संस्कृति और राष्ट्र

क्या है भारत की ख़ासियत जो इसे विश्वगुरु बना सकती है?

भारत लम्बे समय से मानवीय संभावनाओं और आंतरिक कल्याण की खोज का केंद्र रहा है। इस लेख में सद्‌गुरु बात कर रहे हैं इस देश की विश्व-गुरु बनने की क्षमता के बारे में और बता रहे हैं कि कैसे इसकी गहनता और सबको शामिल करने की भावना दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच सकती है।

सद्‌गुरु: हज़ारों सालों से, इस संस्कृति की ख़ासियत (USP) यह रही है कि अगर लोगों ने जीवन के गहन आयामों और मानव-प्रक्रिया को समझना चाहा, मसलन हम कैसे बने हैं, हमारे अंदर सबसे बड़ी संभावना क्या है, अपने भीतर मानवता को कैसे पहचानें - केवल मूल्यों के तौर पर नहीं, एक अद्भुत आतंरिक अनुभव के तौर पर, तो उन्होंने हमेशा भारत की तरफ देखा है। लगभग 25 सदी पहले, जब पाइथागोरस ग्रीस से आया और फिर अपोल्लोनियस, तो उन्होंने बहुत बड़ी बात कही, कि भारत तुलना के परे है।  

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भविष्य में आने वाली मानसिक महामारी की चौंकाने वाली चेतावनी दी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने यह नहीं सीखा है कि एक इंसान अपने भीतर से कैसे काम करता है, न ही हमने अपने मन को समझा है, जो हमें इस धरती पर सबसे अलग प्रजाति बनाता है। इस संदर्भ में भारत हमेशा दुनिया का फ़ोकस रहा है।

अगर आप विश्व-गुरु बनना चाहते हैं, तो आपको यह समझना होगा कि यह कोई शक्ति, तरक़्क़ी, या विजय नहीं है – यह सबको अंगीकार करना है। 

यह बहुत अच्छी बात है कि भारत विश्व योग दिवस का नेतृत्व कर रहा है और योग विज्ञान को माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में दुनिया के सामने रख रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे और आगे बढ़ाने के लिए अपने सतत विकास के लक्ष्यों में शामिल किया है। जैसे-जैसे ज़्यादा से ज़्यादा देश अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करेंगे, उनके आंतरिक कल्याण की ज़रूरत बढ़ेगी और फिर भारत आंतरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के मामले में दुनिया का नेतृत्व कर सकता है क्योंकि किसी भी दूसरी संस्कृति ने इस क्षेत्र में उतना निवेश नहीं किया है जितना हमने किया है।

किसी ने मुझसे भारत के विश्व-गुरु बनने के बारे में मेरे विचार पूछे। अगर आप विश्व-गुरु बनना चाहते हैं, तो आपको यह समझना होगा कि यह कोई शक्ति, तरक़्क़ी, या विजय नहीं है – यह सबको अंगीकार करना है। हम दुनिया को अपना बनाना चाहते हैं, इस पर जीत हासिल करना नहीं चाहते। हमारा यही तरीक़ा रहा है, इस धरती पर जिस तरह के भी लोग आए हैं, वो बिना किसी संघर्ष के इसका हिस्सा बन गए, क्योंकि इस संस्कृति ने उन्हें गले लगाया है।

गुरु होना कोई शक्तिशाली या प्रभावशाली पद नहीं है, बल्कि यह प्रेम और समावेश है। हमें यह निश्चित रूप से करना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम इसे कैसे पेश करते हैं। लोगों को योग और आध्यात्मिक प्रक्रिया को एक भारतीय वस्तु की तरह नहीं देखना चाहिए, और न ही इस वजह से इसका विरोध करना चाहिए कि यह भारत का है और आप किसी दूसरे देश के हैं। यह मानवजाति के लिए है। यह हमारी मानवता है, इसीलिए आज हर कोई ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का (पूरी धरती एक परिवार है) जाप कर रहा है। इसका मतलब यह है कि हमारे लक्ष्य पूरी मानवजाति के लिए हैं, किसी एक देश के लिए नहीं।

हमें आर्थिक रूप से मजबूत होने की ज़रूरत है, स्वास्थ्य और शिक्षा का होना बहुत आवश्यक है और सबसे बढ़कर हमें इस तरह जीना चाहिए कि हमारी गहनता और समावेश की भावना को नज़रंदाज़ ना किया जा सके।

सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जिसे समझना हमारे लिए ज़रूरी है, वह यह है कि किसी राष्ट्र को सशक्त बने रहने के लिए, अपनी शक्ति का इस्तेमाल वर्चस्व हासिल करने के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि उसमें सबको खुद में शामिल करने की भावना होनी चाहिए और वह दूसरों में ये इच्छा पैदा कर सके कि वे आपका हिस्सा बनना चाहें। हमें आर्थिक रूप से मजबूत होने की ज़रूरत है, स्वास्थ्य और शिक्षा का होना बहुत आवश्यक है और सबसे बढ़कर हमें इस तरह जीना चाहिए कि हमारी गहनता और समावेश की भावना को नज़रंदाज़ ना किया जा सके। हमारा अतीत ऐसा ही रहा है, यह समय है ऐसा ही भविष्य बनाने का।

हमें यह दिखावे के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि हमारे होने का तरीक़ा ही स्वाभाविक रूप से दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचे । अतीत में यही हमारा तरीक़ा रहा है और भविष्य में भी ऐसा ही होना चाहिए। हर एक व्यक्ति को बनाए बिना कोई राष्ट्र नहीं बना सकता। यह हर एक इंसान की गहनता और खुशहालीही है जो राष्ट्र में झलकती है। जब हमारे प्यारे भारत के सभी नागरिक ऐसे बन जाएंगे, तब राष्ट्र वैसा होगा जिसे दुनिया अनदेखा नहीं कर सकती। हमें यही करने की ज़रूरत है।