सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव

कृष्ण को जानना है तो उनके हर पहलू को समझना होगा 

कृष्ण निःसंदेह इतिहास के सबसे रहस्यपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक हैं – दैवीय और मानवीय का एक जटिल मिश्रण, जिनकी कहानी शुरू होती है एक आश्चर्यजनक भविष्यवाणी से। सद्‌गुरु ने कार्यक्रम  ‘लीला – क्रीड़ा का मार्ग’ का परिचय दिया, ये समझाते हुए कि जीवन के सबसे गहरे आयामों को खेल-खेल में कैसे जानें।

सद्‌गुरु: कृष्ण एक किसी से भी न दबने वाले बालक थे, एक बेहद शरारती, एक अद्भुत बांसुरीवादक, एक सुन्दर नर्तक, एक अत्यंत सम्मोहक प्रेमी, एक सच्चे वीर योद्धा, अपने शत्रुओं के क्रूर संहारक, एक आदमी जिसके कारण हर घर में एक टूटा हुआ दिल था, एक चतुर राजनेता और किंगमेकर, एक पूर्ण सज्जन पुरुष, एक सबसे ऊंचे दर्जे के योगी और सबसे रंगीला अवतार।

कृष्ण –सबसे जटिल और रंगीला अवतार

यदि आप उस चेतना का स्वाद लेना चाहते हैं जिसे हम कृष्ण कहते हैं तो आपको लीला की ज़रूरत होगी। लीला का अर्थ है - क्रीड़ा का मार्ग। ये गंभीर तरह के लोगों के लिए नहीं है। ये बस खेल नहीं है, बल्कि ये जीवन के सबसे गहन आयाम की विनोदमय खोज है। यदि आप ये खोज विनोद के साथ खेल-भाव से नहीं कर सकते तो कृष्ण नहीं मिलेंगे। दुनिया की अधिकांश आबादी जीवन के सबसे गहरे आयाम को इसलिए नहीं जान पाई, क्योंकि कि वे यह नहीं जानते कि क्रीड़ामय कैसे रहा जाता है।

यदि आप इस राह की खोज क्रीड़ामय होकर करना चाहते हैं तो आपको चाहिए एक प्रेम से भरा हृदय, एक ख़ुशी से भरा मन और एक ऊर्जा से भरा शरीर। नहीं तो कोई लीला नहीं होगी। हम नृत्य और संगीत के बिना कृष्ण की बात नहीं कर सकते। अगर कोई जीवन के सबसे गहरे आयाम को विनोद और क्रीड़ा के साथ खोजना चाहता है तो उसे अपनी जागरूकता, कल्पना, याद्दाश्त, जीवन और मृत्यु के साथ खेलने को तैयार रहना होगा। लीला का अर्थ केवल किसी के साथ नृत्य करना नहीं है। आपको अपने प्रेमी और शत्रु दोनों के साथ नृत्य करने को तैयार रहना होगा। आपको जीवन और मृत्यु दोनों के साथ नृत्य करने को तैयार रहना होगा। लीला केवल तभी होगी जब आप अपनी मृत्यु के अंतिम क्षण में भी नृत्य करने को तैयार हैं।

यदि आप इस राह की खोज क्रीड़ामय होकर करना चाहते हैं तो आपको चाहिए एक प्रेम से भरा हृदय, एक ख़ुशी से भरा मन और एक ऊर्जा से भरा शरीर। नहीं तो कोई लीला नहीं होगी। 

लीला जूनून की राह है। यदि आपके हृदय में पागलपन नहीं है, तो आप इस राह पर नहीं चल सकते। यदि आप बहुत समझदार हैं, तो कृष्ण आपके लिए नहीं हैं। कृष्ण को पाने के लिए बुद्धि को औसत, लेकिन हृदय को पागल होना चाहिए। कृष्ण सिक्के के दोनों पहलू हैं। अगर आप सिर्फ एक पहलू देखेंगे तो उन्हें हासिल नहीं कर पाएंगे। कभी-कभी उनका एक पहलू सामने होगा तो कभी दूसरा। अपने पूरे जीवन में कृष्ण ने धर्म की स्थापना की बात की है – जीवन जीने का सही तरीका – पुरातन के प्रति असीम आदर के साथ। ठीक उसी समय वे हज़ारों सालों से ढोई जा रहीं जर्जर हो चुकी परम्पराओं और रीतियों का तिरस्कारपूर्वक त्याग भी करते हैं।

कृष्ण के जादुई रास्ते

उनके आस-पास कई तरह की चीज़ें हुईं – सारगर्भित चीज़ें, प्रेमभरी चीज़ें, आंनदपूर्ण चीज़ें, निर्मम और क्रूर चीज़ें और पूरी तरह से जादुई चीज़ें। एक मात्र चीज़ जो उनके आस-पास कभी नहीं हुई वो थी – सुस्ती। पागलपन, प्रेम, हत्या, मक्कारी, ख़ुशी, परमानन्द, जादू – सुस्ती के अलावा सब कुछ उनके आस-पास घटित हुआ। कृष्ण के व्यक्तित्व में एक जटिल जाल है जिसमें - एक इंसान के रूप में कृष्ण ने जिस भी मिशन को अपने हाथ में लिया, उसका उत्तरदायित्व, दैवीय तत्व और साथ एक सक्रिय जीवन जीने वाले मनुष्य के स्वाभाविक दोष – सब कुछ गहनता से बुना हुआ है।

उनके केवल एक पहलू को देखना सही नहीं होगा क्योंकि ऐसे देखने से वे पूरी तरह से विकृत रूप में दिखेंगे। वे इतने बहुआयामी हैं कि यदि आप उनके हर पहलू का कम से कम थोड़ा सा हिस्सा भी नहीं छूते तो ये उनके प्रति पूरी तरह से अन्याय होगा ।

भविष्यवाणी

कृष्ण मथुरा में पैदा हुए थे, जो आजकल उत्तर प्रदेश में है। वे एक यादव समुदाय में पैदा हुए थे। उन दिनों उग्रसेन इस समुदाय के एक बहुत महत्वपूर्ण मुखिया थे। वे बूढ़े हो रहे थे और उनका बेहद महत्वाकांक्षी बेटा सत्ता पाने के लिए किसी भी तरीके को अपनाने में हिचकिचाने वाला नहीं था। वह अपने पिता के मरने का इंतज़ार नहीं कर सका। जब आप एक राजा हों और आपका बेटा महत्वाकांक्षी हो तो या तो आपको जल्दी मर जाना चाहिए या फिर वन में चले जाना चाहिए, नहीं तो महत्वाकांक्षा हताश होने लगती है।

उग्रसेन का बेटा कंस अपने पिता के न्याय की समझ और चीज़ों को सँभालने के उनके तरीकों से हताश हो गया। वे उसे बड़े पुराने ज़माने के लगते थे। नई पीढ़ी हमेशा पिछली पीढ़ी को पुराने ख्यालों का मानती है। कंस की महत्वाकांक्षा प्रतीक्षा नहीं कर सकी, उसने अपने ही पिता को कैद कर लिया और शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। कंस ने पूर्वी प्रांत के एक क्रूर राजा जरासंध से, जो अपनी क्रूरता के लिए जाना जाता था, गठबंधन कर लिया। उसका सपना पूरी दुनिया को जीतने का था और वह बड़ी तेज़ी से अपना साम्राज्य बढ़ा रहा था। कंस ने उससे गठबंधन इसलिए किया क्योंकि उस समय शक्तिशाली होने का वही एकमात्र तरीका था।

कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ जो यादवों के एक मुखिया थे। विवाह के तुरंत बाद ही जब कंस नवदंपति  को रथ पर बैठाकर ले जा रहा था तो आकाश से एक आवाज़ आई। उस आवाज़ ने कहा, ‘हे कंस, तुम अपनी बहन को विवाह के बाद ख़ुशी-ख़ुशी रथ पर ले तो जा रहे हो, लेकिन इसकी आठवीं संतान तुम्हारा वध करेगी। यही तुम्हारा अंत होगा।’