कमिया जानी: मैं आपकी दिनचर्या के बारे में जानना चाहती हूँ।
सद्गुरु: दिनचर्या क्या होती है?
कमिया जानी: क्या आप किसी दिनचर्या का पालन नहीं करते? [सद्गुरु हँसते हैं]
सद्गुरु: मैं हर दिन एक अलग जगह होता हूँ, और मैं क्या करूँगा इसका कोई अनुमान ही लगा सकता है। इसलिए, मेरे जीवन में दिनचर्या जैसी कोई चीज़ नहीं है।
कमिया जानी: लेकिन कुछ तो ऐसी चीजें होंगी जो आप हर दिन करना सुनिश्चित करते होंगे।
सद्गुरु: अपना दिन शुरू करने से पहले मैं एक प्रक्रिया करता हूँ, जहाँ मैं अपनी ऊर्जा को व्यवस्थित करता हूँ। जब मैं उठता हूँ, मैं कम से कम बीस सेकेंड्स के लिए बिस्तर पर बैठता हूँ, और फिर मैं पूरे दिन के लिए तैयार हो जाता हूँ।
कमिया जानी: आपको क्या करना है क्या आप इसकी सूची नहीं बनाते?
सद्गुरु: नहीं।[ दोनों हँसते हैं ]
कमिया जानी: क्या ऐसा करना आपके दिन और चीजों को व्यवस्थित करने में मदद करता है? या फिर ये बस बहाव के साथ बहना है?
सद्गुरु: नहीं, यह कोई नीति नहीं है। आपके आस-पास जो कुछ भी हो रहा है यह उसके प्रति जागरूक होकर रेस्पोंड करना (उत्तर देना) है। अगर आप इसे एक नीति बना देंगे, आप समय और स्थान के साथ चल नहीं पाएँगे। मुझे क्या कहना है अगर मैं यह तैयार करके आता, और आप मुझसे कुछ और पूछतीं, तो मैं कुछ और ही बोलता, क्योंकि पहले से मेरे दिमाग में वही होता। इसलिए मैं अपने दिमाग में एक खालीपन लिए चलता हूँ, बिना किसी विचार और भाव के, बस सब कुछ देखते हुए और हर चीज आत्मसात् करते हुए। जो सामने आता है मैं उसके अनुसार रेस्पोंड करता हूँ। मैं पहले से कोई तैयारी नहीं करता।
कमिया जानी: हम एक मनोरंजक खेल खेलेंगे, ‘यह या वह।’ मैं आपको विकल्प दूँगी… मसाला डोसा या इडली सांभर?
सद्गुरु: क्या आप महाराष्ट्र से हैं, या उससे ऊपर से? आपके दिमाग में जो मसाला डोसा या इडली है वो उससे अलग है जो मेरी ज़ुबान पर है। मेरा इडली का अनुभव उससे है जो दक्षिण में खाई जाती है, जैसे-जैसे आप उत्तर की तरफ जाते हैं, वो धीरे-धीरे सख़्त होती जाती है। दिल्ली में आप इसे गोल्फ़ बॉल की तरह उछाल सकते हैं। [दोनों हँसते हैं] मसाला डोसा, कुछ ऐसा जो आपके मुँह में घुल जाए, लेकिन जैसे-जैसे आप उत्तर की तरफ़ जाते हैं, यह चमड़े के कागज की तरह बन जाता है। आपको इसे चपाती की तरह चबाना पड़ता है।[कमिया हँसती हैं] इसलिए मैं ऐसे नहीं चुनूंगा, यह इस पर निर्भर करता है कि इसे कौन और कैसे बना रहा है।[दोनों हँसते हैं]।
कमिया जानी: आप अपना दिन किस से शुरू करना चाहेंगे, चाय या कॉफी?
सद्गुरु: कॉफी, बेशक। क्या मैं चाय की तरह दिखता हूँ? कुछ भी। [कमिया हँसती हैं]
कमिया जानी: मैसूर या कोयंबटूर?
सद्गुरु: किस चीज़ के लिए?
कमिया जानी: आपको किसी एक को चुनना होगा, आपका जन्म स्थान या वो जगह जहाँ आप बसे हैं।
सद्गुरु: मैंने रहने के लिए कोयंबटूर को चुना है, लेकिन मैसूर ऐसी जगह है जहां जाना पसंद करूँगा। [दोनों हँसते हैं]
कमिया जानी: आप बाइक चलाने और गोल्फ खेलने, दोनों के लिए उत्साहित रहते हैं - दोनों में से कोई एक चुनिए। अगर आप के पास बस एक घंटा है और आपको किसी एक को चुनना है।
सद्गुरु: मैं गोल्फ के मैदान में बाइक चलाकर जाऊंगा। [कमिया हँसती हैं]
कमिया जानी: ध्यान या सार्वजानिक भाषण?
सद्गुरु: हिमालय के इलाक़े में एक बार ऐसा हुआ। मुंबई से दो युवा दोस्त अपनी आध्यात्मिक साधना के लिए गए। तीन दिन के बाद एक लड़का बगीचे में बैठा था, पूरी तरह उदास। दूसरा लड़का उसके पास गया और बोला, ‘अरे, यहाँ क्या हो रहा है? मैं धूम्रपान करना चाहता हूँ।’ दूसरे लड़के ने कहा, ‘मैं भी। मैं उदास हूँ क्योंकि मैं धूम्रपान नहीं कर सकता।’ फिर उन्होंने कहा, ‘परेशानी क्या है? चलो गुरु जी से पूछते हैं कि क्या हम धूम्रपान कर सकते हैं।’ वे दोनों चले गए।
अगले दिन पहला लड़का फिर से वहीं बैठा था, फिर उदास। दूसरा लड़का आया, धूम्रपान करता हुआ। उसने कहा, ‘अरे! तुम धूम्रपान कर रहे हो! यह कैसे हुआ? मैंने तो गुरु जी से पूछा, ‘जब मैं ध्यान कर रहा हूँ तब मैं धूम्रपान कर सकता हूँ?’ उन्होंने कहा, ‘नहीं।’ फिर तुम धूम्रपान कैसे कर रहे हो? तुम निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हो?’
दूसरे लड़के ने कहा, ‘वही तुम्हारी समस्या है। मैंने तो उनसे पूछा, ‘जब मैं धूम्रपान कर रहा हूँ तब मैं ध्यान कर सकता हूँ?’ उन्होंने कहा, ‘हाँ।’ [दोनों हँसते हैं] इसलिए मेरे लिए सार्वजानिक प्रवचन और ध्यान दो अलग चीज़ें नहीं हैं।[दोनों हँसते हैं]
कमिया जानी: ठीक है, समुद्रतट या पहाड़?
सद्गुरु: मुझे समुद्र तट भी पसंद हैं, लेकिन पहाड़ - मुझे पहाड़ों का नशा है।
कमिया जानी: चामुंडी हिल्स या वेलंगिरि की पहाड़ियां?
सद्गुरु: हम्म... वेलंगिरि की पहाड़ियां बहुत समृद्ध हैं। चामुंडी, इन्हीं की तरह खूबसूरत है, और मेरे जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण भी है। यह एक छोटी सी चोटी है, सही मायने में पहाड़ नहीं है। वेलंगिरी पहाड़ हैं। [हँसते हैं]
कमिया जानी: चामुंडी वो जगह है जहाँ आपको अलग आध्यात्मिक अनुभव हुआ था।
सद्गुरु: हाँ।
कमिया जानी: लेकिन क्या आप उस जगह अक्सर जाते हैं?
सद्गुरु: नहीं, ऐसा नहीं है। बाकी लोग जाते हैं। जहाँ मैं बैठा था उन्होंने उस जगह को चिह्नित किया हुआ है और लोग वहां जाते हैं। मेरे लिए वहाँ जाने के लिए क्या है?
कमिया जानी: हाँ, ठीक है। आप कॉल करना पसंद करते हैं या लिखित सन्देश? मोबाइल में।
सद्गुरु: हम्म। आजकल लगभग सभी काम टेक्स्ट में ही हो रहे हैं, कुछ कॉल्स को छोड़कर। एक समय था जब कभी-कभी दिन में मुझे सौ कॉल्स आती थीं। अब यह ज़्यादातर टेक्स्ट होते हैं। मैं नहीं जानता वो मुझे प्रतिदिन कितने टेक्स्ट भेज रहे हैं। [दोनों हँसते हैं]
कमिया जानी: धन्यवाद, सद्गुरु।