सात दिनों का सांस्कृतिक समारोह, सात अविस्मरणीय संगीत कार्यक्रमों के साथ संपन्न हुआ। विभिन्न भारतीय शास्त्रीय और लोक संगीत तथा नृत्य के प्रख्यात कलाकारों ने महाशिवरात्रि के बाद सप्ताह भर चलने वाले समारोहों के दौरान आदियोगी के समक्ष अपने कला रूपों को प्रस्तुत किया। कर्नाटक संगीत से लेकर लोक रंगमंच तक, इन प्रस्तुतियों ने लोगों को पल भर के लिए भी ऊबने नहीं दिया।
संस्कृति के तीन दिनों का उत्सव ‘यक्ष’ की पहली रात को, तीन प्रसिद्ध संगीतकारों ने कर्नाटक संगीत की समृद्धि और सुंदरता का प्रदर्शन किया। भारतीय शास्त्रीय संगीत एक आंतरिक अनुभव पैदा करने के उद्देश्य से ध्वनियों की एक जटिल व्यवस्था है। समारोह की पहली शाम को, गायक श्री अभिषेक रघुराम ने श्रोताओं को दिखाया कि एक गायक भावनाओं को कितनी गहराई से प्रस्तुत कर सकता है। उनके साथ मृदंगम पर श्री अनंत आर. कृष्णन और वायलिन पर श्री एच.एन. भास्करन थे। जहाँ दो सिरों वाले ड्रम ने ताल सेट किया, वहीं वायलिन की मधुर आवाज ने रात की हवा को आनंद और शांति से भर दिया। तीनों कलाकारों ने मिलकर अपनी संगीत की अभिव्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर देने वाली ध्वनि की टेपेस्ट्री में बदल दिया।
पाँच भारतीय शास्त्रीय संगीतकार मंच पर आते हैं, आराम से अपने वाद्ययंत्रों को व्यवस्थित और ट्यून करते हैं, और इसी बीच दर्शक शाम की सुखद हवा का आनंद लेते हुए अपनी-अपनी जगह लेते हैं। जैसे ही प्रस्तुति शुरू होती है, पहले ही स्वर से मुख्य कलाकारों की अद्भुत प्रतिभा साफ नज़र आने लगती है। श्री सुमंत मंजूनाथ वायलिन बजा रहे हैं, जिन्होंने 10 साल की उम्र में अपना पहला संगीत कंसर्ट किया था, उनके दाहिनी ओर, भारतीय शास्त्रीय संगीत में इस्तेमाल की जाने वाली बाँसुरी पर, भविष्य के विलक्षण कलाकार श्री हृषिकेश मजूमदार हैं। ताल की संगत के साथ, वाद्ययंत्रों में गजब का तालमेल दिखाई देता है और वे एक-दूसरे के अनूठेपन और क्षमता को बढ़ाते हुए प्रस्तुति को चरम पर ले जाते हैं। गहन भाव और रचनात्मकता के साथ कलाकारों की तकनीकी महारत, दर्शकों को इस मधुर सफर में उनके साथ बहा ले जाती है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई रंगों का अनुभव करने के बाद, तीसरी शाम को हमें पुण्य डांस कंपनी के 'पद' का अद्भुत भरतनाट्यम देखने को मिला। भारतीय शास्त्रीय नृत्य एक समावेशी अनुभव है, जिसकी शुरुआत नर्तकों के मंच पर आने के साथ लाइव ऑर्केस्ट्रा की मधुर ध्वनियों से होती है। धीरे-धीरे कलाकार अद्वितीय कोरियोग्राफी को प्रस्तुत करते हैं और हरेक मूवमेंट हर जगह गूँजता है। नृत्य की बारीकियों के साथ रफ्तार बढ़ती है और अपनी सटीकता व गहनता के साथ वे एक जादुई प्रस्तुति करते हैं, क्योंकि नृत्य की पेचीदगियों के साथ गति एक साथ बढ़ जाती है। जीवंत और नाजुक बारीकियों के साथ, रंग-बिरंगे और लयबद्ध अनुभव ने सबको समृद्ध कर दिया।
श्री एंथनी दासन के मार्गदर्शन में तमिलनाडु के लोक कलाकार संघ ने सालों के इतिहास और परंपरा को मंच पर ला दिया है। दुनिया भर में तमिल लोक संगीत का प्रदर्शन करने वाला यह ग्रुप सभी पृष्ठभूमि और जगहों के दर्शकों को अपने संगीत की जीवंतता और सुंदरता से परिचित कराता है। इस शाम को भावपूर्ण गायकों के साथ उत्साही संगीतकारों ने तमिलनाडु के धड़कते दिल को ईशा योग केंद्र में ला दिया। उन्होंने कई पारंपरिक वाद्ययंत्रों के अनोखेपन और समृद्धि को प्रदर्शित किया जो ग्रामीण इलाकों में जीवन का अभिन्न अंग हैं। इस शो के आगे बढ़ने के साथ भीड़ भी ढोल की ताल पर कलाकारों के साथ नाचने लगी और वातावरण उत्सव की भावना से गुलज़ार हो उठा।
रंगों, संगीत और जीवंत नृत्यों के विस्फोट के साथ यह बात तो निश्चित है कि महाशिवरात्रि उत्सव के पांचवें दिन कोई नीरस क्षण नहीं था। तमिलनाडु से नुक्कड़ नाटक का एक पारंपरिक रूप कट्टईकुथ्थू, आमतौर पर भारतीय महाकाव्यों की कहानियों को दर्शाता है, जिसमें लगभग 8 घंटे तक प्रस्तुतियां होती रहती हैं और अक्सर यह रात भर चलता रहता है। एक विशेष ट्रीट के तौर पर कलाकारों ने अपने प्रोडक्शन को थोड़ा बदला और ढाई घंटे की जीवंत और ऊर्जावान प्रस्तुति दी। इस कला रूप में, अभिनेता भारी-भरकम आभूषण पहनते हैं, जो दर्शकों की आंखों को आकर्षित करते हैं क्योंकि वे स्पॉटलाइट में झिलमिलाते हैं। साथ में चलने वाला लाइव संगीत मन को मोहने वाले शो के संपूर्ण माहौल और भव्यता को बढ़ाता है। मंच पर एक नाटक दिखाया गया, जिसमें पंचभूतों, यानी पांच तत्वों को शिव और पार्वती से शरण मांगते हुए दर्शाया गया। शो के सभी पहलुओं को देखना एक अविस्मरणीय अनुभव था।
आदियोगी के समक्ष कज़ाकिस्तान के एक डांस ग्रुप द्वारा भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों को चकित कर दिया, क्योंकि उन अद्वितीय नर्तकियों के नृत्य से हर कोई मंत्रमुग्ध था। एक नर्तकी मंच पर आती है, गरिमापूर्वक नृत्य करते हुए उसका दमकता चेहरा तरह-तरह की भावनाओं को अभिव्यक्त करता है। इसके बाद उसकी सहयोगी नृत्यांगनाएं उसके साथ मिलकर एक सम्मोहक भरतनाट्यम प्रस्तुति देती हैं। ये नृत्यांगनाएं कज़ाकिस्तान में सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांसेज एंड योग से आई थीं, जो मध्य एशिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर की पहली गैर-व्यावसायिक संस्था है। उनका भावनात्मक लेकिन ऊर्जावान प्रदर्शन इस बात का उदाहरण है कि कैसे भारतीय शास्त्रीय नृत्य दुनिया भर के लोगों के दिलों को छू सकता है।
महाशिवरात्रि उत्सव के आखिरी दिन, ईशा संस्कृति के हर उम्र के छात्रों ने भारत के अलग-अलग हिस्सों के शास्त्रीय और लोक नृत्यों का एक अनूठा प्रदर्शन किया। नृत्य, संगीत और पहनावे की कई शैलियों को मिलाकर उन्होंने एक ऐसा अनुभव तैयार किया, जिसने भीड़ को शांत भी किया और उनके दिल के तार झकझोर दिए। शो की शुरुआत और अंत सफेद कपड़े पहने नृत्यांगनाओं के एक समूह के साथ हुआ, जो भक्ति गीतों पर भरतनाट्यम कर रही थीं और उनके चारों ओर प्रकाश एक दिव्य प्रभामंडल बना रहा था। इसके बाद यह प्रस्तुति रंग-बिरंगे और उल्लासमय नृत्यों की ओर बढ़ी, जिसमें ईशा संस्कृति के विद्याथियों ने अपनी जबरदस्त प्रतिभा और विविधता का प्रदर्शन करते हुए हमें भारत की समृद्ध संस्कृति का स्वाद चखाया।