क्या सिर्फ मज़े के अलावा नृत्य में कुछ और भी है? कुछ लोगों को नाचना इतना मुश्किल क्यों लगता है? भारतीय देवताओं को नर्तकों के रूप में प्रदर्शित क्यों किया गया है? सद्गुरु अपने अनूठे तरीके से नृत्य जैसे विषय की छान-बीन कर रहे हैं।
सद्गुरु: भारतीय संस्कृति में, उन चीजों पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया गया है जो भौतिक शरीर कर सकता है, और उन आसनों व गतिविधियों पर जो उस शरीर में रहने वाले व्यक्ति को उन्नति की ओर ले जा सकते हैं। इसी समझ के आधार पर अलग-अलग शास्त्रीय नृत्य बनाए गए। इसमें एक ख़ास तरह का गणित और लय शामिल है। ये नृत्य इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं कि शरीर क्या कर सकता है, कलाबाज़ियों के संदर्भ में नहीं बल्कि शरीर को गरिमापूर्वक और गहरी भावनात्मक भागीदारी के साथ गतिशील रखने के संदर्भ में।
लगभग कुछ सदियों पहले तक, नृत्य मुख्य रूप से मंदिरों में किया जाता था क्योंकि संगीतकार और नर्तक मुख्य रूप से भगवान के लिए प्रदर्शन करते थे। लोग भी उसे देख सकते थे, लेकिन मुख्य मकसद वह नहीं था। यह संगीत और नृत्य के प्रति मूल नजरिया था क्योंकि उन्हें मनुष्य के उल्लास की एक अभिव्यक्ति के रूप में, और बेफिक्री की स्थिति में आने के एक साधन के रूप में देखा जाता था।
यह इकलौती ऐसी संस्कृति है, जहाँ हमारे देवताओं को भी नृत्य करना पड़ता था। नृत्य न कर सकने वाला देवता यहाँ पास नहीं हो पाता था क्योंकि नृत्य को सिर्फ मनोरंजन या कला रूप की तरह नहीं, बल्कि सृष्टि की प्रकृति के प्रदर्शन के रूप में देखा जाता था। योग ने हमेशा सृष्टि और विनाश दोनों को तांडव – एक प्रचंड लेकिन बहुत ही तालमेल वाले नृत्य – के रूप में दर्शाया है, और आदियोगी शिव उसके प्रतीक हैं।
समझ के उस आयाम से एक पूरी संस्कृति विकसित हुई है। अधिकांश दूसरी संस्कृतियों में लोग हमेशा नृत्य को किसी के साथ नाचने के रूप में समझते थे। लेकिन यहाँ, नृत्य का मतलब है कि हम अपनी आँखें बंद करके उन्मत्त हो जाते हैं।
भर जाता है जब खुशी से आपका दिल
आपके भद्दे और बेडौल अंग भी
हो जाते हैं सुंदर और सुडौल।
सभी जीव जब होते हैं
अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में
फूट पड़ता है उनका नृत्य।
सिर्फ सुंदर काला नाग या रंग-बिरंगा मोर ही नहीं
यहां तक कि दुबला-पतला झींगुर
और विशालकाय हिप्पोपोटामस भी
करते हैं अपना नृत्य।
इस धरती पर देवताओं, ऋषि-मुनियों ने भी
उतार फेंका अपना चोला
झूठी गंभीरता और गरिमा का
और नाचे जी भरकर
ताकि बन जाए
जीवन एक सुंदर नृत्य।
सद्गुरु
29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है। नृत्य के लिए एक दिन – लोगों को याद दिलाने के लिए एक अच्छी बात है क्योंकि कई लोग नाच ही नहीं सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अपने सिर पर एक पहाड़ ढो रहे हैं। उनकी आस्था, सिद्धांत, विचारधारा और धर्मग्रंथ उनके सिर पर अंतहीन बोझ हैं। नृत्य करने के लिए, आपको वर्तमान में जीने वाला एक जीवन होना चाहिए, न कि प्राचीन काल में। लेकिन लोग अक्सर सोचते हैं कि किसी चीज को क़ीमती होने के लिए उसे प्राचीन होना चाहिए। उन्हें लगता है कि किसी चीज़ के अच्छा होने के लिए, उसे कम से कम एक हजार साल पुराना होना चाहिए।
पुरानी चीज़ों की कद्र करने के लिए किसी बुद्धिमत्ता या जागरूकता की जरूरत नहीं होती। उदाहरण के लिए 5000 साल बाद भी बहुत सारे लोग कृष्ण की पूजा करते हैं। लेकिन जब वह जीवित थे, तो उन्हें तमाम तरह के आरोपों का सामना करना पड़ा। सिर्फ उन्हें चाहने वाले लोग ही उनके साथ नाचते थे। बाकी लोग उन पर तरह-तरह के आरोप लगाते थे। नाचने वाले लोग किसी वजह से लोगों के तर्क में फ़िट नहीं हो पाते, इसलिए उन्हें सराहने में लोगों को थोड़ा समय लग जाता है।
यह किसी एक इंसान की बात नहीं है – यह जीवन के एक पहलू की बात है। अगर कृष्ण या शिव अभी आपके अंदर जीवंत नहीं होते, तो प्राचीन देवताओं की तरह उनकी पूजा करने का कोई खास मतलब नहीं है। अगर आप किसी को एक प्रेरणा की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, तो मुझे कोई परेशानी नहीं है। लेकिन कुछ हज़ार साल पहले जो हुआ, उसकी तारीफ करना आसान है। इसका यह मतलब नहीं है कि आप उस संभावना का अनुभव कर लेंगे, जिसके वे प्रतीक हैं।
आप सिर्फ पहचान जोड़ेंगे। आप उसका एक हिस्सा महसूस करेंगे, आप भाईचारा महसूस करेंगे। अगर आप भाईचारा चाहते हैं, तो यह धरती के हर जीव के साथ होना चाहिए। लेकिन अगर आपका भाईचारा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तो यह अत्याचार की शुरुआत है। जैसे-जैसे भाईचारा बढ़ता जाएगा, वह पूरी तरह निरंकुश हो जाएगा। यही वजह है कि धरती पर अधिकांश धर्मों ने किसी भी दूसरी चीज़ के मुक़ाबले कहीं ज्यादा हिंसा फैलाई। क्योंकि एक सीमित पहचान के साथ भाईचारा एक खतरनाक प्रक्रिया है। इसीलिए आपको ज़रूर नाचना चाहिए।
जब आप नाचते हैं, तो आपका भाईचारा थोड़ा टूट जाता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आपने अपने दिमाग में मौजूद छोटे से तर्क पर जो सारी बकवास खड़ी की है, वह आपको अपने ही जाल में फँसी मकड़ी की तरह बना देती है। जो मकड़ी शिकार पकड़ने के लिए जाल बुनती है, वह चतुर मकड़ी होती है। लेकिन जो मकड़ी अपने ही जाल में फँस जाए, वह एक मूर्ख मकड़ी है और आपकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया यही है। जैसे-जैसे यह जाल मजबूत होता जाता है, आपके पैर वजनी हो जाते हैं और आप नाच नहीं सकते।
नाचने के लिए आपको थोड़ा बेशर्म होना होगा। वरना आप हमेशा इस चिंता में रहते हैं कि आप कैसे दिखते हैं। क्या हुआ अगर आप मूर्ख की तरह लग रहे हैं? अगर आप वाकई होशियार हैं, तो आप कुछ देर के लिए मूर्ख की भूमिका निभाना चाहते हैं। लेकिन अगर आप मूर्ख हैं, फिर आप पहचाने जाने से डरते हैं।
लोग खुद को ढेर सारी ऐसी चीज़ों से भर रहे हैं, जो जीवन से जुड़ी नहीं हैं। अगर वे खुद को हवा, भोजन और प्रकृति तथा जीवन के सभी दृश्यों और ध्वनियों से भरते, तो उन्हें नाचने का मन करता। लेकिन वे खुद को सिद्धांतों, विचारधाराओं, धर्मग्रंथों और तमाम चीज़ों से भर लेते हैं। अगर आप मनुष्य का इतिहास देखें, जो लोग किसी एक विचारधारा, दर्शन, आस्था या किसी तरह की प्रथा या अभ्यास पर मजबूती से विश्वास करते थे, उन लोगों ने दूसरी हर चीज़ को मार दिया।
नाचने वाले लोगों ने कभी किसी को मारा नहीं। जब आपका दिल खुशी से भरा होता है, तो आपके मन में किसी को मारने का ख्याल नहीं आता क्योंकि तब आप किसी चीज़ से खतरा महसूस नहीं करते। आप असुरक्षित महसूस नहीं करते क्योंकि आपके पास बचाने के लिए कुछ नहीं होता। आप जानते हैं कि जीवन सृष्टि की भव्यता है, उसका ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाना आपके ऊपर है। जब मैं कहता हूँ, ‘उसका ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाइए,’ तो कुछ लोग सोच लेंगे, ‘सद्गुरु कह रहे हैं कि हमें पार्टी करनी चाहिए।’
लोगों को लगता है कि उन्हें नाचने के लिए भरा होना चाहिए। लेकिन मैं कहता हूँ कि आपको नाचने के लिए खुद को खाली करना चाहिए। मैं बेफिक्री की बात कर रहा हूँ, जबकि वे शराब पीने की बात सोच रहे हैं। जब आप शराब या ड्रग्स के नशे में होते हैं, तो आप ऐसा दिखावा कर सकते हैं कि आप बेफिक्र हैं, लेकिन आप अपनी जागरूकता खो चुके होते हैं।
बेफिक्री की स्थिति में आना और अपनी जागरूकता खोना दो अलग-अलग चीज़ें हैं। अगर नृत्य खुद एक नशा है, तो ठीक है। लेकिन अगर आप नशे में नाच रहे हैं, तो उसका कोई खास महत्व नहीं है। नृत्य का मतलब सिर्फ संगीत के साथ कुछ करना नहीं है। आप अपने काम इस तरह कर सकते हैं, मानो वह कोई नृत्य हो, आप इस तरह चल-फिर सकते हैं, मानो वह कोई नृत्य हो, आप हर छोटे से छोटा काम इस तरह कर सकते हैं, मानो वह कोई नृत्य हो।