चर्चा में

ईशा विद्या के लिए 2500 किमी की साइकिल यात्रा

रमेश जयराम की यात्रा के बारे में जानिए जिन्होंने ईशा विद्या के ग्रामीण बच्चों की शिक्षा के समर्थन में पूरे भारत में  23 दिन तक  2500 किमी साइकिल चलाई। इस रास्ते में उन्होंने अपरिचितों की दयालुता का अनुभव किया और मिलाप के अपने व्यक्तिगत लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे। पढ़िए जूनून और मानवता से भरी एक प्रेरक कहानी।

100 किमी साइकिल चलाने का अभ्यास करना और घर वापस लौट आना एक अलग बात है लेकिन 24-25 दिनों तक हर रोज़ 100 किमी से ज्यादा साइकिल चलाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना दूसरी बात है। जब मैंने ये एकल यात्रा शुरू की तब मैं क्या सोच रहा था? जब मैं अपनी सपोर्ट कार में कोयम्बटूर से गुरुग्राम (गुड़गाँव) लौट रहा था तब मेरा मन इन विचारों के साथ भाग रहा था, और ये यात्रा कभी न ख़त्म होने वाली लग रही थी। तब मुझे समझ में आया कि मैंने कितनी लंबी यात्रा की थी।

2500 किमी की यात्रा की शुरुआत

मेरे मन में गहरा आक्रोश था अपने एक पूर्व आदर्श – लांस आर्मस्ट्रांग के लिए, जो एक कैंसर पीड़ित और 7 बार के ‘टूर दे फ्रांस’ (फ़्रांस में होने वाली 3600 किलोमीटर लंबी साइकिल रेस) के विजेता रहे हैं। उन पर डोपिंग के आरोप के बाद उनकी विजेता की पदवी छीन ली गई थी। जब उन्होंने डोपिंग के आरोप स्वीकार किए, यह मेरे लिए एक सदमे की तरह था, क्योंकि वे लगातार निषेध पदार्थों के उपयोग से मना करते रहे थे, बल्कि वे उन सब पर पलटवार भी करते जो उनसे मादक पदार्थ लेने के आरोपों के विषय में पूछते थे। मैंने उनकी सातों विजय यात्राओं को ध्यान से देखा था। हर गर्मी में 23 दिनों तक मेरी नज़र उसी रेस पर रहती, जब फ़्रांस में इसका आयोजन किया जाता था। एक उत्साही फैन की तरह अपने नायक को इस तरह अपने पद से गिरते देख मैं टूट गया था।

मुझे लगता है उन्हीं दिनों मुझमें लम्बी साइकिल यात्रा करने का बीज पड़ गया था। 23 दिनों तक – इतने ही दिनों तक ‘टूर डे फ़्रांस’ चलता है, साइकिल चलाते हुए मैं अपनी पूर्णता प्राप्त कर सकूंगा और अपने धराशायी नायक की यादों से उबर सकूंगा। इस तरह गुरुग्राम (गुड़गाँव) से कोयम्बटूर की ये यात्रा हुई ।

व्यक्तिगत पुकार के परे

शुरू में मेरे लिए ये एक व्यक्तिगत यात्रा थी, लेकिन मन में सवाल था कि क्या इसका विस्तार हो सकता है? मुझे ईशा विद्या के बारे में पता था, और एक फिल्म शिक्षक के रूप में बेहतर शिक्षा का महत्व समझने के कारण मैंने तय किया कि जागरूकता फैलाकर ग्रामीण बच्चों की शिक्षा के लिए धन और समर्थन इकट्ठा किया जाए। ईशा विद्या के लिए 33 लाख रुपये इकठ्ठा करने के लक्ष्य के साथ मैंने यात्रा की शुरुआत की।

मैंने स्वयंसेवकों के एक समूह को इकठ्ठा किया जो धन उगाहने और सक्षम दानदाताओं को ढूँढने में मदद कर सकते थे और एक क्राउड फंडिंग प्लेटफ़ॉर्म ‘फ्यूल अ ड्रीम’ से अनुबंध किया। मेरी पूरी 2500 किमी की यात्रा के दौरान स्पेरो साइकिल जो मैंने यात्रा के दौरान इस्तेमाल की उससे जुड़े लोग भी तकनीकी पहलुओं पर मेरी मदद करने में बहुत खुश थे। यात्रा के दौरान मैंने जयपाल सिंह को मेरी सपोर्ट कार चलाने के लिए रखा, जो एक तरह से सहायता वाहन था। 29 दिसम्बर 2022 तक सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं। 

यात्रा शरू हुई ...

पहला सप्ताह ये समझने में बीता कि मेरे और मेरे शरीर के साथ क्या हो रहा है। हर रात मुझे एक नए स्थान पर जाना होता था, वहाँ रुकना होता था और रहने की जगह ढूंढनी होती थी। अपनी गति से चलते हुए इसके भी कुछ हिस्सों का मैंने आनंद लिया। लेकिन अधिकतर ये अपने शरीर को तैयार करने और आगे के सफ़र की तैयारी करने का समय होता था। दूसरे सप्ताह से सब बढ़िया था। मैं साइकिल चलाने का मज़ा लेने लगा। मैं 5 राज्यों से गुजरा – हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक, और फिर अंत में तमिलनाडु पहुँचा।

हर एक राज्य की अपनी ख़ुशबू है – एक ख़ास ध्वनि, ख़ास नज़ारा और ख़ास खुशबू – ये वाक़ई अद्भुत है। किसी खुली सवारी में यात्रा करते हुए इस देश के अलग-अलग हिस्सों से गुजरना, कार में बैठकर यात्रा करने से बिलकुल अलग है। साइकिल की धीमी रफ़्तार पर चलते हुए आप उस सब की प्रशंसा कर सकते हैं और ग्रहण कर सकते हैं, जो गाँव आपको देना चाहते हैं। मेरे सूंघने की शक्ति तीव्र है, तो मैंने मध्य प्रदेश के खेतों से सौंफ की खुशबू और कर्नाटक में ट्रैक्टर पर लादकर जाती हुई लाल मिर्च की खुशबू का आनंद लिया।

एक चीज़ जो मैं बताना चाहूँगा वह है ध्रुव तारे से मेरी गुप्त भेंट। हर शाम यात्रा करते हुए जैसे ही सूर्यास्त होता मैं ध्रुव तारे को ठीक उसी जगह देखता। ये मेरे लिए विश्वास का स्रोत था जो मुझसे कहता था, ‘मैं अपनी जगह ‌दृढ़ हूँ और तुम्हारी पूरी यात्रा और उसके समापन तक तुम्हारे साथ हूँ।’ 24 दिनों तक लगातार एक सूर्यास्त के बाद दूसरा सूर्यास्त देखना किसी एनसीआर में रहने वाले के लिए सच में एक तोहफा है।

देश के दयालु लोगों से मिलना

अपनी पूरी यात्रा के दौरान मैंने कई अपिरिचित लोगों की दयालुता का अनुभव किया, जिसके लिए मैं आभार अनुभव करता हूँ और उन्हें बस ‘शुक्रिया’ ही कह सकता हूँ। उन लोगों की उन छोटी-छोटी मदद के बिना मैं अपनी यात्रा समय पर कभी पूरी नहीं कर पाता।

इन मददगारों में एक थे आरिफ़। एक बार रास्ते में मेरी साइकिल का टायर पंक्चर हो गया, जिसे कोई हाथ भी नहीं लगा रहा था क्योंकि वो एक जटिल साइकिल थी। लेकिन सड़क किनारे बैठे एक मैकेनिक आरिफ ने ये काम लिया और उसे ठीक कर दिया। एक पेंटर का भी आभारी हूँ, जिसने 25 किमी की यात्रा की, सिर्फ मुझे मेरा चश्मा लौटाने के लिए। मैंने नर्मदा नदी के एक पुल पर तस्वीरें लेते वक्त अपना चश्मा वहीं छोड़ दिया था और कुछ लोग वहाँ की रेलिंग को पेंट कर रहे थे। वह पेंटर उन्हीं लोगों में से एक था।

दयालुता के ये छोटे-छोटे काम मानवता पर आपका विश्वास बढ़ाते हैं। बिना उस चश्मे के मैं रात में साइकिल नहीं चला पाता। और पंक्चर के न बनने पर शायद मैं पूरा एक दिन खो देता क्योंकि तब अपनी साइकिल को लादकर पास के शहर तक ले जाना होता। छोटी चीजें भी बहुत मायने रखती हैं और यह सब मानवता की बात है। यही मैंने पूरी यात्रा के दौरान अनुभव किया।

और विदा ...

क्या मेरे पास एक छुट्टी का दिन था? हाँ, अठारहवें दिन मेरे शरीर ने जवाब दे दिया। मुझे पूरे एक दिन का आराम चाहिए था और मुझे ख़ुशी है कि मैंने यह किया। उस छुट्टी ने मेरे शरीर और मेरी आत्मा में फिर से जान डाल दी, जिससे मैं बिना किसी दिक्कत के कोयम्बटूर पहुँच सका। अभी जब मैं ये लिख रहा हूँ हमने ईशा विद्या के लिए 31 लाख रुपए इकट्ठे कर लिए हैं। मैं इस बात से विनम्र महसूस कर रहा हूँ कि कैसे यात्रा का एक विचार बहुत सारे लोगों की मदद से सच्चाई में बदल गया। मैं इसे संभव बनाने वाले हर एक के प्रति आभार से नतमस्तक हूँ। नमस्कारम!

—-रमेश जयराम, गुरुग्राम