काठमांडू में लिंग भैरवी की प्राण-प्रतिष्ठा के दो दिन बाद ‘भैरवी उत्सव’ का आयोजन करके नेपाल में लिंग भैरवी देवी का स्वागत किया गया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण नेपाल के लोगों को देवी का परिचय देने के लिए था। विशेष अतिथियों ने, जिसमें माननीय पूर्व प्रधानमंत्री श्री के.पी. शर्मा ओली और माननीय उप प्रधानमंत्री श्री नारायण काजी श्रेष्ठा शामिल थे, मंत्रिमंडल और संसद के सदस्यों के साथ कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
कार्यक्रम की शुरुआत में साउंड्स ऑफ़ ईशा ने भक्ति और नेपाली गीत गाकर समाँ बाँध दिया। उसके बाद प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान हुए देवी अभिषेक की झलकियों की विडियो दिखाई गई। जिसके उपरांत देवी की प्रतिमा के अभिषेक को छोटे रूप में पेश किया गया। फिर ब्रह्मचारियों और स्वयंसेवकों ने शक्तिशाली आरती और अग्नि-नृत्य पेश किया।
इसके बाद उस शाम का मुख्य आकर्षण था - ‘निरैव भैरवी,’ देवी महात्म्य के छंदों और प्रख्यात कवि सुब्रमणियम भरतियार की रचना से प्रेरित, प्रोजेक्ट संस्कृति के बच्चों की नृत्य प्रस्तुति (प्रोजेक्ट संस्कृति इस माह से काठमांडू में व्यक्तिगत तौर पर कार्यक्रम करने वाला है जिसमें शक्तिशाली संस्कृत मंत्रोच्चारण, शास्त्रीय संगीत, नृत्य और भारतीय प्राचीन मार्शल आर्ट- कलरिपयट्टू शामिल है)। इस प्रस्तुति ने शक्ति के कई पहलुओं, जैसे सर्वव्यापकता, अज्ञानता और बुराई की नाश करने वाली, और ब्रह्मांड को जोड़ने वाली शक्ति, का उत्सव मनाया।
कार्यक्रम का वह हिस्सा जिसकी सबसे ज़्यादा प्रतीक्षा थी, वह था सद्गुरु के साथ सत्संग, जिसमें उन्होंने नेपाल के लोगों को लिंग भैरवी की भेंट दी। सत्संग के दौरान सद्गुरु ने अपने अस्तित्व की पूर्ण क्षमता को खोजने के महत्व पर ज़ोर दिया: “जब आप अपनी पूर्ण क्षमता को नहीं खोज पाते हैं, तो वह सबसे बड़ी हानि है। आपको यह पता भी नहीं होता कि आप इसे खो चुके हैं। वो चीज़ें जो संभव थीं उन्हें जाना ही नहीं गया - यह सबसे भयानक नुक़सान है।”
उन्होंने सांस्कृतिक समृद्धि और अपनी आध्यात्मिक परम्पराओं को जीवित रखने के लिए नेपाल की सराहना की। सद्गुरु ने इस उम्मीद को दर्शाते हुए मंदिरों के रख-रखाव के विषय को छुआ कि भैरवी का आगमन इसके बहुत से पवित्र स्थलों के पुनर्जीवन और बेहतर देख-रेख के लिए प्रेरित करेगा। “वे अद्भुत साधन हैं जिनका इस्तेमाल बहुत ही बुनियादी रूप में हो रहा है। इसलिए मैंने सोचा चलिए उसे प्रेरित करते हैं। भैरवी को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करके, हम उम्मीद करते हैं आप में से बहुत से लोग इस गौरवशाली देश में कई चीज़ों को पुनर्जीवित करेंगे।”
सद्गुरु ने इस विषय पर भी बात की कि कैसे मंदिर का गर्भ-गृह पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित किया जाता है। उन्होंने नेपाल की महिलाओं को प्रेरित किया कि वो बढ़-चढ़कर इस ज़िम्मेदारी को लें, और कहा कि 6-8 महीनों के अंदर यहाँ एक नेपाली महिला होनी चाहिए जो मंदिर की देख-रेख कर रही हो।
‘इसके लिए बहुत प्रशिक्षण, समर्पण और प्रयास की ज़रूरत है। इसमें बहुत काम होता है। आपमें इसे करने की इच्छा होनी चाहिए। और यह कड़ी मेहनत नहीं है। अगर आपके दिल में भक्ति है, कुछ भी कड़ी मेहनत नहीं है।’
सद्गुरु ने श्रोताओं के बहुत से सवालों का जवाब देते हुए सत्संग की समाप्ति की। एक सवाल आया कि सनातन धर्म (उन सिद्धांतों या नियमों की रूपरेखा जो हमेशा से जीवन को संचालित करते हैं) को हज़ारों सालों तक कैसे जीवित रखा जाए, जिसके जवाब में सद्गुरु ने देश के क़ानून बनाने वालों से अपील की कि मंदिरों को किसी भी रंग, जाति, धर्म, देश के लोगों के लिए खुला रखा जाए। सदगुरु ने यह समझाया कि मंदिर में विदेशी लोगों को प्रवेश न करने देने की प्रथा किसी और समय का अवशेष है, जो आज के समय में सही नहीं है। सद्गुरु ने सभी मंदिरों को कहा कि कोई भी बाहरी व्यक्ति जो सही मायने में मंदिर के स्थानों का अनुभव करना चाहता है उसका स्वागत करें।