7 मार्च 2023 की पूर्णिमा की रात 3000 से भी ज़्यादा प्रतिभागियों ने काठमांडू, नेपाल में सद्गुरु द्वारा की गई लिंग भैरवी की प्राण-प्रतिष्ठा में भाग लिया और एक अद्वितीय अनुभव में डुबकी लगाई।
बसुंधरा में उस दिन सूरज अपने तेज में दमक रहा था, सूर्य की किरणें प्रतिभागियों के लाल-सफ़ेद वस्त्रों से टकराकर उनकी चमक को बढ़ा रही थीं। ये प्रतिभागी बहुत समय से प्रतीक्षित लिंग भैरवी की प्राण-प्रतिष्ठा में भाग लेने के लिए मुख्य-द्वार पर कतार में खड़े थे। उन्हें एक छोटी, किंतु बहुत ही ख़ास जगह में प्रवेश करना था। यह जगह कभी एक उदार महिला का घर हुआ करता था, उसने ये घर अब दान में दे दिया था जिसे सद्गुरु देवी के पवित्र मंदिर में रूपांतरित करने वाले थे।
इसकी नेपाली शैली की बनावट जिसमें ऊँचे दर्जे की बारीकी है, इस स्थान को और भी खूबसूरत और मोहक बनाती है।
कुछ देर के बाद जब लिंग भैरवी देवी स्तुति का मंत्रजाप वातावरण में गूंजने लगा, तब आनंद और कौतुहल को माहौल में स्पष्ट महसूस किया जा सकता था।
ठीक 6:30 बजे, ढोल और शंख की ध्वनि ने सद्गुरु और देवी के आगमन का संकेत दिया।
बाजे-गाजे के बीच सद्गुरु मंदिर की ओर जाने लगे और उनके पीछे-पीछे नेपाली उपासक पारे का यंत्र लिए हुए चल रहे थे। जब सद्गुरु प्रतिभागियों के बीच से गुज़रे तो प्रतिभागियों के बीच तीव्रता की एक लहर दौड़ गई।
जैसे ही वे मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे, मंदिर के परदे खोल दिए गए और भीतर के पवित्र स्थान की पहली झलक देखने को मिली जहाँ देवी की प्रतिमा एक लाल रंग के 'जय भैरवी देवी' वस्त्र में लिपटी हुई थी।
बिना किसी देरी के सद्गुरु ने आरती और यज्ञ अग्नि जलाकर प्राण-प्रतिष्ठा प्रारम्भ कर दी।
सद्गुरु के निर्देशन में प्रतिभागियों ने एक बड़ी ही सावधानी से तैयार की गई प्रक्रिया को करना शुरू किया, जिसमें हाथों को एक निश्चित दक्षिणावर्ति और वामवर्ति दिशाओं में घुमाते हुए एक बीज मन्त्र का जाप करना था। इस प्रक्रिया ने सम्पूर्ण वातावरण को ऊर्जा से भर दिया था।
ईशा फाउंडेशन के अपने संगीत बैंड 'साउंड्स ऑफ़ ईशा' ने शक्तिशाली देवी मंत्र, गीतों और ढ़ोल-नगाड़ों के मिश्रित तारतम्य से वातावरण को गुंजायमान कर दिया था।
कुछ प्रतिभागी बड़े ही ध्यान से प्रतिष्ठा की प्रक्रिया देख रहे थे और कुछ आँखें मूंदकर शक्तिशाली ऊर्जा की तीव्रता को ग्रहण करने की कोशिश कर रहे थे।
सद्गुरु ने बाक़ी पदार्थों जैसे कि पारा, विभूति, हल्दी, कुमकुम, दीमक वाली मिटटी, नीम, बेलपत्र आदि के साथ प्रतिष्ठा की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। उन्होंने मंदिर के ऊपर 5 कलशों को स्थापित करने के लिए ऊर्जावान पारे का आधार बनाया। सद्गुरु ने देवी प्रतिमा के अंदर पारे से बना मुख्य यंत्र और उनके तीसरे नेत्र की स्थापना की।
करीब 3.5 घंटे की सम्पूर्ण तीव्रता के बाद सद्गुरु ने अल्पाहार के लिए एक छोटे से ब्रेक (अंतराल) की घोषणा की। लेकिन उन्होंने सबको इस बात के लिए सावधान किया कि प्रक्रिया अभी समाप्त नहीं हुई है, इसलिए शांति, उत्साह और ज़रूरी वातावरण बनाए रखना है। इस छोटे से अंतराल के दौरान भी लिंग भैरवी का 'लम वम' मंत्र जाप निरंतर गूँजता रहा। इसी बीच देवी को पवित्र शिला पर स्थापित कर उन्हें एक परदे में ढँक दिया गया।
ब्रेक के बाद सद्गुरु ने मंदिर के भीतरी गर्भ-गृह में प्रवेश कर परदे को खींचते हुए देवी को प्रकट किया। इस दौरान नगाड़ों और मन्त्रों की ध्वनियों ने सम्पूर्ण वातावरण को जैसे सम्मोहक बना दिया था।
प्रतिभागी परमानन्द और विस्मय की अवस्था में थे, कुछ भक्ति में आँसू बहा रहे थे, कुछ आनंद में चीख रहे थे और कुछ प्रसन्नता से नाच रहे थे। यह एक हर्षोन्माद से भरा उत्सव था।
सद्गुरु ने देवी को उनके पहले कुमकुम, माला और नेपाल के एक पारम्परिक नेकलेस से सुशोभित किया।
अगले सत्र में सद्गुरु ने मंदिर में उपलब्ध कई प्रकार की धार्मिक प्रक्रियाओं और अर्पण के बारे में बताया। राधे के साथ 2 नेपाली लड़कियों ने इन प्रक्रियाओं का प्रारम्भ करते हुए वाल्मिकम सर्प सेवा (देवी के मंदिर में आपस में गुथे हुए 2 सर्पों की प्रतिमा की भेंट), नेई दीपम (घी का दीप) प्रज्वलन और त्रिशूल पर मांगल्या बाला सूत्र (पवित्र हल्दी से लपेटा हुआ धागा) बांधा।
जैसे ही सद्गुरु बाहर बैठे प्रतिभागियों के बीच जाने के लिए बाहर निकले, देवी के लिए पहले पूर्णिमा अभिषेक की तैयारियाँ शुरू कर दी गईं।
जैसे-जैसे ये प्रक्रिया आगे बढ़ी, सद्गुरु प्रवेश द्वार पर बैठे-बैठे देवी को विभिन्न श्रृंगारों में सुशोभित होते हुए देख रहे थे जैसे कि नवनीतम (मक्खन), हल्दी, चंदन, कुमकुम। देवी को चढ़ाए जाने वाले अर्पण की प्रक्रिया ईशा संस्कृति के बच्चों के मनोहर नृत्य के साथ प्रस्तुत हुई।
आरती को सारे प्रतिभागियों के बीच दिया गया।
प्रतिष्ठा के अंत में सद्गुरु ने एक छोटा सा संदेश दिया जिसके बाद प्रश्न-उत्तरों का सिलसिला शुरू हुआ। उन्होंने मंदिर के महत्व और विशिष्टताओं के बारे में बताते हुए स्थानीय स्वयंसेवकों को देवी का ध्यान रखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने नेपाल में आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कृत्रिम कुमकुम की जगह प्राकृतिक और ऊर्जा प्रदान करने वाले देवी के कुमकुम का उपयोग करने के लिए कहा।
प्रतिष्ठा प्रक्रिया के समापन और सद्गुरु के चले जाने के बाद भक्तगण देवी के दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने के लिए बड़ी संख्या में मंदिर के पवित्र स्थान के पास उमड़ने लगे।