जाने और जीवन के चमत्कार को अनुभव करने के लिए इसकी क्यों जरूरत है।
सद्गुरु: काठमांडू के इस मंदिर में... यह क्षेत्र देवी के मंदिरों के लिए नया नहीं है। यहाँ कई तरह के देवी के मंदिर हैं लेकिन अधिकांश मंदिर बहुत समय पहले स्थापित किए गए थे। इन प्राचीन मंदिरों की स्थापना कुछ इस तरह से हुई है कि यहाँ नियमित अर्पण और देखभाल की ज़रूरत होती है। उस मायने में लिंग भैरवी एक आधुनिक स्त्री हैं, उन्हें कम देख-रेख की आवश्यकता है, क्योंकि उन्हें बनाया ही इस तरह से गया है।
उनकी प्रतिमा को पारे से बनाया गया है, जो एक प्रकार से इस ग्रह का सबसे लचीला पदार्थ है और हमने इस पदार्थ को ठोस रूप में परिवर्तित किया है जिससे उसकी ऊर्जा इधर-उधर छलकती न रहे। आज यहाँ हमारे सामने जो लिंग भैरवी हैं उन्हें वैसा बनाने के लिए पिछले 3 महीनों से एक बहुत ही तीव्र प्रक्रिया चल रही थी, जिसमे मुख्यतया मेरे अलावा भारत और नेपाल की कुछ महिलाएँ शामिल थीं।
इसका मुख्य यंत्र एक त्रिकोण के आकार का है जो ठोस पारे से भरा हुआ है।
इसका एक अलग आयाम है। आज तक हमने जितनी भी भैरवी-प्रतिष्ठा की हैं, उनसे अलग इनमें तीसरे नेत्र की ख़ास-तौर पर प्रतिष्ठा की गई है। इसलिए करुणामयी होने से कहीं ज़्यादा ये तीव्र हैं। क्योंकि नेपाल के लोग पहले से ही देवी को बहुत मानते हैं - उनकी संस्कृति में समर्पण बड़ी सामान्य बात है। नेपाल में लोग प्रेम और करुणा में ज़्यादा डूबे हुए हैं, इसलिए मुझे लगा कि यहाँ एक अलग ही स्तर की तीव्रता की ज़रूरत है जो आपके भीतर आग भर दे।
देवी सिर्फ़ भावनाओं से भी चल सकती हैं, जो अपने आप में सुंदर, काव्यात्मक और अद्भुत है। काव्य आपको आनंदित, मंत्रमुग्ध करता है और यह मनोरंजक भी हो सकता है लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं होता। तो इस विशेष प्रकार की देवी का एक अलग आयाम भी है - यहाँ हमने इनके तीसरे नेत्र को बहुत शक्तिशाली बनाया है। वे आपको भौतिक सुख-सुविधा देने की जगह मुक्ति की तरफ ले जाती हैं। इनके दोनों ही आयाम ठोस पारे से बनाए गए हैं।
इसमें बहुत कार्य किया गया है जो कि ईशा योग केंद्र के एक बहुत ही शक्तिशाली और पवित्र स्थान में संपन्न हुआ है।
इनका एक आयाम और है - ऊपर के 5 कलश, ये भी ठोस पारे से शक्तिशाली बनाए गए हैं।
देवी की स्थापना एक मूलाधार, एक स्वाधिष्ठान, एक मणिपूरक और आधे अनाहत से की गई है। तो इसलिए इसमें साढ़े तीन चक्र विद्यमान हैं। कोई प्रेम नहीं, केवल करुणा।
जब मैं स्त्री-गुण के बारे में बात करता हूँ तो मैं स्त्री के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ। स्त्री एक लिंग भेद है। स्त्री-गुण एक आयाम है। पुरुष-गुण और स्त्री-गुण के बिना कोई जीवन नहीं है। ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी भौतिक है वह दो विपरीत आयामों के बीच की जुगलबंदी है।
स्त्री-गुण को वापस लाने का यह सबसे अच्छा समय है, क्योंकि आज पुरुष की शारीरिक शक्ति बहुत मायने नहीं रखती है। यदि हम मानवता का इतिहास देखें तो आज हमारे जीवन संरक्षण का काफी अच्छा प्रबंध किया जा चुका है। हमारा भोजन, परिवहन और संचार पहले से कही बेहतर तरीके से सुव्यवस्थित किए जा चुके हैं। यही समय है एक बेहतरीन सभ्यता के निर्माण का - जो स्त्री-गुण के उदय के बिना संभव नहीं है। पुरुष गुण केवल जीत की परवाह करता है। स्त्री-गुण सबको अपने में शामिल करता है।
वह मूल ध्वनि जो स्त्री-गुण को बताती है वह है 'री'। 'री' का मतलब है 'गति', समावेश और आलिंगन। स्त्री-गुण का यही स्वभाव है। यदि आप सृष्टि को स्त्री-गुण और पुरुष-गुण के रूप में देखें तो वह सब कुछ जो भौतिक है, पुरुष-गुण है, और वह जो इस भौतिक पदार्थ को अपने स्थान पर स्थिर रखता है, स्त्री-गुण है। और वह जो इन सबसे परे है उसे हम 'शिव' कहते हैं जो न तो स्त्री-गुण है और न ही पुरुष-गुण है बल्कि इन दोनों से परे है।
देवी शब्द 'दिव' से आया है। 'दिव' मतलब स्पेस (स्थान)। यह स्पेस ही है जिसने ब्रह्मांड के सारे भौतिक पदार्थों को धारण किया हुआ है। यहाँ ग्रह, सूर्य और आकाशगंगाएं हैं लेकिन ये भी काफी छोटी घटनाएं हैं। यहाँ सबसे बड़ी घटना है स्थान यानी स्पेस। लेकिन अधिकांश लोग इसे देखने में चूक जाते हैं क्योंकि हमारे देखने की इन्द्रियाँ इस तरह से बनी हैं कि हम केवल वही देख सकते हैं जो प्रकाश की किरणों को रोक सके। लेकिन ये वायु जो आप नहीं देख सकते, अगर यहाँ मौजूद नहीं होती तो आज आप और हम जीवित नहीं होते।
तो आप जिसे देख नहीं सकते उसी ने आपके जीवन को इस समय संभाल रखा है और वह स्पेस जिसे आप देख नहीं सकते वह सब कुछ धारण किए हुए है। स्त्री-गुण और पुरुष-गुण एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं। ये दो आयाम हैं जो एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे के होने का कोई सवाल नहीं है। पुरुष-गुण के बिना कोई स्त्री-गुण नहीं होगा और स्त्री गुण के अभाव में पुरुष गुण का होना संभव नहीं है।
आज 21वीं सदी में दिव्य स्त्री गुण की स्थापना और उसका पुनरुत्थान बहुत आवश्यक है। क्योंकि आज हमारे जीने के संसाधन पहले से कहीं ज़्यादा सुव्यवस्थित हैं लेकिन हम अपने जीने के लिए जरूरी सुख-सुविधाओं का स्तर निरंतर बढ़ाते जा रहे हैं। यह पुरुष-गुण का स्वभाव है।
सभी को यह ज़रूर करना चाहिए - आप अपने जीने के स्तर को अपने अनुसार तय कीजिए। उतना हासिल करने के बाद अपने जीवन में कुछ ऐसा कीजिए जिसकी आप सचमुच परवाह करते हैं या अपने अंतरतम से करना चाहते हैं। अगर आप अपने जीने के स्तर को एक जगह स्थिर नहीं करेंगे तो आप अपना बाक़ी जीवन एक दास बनकर गुजारेंगे, हमेशा इसके या उसके पीछे भागते हुए।
मेरे विचार से हमारी शिक्षा प्रणाली में संगीत, सौंदर्य और विभिन्न कला क्षेत्रों को उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए जितना कि गणित, विज्ञान और बाकी विषयों को दिया जाता है। केवल तभी हमारी सभ्यता संतुलित रहेगी। नहीं तो हर कोई एक आवेश में केवल इधर-उधर भाग रहा है। आप उसे करियर कहिए या कारोबार - मैं उसे आवेश में इधर-उधर भागना कहता हूँ क्योंकि आख़िरकार होता यही है।
अगर आपको मुझ पर यकीन नहीं है तो सारे जीवों से पूछिए। पिछले 25 सालों के आर्थिक विकास के दौरान उनके जीवन के साथ क्या हुआ है? वे कहेंगे ये केवल भाग-दौड़ नहीं, बल्कि यह प्रजातियों का संहार है। लोग कहते हैं, ‘चींटी, गौरैया या टिड्डे की प्रजाति के विलुप्त होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम उनके बिना रह सकते हैं।’ नहीं, ऐसा नहीं है और हमें यही समझने की ज़रूरत है।
आपको स्त्री-गुण की आवश्यकता यह समझने के लिए है कि आप बाकी जीवों के बिना नहीं रह सकते। हाँ, वे हमारे बिना बहुत अच्छी तरह से रह सकते हैं। आप उनके बिना इसलिए नहीं रह सकते क्योंकि आप जिसे एक गन्दा कीड़ा समझते हैं वह आपके कल्याण के लिए निरंतर काम कर रहा है। इसलिए हम तार्किक रूप से जो नतीजे निकालते हैं और जिस तरह से जीवन असल में है – ये दोनों बिलकुल अलग चीजें हैं।
स्त्री-गुण का महत्व यह है कि इसकी उपस्थिति में आपके जीवन का अनुभव आपके तर्क की सीमाओं से आगे रहेगा। तर्क केवल जीवन-यापन के लिए उपयोगी है। यहाँ हज़ारों वर्ष बिताने के बाद भी, विज्ञान और भौतिकी की इतनी जानकारी हासिल करने के बाद भी, आज दुनिया में इतना कुछ करने की क्षमता हासिल करने के बाद भी जो आज से 100 साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था, लोग पहले से कहीं ज़्यादा हताश हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जीवन यापन के मानदंड को लगातार बढ़ाया जा रहा है।
एक बार आप अपने जीवन-यापन की प्रवृत्ति को विराम दें तो स्वाभाविक रूप से आपमें स्त्री-गुण का वर्चस्व रहेगा। ‘मैं एक पुरुष हूँ, अगर मुझमें स्त्री-गुण का वर्चस्व रहे तो क्या मैं स्त्रीवत नहीं हो जाऊँगा?’ नहीं, आप शानदार हो जाएँगे।
आपने आदियोगी को देखा ही है - एक सुपर-मैन। उनका आधा भाग स्त्री है। वे विकृत नहीं थे, बल्कि संपूर्ण रूप से संतुलित थे। आपमें इस समय स्त्री-गुण और पुरुष-गुण दोनों काम कर रहे हैं। अगर आप एक को दबाकर या मारकर केवल दूसरे को ही रखते हैं तो आप विकृत हो जाएँगे। आपके जीवन में चाहे जो हो, आप हमेशा असंतुलित लगेंगे।
अगर आप अपने जीवन में स्त्री-गुण को साकार करना चाहते हैं, अगर आप ख़ुद में एक ऐसा आयाम विकसित करना चाहते हैं जो तर्क के परे हो, जो अकारण ही बस जादुई हो, केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि उसका सहज रूप ही चमत्कारिक हो, अगर आप उसे अपने जीवन में लाना चाहते हैं तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके लिए जीवन-यापन का क्या मतलब है। उसके बाद आप जीवन के चमत्कार में अपना निवेश कर सकते हैं। यहाँ कुछ ऐसा नहीं जो चमत्कार नहीं है।
भैरवी के यहाँ होते हुए, आप कैसे जीते हैं और आपके जीवन का अनुभव कैसा है यह आपके परीक्षा में हासिल अंकों से नहीं, आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा और आपके जीवन-दर्शन से नहीं बल्कि जीवन प्रक्रिया से निश्चित होना चाहिए। अगर आप जीवन के प्रति जागरूक हैं तो यह एक तरह से होगा। अगर आपके पास जीवन के बारे में सिर्फ़ विचार हैं तो ये अलग तरह से होगा, यह जीवन नहीं होगा, बल्कि मानसिक मायाजाल को जीवन समझ लिया जाएगा।
देवी का मक़सद यही है कि हम जीवन के प्रति जागरूक बनें, न कि समाज, सिद्धांत, विचारधारा और धर्मग्रन्थ के प्रति। जीवन हर क्षण कुछ कह रहा है लेकिन इसे कोई नहीं सुन रहा है क्योंकि हमारे अंदर ही इतना शोर है, और अब तो आपके फ़ोन भी लगातार बजते रहते हैं। अपने अस्तित्व की प्रकृति को जाने बिना इस दुनिया से चले जाना सबसे बड़ा अपराध होगा। अधिकांश लोग आपके जैसे ही हैं, लेकिन इस वजह से यह सही नहीं हो जाएगा।
आपको मन में सोचना होगा - आप यहाँ जीवन को अनुभव करने के लिए हैं या अपने आसपास के किसी इंसान के सामने कुछ बकवास को सिद्ध करने के लिए हैं? आपके आसपास की हरेक चीज सिर्फ़ इसलिए क़ीमती है क्योंकि आप जीवित हैं। देवी को स्थापित करने का यह एक महत्वपूर्ण पहलू है : गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक और उसके आगे भी, जीवन के हरेक पहलू के लिए वैज्ञानिक तौर पर रची हुई प्रक्रियाएँ हों।
यह केवल स्वस्थ, शांत और आनंदित रहने के बारे में नहीं है - यह जीवन को ऊंचा उठाने के बारे में है। खुद को महत्वपूर्ण बनाने के लिए कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। आपका जीवन इस बात से महत्वपूर्ण नहीं होता है कि आप अपने बारे में क्या सोचते हैं, बल्कि इसलिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह समृद्ध हुआ है। यह इसी के बारे में है कि आपने कितना जीवन ग्रहण किया है?
अपने शरीर को स्वस्थ रखना, अपने मन को शांत और आनंदित रखने का मतलब है कि आपकी शारीरिक और मानसिक अवस्था जीवन का सहयोग करती है लेकिन जीवन को अभी घटित होना बाक़ी है। यह अधिकांश लोगों के अनुभव में नहीं होता क्योंकि वे अपनी शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं में ही उलझे रहते हैं। जीवन को अनुभव करने के लिए आपको इन दोनों आयामों से परे जाना होगा।
जब आप जीवन को अपनी शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं की सीमाओं से परे जाकर अनुभव करते हैं तब जीवन को समृद्ध करने के रास्ते खुलते हैं। देवी इसी के लिए हैं। देवी शांतिपूर्ण या आनंदित रखने के लिए नहीं हैं। विडम्बना यह है कि वे पैसे, सफलता और समृद्धि के उद्देश्य को भी पूरा करती हैं, लेकिन वे केवल इन सब के लिए नहीं हैं। यह दुःख की बात है कि उन्हें यह सब करना पड़ता है नहीं तो आप फूल ख़रीदने के लिए एक रुपया भी खर्च नहीं करते। उन्हें मेरी ही तरह यह सब भी करना पड़ता है। मुझे कहना पड़ता है कि आपका पीठदर्द और सिरदर्द चला जाएगा लेकिन वास्तव में मैं इसके लिए नहीं हूँ। वे किसी और मक़सद के लिए हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको जीवन का एक बड़ा बुलबुला बनना है। वैसे भी एक दिन आप फटने वाले हैं। कम से कम इसे बड़ा बनाइए ताकि आप अपने अस्तित्व का महत्व समझ पाएं। प्रत्येक इंसान को यह अनुभव लेना चाहिए क्योंकि मानव को ही यह सौभाग्य हासिल है, किसी दूसरे जीव को नहीं। आपको ज़रूर इसका लाभ उठाना चाहिए।