योग और विवेक

एक आत्मज्ञानी के जीवन में कर्म की क्या भूमिका होती है?

आत्मज्ञानी व्यक्ति अपने जीवन की नियति को किस प्रकार देखते हैं? इस दूरदर्शिता से भरे उत्तर में सद्‌गुरु बताते हैं कि उनके पास कितना कर्म है, कितने प्रकार के कर्म होते हैं जो हमारे जीवन को आकार देते हैं और हम कैसे अपने कार्मिक भार को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सद्‌गुरु! जैसा कि मैं समझता हूँ, हमारा जीवन हमारे कर्मों के अनुसार घटित होता है। लेकिन उन आत्मज्ञानी व्यक्तियों का क्या जिनके पास कोई कर्म नहीं होता, और आपने जो इतनी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना किया, वे आख़िर आईं कैसे? 

कर्म के विभिन्न प्रकार

सद्‌गुरु: प्रश्न आपके बारे में होना चाहिए। ख़ैर, आपको जिस किसी ने भी बताया कि आत्मज्ञानी व्यक्ति का कोई कर्म नहीं होता, वह एकदम गलत है। एक आत्मज्ञानी व्यक्ति के पास बहुत कर्म होता है - बाकि लोगों से कहीं ज़्यादा। क्योंकि अगर आप ऊर्जा के एक ख़ास स्तर पर हैं तो कर्म के ज़रूरी भार के बिना आप इस धरती पर नहीं रह सकते। इसीलिए 90% मामलों में व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति और शरीर को छोड़ने की घटना, दोनों एक साथ होती हैं। क्योंकि सचेतन होकर ख़ुद को भारी और पर्याप्त कर्म से जोड़े बिना शरीर में ठहरना असंभव है।  

ये समझना ज़रूरी है कि कर्म एक नकारात्मक शक्ति नहीं है। आप जो भी हैं वो अपने कर्म की वजह से ही हैं। जब हम कर्म के बारे में बात करते हैं तो हम उस याद्दाश्त की विभिन्न परतों की बात कर रहे होते हैं जो आपको बनाती हैं। एक विकासपरक स्मृति होती है जो आपको एक मानव बनाती है। अगर आपका शरीर उस याद्दाश्त को खो दे, तो हो सकता है आप रेंगना शुरू कर दें क्योंकि आप अपनी जानकारी की वजह से एक मानव नहीं हैं, बल्कि उस भारी मात्रा में विकासपरक स्मृति की वजह से हैं जो आपके शरीर की हरेक कोशिका में बसी हुई है।  

अगर आप ऊर्जा के एक ख़ास स्तर पर हैं तो कर्म के ज़रूरी भार के बिना आप इस धरती पर नहीं रह सकते।

सम्यमा जैसे कुछ कार्यक्रमों के दौरान कुछ लोग रेंगने लगते हैं या ऐसी ही कुछ और हरकतें करने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह प्रक्रिया उनकी विकासपरक स्मृति को छूती है। कर्म की बहुत भारी मात्रा होती है, विकासपरक कर्मों से भी पहले की बात करें तो मौलिक तत्वों से जुड़े कर्म।  

विकासपरक कर्म जो आपके शरीर की हरेक कोशिका में समाया हुआ है, आपको एक मानव-रूप और मानव होने की समझ देता है। दरअसल आपका आकार और रूप केवल आपका कर्म या कहें स्मृति है। इसी तरह और भी कई प्रकार के कर्म होते हैं लेकिन मैं उनके विस्तार में नहीं जाऊंगा। एक आनुवंशिक कर्म होता है जिसकी वजह से आपकी एक विशेष आकार की नाक, त्वचा और आपके व्यवहार, क्षमता और अक्षमताओं के कुछ निश्चित पहलू होते हैं। उसके ऊपर आपका अपना मसाला भी है, जिसमें कुछ स्पष्ट तो कुछ अस्पष्ट है और फिर इन सबके अलावा – आपके सचेतन किए हुए कर्म हैं।

आगे बढ़ने के लिए अपने लंगर को खोलिए

अगर आप जानते हैं कि कर्म को कैसे इस्तेमाल करना है तो यह कोई नकारात्मक चीज नहीं है। लेकिन अगर आप इतने सचेतन नहीं हैं कि इसका इस्तेमाल कर सकें तो यह एक सॉफ्टवेयर की तरह काम करता रहेगा। कई लोग ख़ुद की प्रोग्रामिंग इस तरह करते हैं कि वे बंधनों में बंध जाएँ। वे किसी न किसी वस्तु या व्यक्ति से बंध जाते हैं ये सोचते हुए कि केवल बंधन ही उन्हें सुरक्षित रख सकता है।  

किसी नाविक की तरह लंगर फेंककर बंधन बना लेना फायदेमंद हो सकता है, अगर आप किसी एक जगह स्थिर रहना चाहते हैं। लेकिन अगर आप तैरना चाहते हैं तो लंगर आपको दूर जाने से रोकता है। तो आपको ये निश्चित करना होगा कि आप सुरक्षित रहना चाहते हैं या आगे बढ़ना चाहते हैं।  

मेरे करीबी लोगों ने मुझे हर तरह की परिस्थितियों से गुजरते हुए देखा है, जिसमें बहुत सी निरर्थक बकवास भी थी और कई अद्भुत चीजें भी थीं। जब आपके पास कुछ खोने या पाने के लिए नहीं होता तो आप जो चाहे वो कर सकते हैं। आप किसी पहाड़ की गुफा में जाकर केवल परमानन्द में भी रह सकते हैं या आप इस दुनिया में किसी भी हद तक सक्रिय रह सकते हैं।

जीवन के लिए परिणाम की तरफ़ देखना

मेरे विकल्प दुनिया की ज़रूरतों के हिसाब से तय हुए, न कि किसी आवेग या मेरी मनमानी से। जब तक मैंने ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं कर ली थी, मेरा कोई दूसरा उद्देश्य नहीं था। मैंने 3 जीवनकालों तक एक ऐसे व्यक्ति की सेवा की जो मुझे अपने पाँव से भी छूना नहीं चाहते थे, वे मुझे एक छड़ी से छुए थे। यह एक दुःखभरी कहानी है लेकिन इसका परिणाम अद्भुत निकला। क्योंकि मैं परिणाम की तरफ़ देखता हूँ, मुझे उस छड़ी के स्पर्श का कोई दुःख नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आप में से कईयों को ये शिकायत रहती है कि सद्‌गुरु ने मेरी तरफ देखा तक नहीं। वे नहीं देखते।

मेरे विकल्प दुनिया की ज़रूरतों के हिसाब से तय हुए, न कि किसी आवेग या मेरी मनमानी से।

जब तक मैंने ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं कर ली थी, मैं किसी भी दूसरी चीज़ की परवाह नहीं करता था। मैंने यही सोचा था कि बस यही सब कुछ है और इसके होने के साथ-साथ मैं भी समाप्त हो जाऊंगा। जब मेरा मूल ढांचा मेरे अपाहिज होने की सीमा तक बुरी तरह से बिगड़ गया था तो मेरा वापस अपनी पहले जैसी शारीरिक स्थिति में आना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया था। मेरे आसपास ऐसे अद्भुत और समर्पित लोग थे जो जरूरत पड़ने पर अपना जीवन देने के लिए तैयार थे। उन सबके लिए और एक चुनौती के रूप में मैंने कुछ ख़ास चीजें लीं, और फिर से काम करना शुरू किया, ये भी एक अलग तरह का कर्म था।

अगर आप मुझे 1999 में देखते तो उसकी तुलना में आज मेरा शारीरिक हाल कहीं बेहतर पाएँगे। जबकि आम तौर पर समय के साथ शारीरिक सेहत में गिरावट आती है। अगर मेरे आसपास के लोग मेरी तरफ उन आशाभरी निगाहों से नहीं देख रहे होते तो अपनी शारीरिक स्थिति को वापस पाने के लिए मेरा 3.5 साल का वो अथक प्रयास करने का कोई उद्देश्य नहीं होता।

अपने कर्म के भार को कैसे कम करें

उसके बाद स्वाभाविक रूप से मैं लोगों की आध्यात्मिक क्रियाओं से साथ जुड़ गया। जब मैंने आध्यात्मिक क्रियाएँ सिखाना शुरू किया तो मैंने देखा कि कुछ लोग भूखे थे, कुछ बीमार थे, इसलिए उनके साथ कोई आध्यात्मिकता घटित नहीं हो रही  थी। इसलिए हम सामाजिक कामों में शामिल हुए। और अगर कोई आत्मज्ञान पाने की कगार पर हो तो गाँव में एक पेड़ भी नहीं था जिसकी छाया में वो बैठ सके। इसलिए हमने पेड़ लगाना भी शुरू किया, ये इस सीमा तक बढ़ गया कि लोगों ने मुझे 'पेड़ लगाने वाला’ कहना शुरू कर दिया। यह सब कुछ कर्म है।  

लेकिन क्या आपको लगता है कि ये कर्म मेरे ऊपर असर डाल रहे हैं? हो सकता है कभी मैं ठीक से सोया न हूँ, मैं थोड़ा थका हुआ दिख रहा हूँ, लेकिन क्या ऐसा लगता है कि ये सब मेरे ऊपर असर डाल रहा है? मैं चाहता हूँ कि आप समझें कि अगर आपके पास बहुत बड़ी मात्रा में कर्म है तो ये अच्छा है। इसका मतलब है कि आपके पास एक जटिल ढाँचा है।

अगर आपको अपने कर्म से निपटना है तो सबसे आसान तरीका है ख़ुद के लिए पूरी विरक्ति और बाकी सभी वस्तुओं के लिए सम्पूर्ण उत्साह।

लेकिन यह जटिल ढाँचा यदि आपको तकलीफ़ देता है और आप अपने कष्टों का इस्तेमाल दूसरों को कष्ट पहुंचाने के लिए करते हैं, तो यह एक त्रासदी है। दूसरी तरफ, जटिलता जरूरी है महत्वपूर्ण समाधान पाने के लिए। अगर आप इस जटिलता का सही इस्तेमाल कर पाएँ तो ये जीवन जीने का एक अद्भुत तरीका होगा। लेकिन यदि आपमें जटिलता नहीं है तो लोग आपको एक सीधा-सादा या मूर्ख व्यक्ति कहेंगे। उनके पास आपके लिए करुणा होगी लेकिन कोई उत्साह नहीं होगा। यह जीने का एक दुखद तरीका है।  

अगर आपको अपने कर्म से निपटना है तो सबसे आसान तरीका है ख़ुद के लिए पूरी विरक्ति और बाकि सभी वस्तुओं के लिए सम्पूर्ण उत्साह। समस्या यह है कि लोगों के पास ख़ुद के लिए भरपूर उत्साह होता है लेकिन दूसरों के कल्याण और कष्टों के लिए उदासीनता होती है। दूसरों के प्रति उत्साह और ख़ुद के प्रति विरक्ति रखना मुक्ति का एक पक्का तरीका है।

अगर आप अपने आसपास के प्रत्येक जीवन के लिए सम्पूर्ण उत्साह रखते हैं और ख़ुद के लिए पूरी विरक्ति, तो आपको कार्मिक बकवास के बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है - आप कर्म से मुक्त हो जाएँगे।