जीवन के प्रश्न

जीवन में चरित्र-निर्माण कितना महत्वपूर्ण है?

चरित्र को सदा एक गुण की तरह बताया जाता है और अक्सर इस तरह की बात कहकर कि, ‘कड़ी मेहनत से चरित्र का निर्माण होता है', इसके महत्व को दिखाया जाता है। सद्‌गुरु अपने अनोखे अंदाज़ में इस बात को बदल रहे हैं। यह आलेख एक कदम पीछे हटकर ये सोचने में मदद करेगा कि चरित्र वाकई में है क्या, और क्या हमें इसे हर क़ीमत पर प्राथमिकता देनी चाहिए? 

प्रश्नकर्ता: मैं एक साधारण परिवार से हूँ। मैंने लोगों को उनकी सच्ची क्षमताओं को जानने, उनकी मानसिकता को बेहतर करने और उन्हें एक ऐसा इंसान बनाने में जो अपने जुनून को जिए, मदद की और इसी काम को एक कारोबार के रूप में भी शुरू किया। मैं उन सब लोगों की मदद करना चाहता हूँ जो मेरी तरह खोए हुए थे, जिन्हें नहीं पता कि क्या चीज़ उन्हें आगे बढ़ा सकती है। मुझे अपना चरित्र किस तरह का बनाना चाहिए ताकि मैं लोगों की सेवा कर सकूं और बदले में ख़ुद भी खुश रह सकूं?

आधुनिक जीवन के प्रवाह को दिशा देना

सद्‌गुरु: सतही तौर पर जब हम ख़ुद को देखते हैं तब कोई भी दो लोग एक सी चीज़ों को पसंद नहीं करते। ऐसा क्यों है कि एक आदमी एक चीज़ पसंद करता है और दूसरा बिलकुल अलग चीज़ पसंद करता है? ये इस पर निर्भर करता है कि आपको कैसी परवरिश मिली है और आप कैसी चीजों के संपर्क में आए हैं। आप जिस तरह से ढले हैं, इसमें से बहुत कुछ अचेतन रहा है। सवाल है कि आपको इस तरह से कौन प्रभावित कर रहा है?

माता-पिता ने पूरी कोशिश की, लेकिन पिछले 20-25 सालों से माता-पिता का ये प्रभाव काफ़ी कम हो गया है।  एक समय था जब दादियाँ सबसे ज़्यादा प्रभावित करती थीं। अब कौन अपनी दादी की बात सुनता है? ज़रूरत पड़ी तो सब गूगल से सलाह ले लेंगे। तो उन लोगों का प्रभाव घट रहा है जो आपकी सबसे ज़्यादा भलाई चाहते हैं – चाहे वे गलत हों या सही।

आजकल बच्चे उन लोगों के प्रभाव में आ रहे हैं जिन्हें वे जानते भी नहीं, सड़क पर, ऑनलाइन, स्कूल में या जहाँ कहीं भी वे जाते हैं। अगर हम इस बड़े बहाव को सावधानी और ज़िम्मेदारी से नहीं सँभालेंगे तो ये बड़ी आपदा बन सकती है, क्योंकि वे लोग, जिन्हें आपकी कोई परवाह नहीं है, आपको ढालने की कोशिश कर रहे हैं।

हमारे पास जो कुछ भी आता है, वह मुख्य रूप से उस दौर का परिणाम होता है जिसमें हम रह रहे हैं। लेकिन हमारे पास जो आता है उससे हम क्या बनाते हैं, वह पूरी तरह हम पर है।

अब सवाल यह भी है कि जो लोग सच में आपकी भलाई सोचते हैं, क्या उनके पास जीवन की सही समझ है? ज़रूरी नहीं है कि हो। माता-पिता हमेशा और अधिकतर आपका बहुत ख्याल रखते हैं। उनका ये ख्याल रखना तब बहुत अच्छा था जब आप एक छोटे बच्चे थे। जब आप एक नन्हे शिशु थे, आपकी माँ बहुत अच्छी थीं। जब आपने यहाँ-वहाँ भागना शुरू किया, आपके पिता ने आपको सिखाया कि कैसे कूदते हैं, कैसे चढ़ते हैं, और भी बहुत कुछ, जो बहुत अच्छा था। जब आप 12 या 13 साल के हुए उनकी बातें आपको बचकानी लगने लगीं, जबकि वे यह सोच रहे थे कि आप बच्चे हैं। ऐसा आजकल और ज़्यादा हो रहा है क्योंकि बच्चे आजकल बहुत छोटी उम्र से ही बहुत सारी चीज़ों के संपर्क में आ रहे हैं।

आपके मन में सवाल आ सकता है कि ये अच्छा है या बुरा? मैंने कभी भी जीवन को अच्छे-बुरे के रूप में नहीं देखा। हमारे पास जो कुछ भी आता है, वह मुख्य रूप से उस दौर का परिणाम होता है जिसमें हम रह रहे हैं। लेकिन हमारे पास जो आता है उससे हम क्या बनाते हैं, वह पूरी तरह हम पर है। आप जिसे चरित्र कह रहे हैं, वे वो गुण हैं जिन्हें आपको राह दिखानी चाहिए।

कैरेक्टर, कैरिकेचर और क्रिएचर

(चरित्र, व्यंग–चित्र और जीव–जंतु)

अगर आप किसी इंसान से पूछें कि उसे क्या चाहिए, तो वो सबसे ऊंचे स्तर की ख़ुशी चाहेगा। आपके चार पहलू हैं –शरीर, मन, भावना और ऊर्जा। इन चारों को सुखद होना चाहिए। अगर शरीर सुखद स्थिति में होता है तो इसे स्वास्थ्य कहते हैं। अगर ये बहुत सुखद बन जाता है तो इसे सुख कहते हैं। यदि मन सुखद स्थिति में होता है तो इसे शांति कहते हैं, यदि ये बहुत सुखद हो तो इसे ख़ुशी कहते हैं ।

यदि आपकी भावनाएं सुखद स्थिति में होती हैं तो हम इसे प्रेम कहते हैं, यदि वे बहुत सुखद बन जातीं हैं, तो हम इसे करुणा कहते हैं। यदि आपकी ऊर्जा सुखद स्थिति में होती है तो हम इसे आनंद कहते हैं और यदि ये बहुत सुखद बन जातीं हैं तो हम इसे परमानंद कहते हैं। अपने चारों और सुखद स्थिति बनाना बहुत सारे लोगों और चीज़ों पर निर्भर करता है, लेकिन अपने शरीर, मन, भावना और ऊर्जा की सुखद स्थिति सौ प्रतिशत आपके हाथ में है।

एक चरित्र बनने की कोशिश मत कीजिए। अगर आप एक बहुत दृढ़ चरित्र बन जाते हैं, तो आप एक व्यंग-चित्र बन जाएँगे। जब आप एक बच्चे थे और अगर आपके आस-पास कोई बहुत मजबूत चरित्र वाला होता था तो आप उन्हें देखकर सोचते थे कि ये तो कार्टून है या कोई जीव-जंतु। वे विकास के अलग ही क्रम हैं। यदि कोई बहुत मजबूत चरित्र दिखाता है तो कोई भी उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।  

अपने चारों और सुखद स्थिति बनाना बहुत सारे लोगों और चीज़ों पर निर्भर करता है, लेकिन अपने शरीर, मन, भावना और ऊर्जा की सुखद स्थिति सौ प्रतिशत आपके हाथ में है। 

यदि आप अपने चरित्र को एक ख़ास तरह से गढ़ते हैं तो आप निश्चित रूप से दूसरे के चरित्र को भी एक ख़ास तरह से होने की उम्मीद करेंगे। आप चाहते हैं कि वे चरित्र के आपके खाँचे में फिट हो जाएँ, नहीं तो वे पास नहीं होंगे। अपने साथ या किसी और के साथ ऐसा मत कीजिए।  

तो एक चरित्र मत बनिए। अगर आप एक खुश और संवेदनशील इंसान हैं तो आप अपना सबसे बेहतर करेंगे। हममें से हर कोई एक ही तरह का नहीं है, हमारी दक्षता और क्षमताएं अलग-अलग हैं। आप शायद वो नहीं कर सकते जो कोई दूसरा कर सकता है, पर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। आप अपना सबसे बेहतर करते हैं।

जीवन – सभी चरित्रों का निर्देशक

जब आप अपने ख़ुद के स्वभाव से खुशनुमा होते हैं तब आप अपने जीवन में एक बाधा नहीं होते, आप कभी मुद्दा नहीं होते। ये एक चीज़ ज़रूर पक्की करनी चाहिए कि अपने जीवन में आप ख़ुद एक मुद्दा नहीं हैं। यहाँ हज़ारों दूसरे मुद्दे हैं। आपके पास जितने ज़्यादा मुद्दे होंगे ये उतनी ही अच्छी बात होगी, क्योंकि इसका मतलब होगा कि आप दुनिया में सक्रिय हैं। यदि आपके पास कोई मुद्दा नहीं है तो शायद आप सो रहे हैं। जिस क्षण आप तनावपूर्ण, परेशान, दुखी, और ग़ुस्से में होते हैं, आप एक मुद्दा बन जाते हैं। बस इस एक बात का ख्याल रखिए तब आपको एक चरित्र की ज़रूरत नहीं होगी – आप बस जीवन की तरह होंगे। आप जीवन हैं। जीवन सभी चरित्रों का निर्देशक होता है।

आपका शरीर विकास की यात्रा तय करके आज इस अवस्था में पहुंचा है। आप इस रूप में पैदा नहीं हुए थे। आप जो कुछ भी खाते हैं वो आप बन जाता है। क्यों? क्योंकि आपमें जीवन धड़क रहा है। आनुवंशिकता और विकास की एक रूपरेखा होती है, लेकिन बाक़ी सब कुछ उस बुद्धिमता के द्वारा किया जा रहा है जिसे आप जीवन कहते हैं। जीवन अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करे – यह तय करना आपके लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है। तो चरित्र मत बनाइए।

जब आप अपने ख़ुद के स्वभाव से खुशनुमा होते हैं तब आप अपने जीवन में एक बाधा नहीं होते।

यदि आपका शरीर पूरी तरह से सक्रिय है तो ये एक तरह से व्यवहार करेगा। यदि केवल आपकी बुद्धि पूरी तरह से सक्रिय है तो आप दूसरी तरह से व्यवहार करेंगे। यदि केवल आपकी भावनाएं सक्रिय हैं तो आप अलग तरह से व्यवहार करेंगे। लेकिन अगर ये जीवन पूरी तरह से सक्रिय है तो ये जीवन के प्रति कुछ भी नकारात्मक नहीं करेगा। जीवन ही आपके पास मौजूद एक मात्र बीमा है। एक बार आप मर गए तब आपके पास सौ करोड़ का बीमा होने से भी क्या होगा? उस हालत में आप किसी और की संपत्ति हैं। मैंने कोई बीमा नहीं कराया, तो कोई ये नहीं सोचता कि, ‘सद्‌गुरु कब जाएँगे? हमें हज़ार करोड़ मिलेगा।’ किसी को ऐसी कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि कोई बीमा नहीं है।

एक गंभीर गलती जो आबादी का एक बड़ा हिस्सा कर रही है, वो ये सोचना है कि हमें कुछ बनाना है। नहीं, पहले से ही सब यहाँ मौजूद है। उदाहरण के लिए आम का पेड़ नारियल पैदा करने की कोशिश नहीं कर रहा, उसकी एक मात्र कामना एक पूरा आम का पेड़ बनना है। इसमें कई तरह की बाधाएं आ सकती हैं, हो सकता है उसे पानी न मिल पाए, या कोई भूखी गाय आ जाए, या कुछ और – लेकिन उस पेड़ की एकमात्र आकांक्षा एक पूर्ण आम का पेड़ बनना है।

आपकी एकमात्र आकांक्षा एक पूर्ण जीवन बनना है। हर किसी का जीवन अपने तरीके से अभिव्यक्ति पाता है। जब तक वे घुटे हुए नहीं, बल्कि एक पूर्ण जीवन हैं, ये अच्छा है।