जागरूक धरती

सोशल-मीडिया इन्फ्लुएंसर्स – अब एक आम आदमी में दुनिया को बदलने की क्षमता है

ईशा योग सेंटर में रिट्रीट के दौरान, सद्‌गुरु ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के एक दल को उनके मंच को दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाने में इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने समझाया कि मानव-इतिहास में यह समय कैसे एक असाधारण मौका है जब दुनिया भर के लोगों तक पहुँचना और ‘जागरूक धरती’ बनाने के लिए मदद करना आसान है।

अपनी आवाज़ की क्षमता को मुक्त करें 

सद्‌गुरु: नमस्कारम। आप सब को यहाँ देखकर अच्छा लगा। अगर यह समय 25 साल पहले का होता, तो आप लोग अभी किसी ऑफ़िस में कड़ी मेहनत कर रहे होते, और वो सब चीज़ें भी कर रहे होते जिनकी शायद आप परवाह नहीं करते हों। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर होने का आख़िर मतलब क्या है? हम ऐसी पहली पीढ़ी हैं जहाँ अगर हमें कुछ समझदारी की बात कहनी है तो हम उसे पूरी दुनिया को सुना सकते हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है। मानवता के इतिहास में इससे पहले किसी के लिए भी पूरी दुनिया से बात करना संभव नहीं था।

बीते हुए समय में कई महान हस्तियाँ आईं, लेकिन जब उन्होंने बात की तब शायद कुछ ही लोगों ने उन्हें सुना। उनमें से भी आधे लोगों ने उसका मतलब गलत समझा। कुछ लोगों को समझ ही नहीं आया वो क्या बात कर रहे हैं, और बस कुछ ही लोगों को उसका सही अर्थ समझ आया।  

यह समय मानवता के इतिहास में पहली बार है कि हम यहाँ बैठकर पूरी दुनिया से बात कर सकते हैं। यह बस किसी सनक या फ़ैशन को फ़ैलाने या फिर इधर-उधर की बात करने के लिए नहीं है। यह दुनिया को रूपांतरित करने का एक साधन है।  

धरती पर स्वर्ग बनाना 

रूपांतरण का मतलब यह नहीं है कि हर किसी को वैसा बनाया जाए जैसा आप चाहते हैं। यह जानना बहुत ज़रूरी है। ज़्यादातर इंसान वैसे भी नहीं हैं जैसे वो ख़ुद होना चाहते हैं। अगर वो वैसे बन जाते हैं जैसा आप चाहते हैं, तो यह अच्छी चीज़ नहीं होगी। वह तो फासीवाद होगा, रूपांतरण नहीं। पर उन्हें वैसा ज़रूर बनना चाहिए जैसे वो बनना चाहते हैं। इसे और स्पष्ट समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं - मान लीजिए आपको चुनने का मौका दिया जाए कि आप अपने जीवन के हर पल को आनंद से जीना चाहेंगे, या हर समय दुखी रहना चाहेंगे – तो आप क्या चुनेंगें?

रूपांतरण का मतलब यह नहीं है कि हर किसी को वैसा बनाया जाए जैसा आप चाहते हैं।

ज़ाहिर है कि आप आनंद में डूबे रहना चुनेंगे। परेशानी यह है कि आपने खुद से कभी यह सवाल पूछा ही नहीं। अगर आप चुन सकते तो क्या आप खुद के लिए सबसे ऊँचे स्तर का सुखद आयाम नहीं चुनते? लेकिन इस धरती पर ज़्यादातर लोगों ने यह उम्मीद छोड़ दी है। वे सोचते हैं कि यह यहाँ संभव नहीं है। इस वजह से उन्होंने स्वर्ग का विचार बनाया। मेरे विचार से तो स्वर्ग का विचार मानवता के खिलाफ बहुत बड़ा अपराध है।

अगर आप अच्छे से जीना चाहते हैं, तो उसके लिए यही जगह है। कुछ लोग जिन्होंने खुद को यहाँ अच्छे तरीके से जीने के लिए अक्षम बना लिया है और पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कोई दूसरा भी ख़ुशी से न जी सके, उन्होंने एक ऐसी काल्पनिक जगह तैयार कर दी हैं जहाँ उनके अनुसार हर कोई बेहतरीन तरीके से जी सकता है। अगर ऐसी कोई बेहतरीन जगह है, तो वे ख़ुद अब तक वहाँ क्यों नहीं गए? वो वहाँ नहीं गए हैं क्योंकि वो चाहते हैं कि आप वहाँ जाएं। जो भी हो, मानवता के इतिहास में ऐसा पहली बार है कि कोई भी समझदार और परवाह करने वाला इंसान दुनिया को बदल सकता है।

धरती को बचाने के लिए अपनी बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल

इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपके पास ताकत या सत्ता हो, आपने कोई चुनाव जीता हो, या किसी राजा-महाराजा के घर पैदा हुए हों - आप एक बिलकुल मामूली इंसान होकर भी दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं। इस बात को कम करके नहीं आंकना चाहिए। मानव-जाति के रूपांतरण के लिए यह सबसे बड़ी ताकत है जो हमें मिली है। आप सब ने ‘मिट्टी बचाओ अभियान’ के बारे में सुना होगा, जो जागरूक धरती का एक भाग है। इस साल 2023 में, हम ‘जागरूक धरती’ को लेकर की जा रही अपनी कोशिशों को बढ़ाने का प्रयास करेंगे। ‘जागरूक धरती’ एक संस्था या लोगों का एक समूह नहीं है - यह आप सब हैं।

मानवता के इतिहास में ऐसा पहली बार है कि कोई भी समझदार और परवाह करने वाला इंसान दुनिया को बदल सकता है।

इस बात का कोई मतलब नहीं है कि हम में से हर एक अपने बलबूते पर कुछ हासिल करने की कोशिश करे। अगर हम एक पीढ़ी के रूप में एक साथ कुछ हासिल करने की कोशिश करते हैं केवल तभी वास्तविक फायदा हो सकता है। लोग सोचते हैं कि दुनिया में कई तरह की परेशानियाँ हैं, लेकिन दरअसल परेशानी बस एक ही है - इंसान। इंसान ख़ुद एक परेशानी क्यों बन गया है? विज्ञान के विकासवादी सिद्धांत के अनुसार हम विकास का चरम हैं। हम सही मायने में दुनिया के सभी जीवों के मुकाबले सबसे ऊपर हैं - हम इस धरती पर सबसे बुद्धिमान, प्रतिस्पर्धी, और सामर्थ्यवान जीव हैं। आप में से कुछ इससे असहमत हो सकते हैं, और ऐसा होना बिलकुल ठीक है।

इंसान की बुद्धि और उसमें छिपी संभावना इसलिए मुसीबत बन गए हैं, क्योंकि जब इन्हें अचेतना में, बाध्यतापूर्वक सँभाला जाता है तो यही चीजें आपदा में बदल जाती हैं। यही बुद्धिमता और योग्यता एक समाधान और एक बड़ी संभावना बन जाएंगे, अगर इनका सचेतन इस्तेमाल हो। नहीं तो ये एक बहुत बड़ी आपदा हैं। जैसे-जैसे ज़्यादा से ज़्यादा लोग ताकतवर बनेंगे, आपदा बड़े तरीक़े से आएगी। ऐसी ही एक बहुत बड़ी आपदा मौजूद है - जैसा कि आप जानते हैं, मिट्टी, पर्यावरण, और जलवायु परिवर्तन। 

चेतना से मानसिक सेहत बेहतर

एक और बड़ी आपदा यह है कि लोग अंदर ही अंदर टूट रहे हैं। हम इन सभी समस्याओं को ‘मानसिक बीमारी’ का नाम दे सकते हैं। हर दिन इंसान अपने अंदर जितनी मानसिक तकलीफ झेल रहा है – वह अविश्वसनीय है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो बाहरी रूप से काफ़ी हद तक अच्छा कर रहे हैं और कामयाब हैं। यह ख़ास तौर पर इस वजह से है क्योंकि लोग ज़रूरी चेतना के बिना अपनी बुद्धिमत्ता को सँभालने की कोशिश कर रहे हैं। हम चाहे जो भी सोचते हों, बुनियादी तौर पर हम सब एक ही चीज़ तलाश रहे हैं : सबसे सुखद अनुभूति और परमानंद। इसे बाजार में मत ढूँढिए - वहाँ आपको कुछ और ही मिल जाएगा।

यह बहुत ज़रूरी है कि हम एक सचेतन आबादी बनें।

यह बहुत ज़रूरी है कि हम एक सचेतन आबादी बनें। नहीं तो हमारे लिए कोई समाधान नहीं होगा। हम इंसान पहले ही धरती पर सबसे बड़ी मुसीबत बन गए हैं। कोई भी दूसरी प्रजाति इतनी परेशानी पैदा नहीं कर रही। इंसान धरती पर सबसे समझदार और प्रतिस्पर्धी प्रजाति है, जो कि बहुत बड़ी संभावना भी है। लेकिन यह मुसीबत बन गई है क्योंकि हम चीज़ों को चेतना के बिना संभाल रहे हैं। इसलिए हम ‘जागरूक धरती’ के संदेश को दुनिया के लिए एक बड़े रूप में लेकर आएंगे।

सचेतन पीढ़ी की जोड़ने की ताकत

इस समय सबसे ज़रूरी चीज़ है उन लोगों की पहुंच को बढ़ाना जो एक अधिक जागरूक दुनिया के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि जब हम बोलें तो सारी दुनिया सुने। इतिहास में ऐसा पहली बार है कि यह करना संभव हुआ है। हमारे समय में, अगर हम वो नहीं करते हैं जो हम कर सकते हैं, तो मैं इसे एक आपदा कहूंगा। मेरा इरादा यह है कि हम एक पीढ़ी के रूप में आपदा न बनें।