एक मृदंगम कलाकार का जीवन
आश्रम में जिधर ईशा संस्कृति है, उधर से ढोल के बजने और खिलखिलाने की आवाज़ें आ रही हैं। महाशिवरात्रि उत्सव से पहले, युवा कलाकार अपनी मंच प्रस्तुतियों की तैयारी कर रहे हैं, जहां वे उन भारतीय शास्त्रीय कलाओं को प्रदर्शित करेंगे, जो सालों से उनके जीवन का अंग रही हैं। जब विद्यार्थी ब्रेक लेने और बॉल गेम का मज़ा लेने जाते हैं, तो अश्विन दो मुंह वाले ड्रम, मृदंगम में विशेषज्ञता हासिल करने वाले ईशा संस्कृति के पूर्व छात्र के रूप में अपना अनुभव हमारे साथ साझा करने आ जाते हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत या नृत्य की एक उल्लासमय प्रस्तुति के दौरान, भले ही दर्शक नर्तकों की मुद्राओं की सुंदरता या गायकों की आवाज़ की मिठास पर ध्यान दें, लेकिन इस अनुभव को पूर्ण बनाने में एक प्रतिभाशाली मृदंगम कलाकार के कौशल की जरूरत पड़ती है।
यह दो मुंह वाला ड्रम कर्नाटक संगीत प्रस्तुतियों और भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुतियों के लिए मुख्य ताल वाद्य यंत्र है। ‘लाइव ऑर्केस्ट्रा नर्तक या गायक को ऊर्जा देता है और पूरी प्रस्तुति के मिजाज में इजाफा करता है,’ अश्विन यह कहते हुए साझा करते हैं, ‘उदाहरण के लिए, नर्तक किसी खास जगह पर उदासी व्यक्त करने की कोशिश कर रहा है। उस समय मंच के बगल में मौजूद संगीतकार को उदासी की उस गहराई को पकड़कर उसे दर्शकों तक पहुंचाने में सक्षम होना चाहिए।’