प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, कई लोग अपने घरों और ऑफिसों में आपकी तस्वीर रखते हैं। उसकी क्या अहमियत है?
सद्गुरु: जब चेतना विकसित होती है और कुछ बाधाओं के पार जाती है, तो उस चेतना को धारण करने वाला शरीर भी नाटकीय तरीके से विकास करता है। जब मैं एक खास अनुभव से गुज़रा, तो बहुत कम समय में मेरे शरीर में भी जबरदस्त बदलाव आए, जो सामान्य रूप से संभव नहीं हैं। अगर आप अपने तार्किक दिमाग को सक्रिय रखते हुए मुझे देखेंगे, तो आप मुझे बहुत उग्र व्यक्ति के रूप में देखेंगे। आपका दिमाग जितना तार्किक होता है, मैं उतना ही ज़्यादा उग्र दिखता हूँ। लेकिन जब आप अपने तार्किक दिमाग को एक तरफ रखकर मुझे देखते हैं, तो आप मुझे बहुत ही सौम्य और करुणामय इंसान की तरह देखेंगे।
ध्यानलिंग में पतंजलि और वनश्री – देवताओं के दो उदाहरण
शरीर एक रूप है और हर रूप एक स्पंदन पैदा करता है। शरीर के अंदर मौजूद चेतना के अलावा, शरीर खुद भी एक रूप बन जाता है। इसके आधार पर, देवता बनाने का एक पूरा विज्ञान है। उदाहरण के लिए, पतंजलि एक देवता हैं। वनश्री एक देवता हैं। ध्यानलिंग देवता नहीं है। हम ध्यानलिंग के बारे में बहुत बात करते रहे हैं, लेकिन इन दो अद्भुत प्राणियों के बारे में हमने बहुत कम बात की है। वे ध्यानलिंग जैसे बहुआयामी, उल्लासमय या स्थायी नहीं हैं, लेकिन उनकी अपनी विशेषताएं हैं।
हमने उन्हें प्रतीक के रूप में रखा है, लेकिन वे अपनी तरह से जीवित हैं। जहां तक कि आकार-प्रकार का सवाल है, वे परफेक्ट नहीं हैं, लेकिन वे काफी जीवंत देवता हैं। उनका लोगों के जीवन पर असर और प्रभाव पड़ता है। वे अभी काफी शक्तिशाली हैं लेकिन अगर उन्हें एक खास तरह से बनाया जाता, तो वे और ज्यादा शक्तिशाली हो सकते थे।
सद्गुरु के साथ सम्यमा कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले साधक
मानव शरीर की अद्भुत क्षमता
इसी तरह, भौतिक शरीर को देवता की तरह बनाया जा सकता है क्योंकि अभी आप जो भी हैं, वह शरीर में चक्रों की ख़ास व्यवस्था की वजह से हैं। आपकी सभी क्षमताएं, सीमाएं और संघर्ष सिर्फ इन 114 चक्रों के अलग-अलग अनुपात, आयाम और तीव्रता में एक व्यवस्था है। यह व्यवस्था ही तय करती है कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं। आपको जो भी साधना सिखाई गई हो, वह इन 114 चक्रों की एक निश्चित सीध बनाने पर केंद्रित होती है। आम तौर पर हम सात चक्रों की बात करते हैं, लेकिन ये सात सब कुछ नहीं हैं। बाकी चक्र भी आपके जीवन के हर पहलू में दैनिक रूप से प्रकट होते हैं।
कोई रूप आपकी चेतना पर कई रूपों में असर डाल सकता है। सिर्फ आपके मानसिक आयाम को नहीं – वे आपकी ऊर्जा को भी प्रभावित कर सकते हैं।
तो मेरे अस्तित्व के अलावा, यह शरीर बाकियों से कई मायनों में अलग है। यह शरीर कैसे अलग है, इस बात को समझने के लिए क्रियाओं और ऊर्जा की एक गहरी समझ की जरूरत होती है। खुद रूप का भी एक प्रभाव होता है। एक पहलू यह है कि इसका एक दृश्य लाभ है। किसी चीज़ को देखने का हमेशा एक खास असर पड़ता है क्योंकि यह आपको कई चीज़ों की याद दिलाता है।
रूप आपकी चेतना पर कई रूपों में असर डाल सकते हैं। सिर्फ आपकी मानसिक कल्पना में नहीं – वे आपकी ऊर्जा को प्रभावित कर सकते हैं। जब मेरे साथ सम्यमा कार्यक्रमों में बैठने वाले लोग घंटों के ध्यान के बाद अपनी आँखें खोलते हैं और मुझे देखते हैं, तो मेरा रूप आसानी से उनके सिस्टम में छप जाता है। ऐसा होने के बाद, ऐसे व्यक्ति के लिए तस्वीर काफी फर्क ला सकती है।
लेकिन वैसे भी, तस्वीर किसी छोटे देवता की तरह काम करती है। यह सिर्फ आपकी आस्था नहीं है। अगर तस्वीर के बदले हम एक अलग तरह का रूप बनाकर उसे आपको दें तो वह और भी प्रभावी होगा। लेकिन तस्वीर भी काफी असरदार होती है और निश्चित रूप से उसका काफी विजुअल और मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है।
साथ ही, हम जो चित्र देते हैं, उनमें ऐसा गुण होता है कि आप सामान्य अर्थ में उनसे जुड़ नहीं सकते। वे व्यक्ति में एक तरह की उदासीनता लाते हैं। वे एक तरह से आपकी तीव्रता बढ़ाते हैं और साथ ही, वे आपको फँसने नहीं देते। इसीलिए हम आम तौर पर अनौपचारिक चित्र नहीं देते ताकि लोग मुझे एक व्यक्ति की तरह नहीं, बल्कि एक रूप की तरह देखें जो कई मायनों में पवित्र है।