जब दुनिया भर के लाखों लोग सद्गुरु के साथ महाशिवरात्रि 2022 मनाने के लिए इकट्ठे हुए, तो उन्होंने इस अवसर का लाभ उठाकर हर किसी को आगाह किया कि पूरी दुनिया में मिट्टी की हालत खतरनाक स्थिति में पहुँच चुकी है और आने वाले दशकों में हमारे सामने विनाशकारी परिणाम आने वाले हैं – अगर हम सब ने कदम न उठाया, और अपनी राय ज़ाहिर नहीं की।
सद्गुरु: एक वैश्विक सभ्यता के रूप में, हम एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुके हैं, जहाँ इस क्षेत्र का हर जिम्मेदार वैज्ञानिक यह बता रहा है कि अगले 20 से 25 सालों में हमारे सामने गंभीर खाद्य संकट आने वाला है। दुर्भाग्य से हमारी याद्दाश्त बहुत छोटी है। 1950 से पहले इस देश में कितने अकाल आए, जिनमें लाखों लोगों की जानें गई। सिर्फ़ 1943 के अकाल में ही 30 लाख जानें चली गईं – इतने लोग भूख से मर गए, किसी बम से नहीं, जिसने अचानक फटकर लाखों लोगों की जान ले ली हो।
भूख से मरना बहुत भयानक है। हम उन सारी आपदाओं को भूल गए और एक बार फिर खुद को उस दिशा में धकेल रहे हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक कह रहे हैं कि 2045 तक, हम अभी की तुलना में 40 फीसदी कम भोजन पैदा कर रहे होंगे और दुनिया की आबादी 9 अरब से ज्यादा होगी। ज़ाहिर है, आप रहने के लिए ऐसी दुनिया नहीं चाहते हैं। आप नहीं चाहते कि आपके बच्चे ऐसी दुनिया में जियें।
जो भोजन हम खा रहे हैं और जिस मिट्टी को हम खत्म कर रहे हैं, वह हमारी नहीं है। हम अजन्मे बच्चों की मिट्टी को नष्ट कर रहे हैं। यह एक अपराध है। तो, हम एक अभियान शुरू कर चुके हैं। पिछले आठ महीनों में, मैं दुनिया के कई राष्ट्र-प्रमुखों, पर्यावरण मंत्रियों और कृषि मंत्रियों से बात कर रहा हूँ। हर कहीं, हर कोई जानता है कि ऐसा होना चाहिए लेकिन समस्या यह है कि लोग बोल नहीं रहे।
लोगों ने अपने ही जीवन में लॉंगटर्म दिलचस्पी नहीं दिखाई है। वे बस छोटी-मोटी चीज़ें मांगते हैं, तो सरकारें उन्हें छोटी-मोटी चीज़ें देती हैं। अब समय है कि हर जिम्मेदार नागरिक यह दिखाए कि अपने जीवन में हमारी दिलचस्पी लंबे समय के लिए है। हमें बताना ही होगा कि हमें सिर्फ अपनी नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों की भी परवाह है।
कई चीजें हो रही हैं, जो इसी का हिस्सा हैं। मैं संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (कॉप-15) को संबोधित करूंगा जिसमें 170 देश भाग लेंगे। हमने एक विस्तृत मृदा-नीति तैयार की है जो हर देश में जाएगी। हमने दुनिया के 730 राजनीतिक दलों को लिखा है क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हर राजनीतिक दल, चाहे उनके सिद्धांत, विचारधारा, और बाकी जो कुछ भी वे मानते हैं, कुछ भी हो, वे अपने चुनावी घोषणापत्र में मिट्टी और इकोलॉजी की समस्याओं को ज़रूर लाएँ। ऐसा तभी होगा, जब बड़ी संख्या में लोग बोलेंगे।
दुर्भाग्य से, यह एक मौन लोकतंत्र है। लोकतंत्र इस तरह काम नहीं करता। लोकतंत्र का मतलब है, लोगों का शासन। अगर लोग सरकार को जनादेश नहीं देंगे, तो सरकारें लंबे समय के लिए निवेश कैसे करेंगी? अगर लोग लेंबे समय के लिए प्रतिबद्धता दिखाएंगे, तो सरकारें भी ऐसा ही करेंगी।
21 मार्च से मैं लंदन से शुरू करके 26 देशों से होते हुए 100 दिनों में 30,000 किलोमीटर की मोटरसाइकिल यात्रा करूँगा। इन 100 दिनों तक आप सभी को दिन में कम से कम 5 से 10 मिनट मिट्टी के बारे में कुछ न कुछ कहना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है। अपना सोशल मीडिया, अपना ट्विटर, अपना फेसबुक, अपना टेलीग्राम, जो कुछ भी आपके पास है, उसका उपयोग कीजिए। अगर आप नहीं जानते कि ये काम कैसे करने हैं, तो हमने टूलकिट जारी किए हैं, जिसमें बताया गया है कि कैसे ये एकाउंट खोले जा सकते हैं, और उन्हें कैसे मैनेज किया जा सकता है। आपको जो भी जानकारी चाहिए, वह हमारी वेबसाइट SaveSoil.org पर उपलब्ध कराई जाएगी। उन 100 दिनों में पूरी दुनिया को मिट्टी की बात करनी चाहिए।
अगर 3 से 4 अरब लोग मिट्टी के बारे में अपनी चिंता और अजन्मे बच्चों के लिए अपनी चिंता के बारे में बोलेंगे, तो कोई भी सरकार इसे नजरअंदाज नहीं कर सकेगी। यह किसी तरह का विरोध नहीं है। यह किसी तरह की दबाव की रणनीति नहीं है। यह नागरिकों की इच्छा की अभिव्यक्ति है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि एक लोकतांत्रिक समाज में एक जिम्मेदार अभिव्यक्ति हो।
हम मिट्टी से निकले हैं, हम मिट्टी में उपजी चीज़ें खाते हैं और जब हम मरते हैं, तो वापस मिट्टी में चले जाते हैं। मिट्टी ही एक ऐसा जादू है, जहाँ अगर आप मौत को दफनाते हैं, तो वह जीवन को जन्म देती है। दुनिया भर में मिट्टी की स्थिति सुधारना बहुत जरूरी है। जैसा कि आप जानते हैं कि इस देश में सैकड़ों-हजारों किसानों ने आत्महत्या की है। इसे हमेशा इस रूप में समझाया जाता है, ‘अरे, वे बैंक के कर्जे में डूबे थे, इसलिए उन्होंने आत्महत्या की।’ मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, अगर आपके पास एक खेत हो, और आपके ऊपर बैंक का कर्ज हो, लेकिन आपके पास उपजाऊ मिट्टी हो, जिससे आप कम से कम अपने परिवार के लिए भोजन उगा सकें – तो क्या आप खुद को मारेंगे? नहीं, आप ऐसा नहीं करेंगे।
लोग आत्महत्या कर रहे हैं, क्योंकि खेतों में काम करना निराशाजनक होता जा रहा है। मिट्टी कमजोर हो गई है। आप जो भोजन खा रहे हैं, उसमें मौजूद पौष्टिक तत्व उससे काफी कम हैं, जो 50 से 100 साल पहले लोगों के भोजन में होते थे। हम किसी मामूली पतन के बारे में बात नहीं कर रहे हैं - हम मिट्टी के विनाश की बात कर रहे हैं। हम उसी दिशा में जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां कह रही हैं कि इस पृथ्वी पर सिर्फ 60 से 80 बार की फसलों के लिए मिट्टी बची है। आप अपने बच्चों को क्या देने वाले हैं? आप उनके लिए कैसी दुनिया छोड़कर जाएंगे?
तो कृपया, इन 100 दिनों तक, खुद को जीवंत रखिए – आपके पाँच से दस मिनट दुनिया को बचा सकते हैं।