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अपने कर्मों को ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीक़ा और जल्दी शुरुआत करने के लाभ

सद्‌गुरु अलग-अलग तरह के कर्मों के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि सम्यमा कैसे कर्मों के बोझ को कम करता है। साथ ही यह बता रहे हैं कि बोध और जागरूकता संसार में किसी भी संग्रह से अधिक कीमती क्यों है ?

संग्रह का भार

सद्‌गुरु: जानकारी और जानने के बीच अंतर करने की क्षमता किसी के भी जीवन में एक सबसे बड़ी शुरुआत है। ज्ञान हमेशा आपको लोगों के सामने बुद्धिमान दिखाता है। अगर आपकी याद्दाश्त अपने आस-पास के लोगों से ज़्यादा तेज है, तो आप उनसे कहीं ज़्यादा बुद्धिमान दिखेंगे। याद्दाश्त को बोध और ध्यान से ज़्यादा अहमियत देकर हमने मानवता के खिलाफ अपराध किया है। 

बचपन से ही आपको हमेशा अच्छी याद्दाश्त के लिए इनाम दिया गया है। आपको किसी ने इस बात के अंक नहीं दिए कि आपको यह समझ आ गया कि शिक्षक के साथ क्या ग़लत था। इसलिए समय के साथ आप यह मानने लग गए कि याद्दाश्त सबसे कीमती चीज़ है। जानकारी एक तरह का संग्रह है, और आप जो भी इकट्ठा करें, चाहे वो कितना भी मूल्यवान क्यों न लगे, उसका मूल्य केवल सामाजिक रूप से ही है। अस्तित्व के स्तर पर एक साधक के लिए यह संग्रह बेमानी है, क्योंकि यह किसी भी तरीके से आपका विस्तार नहीं करता। यह केवल लोगों के बीच आपको मूलयवान बनाता है। 

जानकारी एक तरह का संग्रह है, और आप जो भी इकट्ठा करें, चाहे वो कितना भी मूल्यवान क्यों न लगे, उसका मूल्य केवल सामाजिक रूप से ही है।

भौतिक शरीर से लेकर वो सब कुछ जो आप इकट्ठा करते हैं, आपको अपने साथ ढोना होगा। उदाहरण के लिए अगर हम आप के सिर पर 25 किलो का ताज रख देते हैं, तो इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह सोने का है या पत्थर का - भार बराबर होगा।  फिर भी अगर आपने इतना भारी ताज पहन रखा है, तो सब लोग सोचेंगे, ‘वाह, ये तो महारानी हैं!’ जानकारी भी ऐसी ही है, जीवन जीने के लिए और आपके आस-पास की बाक़ी चीज़ें करने के लिए यह ज़रूरी है, लेकिन आपके अंदर के आयामों के लिए इसका कोई मूल्य नहीं है। वहाँ, आप जो जानते हैं, आप जानते हैं, और जो आप नहीं जानते, आप नहीं जानते - बस इतना ही है।

ज्ञान से आगे: अज्ञात की खोज

एक बार शंकरन पिल्लई ने मानसिक इलाज कराया। छह महीने के पस्त कर देने वाले महँगे इलाज के बाद एक दिन मनोचिकित्सक ने कहा, ‘अब आप बिलकुल ठीक हैं। आपको अब और इलाज की ज़रूरत नहीं है।’ शंकरन पिल्लई बहुत दुखी हुए। मनोचिकित्सक ने पूछा, ‘क्या दिक़्क़त है? आपके लगातार होने वाले मतिभ्रम अब ख़त्म हो चुके हैं। आप दुखी क्यों हैं?’ शंकरन पिल्लई ने कहा, ‘छह महीने पहले मैं भगवान था, अब मैं कुछ भी नहीं हूँ।’ ज्ञान का हाल भी कुछ ऐसा ही है।

हम आपको कह सकते हैं कि आप भगवान हैं, और आप कुछ समय तक इस बात पर इतरा भी सकते हैं, लेकिन जीवन के अपने तरीके हैं। जानकारी और जानने के बीच में भेद कर पाने के लिए आप तर्क नहीं कर सकते। ‘जानकारी’ क्या है? जानना क्या है?’ मुझे लगता है आप सब ने ज़ेन कहानियाँ सुनी होंगी। एक बहुत ही जानी-पहचानी कहानी है जिसमे एक विद्वान व्यक्ति एक ज़ेन गुरु के पास जाता है। ज़ेन गुरु प्याले में चाय डालना शुरू करते हैं, जो कि उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। प्याला भरने के बाद भी वो चाय डालते रहते हैं। विद्वान व्यक्ति ने गुरु को टोका, ‘आपको क्या हो गया है? जब यह भर चुका है फिर भी आप चाय क्यों डाल रहे हैं?’ गुरु ने कहा, ‘अगर तुम भरे हुए प्याले के साथ आए हो तो मैं भला उसमें क्या डाल सकता हूँ? यह बस बर्बाद ही होगा।’

यह जानी-पहचानी कहानी है, जो आज के समय में पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण है। अगर आप अपनी इकट्ठा की गई जानकारियों में अटक गए हैं और आपने उनसे अपनी पहचान बना ली है, तो आप उसे नहीं समझ पाएंगे। यह एक स्तर तक सही है, लेकिन प्याले के खाली या भरे होने का जहाँ तक सवाल है, तो आपके अंदर अलग-अलग तरह के गोदाम हैं जहाँ यह भरा हुआ है। बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जिनकी प्रकृति भौतिक है, जैसे कि आनुवंशिक स्मृति और विकासवादी स्मृति। इस धरती पर काम करने के लिए आपके अंदर की भौतिक स्मृति आपके लिए बहुत ज़रूरी है।  

कर्मों के बंधन को खोलना

आपके भीतर एक कार्मिक स्मृति है जो सीमाएं तय करती है कि आप क्या हो सकते हैं और क्या नहीं। अगर आपने कभी खुद को सुधारने की कोशिशें की होंगी तो शायद आप समझ पाएँगे कि कई बार आप बहुत मेहनत करते हैं और शायद कुछ दिनों के लिए यह कारगर भी रहता है, लेकिन आप फिर से उसी स्थिति में पहुँच जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कर्म तय करते हैं कि आप क्या हो सकते हैं और क्या नहीं। 

जब तक आप सचेतन होकर इससे नहीं निपटेंगे, आपकी कार्मिक-स्मृति सीमाएँ बनाती रहेगी जिन्हें आप पार नहीं कर पाएँगे। ये सीमाएं भौतिक नहीं हैं, इसलिए आप इन्हें देख नहीं सकते। यह काँच की अदृश्य परत की तरह हैं। आपने देखा होगा कई बार पक्षी या कीट काँच की खिड़की की तरफ भागते हैं और बार-बार टकराते हैं क्योंकि वो नहीं समझते कि काँच क्या है और अपनी जान गँवा देते हैं। इंसान भी कुछ अलग नहीं है। वह भी लगातार अपनी अदृश्य दीवारों की तरफ भाग रहा है और खुद को मार रहा है। लेकिन आपको खुद को मारने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप वैसे भी मर ही जाएंगे। 

जब तक आप सचेतन होकर इससे नहीं निपटेंगे, आपकी कार्मिक-स्मृति सीमाएँ बनाती रहेगी जिन्हें आप पार नहीं कर पाएँगे।

अगर आप अपने अंदर की इन रुकावटों को नहीं हटाएंगे तो बेशक आप कितनी भी कोशिश कर लें, वह नहीं होगा। कर्मों को देखने के बहुत से तरीके हैं। हम इन्हें दो पहलुओं में बाँट सकते हैं - संचित, जो कि कर्मों का गोदाम है, और दूसरा है प्रारब्ध, जो लेन-देन सम्बन्धी है जो कि चल रहा है। आप इसे दुकान की तरह देख सकते हैं - आपकी दुकान में जो भंडार इस वक़्त है वो आपको खर्च करना होगा, नहीं तो ये अव्यवस्थित हो जाएगा। जब आप कहते हैं कि आप आध्यात्मिक पथ पर हैं, तो यह तय करना ज़रूरी हो जाता है कि गोदाम से ज़्यादा से ज़्यादा सामान बाहर आए। 

इसलिए अगर आपके पास दुकान में ज़्यादा सामान भरा है और आप इसे हर दिन नहीं बेच रहे हैं, तब आप बहुत ज़्यादा अव्यवस्थित महसूस करेंगे। इसे रोकने के लिए आप खुदरा बिक्री का सामान कम कर सकते हैं और बिना तपे शांति से जी सकते हैं। अगर हम अपनी दुकान के भंडार का द्वार खोल देते हैं, बहुत ज़्यादा सामान अंदर आ जाएगा। फिर आपको अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए ज़्यादा प्रचार करना होगा। आपको लगातार बिक्री करनी होगी, 24 घंटे, बिना रुके। ज़्यादातर खुदरा दुकानें छोटी होती हैं, इसलिए अगर सामान बहुत ज़्यादा होगा, तो वह आपके सिर पर जमा हो जाएगा।

संचित कर्मों की शक्ति को उजागर करना 

जब आपकी उम्र 33 साल से कम होती है, संचित कर्मों को खोलना, और ज़्यादा भंडार को निकालना आसान होता है, क्योंकि शरीर एक ख़ास तरह से तैयार रहता है और समय लगातार आगे बढ़ रहा है। जिनकी उम्र 33 साल से कम है, वे अभी उस मुक़ाम पर नहीं पहुँचे हैं जहाँ समय खुद एक चेतावनी है, लेकिन वे भी कई तरीकों से समय की ढलान पर नीचे तो जा ही रहे हैं। आज तंत्रिका-वैज्ञानिक कह रहे हैं कि 33 साल की उम्र के बाद आमतौर पर दिमाग की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। लेकिन, कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, इंडियाना विश्वविद्यालय, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, और हारवर्ड चिकित्सा विद्यालय ने, जहाँ ‘सद्गुरु सेंटर फ़ॉर कॉन्शस प्लैनेट’ हैं, यह दिखाने के लिए अध्ययन किया कि जो शांभवी और शक्ति चलन क्रिया का अभ्यास करते हैं, उनकी मस्तिष्क कोशिकाएं घटने के बजाय बढ़ी हैं।

जब आप भौतिक रूप से स्वस्थ हैं, और इस दिशा में जाने की इच्छा रखते हैं, तो आपको इसे टालना नहीं चाहिए। 

प्रतिभागी जिन्होंने सम्यमा कार्यक्रम में हिस्सा लिया, उनके  साथ एक व्यापक अध्ययन भी हुआ है, जो कि सम्यमा कर्म के बारे में है। तीन महीनों के अभ्यास के बाद उन्होंने BDNFs के अलग-अलग पहलू मापे और उन्होंने पाया कि प्रतिभागी कोशिका स्तर पर औसतन साढ़े छह साल कम उम्र के हो गए थे। जवान होने का मतलब यह है कि आप ज़्यादा भार उठा सकते हैं और हम कर्मों के गोदाम को और खोल सकते हैं। अगर आप भंडार वैसा का वैसा रखते हैं, इसका मतलब है आप बिक्री को टाल रहे हैं। जब आप भौतिक रूप से स्वस्थ हैं, और इस दिशा में जाने की इच्छा रखते हैं, तो आपको इसे टालना नहीं चाहिए। 

हम नहीं जानते कि यह मौका फिर आएगा या नहीं। ज़्यादातर लोगों के लिए एक मात्र अध्यात्म तब घटित होता है जब वो मर जाते हैं – ‘राम नाम सत्य है।’ वो समझते हैं कि यह बस जीवन के अंत में आता है। अगर यह जल्दी आ गया है, तो बेहतर यही होगा कि आप इसे खोलें। अगर ऐसा लग रहा है कि जीवन उलझा हुआ और परेशानी भरा है, तो कोई बात नहीं, क्योंकि हमारे पास परेशानी सुलझाने के साधन हैं। ज़रूरी यह है कि आपके भीतर जो भी है, आप उसे अनदेखा न करें, इन सबको बाहर आने दें। जब आप स्वस्थ हैं, ठीक-ठाक और सक्षम हैं, हर बकवास को अपने पास आने दें।

सितारा बनना है तो जलना होगा

अगर आप इसे टालते हैं, तो कुछ दूसरी समस्याएँ भी होंगी। हो सकता है आप तथाकथित ‘बेहतरीन जीवन’ जी रहे होंगे, लेकिन इसका मतलब है आप जल्दी ही बोरियत से परेशान होने वाले हैं। आमतौर पर बेहतरीन जीवन से लोगों का मतलब है - भारत में स्नातक की उपाधि (डिग्री) हासिल कर ली, अमेरिका से स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रैजुएट) कर लिया। घर वापस आने से पहले तीन साल अमेरिका में काम किया। वापस आकर शादी कर ली। आपके दो बच्चे हैं जो कि बहुत बड़ी परेशानी हैं। अब हर दिन काम - आप बस काम और बच्चों की देखभाल करने में व्यस्त हैं।

अगर आप तपते हैं, आप सितारा बन सकते हैं, और एक बार आप सितारा बन जाते हैं तो जीवन में रोशनी और स्पष्टता आ जाती है।

फिर भी, हर कोई यह सोचता है कि आप बहुत अच्छा जीवन जी रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आपको यह सब नहीं करना चाहिए, लेकिन यह ऐसा बेहतरीन जीवन है जिसमें सब कुछ बढ़िया होता है सिवाय आपके। पूरा नाटक होता है, लेकिन आप खुशहाल नहीं रहते। अगर आप ऐसा ही ‘बेहतरीन जीवन’ जीना चाहते हैं, तो यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। इस ‘बेहतरीन जीवन’ को जीने का मतलब है आप हर समय कुछ खरीद रहे हैं, अमेज़ॉन का सामान पहुँचाने वाला व्यक्ति आपके घर बार-बार आ रहा है, आप ज़्यादा लोन ले रहे हैं, और इन सबसे अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है। 

तो आपका इस तरह ‘अच्छा जीवन’ जीना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए आपको खुद को ज़्यादा से ज़्यादा जलाना होगा। जलना आरामदायक चीज़ नहीं है, लेकिन जो जलता है वही सितारा बन सकता है, और ऐसा होना अच्छा है। आपका जीवन शायद बेहतरीन नहीं होगा लेकिन अगर आप तपते हैं, आप सितारा बन सकते हैं, और एक बार आप सितारा बन जाते हैं तो जीवन में रोशनी और स्पष्टता आ जाती है।

कर्म घटाने के फ़ायदे 

आप चीज़ों को वैसा जानते हैं जैसी वो हैं और आपको इकट्ठा किए हुए ज्ञान पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है, जो कि मानव-समाज में जीने के लिए मूल्यवान है। लेकिन अगर आप अकेले हैं, तो इसकी कोई क़ीमत नहीं है। भारत में एक विद्वान के बारे में बहुत पुरानी कथा है जो नाव से गंगा के पार जाना चाहता था। नाव वाला गरीब आदमी था जो कुछ पैसों के लिए नाव इस पार से उस पार ले जाता था। नाव पर बैठे विद्वान ने नाविक से पूछा कि क्या उसने कालिदास को पढ़ा है? नाव वाले को नहीं पता था कि कालिदास कौन हैं। उस समय नावें रस्सी से बंधी होती थीं, नट और बोल्ट से नहीं।

अगर आप अपने संचित कर्मों का भार कम करते हैं, तो पहली चीज़ जो आपके साथ होगी वह यह कि जब आप यहाँ बैठेंगे, आप सभी चीज़ों के प्रति सचेतन होंगे, जैसे आपकी सांसें, धड़कन और आपके शरीर की बाकी संवेदनाएँ। ऐसा इसलिए क्योंकि आपने अपने संचित कर्मों का भार कम कर दिया है। जब आप बैठते हैं, आपको कम से कम यह तो पता हो कि आप साँस ले रहे हैं।

वे आधे रास्ते में ही पहुंचे थे कि नाव में पानी आने लगा। नाव वाले ने पूछा, ‘श्रीमान, क्या आप तैरना जानते हैं?’ विद्वान व्यक्ति ने कहा, ‘नहीं, मैं तैरना नहीं जानता।’ नाविक ने कहा, ‘शायद आपको कालिदास से जानना चाहिए था कि तैरा कैसे जाता है? मुझे यकीन है कि उन्होंने इस बारे में भी कहीं लिखा होगा।’ फिर वो नाविक पानी में कूद गया और तैरकर निकल गया। इसलिए जीवन बचाने के लिए भी आपका अनुभव आपके इकट्ठा किए गए ज्ञान से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। ज्ञान ज़रूरी है, लेकिन यह आपको परिपूर्ण नहीं करेगा। 

अगर आप दुनिया को देखें, क्या पढ़े-लिखे लोग ज़्यादा दुखी, चिंतित और मुरझाए हुए चेहरों के साथ हैं या अनपढ़? पढ़े-लिखे लोग वैसा चेहरे लिए हुए घूम रहे हैं, ज्ञान की बंजरता की वजह से। उन्हें लगता है कि वो सब जानते हैं, लेकिन उन्हें उनके जीवन में ज़्यादातर समय यह भी नहीं पता होता कि वो साँस ले रहे हैं या नहीं। अपनी साँसों के प्रति भी वे केवल तब जागरूक होते हैं जब उन्हें अस्थमा या कोविड होता है।

इसलिए अगर आप अपने संचित कर्मों का भार कम करते हैं, तो पहली चीज़ जो आपके साथ होगी वह यह कि जब आप यहाँ बैठेंगे, आप सभी चीज़ों के प्रति सचेतन होंगे, जैसे आपकी सांसें, धड़कन और आपके शरीर की बाकी संवेदनाएँ। ऐसा इसलिए क्योंकि आपने अपने संचित कर्मों का भार कम कर दिया है। जब आप बैठते हैं, आपको कम से कम यह तो पता हो कि आप साँस ले रहे हैं।